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उपदेश

आचार्यश्री विद्यासागर जी महाराज के अमृत वचन

1. जीव दया ही परम धर्म है|
Mercy on creatures is absolute religion.

2. अच्छे लोग दूसरों के लिए जीते हैं जबकि दुष्ट लोग दूसरों पर जीते हैं
Good people live for others while the bad people live on others.

3. नम्रता से देवता भी मनुष्य के वश में हो जाते हैं
God comes in the command from amenity.
4. जिस तरह कीड़ा कपड़ों को कुतर देता है, उसी तरह ईर्ष्या मनुष्य को

As insects nibble the cloth, jealousy nibbles a man.
5. श्रम शब्द में ही श्रम और संयम की प्रतिष्ठा है
Labor has the altitude of labor and control.

6. भूत से प्रेरणा लेकर वर्तमान में भविष्य का चिंतन करना चाहिए
By taking inspiration we should meditate about future.
7. श्रद्धा के बिना पूजा-पाठ व्यर्थ है
Without admiration, worship is of no use.

8. हमें सिखाती है जिनवाणी, कोई कष्ट न पावे प्राणी
Jinwani teaches not to trouble animals.

9. क्रोध मूर्खता से शुरू होता है और पश्चाताप पर खत्म होता है
Anger starts from foolishness and ends on grief.

10. जीवन को भोग की नहीं, योग की तपोभूमि बनाएं
We should make our life the field of austerities, not of clover.

11. जिन्हें सुंदर वार्तालाप करना नहीं आता, वही सबसे अधिक बोलते हैं
Who doesn’t know healthy conversation, only they speak much.

12. दूसरों के हित के लिए अपने सुख का त्याग करना ही सच्ची सेवा है
It is the true service to deny our own comfort for others.

13. जो नमता है, वह परमात्मा को जमता है
One, who bows, is liked by the amity.

14. जिसकी दृष्टि सम्यक हो, वह कभी कर्तव्य विमुख नहीं होता है
One, who has fair perspective, never looses the way of duty.

15. सम्यकत्व से रिक्त व्यक्ति चलता-फिरता शव है
One is a walking dead body, without authenticity.

16. प्रतिभा अपना मार्ग स्वयं निर्धारित करती है
Talent evaluate his path at his own.

17. ईर्ष्या खाती है अंतरात्मा को, लालच खाता है ईमान को, क्रोध खाता है अक्ल को
Jealousy eats soul, greediness eats honesty, anger eats the mind.

18. धर्म पंथ नहीं पथ देता है
Religion gives path, not cult.

19. चार पर विजय प्राप्त करो- १. इंद्रियों पर २. मन पर ३. वाणी पर ४. शरीर पर
Get victory over four : 1. On sense, 2. On mind, 3. On voice, 4. on body

20. शुभ अशुभ कर्मों का फल अवश्य मिलता है
You will get result of auspicious and inauspicious works.

21. धर्म का मूल मंत्र है ‘झूठ से बचो’
The basic advice of religion is to escape from lie.

22. यश त्याग से मिलता है, धोखाधड़ी से नहीं
One can get fame from abatement, not from cheating.

23. यदि कल्पना का सदुपयोग करें तो वह परम हितैषिणी हो जाती है
If we use imagination good, it will be absolute benevolent of our self.

24. झूठ से मेल करने से जीवन की सम्पदा नष्ट हो जाती है
The wealth of life will get destroyed if we meet falsehood.

25. डरना और डराना दोनों पाप है
To be frighten and to frighten, both are sins.

26. पहले मानव बनें, मोक्ष का द्वार स्वतः खुल जाएगा
Firstly we should be human; the door of salvation opens automatically.

27. चरित्रहीन ज्ञान जीवन का बोझ है
Characterless knowledge is a burden on life.

28. सहिष्णुता कायरता का चिह्न नहीं है, वीरता का फल है
Forbearance is not a sign of coward ness; it is the result of braveness.

29. जिसने आत्मा को जान लिया, उसने लोक को पहचान लिया
One who knows soul, he recognized the folks.

30. मनुष्य स्वयं को शरीर से भिन्न नहीं समझता, इसलिए मृत्यु से भयभीत रहता है
Man doesn’t thinks him different from body, so he gets frighten from death.

31. छोटों के साथ सद्व्यवहार करके ही मनुष्य अपने बड़प्पन को प्रकट करता है
With good behavior with younger, man expresses his greatness.

32. महान ध्येय का मौन में ही सृजन होता है
Great goal’s creation takes place in silence.

33. सच्चा प्रयास कभी निष्फल नहीं होता
True trial never fails.

34. मृत्यु शास्त्र का स्वाध्याय, सबसे बड़ा स्वाध्याय है
Self study of Mrityushastra, is the best self study.

35. शास्त्र को शास्त्र ही रहने दो, उसका उपयोग शस्त्र के रूप में मत करो
Let the Shastra the Shastra, not use it as a weapon.

36. तप के माध्यम से मान-प्रतिष्ठा की अभिलाषा नहीं रखना चाहिए
One should not desire fame-respect from austerity.

37. यह आत्मा ही अपने सुख-दुःख का भोक्ता है
This soul is the occupant of Happiness and sadness.

38. अपने आप पर विजय प्राप्त करना ही सबसे बड़ी वजय है
To get victory over self is the greatest victory.

39. चिंता आयु को खा जाती है
Tension eats age.

40. दुनिया का सबसे अच्छा साथी आपका अपना निश्चय है
Your decision is the best friend of the world.

41. भूत सपना, भविष्य कल्पना, वर्तमान अपना, प्रभु नाम जपना
Past is dream, future is imagination, present is our, we should remember God.

42. सत्य और अहिंसा से तुम संसार को अपने सम्मुख झुका सकते हो
You can make the world bow with the help of truth and nonviolence.

43. सत्य भगवान है, सत्य लोक में सारभूत है
Truth is god, truth is fundamental in this world.

44. भयभीत मनुष्य सत्य के मार्ग का अनुसरण करने में समर्थ नहीं है
Frighten man can’t follow the path of truth.

45. मैं उस आत्मारूपी देव की शरण में जाता हूं, जो सब जीवों में विद्यमान है
I go in the protection of soul looking deity, which is there in all creatures.

46. अगर तुम सीखना चाहते हो तो भूलों से सीखो
If you want to learn, learn from the errors.

47. बुराई के प्रति भलाई करो, बुराई दब जाएगी, बुराई को बदले बुराई करोगे तो बुराई लौटकर आएगी
Behave good to bad, the bad will quail, if you behave bad to bad, bad will return.

48. भूल करना मनुष्य का स्वभाव है पर अपनी भूल को मानना महापुरुष का काम है
To err is a nature of man, but to accept his err is the work of great man.

49. जिससे पाप हो जाता है वह मनुष्य है, जो उस पर पश्चाताप करता है वह मनुष्य है और जो पाप करके शेखी बघारता है, वह शैतान है
One who sins is man, who regrets it is man, but who boast on it is devil.

50. जिसका हृदय सहानुभूति के भाव से परिपूर्ण है, उसे ही आलोचना करने का अधिकार है
One who has sympathy in his heart, has the right to criticize.

51. जैसे माता बच्चे को उठाने के लिए नीचे झुकती है उसी तरह हमें भी नीचे झुकना चाहिए और नीचे वाले को ऊपर उठाना चाहिए।
As mother bent to uplift her child; in the same way we should bent to uplift the lower.

52. कोई किसी का मित्र नहीं और किसी का शत्रु नहीं है, बर्ताव से ही मित्र या शत्रु पैदा होते हैं
No one is the friend and no one is the enemy of others, the behavior makes friend and enemy.

53. इंसान को चाहिए कि कभी उपकार को न भूलें, बल्कि उपकार से भी बढ़कर प्रत्युपकार दें
A man should not forget the help, but should answer above the help.

54. महापुरुष वे ही हैं जो समचित, क्षमावान, शील सम्पन्न और परोपकारी हैं
He is the great man who is even mind, forgiving, complete and beneficent.

55. क्रोध को शांति से, मान को मृदुता से, कपट को सरलता से और लोभ को संतोष से जीतें घमंड का त्याग ही सच्चा त्याग है
We should win the anger with peace, honor to clemency, cheat to simplicity and proud to sacrifice . The sacrifice of pride is the true sacrifice.

56. जीवन का एकमात्र उद्देश्य यह है कि हम जैसे हैं वैसे दिखें और जैसे बन सकते हैं, वैसे बनें।
The only aim of life is that we should look like we are and we can be like we are.

57. चार न बनो- १. कृतघ्न २ अभिमानी, ३ मायावी ४ दुराग्रही
Never be like 1. thankless, 2. proud, 3. tricky, 4. Stubborn.

58. चार से बचो- १. दुर्व्यसनों से २. अपनी प्रशंसा से ३. दूसरों की निंदा से ४. दूसरों के दोष से
Be safe from these four- 1. from bad habits, 2. from own admiration, 3. from other’s calumniation, 4. from other’s faults.

59. जिनके साथ हमारा सहवास है, उनसे अपनी त्रुटियां देख सकते हैं और सुधार भी सकते हैं। बेहतर है कि हम रोज के व्यवहार को शुद्धतम रखें।
Those with whom we live, we can look our faults and can uplift them. It is better to keep our behavior pure.

60. आज युग अर्थमय हो गया है, इसलिये विकास का क्रम रुक गया है।
This era has become money-oriented hence its sequential progress has come to halt.

61. आज अर्थ की ओर दृष्टि होने से मानव पतन की ओर जा रहा है।
Today man is heading towards downfall because of money-mindedness.

62. अर्थकारी विद्या परमार्थ के लिये बाधक होती है।
Lucrative knowledge is hindrance to the final bliss.

63. शब्द छोटे-छोटे हो सकते हैं, लेकिन अर्थ कभी छोटा नहीं होता।
Words may be small but their meaning is never small.

64. असत्य का रहस्य खुलने पर पश्चाताप ही होता है।
Repentance follows the exposure of falsehood.

65. असत्य की यह पहचान है कि वह बहुमत बनाता है।
It is the test of falsehood that if musters majority.

66. बिना पूछे न बोलें और पूछने पर असत्य न बोलें।
Don’t speak unless asked and when asked don’t tell lie.

67. जिस व्यक्ति का असत्य की ओर झुकाव होता है उसके ऊपर सत्य का कोई प्रभाव नहीं पडता।
The man who has greater propensity to untruth, truth does not impress him at all.

68. जहाँ सत्य होता है, वहाँ अहिंसा होती है और अहिंसा के होने पर हमारा जीवन सुरक्षित होता है।
Where there is truth there is non-violence and its presence secures our life.

69. आरोग्य और वैराग्य, इन दोनों को सुरक्षित रखने के लिये अहिंसा अनिवार्य है।
Nonviolence is essential to secure health and asceticism.

70. हमारा जीवन अहिंसा को समर्पित है, हिंसा के लिये नहीं।
Our life is dedicated to nonviolence not for violence.

71. अहिंसा की रक्षा के लिये परिग्रह जोडना अभिशाप है।
For protection of nonviolence hoarding of wealth is a curse.

72. “जैन इतिहास और कथायें” इस बात की साक्षी हैं कि अहिंसा की विजय हर युग में हुई है।
History and sacred tales of Jainism are testimony to the face that it is only nonviolence that has been victorious in every era.

73. अहिंसा की ध्वजा जहाँ लहराती है, वहाँ सदा मंगलमय वातावरण रहता है।
Where the flag of nonviolence is hoisted there is always auspicious environment.

74. जिस तिथि में अतिथि आता है, वह तिथि हमें अहिंसा का उपदेश देती है।
The date on which we receive a guest, always reminds us of preaching nonviolence.

75. अहिंसा प्रधान इस भारत देश से मांस निर्यात अविलम्ब बन्द होना चाहिये।
Export of meat should be banned immediately in this nonviolence dominated India.

76. भारत को स्वतंत्रता हिंसा करने, बढाने के लिये नहीं अपितु अहिंसा की उपासना के लिये दिखाई गयी है।
Independence of India is no to promote or to do violence but for observing nonviolence.

77. स्वतंत्रता हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है, तो प्राणी रक्षा हमारा धार्मिक अधिकार है।
If freedom is our birthright, then protection of living beings is our religious right.

78. आज राष्ट्र में जितने भी घोटाले हो रहे हैं, वे मांस निर्यात की आय से कई गुने से अधिक हैं।
Today scams that are being happening in our country are many times bigger than income granted by export of meat.

79. जब हमारे जीवन में अहिंसा आ जायेगा, तो हमारा बाहरी जीवन लहलहा जायेगा।
When nonviolence rises in our life from within then then our outward life will flourish.

80. माँस निर्यात पर प्रतिबन्ध हो तो भारत में यह अहिंसा का सबसे महान कार्य होगा।
It will be a great achievement of nonviolence if meat export is banned in India.

81. विदेशी धन के लिये करोडों पशुओं का वध करके माँस निर्यात करना यह बहुत जघन्य कार्य है।
Slaughtering millions of animals for exporting their meat to earn foreign exchange is a heinous act.

82. जब अहिंसा का वातावरण चारों तरफ फैल जाता है तो यह धरती चारों तरफ से हरी-भरी हो जाती है।
When air of nonviolence spreads all around, earth becomes lush green.

83. जब अहिंसा बढती है तो चारों तरफ हरियाली फैल जाती है।
When the nonviolence prevails greenery spreads all around.

84. राम, महावीर आदि सभी का कोई आराध्य देवता है तो वह अहिंसा है।
If there is any God for adoration for Ram, Mahaveer etc. that is nonviolence only.

85. अहिंसा रूपी देवता की आराधना ही हमारे जीवन को सफलता देने वाला है।
Only worshiping deity of nonviolence is the key to success in our life.

86. अहिंसा और सत्य ये दोनों हमारे जीवन विकास के पहलू हैं।
Nonviolence and truth both these are aspects of development in our life.

87. अहिंसा के मार्ग पर चलने वाला हमेशा विजयश्री को प्राप्त करता है।
One who treads on the path of nonviolence always succeeds.

