आचार्यश्री समयसागर जी महाराज इस समय डोंगरगढ़ में हैंयोगसागर जी महाराज इस समय चंद्रगिरि तीर्थक्षेत्र डोंगरगढ़ में हैं Youtube - आचार्यश्री विद्यासागरजी के प्रवचन देखिए Youtube पर आचार्यश्री के वॉलपेपर Android पर आर्यिका पूर्णमति माताजी डूंगरपुर  में हैं।दिगंबर जैन टेम्पल/धर्मशाला Android पर Apple Store - शाकाहारी रेस्टोरेंट आईफोन/आईपैड पर Apple Store - जैन टेम्पल आईफोन/आईपैड पर Apple Store - आचार्यश्री विद्यासागरजी के वॉलपेपर फ्री डाउनलोड करें देश और विदेश के शाकाहारी जैन रेस्तराँ एवं होटल की जानकारी के लिए www.bevegetarian.in विजिट करें

पपौराजी (टीकमगढ़) जैन तीर्थ

टीकमगढ़ से मात्र ५ किलोमीटर दूर सागर-टीकमगढ़ मार्ग पर पपौराजी जैन तीर्थ है, जो कि बहुत प्राचीन है। यहां पर १०८ जैन मंदिर हैं, जो कि सभी प्रकार के आकार में बने हुए हैं, जैसे रथ आकार, कमल आकार एवं कई सुन्दर भोंयरे भी हैं। इस क्षेत्र में मंदिर रचनाशिल्प और कलात्मकता की दृष्टि से अद्वितीय है। पत्थरों पर खुदाई इतनी स्पष्ट है, मानो कलाकारों ने पत्थर को मोम बनाकर सांचे में ढाल दिया हो। इन मंदिरों में खजुराहो की तरह पाषाण प्रतिमाओं की कलात्मकता देखते ही बनती है।

वास्तुकला का अद्भुत स्वरूप हैं ये मंदिर
क्षेत्र पर जो चौबीसी बनी है, वह भारतवर्ष में अन्यत्र देखने को नहीं मिलती। इसमें एक बड़े मंदिर के चारों ओर प्रत्येक दिशा में ६-६ मंदिर हैं। प्रत्येक वेदिका की अलग से परिक्रमा को चतुर्दिक झरोखों के रूप में जिस तरह से निर्मित किया गया है, वह वास्तुकला का अद्भुत नमूना है। यहां पर प्राचीन समुच्चय या सभा मंडल हैं। इसके मध्य में एक मंदिर है और उसके चारों ओर १२ कलात्मक मठ हैं, समवशरण की सभा के घोतक हैं। इसे देखकर ऐसा प्रतीत होता है कि यह प्राचीनकाल में तपोभूमि रहा होगा, जहां पर साधुजन निवास करते होंगे।

प्राचीन समुच्चय के समीप दो विशाल भोंयरे (भूगर्भ स्थित मंदिर) हैं जिसमें संवत् १२०२ की अत्यंत प्राचीनतम प्रतिमाएं हैं, जो देशी पाषाण से निर्मित होते हुए भी अपनी चमक ओर आकर्षण से ९०० बरस बाद भी मानव को आश्चर्यचकित कर देती हैं। भगवान पार्श्वनाथ की दुर्लभ पद्मावती संयुक्त अद्वितीय कलात्मक प्राचीन प्रतिमा, जिसके चारों ओर चित्र बने हुए हैं, अत्यंत मनोज्ञ है। इस प्रतिमा के सौन्दर्य को देखकर भक्त आश्चर्यचकित रह जाते हैं।

पपौराजी में अतिशयकारी ‘पतराखन कुआं’
यह घटना विक्रम संवत् १८७२ की है। एक वृद्धा मां द्वारा मंदिर का निर्माण कराया गया। इसकी मांगलिक बेला पर अपार जनसमूह को प्रीतिभोज दिया जा रहा था। पानी की पूर्ति कुओं के खाली हो जाने के कारण असंभव-सी प्रतीत होने लगी। पानी के अभाव से लोग व्याकुल होने लगे और वृद्धा मां के संबंध में अनर्गल बोलने लगे, तो वृद्धा मां अत्यंत दुखी होकर रोने लगीं और तुरंत उसने प्रतिज्ञा ली कि जब तक पानी की व्यवस्था नहीं हो जाती, मैं अन्न-जल ग्रहण नहीं करूंगी।

ऐसा कहकर वे कुएं की तलहटी में समाधि अवस्था में बैठ गईं। कुछ ही समय में कुएं में पानी के अनेक स्रोत फूट निकले और वह वृद्धा मां उस पानी के साथ ऊपर आती गईं। यहां तक कि पानी कुएं से भी बाहर आ गया। उपस्थित जनसमूह द्वारा देवों से प्रार्थना करने पर ही पानी कुएं से निकलना बंद हुआ। तभी से यह कुआं ‘पतराखन’ के नाम से जाना जाता है।

अधिक जानकारी हेतु संपर्क करें
● श्री अरविंद जैन – +91-9424342869
● श्री चक्रेश जैन (चढ़ेया) – +91-9424922028
● ब्र. श्री राजुल दीदी – +91-9424344053
● ब्र. अनिता दीदी – +91-9406576065

प्रवचन वीडियो

कैलेंडर

april, 2024

अष्टमी 02nd Apr, 202402nd Apr, 2024

चौदस 07th Apr, 202407th Apr, 2024

अष्टमी 16th Apr, 202416th Apr, 2024

चौदस 22nd Apr, 202422nd Apr, 2024

X