जल गन्धाक्षत पुष्प चुरु, दीप धूप फल लाय । |
सर्व पूज्य पद पूजहू बहू विधि भक्ति बढाय ॥ |
ऊँ ही भाव पूजा, भाव वन्दना, त्रिकाल पूजा, त्रिकाल वन्दना, करवी, |
कराववी, भावना, भाववी श्री अरहंत सिद्वजी, आचार्यजी, |
उपाध्यायजी, सर्वसाधुजी पंच परमेष्ठिभ्यो नमः । |
प्रथमानुयोग, करणानुयोग, चराणानुयोग, द्रव्यानुयोगेभ्यो नमः |
दर्शन विशुद्धयादि षोढष कारणेभ्यो नमः । |
उत्तमक्षमदि दशलक्षण धर्मेभ्योः नमः । |
सम्यग्दर्शन सम्यग्ज्ञान सम्यक चरित्रेभ्यो नमः । |
जल विषे, थल विषे, आकाश विषे, गुफा विषे, पहाड विषे, नगर-नगरी विषे |
उर्ध्वलोक मध्यलोक पाताल लोक विषे विराजमान कृत्रिम अकृत्रिम |
जिन चैत्यालय स्थित जिनबिम्बेभ्यो नमः । |
विदेह क्षेत्र विद्यमान बीस तीर्थकरेभ्यो नमः । |
पाँच भरत पाँच ऐरावत दसक्षेत्र सम्बन्धी तीस चौबीसी के सात सौ |
बीस जिनेन्द्रेभ्यो नमः । |
नन्दीश्वर दीप स्थित बावन जिनचैत्यालयोभ्य नमः । |
पंचमेरु सम्बन्धि अस्सी जिनचैत्यालयोभ्यो नमः । |
श्री सम्मैद शिखर, कैलाश गिरी, चम्पापुरी, पावापुर, गिरनार आदि |
सिद्धक्षेत्रेभ्यो नमः । |
जैन बद्री, मूल बद्री, राजग्रही शत्रुंजय, तारंगा, कुन्डलपुर, |
सोनागिरि, ऊन, बड्वानी, मुक्तागिरी, सिद्ववरकूट, नैनागिर आदि तीर्थक्षेत्रेभ्यो नमः । |
तीर्थकर पंचकल्याणक तीर्थ क्षेत्रेभ्यो नमः । |
श्री गौतमस्वामी, कुन्दकुन्दाचार्य श्रीचारण ऋद्विधारीसात परम |
ऋषिभ्यो नमः। |
इति उपर्युक्तभ्यः सर्वेभ्यो महा अर्घ निर्वपामीति स्वाहा । |