88. अहिंसा का जीवित स्वरूप सभी तीर्थंकरों के जीवन में देखने को मिलता है।
A live vision of nonviolence is reflected in the lives of all Teerthankars.

89. अहिंसा की विजय हिंसा की समाप्ति से है।
Victory of nonviolence is extinction of violence.

90. अहिंसा रूपी देवता को आज धरती पर लाने की जरूरत है।
It is the need of the day to bring the deity of nonviolence on earth.

91. अहिंसा के लिये जिसका समर्पण है उसे शर्त आदि की बात नहीं करनी चाहिये।
One who is dedicated to nonviolence should not put any condition or wager.

92. केवल अहिंसा की दृष्टि से ही पशुओं का संरक्षण नहीं, आर्थिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है।
Conservation of cattle is not only important from the view point of nonviolence but also from economic point of view.

93. केवल मनुष्य के नहीं प्राणीमात्र की रक्षा के भाव करने का नाम अहिंसा है।
Nonviolence does not mean only protection of human beings but of each and every living being.

94. अपने लोचनों को इतना विशाल बनाओ कि विश्वलोचन बन जाये।
Expand your eyes to such an extent that they may become ryes of the world.

95. मनुष्य को विवेक की आँख पतन से बचाती है।
Rational vision saves man from downfall.

96. जैसे भोजन को पचाने के लिये दाँत और आँत चाहिये, वैसे ही विद्या को पढने के लिये आँख चाहिये।
As teeth and intestine are needed to digest the food, in the same way eyes are needed, to read the knowledge.

97. उस ओर कभी मत जाओ, जिस ओर तुम्हारे चारित्र में पतन होने का खतरा हो।
Never go towards that direction where there is danger for decline of your character.

98. आचरणमय जीवन ही अपने दर्पण का काम करता है।
Righteous conduct itself works as mirror.

99. आचरण तो सभी व्यक्तियों के पास होता है परंतु दोषरहित आचरण बहुअ कम लोगों के पास होता है।
Everybody has conduct of his own but only a few people have flawless conduct.

100. भगवान महावीर ने दोषों से रहित आचरण को धारण किया था, इसलिये उनका आचरण पूज्य बन गया।
Lord Mahaveer Acquired flawless conduct hence his conduct became adorable.

101. भगवान महावीर के चरण पूज्य आचारण के माध्यम से ही बने थे।
Flawless conduct of Bhagwan Mahaveer made his feet adorable.

102. चरण की रक्षा के लिये तो पदत्राण होते हैं, और आचरण की रक्षा के लिये धर्माचरण होता है।
As the footwear is to protect the foot so is thee need of religious activity for protection of conduct.

103. दुनिया में सुन्दर वही होता है जिसका आचरण सुन्दर होता है।
Beautiful is he in the world whose conduct is beautiful.

104. सदाचार की उपासना करो चमत्कार की नहीं।
Adore morality not miracle.

105. दोष रहित आचरण ही चरणों को पूज्य बनाता है।
Flawlessness conduct makes feet adorable.

106. उस रात को ही प्रभात समझो, जिस रात को तुम्हें आत्मोपलब्धि प्राप्त हो जाए।
Treat that night as day in which you realize yourself.

107. विश्व में सबसे अधिक शक्ति आत्मा के पास है।
The Self (soul) is the strongest power in the world.

108. विकल्प में ही दुनिया झलकती है, निर्विकल्प हो जाने पर दुनिया नहीं आत्मा झलकती है।
This world reflects in the state of uncertainty having certainty the soul reflects, not the world.

109. हम पर के लिये ही जानते आये हैं इसलिये आत्मा को नहीं जान पाये।
We have been knowing non-self hence we could not know the soul.

110. जब आत्मा की एषणा लगी होती है, तो फिर लोकेष्णा की चाह नहीं होती।
When there is hunger for soul then there is no desire for worldly affairs.

111. जब भूत और भविष्य अव्यक्त हो जाते हैं, तो आत्मा व्यक्त हो जाती है।
When past and future become inexpressible the soul expresses itself.

112. जिसकी दृष्टि में मात्र आत्म द्रव्य रहता है, उसके लिये तो चक्रवर्ती के हीरे मोती आदि से कोई मतलब नहीं रहता।
For a man who has his sight fixed only on the soul substance, the jewel and pearls of ‘Chakravarti’ are meaningless for him.

113. जो पवित्र आत्म तत्त्व को पा लेता है, उसका अंग अंग पवित्र हो जाता है।
Every part of his body becomes pious who realizes the element of self.

114. छाया में रह कर काया की बात बहुत की है, लेकिन काया में रह कर आत्मा की बात करना है।
We had a lot of talk regarding our body under a shade but now staying in the body, we are to talk about soul.

115. अपरिग्रह वृति ही हमारी सबसे बडी सम्पत्ति है।
Abstinence from infatuation is our greatest wealth of the soul.

116. जैसे म्यान तलवार से पृथक है, वैसे ही शरीर से आत्मा पृथक है।
Just a sheath and the sword are two different entities; similarly soul is the different from body.

117. हमें पर द्रव्य को नहीं आत्म द्रव्य को मुख्य बनाना चाहिये।
Lets us concentrate mainly on substance of self instead of other substance.

118. जब तक स्पर्धा नहीं होती तब तक आत्मशक्ति का परिचय नहीं होता।
In the absence of competition will-power of self cannot be identified.

119. परीक्षा और प्रतीक्षा की घडियों में जो आनन्द होता है, वह आनन्द खाते समय कहाँ होता है।
Where that pleasure is is experienced in eating which is felt during the moments of examination and waiting.

120. हमें उस विकास से कुछ मतलब नहीं जो हमारी आस्था को कलंकित कर दे।
We have no concern with that development which disgraces our faith.

121. आस्था के द्वारा ही अपने आपको दृढ श्रद्धानी बनाया जा सकता है।
Only faith can make us staunch believer.

122. आस्था के साथ अपने कदमों को मोक्षमार्ग पर जो बढाता है, उसकी यात्रा अतिशीघ्र पूर्ण होती है।
One who advances his steps on the path to salvation with right faith completes his journey very soon.

123. सन्मार्ग के प्रति जिसे अगाध आस्था होती है, उसका पतन नहीं उत्थान होता है।
One, who has deep faith in his right path, achieves advancement not downfall.

124. समाधि मरण हो, बोधि लाभ हो, ये तभी सम्भव है, जब हमारे भीतर वह समीचीन आस्था होती है।
Unless there is not proper faith, holy death and gain of perfect knowledge is not possible.

125. शब्दों में मंत्र नहीं हुआ करता, मन की आस्था में मंत्र हुआ करता है।
There is no incantation in words; it lies in deep rooted faith of heart.

126. वही शब्द सार्थक माना जाता है जिसका जन्म आस्था के हृदय से हुआ होता है।
Word originated from faith of heart is only worthy word.

127. हम विभाजन में आस्था नहीं रखते, विस्तार में विश्वास रखते हैं।
We don’t have faith in division we believe in expansion.

128. आस्था का सम्बन्ध भीतर से होता है, बाहर तो केवल निमित्त रहता है।
Faith is related with the inner-self while motives/cause is only external.

129. आस्था की अभिव्यक्ति बाहरी प्रवृत्ति देखने से मिलती है।
Expression of faith is seen by outer tendency.

130. पहले आस्था होती है, बाद में रास्ते की बात होती है।
Before taking about the path existence of faith is necessary.

131. हमारी आस्था प्रशस्त है, तो हमारा रास्ता भी प्रशस्त होता है।
If our faith is excellent, then our way is also laudable.

132. प्रशस्त आस्था के साथ ही रास्ते की उपासना होती है।
Only with auspicious faith path is adorable.

133. आस्था जब साफ होती है, तो हमारा विश्वास भी साफ होता है।
When faith is clear, the belief is adorable.

134. आस्था को सारी दुनिया की सम्पदा को भी देकर नहीं खरीदा जा सकता।
Faith can’t be purchased by offering the whole wealth of the world.

135. जिसका आस्था से विश्वास जुड गया, उसे तीन लोक की सम्पदा डिगा नहीं सकती।
Whose belief has associated with faith all the wealth of world can’t deviate him.

136. अपकारी के प्रति उपकार करना ही सज्जनता का परिचय है।
To be beneficial towards a wrong door is the mark of nobility.

137. दुःखी जीव का दुःख दूर करना, प्यासे को पानी देना, भूखे को भोजन देने का नाम ही तो परोपकार है।
Beneficence is to avert the grief of aggrieved, to give water to thirsty and provide food to hungry.

138. उद्यम के द्वारा हमारा विकास होता है, उधम के द्वारा हमारा जीवन प्रतिक्षण ह्रास होता जाता है।
Our life developed by industriousness whereas it goes continuously to down-fall by bustling about (up roaring).

139. समाज की समग्रता ही एकता की महान शक्ति होती है।
Great strength of unity rests in uniformity.

140. खतरा उसके जीवन में आते हैं, जो अपने कर्तव्य से च्युत हो चुके हैं।
Dangers come in the life of those, who have been deviated from their duty.

141. सबसे महान प्रतिभा सम्पन्न व्यक्ति वही माना जाता है, जो अपनी पूरी शक्ति अपने कर्तव्य क्षेत्र में लगा देता है।
Only he is known as the most brilliant person, who employs all his energy and power in the sphere of his duty.

142. हमें अपने अधिकार को समझने की आवश्यकता नहीं, हमें तो अपने कर्तव्यों को समझना चाहिये।
We need not understand our rights but need the understanding of our duties.

143. जब कर्तव्य की ओर कदम उठते हैं तो सही दिशा का छोर दिखायी देने लगता है।
When steps are advanced towards duty then the end of right direction becomes visible.

144. शांत वातावरण का निर्माण करने के लिये कर्तव्य की ओर कदम बढाना आवश्यक है।
For creating a peaceful environment advancement of steps towards duty is necessary.

145. कर्तव्य परायण होकर ही धर्म होता है, कर्तव्य पलायन होकर धर्म नहीं होता।
Religion is practiced by being duty-bound; by shirking duty religion is not practiced.

146. व्यक्ति को चमडी से नहीं काम से चमकना चाहिये।
A man should shine by work, not by skin.

147. जिसकी दृष्टि सम्यक है वह कभी कर्तव्य विमूढ नहीं होता।
Whose vision is right he never deviates from duty.

148. भावना से युक्त कर्तव्य शक्ति ही महान व्यक्ति को महान बनाती है।
Duty-power accompanied with sentiments makes a man great.

149. जब मनुष्य कर्तव्य से विमुख हो जाता है तो उसके सुख शांति के स्त्रोत समाप्त होने लग जाते हैं।
When man is deviated from his duty then the sources of his pleasure and peace begin to finish.

150. जिस व्यक्ति के जीवन में कर्तव्य की पहचान है वही धर्म को पहचान पाता है।
A man, who has identified his duty in his life, is able to recognize the religion.

151. जिससे तुम्हारा कल्याण हो, उसी मार्ग की ओर अपने कदम बढाओ।
Move forward in that direction which brings welfare to you.

152. माँगने पर बहुमानता नष्ट होती है, परंतु वह माँगना, माँगना नहीं, जिसमें अपना कल्याण निहित है।
Although begging spoils dignity but to beg a thing which implies our well-being is not begging.

153. सबके कल्याण की भावना करने वाला अपने कल्याण का बीजारोपण करता है।
One, who thinks about welfare for all, shows seeds for his own welfare.

154. गलत कर्मों से बचना महान कर्म है।
Abstaining from bad deeds is a great achievement.

155. द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव के निमित्त से कर्म अपना फल देते हैं।
Matter, place, time and volition are the causes of karmic fruition.

156. कर्म एक निष्पक्ष पासा है, वह जैसा है वैसा ही फल देता है।
Karma is an impartial dice; it yields fruits just like its kind or nature.

157. हम जैसा इतिहास बनाते हैं वैसा ही उसका फल मिलता है।
The kind of history we make, we get its result of that kind.

158. दुःखी जीवों को देख कर यदि करुणा का भाव ना हो तो उस व्यक्ति को निर्दयी कहते हैं।
That man is called cruel who seeing the sufferers do not have feeling of compassion.

159. स्वरूप का भान नहीं होने देने वाली कषाय है।
Hindrance knows one’s own form is passion.

160. जो कषायों में उलझा हुआ है उसको कभी भी निज का आनन्द नहीं आता है।
Who is entangled in the passions never enjoys pleasure of self.

161. कषाय के साथ जीना यानि अवनति की ओर जाना है।
To live with passions means demoting one’s self.

162. जिस व्यक्ति के अन्दर कषाय बहुत ज्यादा है वह स्वयं का घात करता है।
A person who lives with lot of passions harms himself.

163. कषाय करने वाले की बुद्धि सदा भ्रमित और संशयमय होती है।
Wisdom of a passionate person is always confused and uncertain.

164. कषायों के आवेग से नहीं अपने आपको संवेग से सजायें।
Adorn yourself not with the impulses of passions but with the fear of worldly suffering.

165. जिस व्यक्ति के अन्दर कषाय बहुत होती है, वह व्यक्ति स्वघात करता है।
A man, who lives with lots of passions, hurts himself.

166. कषाय को मिटाने के लिये यदि हम कषाय करते हैं तो ठीक है।
It is justified to practice passion to kill passion.

167. किसान का जीवन स्वयं के लिये कम पर के लिये अधिक हुआ करता है।
A farmer’s life is meant more for others and less for him self.

168. स्वार्थ से ऊपर उठा हुआ किसान का जीवन हुआ करता है।
Farmer’s life is above from selfishness.

169. जितनी सादगी हमारे अन्दर होगी उतना ही हमारा उत्कर्ष होगा।
As much as simplicity is there in our life so much we will elevate.

170. सुख शांति का स्त्रोत बाहर नहीं हमारे भीतर ही है।
A source of joy and peace lies within ourselves, not in out side.

171. किसान की संपदा एकदम खुली संपदा है, उसके पास कोई तिजोरी नहीं होती है।
Farmer’s property is an open fact visible to the world, he has no safe.

