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वास्तु एवं प्रकृति में स्वास्तिक का महत्व

-सम्पतकुमार सेठी

माँ वसुंधरा के अंदर निधियों का अनमोल खजाना छिपा है। अनादि काल से आदिब्रह्मा, नारायण श्रीकृष्ण, ऋषि मुनि, आचार्य देव ने इस विषय पर हमें जानकारियाँ दी हैं। इसके राज को जानने के लिए वैज्ञानिकों ने तमाम उम्र लगा दी एवं लगाते चले जा रहे हैं। कोई वैज्ञानिक यह नहीं कहता ऐसा होगा। उनके वक्तव्य में ऐसा होने की संभावना है।

वैज्ञानिकों ने तूफान, बरसात, जमीन के अंदर पानी, तेल के कुएँ आदि की जानकारी के लिए कई यंत्रों का निर्माण किया। इन यंत्रों से प्राप्त जानकारियाँ पूर्णतः सत्य एवं पूर्णतः असत्य नहीं होतीं। जर्मन और फ्रांस ने यंत्रों का आविष्कार किया है, जो हमें ऊर्जाओं की जानकारी देता है। उस यंत्र का नाम बोविस है। इस यंत्र से स्वस्तिक की ऊर्जाओं का अध्ययन किया जा रहा है। वैज्ञानिकों ने उसकी जानकारी विश्व को देने का प्रयास किया है। विधिवत पूर्ण आकार सहित बनाए गए एक स्वस्तिक में करीब 1 लाख बोविस ऊर्जाएँ रहती हैं। जानकारियाँ बड़ी अद्भुत एवं आश्चर्यजनक है।
(स्वस्तिकः सर्वतो ऋद्ध। (अमर कोष)

स्वस्तिक का महत्व सभी धर्मों में बताया गया है। इसे विभिन्न देशों में अलग-अलग नामों से जाना जाता है। चार हजार साल पहले सिंधु घाटी की सभ्यताओं में भी स्वस्तिक के निशान मिलते हैं। बौद्ध धर्म में स्वस्तिक का आकार गौतम बुद्ध के हृदय स्थल पर दिखाया गया है। मध्य एशिया देशों में स्वस्तिक का निशान मांगलिक एवं सौभाग्य सूचक माना जाता है। नेपाल में हेरंब के नाम से पूजित होते हैं। बर्मा में महा पियेन्ने के नाम से पूजित हैं। मिस्र में सभी देवताओं के पहले कुमकुम से क्रॉस की आकृति बनाई जाती है। वह एक्टोन के नाम से पूजित है। मेसोपोटेमिया में अस्त्र-शस्त्र पर विजय प्राप्त करने हेतु स्वस्तिक चिह्न का प्रयोग किया जाता है। हिटलर ने भी इस स्वस्तिक चिह्न को ग्रहण किया था। जर्मन के राष्ट्रीय ध्वज में स्वस्तिक विराजमान है। क्रिश्चियन समुदाय क्रॉस का प्रयोग करते हैं। वह स्वस्तिक का ही रूप है। जैन समुदाय एवं सनातन समुदाय में स्वस्तिक को मांगलिक स्वरूप माना गया है।

वास्तु शास्त्र में चार दिशाएँ होती हैं। स्वस्तिक चारों दिशाओं का बोध कराता है। पूर्व, दक्षिण, पश्चिम, उत्तर। चारों दिशाओं के देव पूर्व के इंद्र, दक्षिण के यम, पश्चिम के वरुण, उत्तर के कुबेर। स्वस्तिक की भुजाएँ चारों उप दिशाओं का बोध कराती हैं। ईशान, अग्नि, नेऋत्य, वायव्य। स्वस्तिक के आकार में आठों दिशाएँ गर्भित हैं। वैदिक हिन्दू धर्म के अनुकूल स्वस्तिक को गणपति का स्वरूप माना है। स्वस्तिक की चारों दिशाएँ से चार युग, सतयुग, त्रेता, द्वापर, कलयुग की जानकारी मिलती है। चार वर्ण ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र। चार आश्रम ब्रह्मचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ, संन्यास। चार पुरुषार्थ धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष। चार वेद इत्यादि अनंत जानकारी का बोधक है।

स्वस्तिक की चार भुजाओं में जिनधर्म के मूल सिद्धांतों का बोध होता है। समवसरण में भगवान का दर्शन चतुर्थ दिशाओं से समान रूप से होता है। चार घातिया कर्म ज्ञानावरणीय, दर्शनावरणीय, मोहनीय, अंतराय। चार अनंत चतुष्टय अनंतदर्शन, अनंतज्ञान, अनंतसुख, अनंत वीर्य। उपवन भूमि में चारों दिशाओं में क्रमशः अशोक, सप्तच्छद, चंपक और आम्रवन होते हैं। चार अनुयोग- प्रथमानुयोग, चरणानुयोग, करणानुयोग, द्रव्यानुयोग। चार निक्षेप- नाम, स्थापना, द्रव्य, भाव। चार कषाय- क्रोध, मान, माया, लोभ। मुख्य चार प्राण- इंद्रिय, बल, आयु, श्वासोच्छवास। चार संज्ञा- आहार, निद्रा, मैथुन, परिग्रह। चार दर्शन- चक्षु, अचक्षु, अवधि, केवल। चार आराधना- दर्शन, ज्ञान, चारित्र, तप। चार गतियाँ- देव, मनुष्य, तिर्यन्च, नरक।

स्वस्तिक के बारे में इतनी जानकारी देने का मुख्य उद्देश्य स्वस्तिक के आकार में अनगिनत जानकारियाँ अनेक शक्तियों से गर्भित हैं। शरीर की बाहरी शुद्धि करके शुद्ध वस्त्रों को धारण करके ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करते हुए (जिस दिन स्वस्तिक बनाएँ) पवित्र भावनाओं से नौ अंगुल का स्वस्तिक 90 डिग्री के एंगल में सभी भुजाओं को बराबर रखते हुए बनाएँ। केसर से, कुमकुम से, सिन्दूर और तेल के मिश्रण से अनामिका अंगुली से ब्रह्म मुहूर्त में विधिवत बनाने पर उस घर के वातावरण में कुछ समय के लिए अच्छा परिवर्तन महसूस किया जा सकता है। स्वस्तिक के अंदर बोविस यंत्र के द्वारा ऊर्जाओं की जो जाँच की गई, लगभग 1 लाख सकारात्मक ऊर्जाओं का अस्तित्व रहता है। भवन या फ्लैट के मुख्य द्वार पर एवं हर रूम के द्वार पर अंकित करने से सकारात्मक ऊर्जाओं का आगमन होता है। मनुष्य से भूल होना स्वाभाविक है।

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