172. जिसको भविष्य की चिंता होती है, वही ताले में बन्द करके धन, धान्य रखता है, पर किसान ऐसा नहीं करता।
One who is worried about future keeps his wealth in lock key but farmer doesn’t do this.

173. सही किसान का जीवन लोभमय नहीं, वह तो उदारता एवं वात्सल्य से भरा होता है।
Life of a real farmer is not affected with greed but full of benevolence and affection.

174. किसान ही बीज का महत्त्व समझता है।
Only farmer understands the importance of seed.

175. क्रोधाग्नि का संशोधन होना ही दिशा बोध प्राप्त होना है।
Perceiving the right direction is the correction of the fire of anger.

176. जिन्होंने क्रोधाग्नि का शोध किया है, उनके पास जाकर खडे हो जाओ तो दिशाबोध स्वयं ही प्राप्त हो जाता है।
Stand by those who have researched their anger you will find the right direction automatically.

177. क्षत्रिय का त्याग बडा बेजोड रहता है, उनके त्याग में सत्य और न्याय का समावेश होता है, जो प्रजाजनों को सुख संतोष की आजीविका प्रदान करता है।

Sacrifice made by warriors remains matchless, their sacrifice encompass truth and justice which provides happy and satisfied livelihood to the people.

178. क्षत्रिय के हाथ में शस्त्र मारने के लिये नहीं, रक्षा करने के लिये होते हैं।
Weapons in the hand of warriors are for defense and not for attack.

179. क्षत्रिय भय के कारण नहीं दूसरे जीवों को अभय देने के लिये शस्त्र हाथ में रखता है।
Warriors keep weapons not because of fear but to make others fearless.

180. असहाय प्राणी को बचाने का काम क्षत्रियों के द्वारा हुआ करता है।
Helpless people are saved by warriors.

181. क्षत्रिय कभी व्यापार नहीं करता, लेकिन व्यापार करने वालों की रक्षा करता है।
Warrior never does business but protects the businessmen.

182. राम की प्रतिक्षा मत करो, राम की तितिक्षा (क्षमा) रखो।
Don’t wait for Ram, follow the forgiveness of Ram.

183. क्रोध तो बहुत करते हो, जरा क्षमा भी कर के देखो, क्या अनुभव मिलता है?
You do a lot of anger just have a little forgiveness and see what feeling you get?

184. क्रोध करना अपनी कमजोरी है, क्षमा का कवच वीरों का वक्षस्थल ही धारण कर सकता है।
To anger is our weakness, only the chest of braves can wear the amour of forgiveness.

185. जिन की वाणी से बनी जिनवाणी और जिनवाणी के श्रवण करने से हो सकती है क्षमावाणी।
The word ‘jinwani’ has been derived from preaching ‘jina’ and forgiveness can crop-up only by listening to ‘Jinwani’.

186. निरापराध को यदि परेशान न कर आप उनको क्षमादान दें यही सबसे क्षमाधर्म है।
If not embarrassing an innocent instead forgiving him is a biggest religion of forgiveness.

187. अपने को बलवान चाहते हो तो क्षमा धर्म का पालन करो।
If you wish yourself to be strong, follow the religion of forgiveness.

188. यह भारत देश वह है, जहाँ आज भी गर्भ कल्याणक, गर्भ महोत्सव मनाये जाते हैं और आज गर्भपात कितने जोरों से हो रहा है, यह भारतीय सभ्यता के लिये कलंक की बात है।
India is such a country where conception-celebrations and conception functions is held even today, an alarming rate abortion is on rise nowadays? This is a blot on Indian civilization.

189. जब हम किसी को जीवन दान दे नहीं सकते तो किसी के जीवन को अपहरण करने का हमको क्या अधिकार है?
When we can’t give life to anyone, then what right do we have to rob life of somebody?

190. न जाने उस गर्भ में कौन सा शिशु छिपा होगा, जो राष्ट्र के लिये अपना अमर बलिदान कर राष्ट्र को अपना सहयोग दे, परंतु उसे गर्भ में ही मारा जा रहा है।
No one knows what child is growing in a womb that may make immortal sacrifice to the nation, but he is being killed in womb itself.

191. धर्म युद्ध में भी यह घोषणा होती है कि बालक, स्त्री, वृद्ध,पागल और निःशस्त्र पर प्रहार न करें फिर आज गर्भपात जैसा कार्य क्यों हो रहा है, जरा सोंचो।
It is declared even in religious warfare that children, women, aged, mad and unarmed ones should not be attacked, then we need to think as to why is today abortion like activity going on, think a little.

192. गर्भस्थ शिशु की हत्या महापाप है, शासन को इस पर रोक लगाना चाहिये।
To kill a child in mother’s womb is a worst sin, Government should ban it.

193. अस्पताल जीवन दान देने के लिये है, हत्या करने के लिये नहीं, यदि अस्पतालों में ही गर्भपात जैसे महापाप होने लगे तो उसे हम क्या कहेंगे?
Hospitals stand for saving lives, not for killing. If hospitals happen to be the centers of the worst crimes like abortions, then what are we to say?

194. हमारा जो अधोपतन हो रहा है, गुरुओं के संकेत को नहीं समझने से हुआ है।
Downfall that we are facing is due to non-understanding of the hints of the preceptors.

195. चरण रज लेने से हमारा रंज दूर हो जाता है।
By touching foot-dust particles, our agony withers.

196. चरण रज की पूजा करने वाला मृत्युंजयी होकर स्वयं पूज्य बन जाता है।
A worshiper of dust particles of feet becomes himself worshipable by becoming a conqueror of death.

197. मनुष्य का ज्ञान से अधिक चरित्र का प्रभाव पडता है।
Character has greater impact on man than knowledge.

198. साधुत्व के साथ चेतना की अनुभूति होती है, बिना साधु बने उस चेतना की अनुभूति नहीं होती।
Perception of consciousness lies in asceticism it can not perceived without adopting asceticism.

199. जड का नहीं चेतन का उपकार होता है।
Beneficence is done to a living one not to non-living.

200. मूल्य जड का नहीं चेतन का हुआ करता है।
A sentient being is valuable not non-sentient.

201. आत्मीयता की बात जड से नहीं चेतन से होती है।
Own ness pertains to living one not to non-soul.

202. चेतन में भार नहीं हुआ करते हैं।
Conscience has volition or feeling, not weight.

203. जिसके अन्दर से जडत्त्व का नाश हो जाता है, वह ऊपर की ओर उठ जाता है।
He, who vanishes inertia from within, rises upwards.

204. चेतन की विजय जड के आभाव में है।
The victory of a sentient lies in the absence of inert.

205. जड के संग्रह में चेतन की पहचान संभव नहीं है।
It is not possible to recognize consciousness in the accumulation of inert things.

206. आज का युग जड का संग्रह करता है, चेतन का हनन करता है, यह बडे शर्म की बात है।
Present age accumulates inert things and destroys sentient, it is shameful.

207. चेतन का उत्थान यदि जड त्यागने के माध्यम से होता है तो उसे त्याग करने में जरा भी देर नहीं करना चाहिये।
If sentient is elevated by abandoning inert then it should be given up forthwith.

208. सबसे बडा खतरा हमको दूषित ज्ञान से है।
Corrupt Knowledge is the greatest danger for us.

209. प्रत्येक व्यक्ति के पास ज्ञान होते हुए भी वह अपनी समीक्षा नहीं करता।
Despite possessing knowledge one doesn’t review one’s self.

210. ज्ञान का कोई छोर नहीं होता यही ज्ञान की महिमा है।
It is glory of knowledge that it is infinite.

211. ज्ञान का यदि कोई फल है तो अज्ञान का हनन करना ही है।
If there is any fruit of knowledge it is destruction of the ignorance.

212. ज्ञान स्वतंत्र नहीं आत्मा स्वतंत्र है।
Soul is independent, not knowledge.

213. केवल अकेला ज्ञान जानता नहीं, आत्मा के साथ रह कर ही ज्ञान जानता है।
Knowledge alone does not know on its own but it knows only in association with soul.

214. जो महान व्यक्ति होते हैं वे प्रकाश में नहीं आना चाहते हैं, वे स्वयं प्रकाशी होना चाहते हैं।
Those who are great do not want to be in limelight; they want to be self-illuminated.

215. हमें उस ज्ञान को प्राप्त करना चाहिये जो हमें राग, द्वेष, मोह, लोभ से दूर करता है।
We should gain that knowledge which keeps us away from attachment, aversion, delusion and greed.

216. कर्म सिद्धांत का ज्ञान कर्म काटने को होता है।
Purpose of karmic knowledge is to eradicate karmas.

217. ज्ञान एक ऐसा धन है जो मन को भी अपने बस में कर लेता है।
Knowledge is such a wealth that controls even our mind.

218. ज्ञान की धारा में बहना सीखो, क्योंकि ज्ञान की धारा में बहने से ही हमें किनारा मिल सकता है।
Learn to flow in the stream of knowledge because by flowing in it only we can get the other end.

219. तपस्या के माध्यम से ही ज्ञान की शान होती है।
Knowledge gains glory only through penance.

220. जब हमारा ज्ञान संयत हो जाता है, वह ध्यान के रूप में परिवर्तित हो जाता है।
When we have controlled knowledge, it gets transformed into meditation.

221. जिसे अपने आप का ज्ञान नहीं है वह दुनिया की बात को भी अच्छे से नहीं जान सकता है।
One who does not know his own self, can never understand mundane affair well.

222. ज्ञान तो वही होता है जो त्यागमय है।
Knowledge is that which is full of renunciation.

223. अपनी अज्ञानता का आभास ही ज्ञान का प्रथम सोपान है।
Perceiving one’s own ignorance is the first step of knowledge.

224. ज्ञान का अजीर्ण अभिमान है, और तप का अजीर्ण क्रोध है।
Indigestion of knowledge is vanity and indigestion of penance is anger.

225. ज्ञान और वैराग्य से अपने आप की रक्षा होती है, लेकिन अज्ञान और राग तो हमारे लिये अभिशाप है।
While knowledge and detachment are protector of self but ignorance and attachment are curse for us.

226. संसार मोह का परिणाम है, इस मोह के अन्धकार को मिटाने के लिये यह जिनवाणी है।
This world is the offspring of delusion; this ‘Jinwani’ is for dispelling the darkness and delusion.

227. जिनवाणी से हम विषमता से समता की ओर आते हैं।
“Jinwani” takes us to equanimity.

228. जिनवाणी का एक अक्षर भी यदि हमारे जीवन में उतर जाता है तो क्षमावाणी के स्त्रोत हमारे अन्दर से बहने लग जाते हैं।
If even one alphabet of ‘Jinwani’ manifests in our life, the fountains of forgiveness start flowing from our hearts.

229. अपने आप को सजग बनाये रखना ही स्वाध्याय का फल है।
Maintaining self-awareness is the result of studying the self.

230. ऐसा त्याग अनिवार्य है, जिससे, शाश्वत दशा प्राप्त की जाये।
The renunciation which begets eternal state is must.

231. हमारे तीर्थंकर ने त्याग की बात कही है, राग की बात नहीं कही है।
Our preceptor has preached renunciation, not attachment.

232. जिसे हमें प्राप्त करना है, उसे प्राप्त करो, बाहर की ये सारी वस्तु अपने अपने आप छूट जायेंगी।
Get that what we wish to get, all external things are going to be left out automatically.

233. त्याग करना तो मनुष्य का गुणधर्म है।
Renunciation is the attributive nature of a man.

234. पेट को छोड पेटी भरने वालों! जिनका पेट खाली है, उनका पेट भरो, जिनकी पेटी बिलकुल खाली है जरा उनकी ओर तो देखो।
Leaving stomach, O coffer-swellers! Feed them who are hungry. Look at them a little whose coffers are totally empty.

235. उस व्यक्ति में बहुत कमियाँ होती हैं, जो इच्छा, आकांक्षा को अधिक रखता है।
A man of abundance desire and aspirations suffers from many shortcomings.

236. कल की आशा में सोने वाला व्यक्ति कभी जाग नहीं सकता।
A man who sleeps in the hope of tomorrow can never get up.

237. तृष्णा, वासना के द्वारा डसा हुआ जीवन भव-भव में विषाक्त मय होता है।
Life stung by desire and lust becomes venomous for several body-forms to come.

238. दया धर्म के बिना, वीतराग विज्ञान भी अधूरा है।
Science of non-attachment is also incomplete without compassion.

239. दया धर्म की रक्षा करना ही मानवता की रक्षा करना है।
To safeguard virtue of compassion is to ensure safety of humanity.

गौशाला रूपी दया के मन्दिर देखने से ही व्यक्ति के अन्दर भी दया के भाव होते हैं।
Cowsheds are temples of compassion mare sight of which generates mercy in a person at one glance.

240. पशुओं का संरक्षण अपना कर्तव्य समझ करके करना चाहिये।
We must protect animals, taking it as our duty.

241. हमें अपनी संतान को दया धर्म के संस्कारों से संस्कारित करना चाहिये।
We should sanctify our offsprings by the rites of the religion of compassion.

242. धर्म कोई भी हो, सभी धर्मों का मूल सिद्धांत यदि है तो, दया धर्म ही है।
It may be any religion, if there is any fundamental principle of all the religious; it is the religion of compassion.

243. दया धर्म को याद रखने वाले का हमेशा भला ही होता है।
Religion of mercy is priceless.

244. दया धर्म का कोई मूल्य नहीं होता है।
Religion of mercy is priceless.

245. दया की रक्षा करने वालों की रक्षा देव लोग करते हैं।
Those who protect mercy are protected by divine power.

246. दया तो अमूल्य है, उसका कोई मूल्य नहीं है।
Mercy is priceless there is no price for it.

दया धर्म के माध्यम से हम अपने जीवन को उज्ज्वल बना सकते हैं।
By following religion of mercy we can make our past glorious.

247. दया धर्म की पहचान चेतन के उत्थान से होती है।
Religion of mercy is known by the elevation of soul.

248. जैसे सूर्य को देखते ही कमल खिल जाते हैं, वैसे ही दुःखी व्यक्ति को देखकर दया का भाव सहज रूप से होना चाहिये।
As the lotus bloom with the rays of the sun, similarly the feelings of mercy should flow in our heart in a natural state seeing an aggrieved person.

249. दयामय भाव हमारे लिये बहुत उपकारी हैं।
Feeling of mercy is much beneficial to us.

250. दयामय धर्म को अपनाकर जीवों की रक्षा करनी चाहिये।
We should protect living being by adopting religion of mercy.

251. दया भाव जीवन में सुख-शांति प्रदान करता है।
Feelings of mercy bring peace and happiness in life.

252. मनु की संतान यह मनुष्य ही दया की मूर्ति बनता है।
Man, the son of Manu, precisely, becomes idol of mercy.

253. दण्ड मिलने के उपरांत दिशा बोध मिलना चाहिये, यह भारतीय सभ्यता का प्रथम विधान है।
Reformation theory of punishment is the first rule of Indian Civilization.

254. बन्ध क्या है? मोक्ष क्या है? मैं यह नहीं जानता हूँ, लेकिन आप क्या हैं, यह मैं जानता हूँ।
Although I do not know what is bondage and what is a salvation? But I know what are you?

255. दिशा बोध पहले होता है, दिशा का अनुभव बाद में।
First comprehension of direction occurs, and then the sense of direction is experienced.

256. दूसरों के दुःख दर्द को समझना सीखो।
Learn to understand, the grief and pain of others.

257. दुःख को यदि मिटाना है तो हमें पहले दुःख के स्त्रोत को मिटाना अनिवार्य है।
If grief are to be eradicated then first of all eradication of its source is compulsory.

258. दूसरों के दुःख को देख कर उसके प्रति दुःख को दूर करने के भाव ही धर्मध्यान है।
Seeing the grief of others, arousal of feeling of relieving their grief is precisely the virtuous meditation.

259. एक दूसरे के दुःख में सहभागीदार होना ही सही व्यवहारिकता है।
To share each other’s grief is the right practicability.

260. अपने दुःख के लिये रोना आर्तध्यान है, लेकिन दूसरों को देख कर रोना धर्म ध्यान है।
To weep for own grief is painful concentration but to weep on others grief is religious meditation.

261. दुःखी को देखकर दुःख का अनुभव धर्मात्मा ही करता है।
Only a religious person feels grief looking at an aggrieved.

262. देशवासी का प्रथम कर्तव्य अपने देश पर अभिमान करना है।
Being proud of his own country is the first and foremost duty of a citizen.

263. हम अपने देश के संविधान के खिलाफ कुछ भी न करें, ये एक धर्म है।
Not to violet our Nation’s Constitution is also a religion.

264. वोट अपने देश में दो और नोट विदेश में रखो, यह भारतीय नीति नहीं है।
Exercising right to vote as citizen in one’s own country and keeping money in foreign countries is not Indian policy.

265. अपने देश का धन विदेश में न रखें यह भी देश के उत्थान में अपना सहयोग है।
Keeping money in ones own country and not draining it to other countries is also a short of contribution for the upliftment of country.

266. कर्ज लेकर विकास किया जा रहा है और देश की मुद्रा विदेशों में रखी है, यह स्वतंत्रता का अर्थ नहीं है।
It is not the meaning of freedom that we borrow foreign money for development and our wealth deposited in foreign banks.

267. जनता भूखों मरे और हमारे भण्डारी, गोदामों में अनाज सडा रहे हैं, यह विकास है या दरिद्रता अथवा महाशोषण?
Whether it is development or poverty or great exploitation that on one hand public at large is under starvation and on the other, stored grain is rotting in our godowns.

268. अपनी आवश्यकताओं से अलग अनावश्यक वस्तु के उत्पादन से ही भारत को आर्थिक विपत्तियों का सामना करना पड रहा है।
India is facing financial crisis because of production of unnecessary foods instead of necessaries.

269. पहले वस्तुओं की विनिमय व्यवस्था थी, इससे अर्थनीति बहुत मजबूत थी, विनिमय की व्यवस्था गडबड हो जाने से आज का संकट का सामना देश को करना पड रहा है।
The economic policy in earlier days was based on barter system and therefore, our economy was strong enough, but now as the exchange system has gone out of gear, the country is facing financial crisis.

270. जो देश बुद्धि वर्ग समुदाय को बेचता है वह अवश्य ही गरीब होता है।
A country which sells its talents is by all means a poor country.

271. देश से सोने का निर्यात नहीं होना चाहिये, और दूसरी बात कच्चे माल का भी निर्यात नहीं होना चाहिये, यही अर्थ नीति को मजबूत करने का ऊपाय है।
The gold should not be exported from the country nor should the raw materials. It is only way of strengthening economy.

272. जो उत्पन्न हो रहा है उसका वितरण ठीक-ठाक होना चाहिये, उससे देश सदा सुख शांति अनुभव करेगा।
Whatever is being produced must be distributed in a fair and equalitarian way so that the country will experience and happiness.

273. नागरिक आदर्शवान और अनुशासित होना चाहिये, हमारा देश निश्चित विकास करेगा।
Our country would certainly develop if our citizens submit themselves to idealism and discipline.

274. भारत देश आज अर्त की हवा में इतना बहता जा रहा है कि वह अपने अतीत के आदर्श भूलते जा रहा है।
Today, India is flowing in the air of materialism to such an extent that is forgetting the ideals of its glorious past.

275. दण्ड संहिता जिस देश से निकाल दी जाती है, वहाँ अपराधों का साम्राज्य फैल जाता है।
The empire of crimes spreads in a country where Panel Law is discarded.

276. अपने जीवन में घुसी विदेशी सभ्यता को निकाल कर अपनी देशीय सभ्यता को आतसात करें।
We should assimilate our indigenous culture and drive our infiltrated foreign culture from our life.

277. आज देश को विदेश बनाया जा रहा है केवल पैसे के कारण।
Because of wealth we are converting our nation into a foreign one.

278. आज लोकतंत्र को सम्भालने वालों को तैयार करने वालों की आवश्यकता है, जो इस भारत के लोकतंत्र को सही दिशा प्रदान कर सकें।
Today we need such people who can prepare defenders of democracy who in turn can give right direction to Indian democracy.

279. पहले देश का प्रभाव विदेशों पर था, लेकिन अब विदेशी मुद्रा का प्रभाव भारत देश पर पड रहा है।
Earlier our country had influence on foreign countries, but now foreign currency is influencing our country.

280. मित्र वही जो आवश्यकता के समय काम आता है।
A friend in need is a friend indeed.

281. सुख-दुःख में शामिल होने का नाम दोस्त है।
To share joy and grief is friendship.

282. दो दिल का अस्त या एकमेक रूप हो जाने का नाम दोस्त है।
Decline two hearts or their inification is named as friend.

283. परिश्रम के द्वारा मंजिल तब प्राप्त होती है, जब अपना ध्यान मजबूत होता है।
Hard work begets us the destination only when we have determined meditation.

284. धर्म ध्यान दूसरों के माध्यम से नहीं होता, उसके लिये स्वयं कमर कसना चाहिये।
Religious meditation is not attained through others, for it one must resolve himself.

285. चोर धन को नहीं पीटते, धनी को पीटते हैं।
Thieves do not hurt wealth, but they hurt the wealthy.

286. धन का भूत व्यक्ति के तन मन दोनों को खराब कर देता है।
Ghost of wealth spoils both the body and the soul of a person.

287. हमारा जीवन धन के लिये न हो, जीवन के लिये धन हो तो ही हम विरामता की ओर पहुँच पायेंगे।
Our life should not be for wealth but wealth should be for life only then we can achieve
emancipation.
288. यदि जीवन के लिये धन होता तो वह धन उसके हित के काम आता है, धर्म करने में वह धन साथ देता है।

If wealth is for life, it comes into use for his beneficence that is also conductive to observing religion.

289. हमें उस धन से कोई मतलब नहीं, जो हमारे सुखमय जीवन को दुःखमय बना दे।
We have no concern with such a wealth which turns our joyful life into sorrowful one.

290. अन्याय से अर्जित धन अन्याय के कार्य में खर्च होता है।
Ill earned is ill spent.

291. परिश्रम से अर्जित धन, सौभाग्य का दाता होता है।
Money earned by hard work brings good fortune.

292. परलोक गमन के समय पैसा नहीं पुण्य काम आता है।
At the time of departure for next world not money but virtuous acts are of use.

293. कंजूस अपना धन जोड-जोड कर दूसरों को छोड जाता है, उससे बडा दानी कौन होगा।
Who will be a greater donor than a miser who accumulating wealth leaves it for others?

294. राग भाव से ही धन का संग्रह होता है, उसको जितना अपने पास रखोगे तो वह भय का कारण ही रहेगा।
Wealth is accumulated out of attachment the more you keep it with you the more it would be a source of fear.

295. संतान के लिये धन के राग की बात नहीं, धर्मानुराग की बात सिखाना चाहिये।
Offspring should be taught religious zeal not attachment to wealth.

296. जो व्यक्ति लक्ष्मी का जितना त्याग करता है, लक्ष्मी और उसके निकट आती है।
As much as a person renounces wealth so much it comes near him.

297. धन का यदि संग्रह करते हैं, उसका त्याग नहीं करते तो वह धन हमारे लिये अभिशाप बन जाता है।
Accumulation of wealth becomes curse in the absence of its abandonment.

298. धन की बात जहाँ आती है, वहाँ तू-तू, मैं-मैं प्रारम्भ हो जाती है।
Accumulation of wealth is always followed by squabbling.

299. धन कभी भी मंगलाचरण नहीं होता, धन का त्याग तो मंगलमय होता है।
It is only giving up of wealth which is auspicious, not its accumulation.

300. तप और त्याग की भावना करने से धन अपने आप बढता है।
Wealth automatically increases if the feeling of penance and abstinence exists.

301. हम इस प्रकार के धन का संग्रह नहीं करें जिससे हमारा मोह बढता हो।
We should not accumulate that kind of wealth, which increases our delusion.

302. स्वार्थ में साम्प्रदायिकता पलती है, धर्म नहीं।
Selfishness nourishes communalism not religion or righteousness.

303. धर्म की बात ना मानो, परंतु धर्म की आड में छिप कर पाप मत करो।
You may not follow religion, but don’t commit sins in disguise of religion.

304. जहाँ हिंसा है वहाँ धर्म नहीं, जहाँ असत्य है वहाँ धर्म नहीं।
Where there are violence and falsehood there is no religion.

305. जहाँ घमण्ड है वहाँ धर्म नहीं, जहाँ कषाय है वहाँ धर्म नहीं।
Where there are pride and passion, there is no religion.

306. जहाँ परिग्रह है वहाँ धर्म नहीं, जहाँ आसक्ति है वहाँ धर्म नहीं।
Where there are accumulation of wealth and attachment to passions, there is no religion.

307. जहाँ सत्य, अहिंसा, अपरिग्रह, अचौर्य , ब्रह्मचर्य है वहाँ धर्म है।
Where there are truth, nonviolence, non-possession, non stealing and celibacy, there is religion.

308. मन के उज्ज्वल भावों, पवित्र विचारों का नाम धर्म है।
Religion is a name given to pious feeling and lofty thoughts.

309. तीर्थंकर तात्कालिक हुए हैं, लेकिन धर्म तात्कालिक नहीं होता वह तो त्रिकालिक होता है।
Preceptors are for definite period while religion is for all times.

310. जिस प्रकार अन्धकार और प्रकाश दोनों इस धरती पर हैं, वैसे ही धर्म और अधर्म भी इस धरती पर हैं।
Observance and non-observance of religion both exist on this earth like light and darkness.

311. धर्म ही ऐसा है जो दुःख को भुला कर सुख का अनुभव कराता है।
It is only religion or righteousness that causing to forget sorrow, makes us to experience virtual bliss.

312. धर्म चक्र कर्म को हनन करने वाला है, और धन चक्र मोह को बढाने वाला है।
Wheel of religion destroys ‘Karma” whereas wheel of wealth promotes religion.

313. जैन धर्म का मूल विस्तार यह है कि वह प्रत्येक आत्माओं को परमात्मा बनाने की क्षमता को बताता है।
The fundamental of Jainism is that it explains every soul’s capability to become God.

314. जो व्यक्ति धर्म के क्षेत्र में उत्साह पूर्वक अपने कदम बढाता है, व्ह व्यक्ति अपनी यात्रा अल्प समय में पूर्ण कर लेता है।
One, who advances his feet enthusiastically towards the field of religion, furnishes his journey in a short time.

315. आज धर्म के नाम पर अधर्म का कार्य किया जा रहा है।
Today irreligious act is going on in the guise of religion.

316. धर्म के अनुरूप यदि दुनिया चलती है तो धर्ममय सारा वातावरण हो जाता है।
If the world follows the principles of religion the whole world gets permeated with religion.

317. धर्म वह माना जाता है जिसके द्वारा पाप का नाश हो।
What destroys sin is religion.

318. धर्म की बात करना और धर्म से बात करना इन दोनों में बहुत अंतर है।
There is a vast difference between the two i.e. to talk of religion and to talk religiously.

319. धर्म प्राप्ति के लिये हमें धर्म के पास आना होगा, तब ही हम धर्म को समझ सकते हैं।
To attain religion we will have to be in close proximity of religion then alone we can understand
what religion is.

320. धर्म का अनुभव किये बिना व्यक्ति धर्मात्मा नहीं बन सकता है।
One can’t become a religious person without experiencing religion.

321. जो व्यक्ति उन्मार्ग पर लगा होता है, उन्हें सन्मार्ग पर लगाना ही धर्म है।
Motivating a perverse to right path is religion.

322. धर्म की बात करना और धर्म से बात करना इन दोनों में बहुत अंतर है।
Religion means consoling and satiating others, not of own self.

323. धर्म प्राप्ति के लिये हमें धर्म के पास आना होगा, तब ही हम धर्म को समझ सकते हैं।
To attain religion we will have to be in close proximity of religion then alone we can understand what religion is.

324. जो व्यक्ति उन्मार्ग पर लगा होता है, उन्हें सन्मार्ग पर लगाना ही धर्म है।
Motivating a perverse to right path is religion.

325. अपने आँसू पोंछना धर्म नहीं है, दूसरे के आँसू पोंछना ही धर्म है।
Religion means consoling and satiating others, not of own self.

326. हमारा विकास धर्म की शरण में होता है, धन की शरण में नहीं।
Our development is wasted in taking refuge of religion but not of wealth.

327. जो भीतर से जुडा होता है वह धर्म से जुडा है।
One, who is attached to inner-self, is also attached to religion.

328. वे लोग मूर्ख होते हैं जो धर्म छोड धन की ओर भागते हैं।
Who run after wealth renouncing religion are fools.

329. धर्म के प्रति जो व्यक्ति समर्पित रहता है वह कभी भूख, प्यास की चिंता नहीं करता।
One who is devoted to religion never cares for hunger or thirst.

330. धर्म कोई दुकान पर नहीं मिलता जो धन से खरीदा जाये।
Religion is not a marketable commodity available on mercy.

331. हमें धर्म को समझ कर दया धर्म की बात को करना चाहिये।
After having understood religion we should talk of mercy.

332. जैन धर्म भाव परक होता है, द्रव्य परक नहीं।
Jainism focuses on one’s innermost feeling and never on material stuff.

333. जहाँ धर्म रहता है वहाँ धन अपने आप बरसता है।
Where religion abides there wealth is in affluence.

334. जैसे फसल के लिये बीज आवश्यक है, वैसे धर्म की परम्परा की रक्षा बनाये रखना भी आवश्यक है।
As preservation of seed is must to yield crops so religious precedence are for religion.

335. जिन धर्म आत्मानुशासन को प्रिय मानने वाला धर्म है।
Jainism considers self-discipline as dear to it.

336. जिन धर्म गुणों की उपासना करता है, व्यक्ति की नहीं करता।
Virtue is worshipped in Jainism, not the individual.

337. धर्म के आभाव से मनुष्य पतन के गर्त की ओर चला जाता है।
In absence of religion a human being is bound to decline to maximum.

338. भावों के अनुभाग का जब उत्कर्ष होता है, अब ही धर्म की बात होती है।
Religion is attracted when intensity of auspicious thoughts is increased.

339. धर्म केवल मन्दिर में नहीं, मूक प्राणियों के ऊपर दया, करुणा भाव करना भी धर्म है।
Religion is not only limited to temples but it also extends to compassion and mercy on dumb lives.

340. धर्म किसी चिडिया का नाम नहीं वह तो हमारे अन्दर है, भावों में धर्म होता है।
Religion is not the name of any bird but it abides in our inner-self and in our feelings.

341. धर्म भावना से ओत प्रोत हृदय सदा आनन्द का अनुभव करता है।
A heart that is imbibed with feeling of religiosity always feels pleasure.

342. धर्म की भावना जब अन्दर में होती है तो धन का मोह अन्दर ही अन्दर गलने लगता है।
When the feeling of righteousness resides in one’s heart the carving for wealth begins melt away within inner-self.

343. धर्म की प्रभावना के लिये धन का दान करना चाहिये।
In order to propagate religion act of charity is must.

344. तकलीफ चेतन को होती है, अचेतन को नहीं होती, इसलिये जो दुःखी जीव है उनके सुख के बारे में सोंचना भी एक धर्म है।
A sentient being feels grief, not an inanimate; therefore, to think about relieving grief of sufferers is also religion.

345. धैर्य, समता समस्त आनन्द और शक्तियों का मूल है।
Patience, equanimity is the root of all pleasures and powers.

346. हमें नोकर्म के परिवर्तन में अपना उत्साह, धैर्य नहीं छोडना चाहिये।
Let’s not loose our zeal and patience in the change of ‘Nokarma’.

347. निराकुलता की बात को समझने के लिए पहले स्वयं को निराकुल होना आवश्यक है।
Pre-condition to understand what calmness is, one has to be calm him-self.

348. जब तक पक्षपात नहीं छूटता तबतक अपने पक्ष का अंतिम दिन नहीं आता।
The final day of self-sidedness does not arrive until and unless the partisan is forsaken.
349. परिग्रह संसार का कारण है, लेकिन परिग्रह का त्याग संसार विच्छेद का कारण है।
Attachment to belongings is the cause of transmigration but desistence from it is the cause of emancipation.

350. जो व्यक्ति परिग्रह जोडता है, लेकिन छोडने के लिये जोडता है, तो वह कभी भी छोड सकता है, लेकिन जो केवल जोडता है छोडता नहीं वह कल्याण नहीं कर पाता।
A man who accumulates belongings but accumulates for quitting then he can quit it any time. But one who only accumulates and doesn’t quit, can’t do his welfare.

351. साधु के पास कोमल तत्त्व अनिवार्य है, इसलिये दिगम्बर जैन साधु मयूर पिच्छिका रूपी मृदु उपकरण रखता है।
It is necessary for a saint to have soft elements, therefore DIGEMBER JAIN saints carry equipment like ‘Pichhika’ made of peacock feathers with them.

352. करोडों अरबों की सम्पदा को स्वीकार करने वाले नहीं, सम्पदा का त्याग करने वाले ही इस पिच्छिका को ले सकते हैं।
Not the billionaires or trillionaires but the renouncer of wealth can hold his feather broom.

353. संसार में सभी चीजों का मूल्य हुआ करता है, लेकिन संयम का उपकरण यह पिच्छिका तो अमूल्य हुआ करती है।
In this world every thing has a price, but this featherbroom, an equipment of abstinence, is priceless.

354. संयम का महत्त्व समझने वाले श्रावक ही इस पिच्छिका को दे पाते और ले पाते हैं।
Those ‘Shravakas’ who understand the meaning of anstinence are entitled to give and receive this Peechika.

355. संयम का उपकरण यह पिच्छिका देखने में बहुत हल्की है लेकिन इसे लेना उतना हल्का नहीं है।
Although this ‘Pichhika’, the equipment of abstinence is very light in weight, but entitlement to take it is not that much light.

356. यह पिच्छिका बताती है, कि आत्मा का स्वरूप बहुत हल्का और मृदु स्वभावी है।
This ‘Pichhika’ indicates that nature of soul is very light and mellifluous.

357. इस पिच्छिका को लेने वाले मुनिराज किसी के प्रति अभिशाप का भाव नहीं रखते।
Saints who embrace this ‘Pichhika’ don’t keep feeling of curse for any one.

358. मनुष्य जीवन का लक्ष्य परमात्म पद को पाने का होना चाहिये।
Aim of human life should be, to attain the ultimate reality.

359. इस मनुष्य जीवन से अपने आपको परमात्म पद की ओर ले जा सकते हैं।
We can attain the status of supreme soul through this human form of life.

360. जीवन का लक्ष्य अर्थ नहीं परमार्थ को बनाने से ही मंजिल की प्राप्ति होती है।
Instead of earning money endeavoring for ultimate reality should be objective for reaching the destination.

361. पुरुषार्थ का फल हमेशा मीठा हुआ करता है।
The fruit of industrious efforts is always sweet.

362. पुरुषार्थ के माध्यम से ही भाग्य फलता है।
Fortune yields fruits through industrious efforts.

363. पुरुषार्थ भाग्य की नींव के पत्थर के समान है।
Hard labor is like a foundation stone of fortune.

364. विपरीत परिस्थितियों में अपने आपको सफल बनाना ही पुरुषार्थ है।
To make our self successful even in adverse circumstances is ‘purusharth’.

365. प्राकृतिक साधनों का उपयोग प्रकृति के अनुसार ही करना चाहिये।
Exploitation of natural resources should be done in accordance with Nature.

366. जब गति होती है तब ही प्रगति है, बिना गति के प्रगति नहीं होती।
When there is motion, then only progress comes, no motion, no progress.

367. मानसिक प्रदूषण ही सबसे बडा खतरा है, विकृत साहित्य और विकृत मनोरंजन के साधन ही आज मानसिक प्रदूषण फैला रहे हैं।
Mental pollution is the greatest danger, today, particularly prevent literature and means of entertainment are spreading mental pollution.

368. मनोप्रदूषण के कारण ही आज पर्यावरण प्रदूषित है।
Mental pollution is the cause of environmental pollution.

369. वैचारिक प्रदूषण सबसे अधिक खतरनाक है, जो कई बीमारियों को जन्म देता है।
Mental pollution is more harmful because it generates many diseases.

370. दीपक की तरह जलना नहीं सूर्य की तरह चमकना सीखो।
Learn to shine like the Sun; don’t burn like an earthen lamp.

371. जीवन एक फूल है तो सबको प्रेम से हँसाना सीखो।
If life is a flower, learn to make all laugh by love.

372. उतना खतरनाक अज्ञान नहीं है जितना कि प्रमाद है।
Ignorance is not as dangerous as carelessness.

373. प्रमाद ही मनुष्य को प्रमादी बनाकर जीवित कब्र में डाल देता है।
Making a man negligent the carelessness buries him alive in the grave.

374. पीठ पीछे बुराई करना सबसे बडी बुराई है।
Back biting is the biggest evil.

375. विराटता के दर्शन लघुता में ही होते हैं।
Vastness is seen in smallness.

376. अपने विशुद्धि भावों से गुणों का गुणगान करना ही भक्ति है।
Eulogizing virtues with pure thoughts is devotion.

377. अहंकार और ममकार दोनो का स्वाहा कर देना ही भक्ति है।
Burning of egoism and my-ness is devotion

378. आज व्यक्ति वासना का दास होने के कारण भगवान की उपासना को ही भूल गया है।
Today the man has become slave of passion; therefore he has forgotten devotion of God.

379. हमें काया की आराधना नहीं करना हमें तो इस काया के माध्यम से प्रभु की आराधना करना है।
We are not to be the devotee of physical body but making body a medium we have to worship God.

380. भक्ति का उद्देश्य भुक्ति नहीं, मुक्ति होना चाहिये।
Aim of devotion should not be indulgence in the enjoyment of the physical lust but it should be liberation.

381. जिन स्त्रोत का पाठ करने से हमारा जीवन अपने आप शांत होता जाता है।
By reciting ‘Jainstrota’, our life becomes peaceful on its own.

382. भगवान की मूर्ति खरीदकर लाने मात्र से हम उसे भगवान नहीं कहते, उस मूर्ति में जब गुणों का आरोपण होता है तब भगवान कहते हैं।
We don’t call simply a purchased god idol as God; we call it God only when virtues of God are attributed to it.

383. भगवान के पास अभयदान सदा मिलता है, लेकिन आज उस अभयदान को लेनेवाले हों।
Amnesty is always available from God but where the receivers of that amnesty today?

384. भगवान का जो पक्ष लेता है वह पाक्षिक श्रावक है।
One who sides the God is a ‘’Pakshik Shravak’.

385. भगवान के सामने सांसारिक वस्तु की अपेक्षा नहीं संसारतीत होने की अपेक्षा करना चाहिये।
Before God, we should not expect for temporal thing but we should crave for rising above the world.

386. हम भगवान के लिये कोई उपमा नहीं दे सकते वे तो उपमा से रहित उपमेय हैं।
We can’t compare God with anything. He is peerless.

387. भगवान तो वही हैं जिसने जन्म मरण की परम्परा को समाप्त कर दिया है।
God is he who has destroyed the chain of birth and death.

388. जन्म से भगवान उत्पन्न नहीं होते, अपने कर्म व पुरुषार्थ के माध्यम से भगवान बनते हैं।
No one takes birth as God, but becomes God by dint of his deeds and observance of fundamental duties.

389. पाषाण में भगवान नजर नहीं आते आस्था की आँखों से नजर आते हैं।
God does not appear in stone but appears by the eye of faith.

390. भगवान के स्वरूप को हम आँख बन्द करके देखें तो बडे आनन्द का अनुभव होता है।
If we do visualization the form of God with closed eyes, we feel a great pleasure.

391. भगवान के स्वरूप को निश्चिंत हो कर देखोगे उतना ही आनन्द आयेगा।
If you visualize the form of God with complete calmness you will feel a great pleasure.

392. भगवान की भक्ति की माध्यम से दूसरे का दुःख दूर किया जा सकता है।
Others pains and troubles can be removed by God’s adoration.

393. भगवान के द्वारा बताया गया पथ, चलने वाले व्यक्ति का सहायक होता है।
Path shown by God is helpful to the followers.

394. भगवान की भक्ति के माध्यम से अपने आपके परिणामों को सम्हाला जाता है।
We can control our volitions by God’s adoration.

395. भगवान नासा पर दृष्टि रखते हैं, और संसारी व्यक्ति आशा की दृष्टि रखते हैं।
God has nasat sight and worldly beings have desire-sight.

396. भगवान की चिंता आदमी को जागृत कर देती है।
Anxiety for future awakens a man.

397. हमारी बुद्धि यदि संस्कृति की ओर चली जायेगी तो हमारा भविष्य उज्ज्वल होगा।
If our acumen leans to our culture our future will be bright.

398. प्रतिकार का अर्थ उसके प्रति द्वेष भाव है।
Counter-acting means sense of aversion against him.

399. व्यक्ति के भावों के उछाल और प्रांजलता को हमें समझना है।
We have to comprehend the leap and simplicity of thought-activities of a man.

400. निर्मल भावों का उत्कर्ष ही हमारे लिये उद्धार करा सकता है।
It is only elevation of pure thoughts that can do ultimate good for us.

401. द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव के माध्यम से हम अपने उज्ज्वल भाव बना सकते हैं।
We can make our feeling pure through matter, place, time and volition.

402. भावों के माध्यम से ही अपना कल्याण होता है इसलिये भावों को मांजने का पुरुषार्थ करते रहना चाहिये।
Welfare is attained only through thought-activities so we should effort to cleanse and thoughts.

403. संकल्पमय जीवन का समापन हर्षमय हो, यही हर श्रावक व्रती की भावना होनी चाहिये।
Every vowful ‘shravak’ or any ascetic should aspire for joyful of his vow-full life.

404. जीवन का आनन्द भावनाओं में है पदार्थों में नहीं।
Pleasure of life lies in feelings and emotions not in material things.

405. मन रूपी सेनापति को मारने से इन्द्रिय रूपी सेनायें स्वयं मर जाती हैं।
By killing the army chief of mind, the army of senses is killed on its own.

406. जिसका मन एकाग्रता से युक्त होता है, वही विजय लक्ष्य को प्राप्त करता है।
A person, whose mind is full of concentration, gets the victory-goal.

407. मन से ही मयाना उत्पन्न होता है।
Meaning arises from the mind only.

408. मन में ही हिताहित के भाव उत्पन्न होते हैं।
Thoughts of welfare and misfortune are generated in the mind itself.

409. मन की एकाग्रता से हम अनेक शक्तियों को जुटा सकते हैं।
We can equip with several powers by concentration of mind.

410. मन का नियंत्रण भक्ति के लिये अनिवार्य है।
Control over mind is inevitable for devotion.

411. गृहस्थों का मन अस्थिर होता है, तन स्थिर होता है, लेकिन श्रमण का मन स्थिर होता है, तन चलता फिरता है।
Householders have unsteady mind, but the body is immovable but mind of a saint is steady and the body moves.

412. धरती पर मनुष्य को साक्षर बनाने के लिये अक्षर की उपयोगिता है।
Utility of word is to make a man literate on the earth.

413. मनुष्य अपना भाग्य विधाता है, तो भाग्य निर्माता भी है।
Man is both the ordainer of his own fate and as well as its creator.

414. मानव जीवन में उतार चढाव आना, यह स्वभाविक रूप से होता है।
Occurrence of ups and downs in human life is a natural phenomenon.

415. विपत्ति के समय ही मनुष्य की सही परीक्षा होती है, वह तो एक कसौटी है।
Man is tested in adversity, it is a criteria.

416. भूल करना मनुष्य का काम है, तो भूल को सुधारना भी मनुष्य का काम है।
To err is human and to mend it is also his duty.

417. इंसान की शान इंसानियत से होती है, शक्ल सूरत से नहीं।
Dignity of man is proved by humanity, not by his features.

418. मनुष्य के चित्त की चंचलता ही उसे दुर्गति की ओर ले जाती है।
Capriciousness of man’s mind takes him towards ill course of life.

419. बुद्धिमान मनुष्य को सजग करने के लिये संकेत ही काफी होता है।
A hind is enough for a wise man to make him alert.

420. तीर्थों के आश्रय से मनुष्य भारी विपत्तियों से मुक्ति पाता है।
A man can win over the worst adversities by taking shelter in pilgrim places.

421. मनुष्य यदि मानवता के साथ चलता है तो सुख शांति का अनुभव करता है।
If a man follows the path of humanity he experiences peace and joy.

422. मनुष्य पर्याय एक ऐसा पर्याय है जो मुक्ति के लिये साक्षात कारण है।
The human-form of life is the only form which is a manifest means for salvation.

423. मनुष्य अपने सुख-चैन के लिये बहुत प्रबन्ध करता है, लेकिन पशु कभी पहले से व्यवस्था नहीं करता फिर भी सुख-चैन से रहता है।
Man manages too many things for his comforts but animal does not arrange such kinds of prior preparations, even then it lives happily.

424. मनुष्य शक्ल सूरत से तो अनेक है, लेकिन आत्मा की दृष्टि से सभी मनुष्यों में एक सी आत्मा है।
As regards physical features men are numberless but as regards the soul all are identical.

425. भाग्योदय के माध्यम से मृत्यु को टाला नहीं जाता लेकिन उसको जीता अवश्य जा सकता है।
By the rise of good fortune death can’t be averted but death can certainly be won.

426. संसारी प्राणी जन्म का महोत्सव मनाता है लेकिन मृत्यु से डरता है।
A worldly man celebrates birthday but is fearful of death.

427. मृत्यु जब सामने होती है उस समय धर्मात्मा तन-धन की बात नहीं धर्म की बात सोंचता है।
When death is before a religious man doesn’t think about body or property but he thinks about religion.

428. मृत्यु किसी को क्षमा नहीं करती, अपना कार्य करती है।
Death doesn’t forgive anyone; it performs its own function.

429. कुछ व्यक्ति जीवन में मृत्यु को चाहते हैं, लेकिन रहस्य क्या है, इसको नहीं समझते हैं।
जीवन में सबको सबकुछ अच्छा लगता है, लेकिन मरण अच्छा नहीं लगता है।
Some people want death while living, but what is secret behind it they don’t understand.

430. राज्य मर्यादाओं की आज्ञा, अच्छी तरह निष्ठापूर्वक पालन करने के लिये जैनाचार्यों ने आज्ञा दी है।
Jain Acharayas have given mandate to obey honestly the orders ad laws of the state.

431. सही माँ वह कहलाती है जो अपनी संतान को विषयानुराग से बचाकर धर्मानुराग में लगाती है।
A good mother is she who prevents her child from lecherous deeds and inspires him to be attached with religion.

432. जिनवाणी माँ सुलाती नहीं जगाती है, लेकिन मोह से मोहित माँ सुलाती है।
Mother ‘Jinwani’ awakes, not cause one sleep while deluded mother makes her child asleep.

433. मान को सम्मान नहीं देना, मानव को सम्मान जरूर देना है।
Don’t honor ego, but do honor a man.

434. मनु के अनुसार जो चलता है, वह मानव कहलाता है।
A man is he who moves according to Manu.

435. सभी धर्म महान है, लेकिन उसमें मानव धर्म उन सबमें बडा है।
All religions are great, but humanity is the biggest religion among all of them.

436. मानव जीवन गुणों का खजाना है, इसे विषयों में मत लगाओ।
Human life is the treasure of qualities; don’t waste it in sensual enjoyments.

437. हमारा जीवन मानवता के लिये है दानवता के लिये नहीं।
Our life is for promotion of humanity, not for devil ness.

438. जीवन का लक्ष्य निर्वाण है निर्वाह नहीं।
Aim of life is liberation and not subsistence.

439. संसार से विमुख हो कर मोक्ष को प्रमुख बनाना चाहिये।
Being indifferent to mundane affairs one should mainly aim at liberation.

440. मोक्ष एक ऐसा तत्त्व है जिसका ओर-छोर नहीं होता।
Liberation is such an element which has neither one end nor the other.

441. त्याग मोह के साथ नहीं होता, मोह से तो संग्रह होता है।
Abstinence does not exist with delusion instead delusion occurs in accumulation.

442. जागृति और समर्पण के साथ चलना ही मोक्षमार्ग है।
To keep pace with alertness and dedication is the way to salvation.

443. मोक्षमार्ग अकेले का होता है, इसमें कोई किसी का साथी नहीं होता।
A being follows the path of Moksha all alone none else can accompany and body.

444. मोक्षमार्ग में संकेत नहीं सचेत होकर ही काम होता है।
Awareness not gesture is workable in the path of salvation.

445. आज लोगों को भगवान महावीर के प्रचार प्रसार की चिंता तो है लेकिन भगवान महावीर के मार्ग की चिंता नहीं है।
Today people are worried for publicity and expansion of the name of lord Mahaveer but nobody cares to follow the path shown by him.

446. जो पथ का स्वयं निर्माण कर चलते हैं, वो कभी पीछे नहीं आते, वो तो आगे ही आगे बढते जाते हैं।
Those who have their own way, never come back and go on proceed further.

447. मोह का मार्ग अकेला नहीं होता, लेकिन मोक्ष का मार्ग अकेले होता है।
Road to delusion id not solitary while path to salvation is solitary.

448. संसार मार्ग में ही मित्रता की बात होती है, मोक्षमार्ग में नहीं होती।
The path of Moksha needs no friendship while the way to the world needs it.

449. भावों का उत्कर्ष जब होता है तब ही मोक्ष मार्ग बनता है।
When the elevation of thoughts occurs only then the road to salvation is created.

450. मोह तृष्णा से रहित जीवन ही सही सुखी जीवन है।
Life free from delusion, attachment is really a happy life.

451. मोह जैसे बाहर से आता है, वैसे ही वह भगाया जा सकता है, क्योंकि मोह व्यक्ति का स्वभाव नहीं है।
As delusion comes in from out side so it can be expelled because it is not nature of man.

452. हमारे तीर्थंकरों ने संसार बन्धन के लिये मोह की उपमा दी है।
Our Teerthankars have compared worldly bonds with delusion.

453. मोह अज्ञानरूपी अन्धकार को फैलाने का कार्य करता है।
Delusion does the act of spreading darkness of nescience.

454. मोह ही संसार में सभी दुःखों का मूल स्त्रोत है।
Delusion is the main source of grief in this world.

455. हम अपना मोह जितना कम करेंगे उतने ही ऊपर उठते जायेंगे।
Lesser we make our delusion the higher we rise.

456. आज यंत्र का युग है, पहले मंत्र का युग था, जब यंत्र का युग होता है तो मंत्र का युग नहीं होता है।
This is a mechanical era earlier it was an incantation era the incantation era does not exist when there is mechanical era.

457. आज योग्यता का हनन होता जा रहा है, इसलिये दिन पर दिन अत्याचार बढता जा रहा है।
Today merit is being put down that is why atrocity is on rise day by day.

458. जितनी योग्यता हो उतनी ही बात करना चाहिये।
One should talk according to one’s ability.

459. सतत अभ्यास मनुष्य को योग्य बनाता है।
Constant practice makes a man perfect.

460. यदि हमारे मस्तिष्क में राग द्वेष की बाढ आ गयी तो हमारी यात्रा आगे नहीं हो सकती।
If our mind is deluded with attachment and aversion, then our onward journey can’t take place.

461. वस्तु न तो हेय है न उपादेय, वह तो राग द्वेष के कारण हम वस्तु को हेय उपादेय रूप मानते हैं।
A thing in itself is neither acceptable not unacceptable but due to attachment and aversion we regard it so.

462. अर्थनीति को मात्र सुधारने से राजनीति सुधर नहीं सकती।
Only by improving economy policy politics can’t be set right.

463. सत्ता योग्यता के अनुसार सौंपी जानी चाहिये।
Political power should be entrusted according to ability.

464. स्वछन्दता आने पर राजनीति, समाजनीति सारी की सारी बिगड जाती है।
In presence of unrestrained ness the whole world politics and social polity gets polluted.

465. सत्ता जब राज्य की तामस्ता में डूब जाती है, तब सत्ता कुपथगामी हो जाती है।
Political power when plunges into the state of darkness, it takes a perverted course.

466. राजनीति में कोई स्थायी शत्रु और मित्र नहीं होता, अपना स्वार्थ ही एकमात्र मित्र होता है।
There is no permanent friend or foe in politics; Self-interest is the only friend.

467. राजनीति में वचन और आश्वासन देते समय भी यह सबको ज्ञात होता है कि उसका पालन नहीं होगा।
It is known to all that in politics given promises and assurances will not be carried out.

468. आज विश्व में सबसे बडा प्रदूषण लोभ के कारण फैला हुआ है।
Today the world is infested with the greatest pollution of greed.

469. लोभ के कारण ही आज हमारे सामने कई खतरे हैं।
We face many dangers only because of greed.

470. लोभ के वश होकर हम अपने सत्य को लुटा देते हैं।
Being trapped by greed we get robbed of freed.

471. निर्लोभता ही व्यक्ति को निर्भयता प्रदान करती है।
Greedless ness, precisely, gives fearlessness to man.

472. बिना सोंचे बोलते हैं तो बहुत बोलना पडता है और सार बहुत कम निकलता है, परंतु सोंचकर बोलने पर कम बोलना पडता है और सार अधिक निकलता है।
Speaking without thinking needs a lot of speaking and has less essence but to think before speaking needs less speaking and has more essence.

473. आज हम राम की बात तो कहेंगे, लेकिन राम बन कर नहीं रावण बनकर ही कहेंगे।
Today we do talk about Ram, but talk by becoming Ravan, not by becoming Ram.

474. आत्म कल्याण की ओर ले जाने के लिये प्रवचन होता है।
The aim of preaching is to lead the soul towards welfare of self.

475. वाणी की कठोरता अग्निदाह से भी अधिक कष्टदायक होती है।
Harshness of speech is more painful than burn injuries.

476. व्यक्ति हमेशा वर्तमान में ही जीता है, न कि अतीत और अनागत में जीता है।
A man always lives in present, not in past or future.

477. हम वर्तमान जीवन के मर्म को जानें, उसको जान कर अपने जीवन को उस मय बनायें।
We should know the vitality of present life and knowing it should make life full of it.

478. यदि व्यक्ति भविष्य की गन्ध को और अतीत की बदबू को पूर्ण रूप से हटा दें तो वह स्वस्थता का अनुभव करने लगता है।
If one removes odor of future and bad smell of past then he begins to feel healthiness.

479. अतीत और अनागर का अनुभव नहीं होता, अनुभव तो हमेशा वर्तमान का होता है।
We always have the feel of present only but not of past or future.

480. जिसका वर्तमान उज्ज्वल होता है, उसका भविष्य निश्चित रूप से उज्ज्वल होता है।
A person whose present is bright, his future will definitely be bright.

481. जो व्यक्ति दूसरों को डराना चाहते हैं, वह पहले ही डर चुके हैं।
Those who try to frighten others are frightened before hand.

482. जो व्यक्ति दूसरों के भरोसे चलता है, वह कभी सफल नहीं होता।
He, who moves depending on others, never succeeds.

483. जो व्यक्ति उतावली में कार्य प्रारम्भ करता है, वह कभी भी अपना कार्य पूर्ण नहीं कर पाता।
A person who starts his work in haste never completes his work.

484. जो व्यक्ति अपने आप को जितना हल्का बना लेता है, उसको ज्यादा समय तक इंतजार नहीं करना पडता।
Greater the degree of making one’s self light, shorter is his waiting period.

485. व्यक्ति का मुख ही हृदय का दर्पण हुआ करता है।
A man’s face is the mirror of his heart.

486. बुद्धिमान व्यक्ति सुनते सबकी हैं, लेकिन करते मन की हैं।
Wise-men listen to all but act according to their conscience.

487. जो व्यक्ति पंचेन्द्रियों का दास होता है, उसकी रक्षा कोई नहीं कर सकता है।
Nobody can help a person who is slave of five senses.

488. जैन धर्म व्यक्ति की पूजा नहीं करता, वह तो व्यक्तित्व की पूजा करता है।
Jainism does not worship a person, but a personality.

489. व्यक्ति और व्यक्तित्व में उतना ही अन्तर है जितना जमीन और आसमान में अंतर होता है।
Person and personality have the same difference which exists between the land and the sky.

490. व्यक्तित्व किसी बाजार में खरीदा नहीं जाता, व्यक्ति तो बाजार में खरीदा जा सकता है।
Personality is not marketable commodity whereas a person is.

491. बाहर की जो बात होती है वह बाहर से ही सम्बन्ध रखती है और जो भीतर की बात होती है वह भीतर के व्यक्तित्व की बात करती है।
External affairs concern with only out side world, whereas internal matters concern with inner aspects of the personality.

492. जिसने राग द्वेषादि जीते हैं, उसने ही उस व्यक्तित्व को पाने की कोशिश की है।
Only who has got victory over attachment and aversion etc. has attempted to find out personality.

493. जिस व्यक्ति के अन्दर सहनशीलता, गम्भीरता होती है वह व्यक्ति पीछे नहीं आगे बढता जाता है।
The man who has the power of endurance, and gravity always marches forward not backward.

494. भगवान महावीर का व्यक्तित्व शब्दातीत था, हम उस शब्दातीत व्यक्तित्व को शब्दों में कैसे बाँध सकते हैं।
The personality of Lord Mahaveer was beyond description how we can depict that indescribable personality in the words.

495. विज्ञान आज स्थूल में सूक्ष्मता को खोज रहा है, परंतु वह सूक्ष्मता “पर” में ही खोज रहा है, “स्व” में नहीं।
Today science is in search of microns in a macro ness, but that micro ness is being searched in non-self.

496. सोंचना एक मजबूरी है, इसी मजबूरी के कारण संसारी प्राणी मजदूरी करते हैं।
Thinking is compulsion due to this compulsion worldly people earns wages.

497. सोंचना संसारी प्राणी की एक कायरता है, बिना सोंचे इससे रहा नहीं जाता।
Thinking is cowardice act of a worldly being, he can’t help without thinking.

498. सूक्ष्मता से गहन चिंतन करना ही दूरदर्शिता का द्योतक है।
Minutely thinking deeply is an indication of farsightedness.

499. उच्च विचारों के माध्यम से जीवन का मूल्यांकण किया जाता है।
Life is evaluated on the basis of high thinking.

500. समझाना नहीं समझना महत्त्वपूर्ण है।
To understand or comprehend something is important. Rather than trying to make other understand.

501. ज्ञान की शोभा नम्रता है, नम्रता को प्राप्त करो।
Radiance of knowledge is mildness. So be courteous.

502. महापुरुष की पहली पहचान उसकी विनम्रता होती है।
First identity of a great man is his courtesy.

503. विनय वह सोपान है जिसके माध्यम से साधक मुक्ति की मंजिल पा जाता है।
Courtesy is that pathway through which a devotee reaches his destination.

504. विनय आत्मा का गुण है और ऋजुता का प्रतीक है।
Courtesy is the attribute of soul and symbol of tenderness.

505. तत्त्वों का मंथन करने वाला ही विनयशील है।
Courteous person is he who is immersed in churning the elements.

506. अविनय में शक्ति का बिखराव है, विनय में शक्ति का केन्द्रीय करण है।
There is scatter ness of strength in discourtesy while centralization of strength is in courtesy.

507. विनयी आदमी वही है जो गाली देने वाले के प्रति भी विनय का व्यवहार करता है।
Courteous is he, who behaves modestly even with abuser.

508. विनय का विकास करो, विनय से असाध्य कार्य भी साध्य बन जाते हैं।
Cultivate courtesy it makes impossible tasks possible.

509. विवाह तो भारतीय संस्कृति का प्रतीक है, और शादी शब्द पाश्चात्य संस्कृति का प्रतीक है।
The word ‘Vivah’ is a symbol of Indian culture, where the word ‘Shadi’ is a symbol of western culture.

510. विवाह एक संस्कार का प्रतीक है औरर शादी बरबादी का प्रतीक है।
’Vivah’ is a symbol of rite whereas ‘Shadi’ is a symbol of ruin.

511. विवाह कोई मनोरंजन नहीं संस्कार है।
’Vivah’ is not an entertainment but it is cultural purificatory rite.

512. विवाह संबन्ध को स्वीकार करने वाले व्यक्ति ही मुहूर्त देखते हैं, लेकिन विवाह बन्धन तोडने के लिये कोई मुहूर्त नहीं देखता।
People who accept marriage-relationship consider astrologically auspicious moment for it, but to break it no body consider it.

513. वे लोग धन्य हैं जिन्होंने राग के मार्ग को छोड कर वीतरागता का मार्ग अपनाया।
Those people are prays-worthy who have adopted ascetics leaving behind the road of passion.

514. वीतरागी रागी के लिये एक निमित्त बनते हैं, ऐसे निमित्त को जुटाते रहने की कोशिश करते रहना चाहिये।
As ascetic is a motivating factor for passionate, so one must keep on attempting to obtain such means.

515. रागी को राग के माध्यम से कभी तृप्ति नहीं होती है, वीतरागता के माध्यम से ही तृप्ति होती है।
It is only through ascetism that one gets satisfaction, a passionate never gets it through passions.

516. राग की वीतरागरा की पकड को मजबूत बनाने से ही कल्याण होता है।
Not passion but holding strongly passionless brings welfare.

517. जो राग-द्वेष मोह की पकड को ढीला करता है, वह वीतरागता की पकड को मजबूत बना पाता है।
One who lets loose the hold of passion-aversion, delusion, he is able to get hold of painlessness strongly.

518. वीतरागता जो हमारा धन है, वह धन तो हमारे भीतर है, वह कभी लुटता नहीं है।
Passionless ness which is our wealth is within us, it is never robbed.

519. वीतरागी स्वरूप को देखकर राग, द्वेष, मोह आदि सब समाप्त हो जाते हैं।
Looking Veetragi, passion-aversion, delusion etc. all disappear.

520. राग की दृष्टि को मिटाना और वीतराग दृष्टि को बनाये रखना ही आत्म पुरुषार्थ है।
To erase the vision of passions and to sustain the vision of passionless ness is the right vigour of self.

521. इस संसार के रस, वैराग्य के सामने बेरस से लगने लगते हैं।
In the presence of ascetism, the worldly pleasures appear tasteless.

522. राग तो आग है, लेकिन वैराग्य की दशा में राग कोई वस्तु नहीं है।
Attachment is fire but in ascetic state attachment is nothing.

523. जहाँ दो समान शक्तियाँ आपस में भिड जाती हैं, वहाँ मात्र समय का अपव्यय होता है।
Whenever two equal forces collide there is more wastage of time.

524. तन में लगे हुए संसारी प्राणी को चिन्मय को पाना मुश्किल होता है।
It is very difficult for a person involved in worldly or physical affairs to obtain conscious of soul.

525. जो व्यक्ति तन से हटकर चिन्मय की ओर चला जाता है, उसको संसार के रस फिर नीरस जैसे लगने लगते हैं।
A man being averted from body is directed towards consciousness of soul. The worldly pleasure seems to him tasteless.

526. विगत और आगत के ऊपर रहकर अपना गात खतरे में पडा है।
Our body lies in trouble because it pines for past and future.

527. शरीर की सेवा नहीं होती शरीर के माध्यम से सेवा होती है।
Body is not to be served but it be utilized to serve others.

528. इस काया के माध्यम से हम पवित्रतम आत्म तत्त्व को पा सकते हैं, बशर्ते हम इसका उपयोग सही कर लें।
By assistance of this body we can get holiest self substance provided we use it properly.

529. शरीर यदि है तो रोग है, यदि शरीर नहीं तो रोग की बात नहीं होती।
If there is body then there is disease, if the body is not there, then there is no disease at all.

530. धर्म के लिये शरीर जब तक सहायक होता है, तब तक ही इसकी रक्षा की बात होती है।
Body should be protected till it is helpful for religious rites.

531. इस शरीर के माध्यम से रत्नत्रय की आराधना होती है, इसलिये उस रत्नत्रय की आराधना के लिये इसकी रक्षा की जाती है।
Three spiritual jewels are worshiped through this body; therefore, it is protected for worshiping ‘Ratnatraya’.

532. शरीर को हल्का बनाने से पहले मन को हल्का बनाना अनिवार्य है।
It is necessary to make mind light before making the body light.

533. आकुलता के साथ निराकुलता की बात सुहाती नहीं है।
The talk of unperturbed ness is not relished in presence of perturbed ness.

534. उत्पादन की अपेक्षा वितरण को अधिक महत्त्व देना वैश्यवृत्ति है।
To give more importance to distribution then production is the profession of ‘Vaisyas’.

535. शुद्ध अन्न का भोजन करने से ही शासन विकास ही ओर जाता है, और अशुद्ध भोजन से शासन डगमगाता है।
By eating food prepared from pure grains leads to development of government and staggers by eating impure food.

536. जिस श्रमण ने ग्रंथ के द्वारा मोह की ग्रंथि तोड दी वह सही निर्ग्रंथ श्रमण है।
A sage who broken the knot of delusion with the help of scriptural knowledge is a true passionless saint.

537. यदि श्रमण के पैर एक जगह रुकते हैं तो वह मठाधीश सा बन जाता है।
If an ascetic clings to one place he becomes like a head of a residential religion community.

538. जब व्यक्ति की बाहरी और भीतरी ग्रंथियाँ टूट जाती हैं, तो वह निर्ग्रंथ हो जाता है।
When the inner and outer knots of a person are broken he becomes passionless saint.

539. समता भाव तो श्रमणत्व का नवनीत है।
Equanimity is the butter of asceticism.

540. सभी अनर्थों का मूल यदि है तो विलासिता है।
Cause of all senselessness is desire for luxuries.

541. श्रमण परम्परा आज की नहीं, अनादि काल से यह परम्परा चली आ रही है।
Tradition of saint order is not new but exists from beginning less time.

542. श्रमण एक कुँआ है, जिसमें क्षमा का अक्षय जल लबालब भरा रहता है।
A saint is like a well which is brimful with the imperishable water of forgiveness.

543. अपरिग्रह वृत्ति ही श्रमण की सबसे बडी सम्पत्ति है।
Tendency of non-attachment is the greatest wealth of the saint.

544. न्याय स्वार्थ से परे होना चाहिये, स्वार्थी न्याय अन्याय का सुन्दर रूप है।
Justice should be separated from selfishness. Justice with selfishness is modified from of injustice.

545. कौन दुःखी है, कौन सुखी है, आज इसकी बात नहीं होती, आज तो अपने स्वार्थ की बात होती है।
No body bothers, who is sad or happy, selfishness is the order of the day.

546. सब जीवों का कल्याण हो इस भावना में स्वार्थ समाप्त हो जाता है।
Selfishness ends, when the feeling of welfare of all beings is considered.

547. जब स्वभाव होता है तब विभाव को बुखार आ जाता है।
When real nature appears, unreal nature suffers from fever.

548. अपने स्वभाव को जितना समझोगे उतने ही उर्ध्व गमन की ओर यात्रा होगी।
The more we understand our real nature the greater will be our upward journey.

549. धार्मिक क्रियाओं का उद्देश्य निजस्वभाव को प्राप्त करना है।
The aim of religious activities is to obtain one’s own real nature.

550. जिसने स्वभाव को देख लिया है वो फिर विभाव की ओर नहीं देखता।
Whoever happens to visualize his real nature, he never turns to passionate feeling.

551. लिखना हमारा स्वभाव नहीं लखना हमारा स्वभाव है।
Seeing is our nature, not writing.

552. जो दुनिया को दिखाता हूँ कि मैं हूँ वह कभी भी अपने आप को नहीं देख सकता।
He who is entangled in passions never gets the pleasure of his real self.

553. सत्य पर विश्वास करो, उसका आचरण करो, तुम्हारी विजय होगी।
Have faith in truth, follow it, you will win.

554. असत्य को घोषित करना आसान है, परंतु सत्य को सिद्ध करना बहुत कठिन है।
To declare any thing false is easy, but to establish truth is very difficult.

555. सत्य आग्रह से सिद्ध नहीं होता, सत्य के लिये संयम का घूँट पीना पडता है।
Truth is not proved by insistence, for truth a gulp of abstinence has to be dunked.

556. दुनिया में ईमानदारी से उत्तम नीति दूसरी नहीं है।
No other policy is better then the policy of honesty.

557. ईमानदारी ही सर्वश्रेष्ठ नीति है।
Honesty is the best policy.

558. सत्य कहने में कटु जरूर लगता है, लेकिन उसका परिपाक अच्छा देखा जाता है।
Truth is bitter when told but its outcome is seen well.

559. तीर्थंकर भगवान सत्य को सिद्ध करने के लिये मौन नहीं लेते हैं, सत्य का पालन करने के लिए मौन लेते हैं।
Preceptors don’t keep mum in other to prove the truth; they keep mum in order to follow the truth.

560. समय किसी के लिये नहीं रुकता, हमेशा गतिमान रहता है।
Time waits for none it always keeps moving.

561. स्वाहा का अर्थ क्या होता है जरा समझो! स्व यनि अपने आपको, हा यानि समर्पण करना, अपने आप को समर्पण करना ही स्वाहा कहलाता है।
Try to understand a little what ‘Svaha’ means? ‘Sva’ means self ‘Ha’ means submission, i.e. Svaha is submission to one’s ownself.

562. जो आत्मा की साधना करता है वही साधु कहलाता है।
One who sticks around the soul is saint.

563. संत रात में भी प्रभात का काम करते हैं।
Radiation of saint turns night into dawn.

564. जो साधना करता है वह साधु कहलाता है, मात्र पिच्ची कमण्डलु लेने से साधु नहीं होता।
One who practices penances is an ascetic but just to carry ‘Pichhi Kamandalu’ doesn’t mean that he is an ascetic.

565. साधु का मन कठोर हो सकता है, लेकिन हृदय में सदा मृदुता होनी चाहिये।
Saint could hard by mind but should be always soft by heart.

566. शरीर का कोमल होना अलग बात है, लेकिन हृदय से कोमल होना विशेष बात है।
To be delicate by body is other thing but delicacy of heart is a specialty.

567. समता भाव ही साधु की निधि है, जिसका वह कभी परित्याग नहीं कर सकता।
Equanimity is particularly the asset of the saint which he never abandoned.

568. साधु एक कुँआ है, इसीलिये वह आनंदित रहता है, कुँआ बन जाओ फिर अनंत काल तक आनन्द ही आनन्द है।
Saint is like a well so he is happy always, become a well then there will be joy for ever.

569. जीवन के रहस्यों को खोलने का कार्य करता है साधु समागम।
Company of ascetics helps in disclosing the mysteries of life.

570. साधु रहस्यों को खोलता नहीं, उसके समागम से ही स्वयं खुलते चलते जाते हैं।
Ascetic does not close the mysteries, it happens spontaneously on its own in his company.

571. साधु किसी समाज, जाति, घर आदि का नहीं होता वह तो विश्व का होता है।
Saint doesn’t belong to any society, caste or home etc. but he belongs to the worlds large.

572. साधु दुनिया के पीछे नहीं चलता, दुनिया साधु के पीछे चलती है।
An ascetic doesn’t run after the world, but the world runs after him.

573. हम संतों की वाणी पर विश्वास करते हैं तो हमारे जीवन में अन्धकार नहीं आता।
If we have belief in the words of saints then darkness does not come in our life.

574. हमारे संत विश्व और प्राणीमात्र के हित के बारे में सोंचते हैं।
Our saints always think about welfare of the world and of every living being.

575. संसारी प्राणी जन्म का उत्सव मनाता है, लेकिन साशु मृत्यु को आमंत्रित करके मृत्यु महोत्सव मनाता है।
A worldly being celebrates birthday while the ascetic invites and celebrate the death day.

576. साधुता का प्रतीक ही जिन पताका होती है।
Jinflag precisely id the symbol of ascetism.

577. जैसे नदी कहीं रुकती नहीं वैसे ही साधुओं का जीवन कहीं रुकता नहीं है।
Just as a river stops no where, similarly life of saints does not stop any where.

578. नदी का स्वभाव चलना है रुकना नहीं वैसे ही साधु हमेशा चलता रहता है।
It is natural for a river to flow without any stoppage, similarly ascetic walks continuously.

579. दुष्ट को मारना दुष्टता है, पर उसे सुधारना सज्जनता है।
To kill a cruel is a cruelty but to reform him is gentleness.

580. हम परेशान इसलिये हैं कि हम दूसरों को परेशान करते हैं।
We are uneasy because we make others uneasy.

581. पतन हर समय संभव है, परंतु उत्थान नहीं।
Down-fall is possible at any time but not the progress.

582. अपनी खोज ही अच्छी चीज है।
Search of self is the only good thing.

583. स्वाभिमान छोडने से सामनेवाला कद्र कर ही नहीं सकता।
Others can’t have regard for you, if you shun your self respect.

584. जिस दिन कर्मों की हार होती है, उसे त्योहार कहते हैं।
The defeat day of ‘karma’ is called a festival day.

585. दूरदर्शन आपको अपने निज से दूर करता है।
Television makes you away from self-seeing.

586. बगैर आज्ञा के किसी की वस्तु लेने से व्यवहार बिगडने की पूरी संभावना रहती है।
Taking any body’s thing without permission can lead to full possibility of spoiling relation.

587. समानांतर चलने वाले कभी नेतृत्व और संचालन नहीं कर सकते।
Leadership and managing can’t be done by those who move parallel.

588. गलतियाँ सुधारते समय कोई गलती हो भी जाये तो वह गलती नहीं मानी जाती।
If by chance a mistake is committed during the correction process, then it is not considered as a mistake.

589. क्षणभंगुरता में गर्व क्यों।
Why pride in transients?

590. पथिक को पहले पथ नहीं प्रकाश चाहिये।
A traveler first needs light, not the path.

591. भले ही आप चार अक्षर बोलो, पर सत्य बोलो।
You may speak a few words, but speak the truth.

592. वही उन्नति कर सकता है जो स्वयं को उपदेश देता है।
He who preaches to himself can make rise.

593. आरती सोना चाँदी आदि की नहीं होती, आरती तो गुणों की होती है।
Adoration does not belong to gold and silver, but belongs to qualities.

594. स्व का जहाँ पर हापन होता है उसे स्वाहा कहते हैं।
’Svaha’ means renunciation of self.

595. अपनी कोई वस्तु नहीं होती, लेकिन अपनत्त्व अपनी वस्तु अवश्य होती है।
There is nothing which we own but own ness is surely and certainly our own thing.

596. बाहरी चमत्कारों में शुद्धात्मानुभूति नहीं होती।
Realization of pure self is not attained in external miracles.

597. जो उद्देश्य के प्रति सजग रहता है, उसको कभी हानि नहीं होती।
One who is always conscious about him is never at loss.

598. जीवित रहने के लिये भोजन है, भोजन के लिए जीवित रहना ठीक नहीं है।
It is not proper to live to eat, food is to live alive.

599. जीत उसी की होती है जो संभल कर चलता है।
One who moves continuously wins in the end.

600. कुछ न होने से, कुछ होना अच्छा माना जाता है।
Some thing is better than nothing.

601. आत्मीयता को आत्मसात करने की क्षमता संगीत में होती है।
Music has capacity to assimilate intimacy.

602. विश्वास रखो, ज्ञान करो और आचरण में लाओ इससे ही प्रभू तक पहुँचने का सही रास्ता मिलता है।
Have faith, gain knowledge, and put it into practice is the only right way to reach up to God.

603. अच्छे संस्कार हमारे जीवन की उन्नति के लिये कारण होते हैं।
Good rites are causes of our progress in life.

604. आदर्शमय संतान बनने के लिये हमें उसमें अच्छे संस्कारों को डालना चाहिये।
To have an ideal child, it is a must to mould them in food rites.

605. आने वाले जीवन के अंकुर बचपन में ही दिखाई देने लगते हैं।
Sprout of future life caste their shadow in childhood it self.

606. यह संसार अहंकार और ममकार के ऊपर खडा हुआ है।
This world is based on egoism and my ness.

607. तीर्थंकर रूपी नौका के द्वारा ही हम इस संसार समुद्र से पार हो सकते हैं।
We can swim across this worldly ocean by ship named ‘Tirthankara’.

608. संसार में रहकर भी संसार से कोई आकांक्षा नहीं रखना ही सम्यगदृष्टि का लक्षण है।
Though living in the world yet without any expectation from the world is a sign of serene vision.

609. यह संसारी प्राणी विषयों को नहीं पहचान पा रहा है इसलिये तो वह अपने आपको नहीं जान पा रहा है।
This worldly being is unable to identify the nature to sensual objects hence he is incapable to know himself.

610. आज संसार में भोग के बारे में सोचा जाता है, लेकिन कभी भोक्ता पुरुष के बारे में नहीं सोंचा जा रहा है।
In today’s world consideration is given of consumption, but never a thought or consideration id being given to consumer.

611. हम संसार की ओर देखते हैं लेकिन संसार किस कारण से है इस ओर क्यों नहीं देखते हैं?
We look at the world, but why not we look at the cause of the existence of the world?

612. संसार का स्वरूप जिसको नजर आ जाता है, उसके अन्दर संतोष का सागर लहराने लगता है।
Whoever visualizes the real nature of the world, he feels within him the rippling ocean of contentment.

613. जहाँ एक दूसरे की अपेक्षा रहती है, उसी का नाम तो संसार है।
Where, there in an expectation from others, it is termed as world.

614. संसारी प्राणी अपना भाव और भार ही बढाता रहता है।
Worldly being goes on increasing his rate and weight.

615. संसार प्राणी अज्ञान की दशा में क्या-क्या कर जाता है उसे भान नहीं होता।
A worldly being goes is not aware of the face what he is doing in a state of ignorance?

616. मोक्ष का हेतु रत्न त्रय है तो संसार क हेतु राग-द्वेष आदि है।
Right faith right knowledge, right conduct is the path of liberation, whereas attachment and aversion is the course of worldly transmigration.

617. स्वरूप का बोध नहीं होने से संसार के घुमावदार रास्तों में संसारी प्राणी घूमता रहता है।
Worldly being goes on wandering through the Zigzag ways of transmigration for want of knowledge of the nature of self.

618. संसार छोडने की आवश्यकता नहीं, मुख मोडने की आवश्यकता है।
Not renunciation of the world u indifference towards world is needed.

619. संसार में वैराग्य ही एक अभय है।
Only renunciation begets fearlessness in this world.

620. मनुष्य का मूल्यांकन संयम से होता है और संयम का अर्थ दमन नहीं, संयम का अर्थ है दया, सत्य, अहिंसा।
A man is evaluated by abstinence and abstinence is not suppression, is mercy, truth and non-violence.

621. साधना के बिना हमारी भावना कभी साकार साकार रूप नहीं ले सकती।
Without striving towards an end our feeling can not be converted into actuality.

622. साधना और भावना के माध्यम से ही भगवत पद प्राप्त होता है।
Emancipation is achieved through striving and feeling towards that end.

623. साधना का उद्देश्य है अनावरणता को प्राप्त करना, आवरण हटाना ही हमारा प्रतिदिन का प्रयास होना चाहिये।
The aim of effort is ‘unveiling’ the soul from karma bondage. So our day-to-day attempt should be unveil the soul.

624. संसार में सदा शिव की आराधना करो, जिससे तुम्हारी विराधना मिट जाये।
Always strive for emancipation in this world so that your pains and afflictions may remove.

625. अपनी साधना को जैसी की तैसी बनाये रखना एक बहुत बडा कार्य है।
To keep our efforts sustained is a great task.

626. जबतक साध्य की सिद्धि न हो तब तक ही साधना की सीमा मानी जाती है।
The limit of efforts is until the achievement of goal.

627. साधना का अर्थ है- अपने से पृथक भूत तत्त्वों से अपने आपको दूर कर लेना।
To strive is to dissociate one’s self from elements different from us.

628. दुःख का अनुभव ही सुख की आस्था की ओर ले जाने वाला है।
Only the experience of sorrow leads to the faith in bliss.

629. लेने के यदि भाव करो तो दूसरों के कष्टों को लेने का भाव करो, दूसरों के सुख लेने की चाह मत करो।
If you have at all a desire to take something, have a desire to share other’s pains, don’t aspire for getting others pleasure.

630. स्वयं सेवक का अर्थ है- जो स्वयं की सेवा करता है वह स्वयंसेवक।
Swayam Sevak means one who serves his own self.

631. दूसरों की सेवा करने से अपनी आत्मा की सेवा होती है, कहा भी है- सेवा से ही मेवा की प्राप्ति होती है।
Our soul is served by imparting service to others. It is said, ‘Reward is begot by service’.

632. सेवा आत्मा की होनी चाहिये शरीर की नहीं, शरीर के द्वारा आत्मा की सेवा होनी चाहिये।
There should be service of soul not of the body, the body should be a medium to serve the soul.

633. अहं भाव के द्वारा आत्मा की सेवा नहीं होती, उसके द्वारा आत्मा में धोखे होते हैं।
Soul is not served by egoism, but it causes deception in soul.

634. अपने अहित की चिंता बहुत कम लोगों को होती है, दूसरों के अहित की चिंता बहुत लोग करते हैं।
A very few people worry about their own harm, many people worry about others harm.

635. यदि चिंता करना ही है तो अपने हित की चिंता करो।
If at all you are to worry, then worry about your welfare.

636. हम अपने हित की बात तो करते हैं, परंतु अपने लिये अहितकारी विचार छोडते नहीं हैं।
Although we talk about our beneficence but do not leave inimical thoughts harmful to us.

637. प्रत्याशी कौन होता है? जो अपने हित की बात सोंचता है, उसे प्रत्याशी कहते हैं।
Who is called a candidate? He who thinks of his own interest is called as candidate.

638. अपने हित की जिसे चिंता होती है उसी का नाम मोक्षतंत्र है।
He who cares for the interest of the self is named/termed as ‘Mokshatantra’.

639. दूसरे के जीवन से हमें अपने हित के लिये सारभूत बात को ग्रहण कर लेना चाहिये।
From others life we should learn fruitful things which are beneficial to our life.

640. हम दूसरे का हित करेंगे तो हमारा हित पहले होगा।
If we will do good to others we will be benefited first.

641. मनुष्य जीवन में सुख शांति का यदि अनुभव होता है तो दूसरे का हित करने में होता है।
If pleasure and peace in human life is experienced it comes by doing food to others.

642. दूसरे का हित करके अपने हित का साधन करना चाहिये।
After doing good to others, we should manage for the means of our goodness.

643. मांस का उत्पादन, मछली का उत्पादन, मुर्गी पालन उद्योग आदि हिंसा का प्रतीक है, कृषि प्रधान भारत देश में आज यह क्या हो रहा है?
Production of meat, pisciculture, and poultry farming all are symbols of violence. What all this is happening today in this agricultural dominated India?

644. समाज में विघटन का मूल कारण हिंसा ही है।
Violence is the root cause of disintegration of the society.

645. हिंसा के भाव से दूसरों के उपकार का भाव नहीं हो सकता।
A person can’t think to do good to others, having violent feelings.

646. पहले उद्योगी हिंसा का निषेध करते थे लेकिन आज हिंसा का ही उद्योग हो रहा है।
Earlier occupation violence was used to be prohibited but today the industry of violence itself is being carried on.

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