आचार्यश्री समयसागर जी महाराज इस समय डोंगरगढ़ में हैंयोगसागर जी महाराज इस समय चंद्रगिरि तीर्थक्षेत्र डोंगरगढ़ में हैं Youtube - आचार्यश्री विद्यासागरजी के प्रवचन देखिए Youtube पर आचार्यश्री के वॉलपेपर Android पर आर्यिका पूर्णमति माताजी डूंगरपुर  में हैं।दिगंबर जैन टेम्पल/धर्मशाला Android पर Apple Store - शाकाहारी रेस्टोरेंट आईफोन/आईपैड पर Apple Store - जैन टेम्पल आईफोन/आईपैड पर Apple Store - आचार्यश्री विद्यासागरजी के वॉलपेपर फ्री डाउनलोड करें देश और विदेश के शाकाहारी जैन रेस्तराँ एवं होटल की जानकारी के लिए www.bevegetarian.in विजिट करें

श्री आदिनाथ दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र चाँदखेडी (राजस्थान)

श्रीमती सुशीला पाटनी
आर. के. हाऊस, मदनगंज- किशनगढ

जहाँ व्यक्ति है, वहाँ सृष्टि है। जहाँ सृष्टि है, वहाँ जीवन है, जहाँ आस्था है, वहाँ चमत्कार है। चमत्कारों की अविस्थिति कौतुहल पैदा करती है तो चमत्कारों का सिलसिला श्रद्धा को जन्म देता है। राजस्थान के झालावाड जिले के खानपुर कस्बे से जुडा हुआ दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र, चाँदखेडी भी ऐसी ही श्रद्धा का केन्द्र है। यह स्थान जयपुर-जबलपुर राष्ट्रीय राजमार्ग पर स्थित झालावाड जिला मुख्यालय से पैंतीस कि.मी. दूर और राजस्थान के प्रमुख औद्योगिक नगर कोटा से 120 कि.मी. दूर स्थित है।

1008 Shri Aadinathji Bhagwan (Chandkhedi)

गर्भगृह में मूलनायक आदिनाथ की अवगाहन पद्मासन प्रतिमा प्रतिष्ठित है, जिसकी चरन चौकी पर संवत 512 अंकित है। ऊपरी तल पर पाँच वेदियां, एक गंधकुटी और कई छोटी-छोटी वेदियां हैं। इन वेदियों में तीर्थंकर की छोटी-बडी प्रतिमाओं के अलावा साधु और सीमन्दर स्वामी की प्रतिमा भी प्रतिष्ठित हैं। पूरे मन्दिर में 900 से अधिक जिनबिम्ब प्रतिष्ठित हैं। महत्वपूर्ण यह भी है कि मन्दिर का मुख्य शिखर गंधकुटी बना है, न कि मूलनायक भगवान ऋषभदेव की प्रतिष्ठा वाले गर्भगृह पर।

जिससे दो-तीन घंटों में ही हजारों लोग एकत्रित हो गये दोपहर 2:00 बजे मुनिश्री ने गुफा के रहस्य पर प्रवचन दिया तद्पश्चात मात्र पिच्छीधारी पूरे संघ ने गुफा में प्रवेश कर 4:19 मिनट पर लगभग पौने तीन फूट उतंग दिगम्बर जैन पद्मासन स्फटिक मणी, हीरा मणी, चन्द्रप्रभु भगवान, अरिहंत भगवान, पार्श्वनाथ भगवान की प्रतिमा ऊपर ला कर मंडल में विराजमान की। इस चतुर्थकालीन अद्वितीय चैत्यालय के ऊपर आते ही सारी चाँदखेडी का आकाश श्री चन्द्रप्रभु एवं मुनिश्री सुधासागर जी महाराज की जयजयकार की ध्वनि से गुंजायमान हो गया, दर्शन करते ही दर्शनार्थियों के मुँह से एक ही आवाज निकल रही थी। महा अतिशय, अलौकिक, अद्वितीय दर्शन कर जीवन धन्य हो गया। मन्दिर के भीतर और बाहर एक ही नारा गूँज रहा था कि – “जैन प्रतिमा कैसी हो, चन्द्र प्रभु जैसी हो”, “गुरु का शिष्य कैसा हो, सुधा सागर जी महाराज जैसा हो” । तत्पश्चात प्रथम अभिषेक श्रेष्ठी श्री कस्तुरचन्द जैन (दोतडा वाले), रामगंजमंडी वालों ने किया। प्रथम महाशांतिधारा गौरव जैन, श्री अशोक पाटनी (आर. के. मार्बल ग्रुप) किशनगढ वालों ने की। मुनि श्री ने अपने प्रवचनों में कहा कि – “ ये इतिहासातीत चतुर्थकालीन महा अतिशयकारी जिनबिम्ब है। इन्हे नमस्कार कर के मेरा जीवन धन्य हो गया। मुनिश्री ने अपने प्रवचनों में बार-बार यह भावना व्यक्त की कि –

“गर हो जन्म दुबारा जिनधर्म ही मिले।
फिर यही जिनालय जिनवर शरण मिले”

मुनिश्री ने यह भी कहा कि – “यह चैत्यालय चैत्र बुदी नवमी अर्थात आदिनाथ जयंती दिन शनिवार संवत 2058 तक दर्शनार्थ ऊपर रहेगा। तत्पश्चात इसे यथा स्थान गुफा में विराजित कर दिया जायेगा”। इन पन्द्रह दिनों में सम्पूर्ण भारत से आये लगभग 15 से 20 लाख लोगों ने दर्शन कर अपना जीवन धन्य किया एवं 10 से 12 हजार लोगों ने अभिषेक कर अतिशय पुण्य बन्ध किया।

चैत्रबुदी दशमी दिन रविवार संवत 2058 को यथा समय चैत्यालय को गुफा में प्रदीप जी (अशोक नगर वालों) के प्रतिष्ठा चार्यत्व में शांति विधान पूर्वक मुनि संघ द्वारा विराजमान कर दिया गया तदुपरांत 19 दिन चैत्र शुक्ल त्रयोदशी महावेर जयंती के दिन शुक्रवार संवत 2059 की रात्रि में उसी दैव्य शक्ति ने मुनि श्री को तीसरी बार स्वप्न में आ कर नमोस्तु कर कहा कि – आपके मन में चाँदखेडी का इतिहास जानने की जो इच्छा है उसे सुनिये – मैं किशनदास “मडिया” बघेरवाल का जीव हूँ जो आपके स्वप्न में पहले भी दो बार आया, चतुर्थकालीन महा अतिशय आदि चन्द्रप्रभु भगवान आदि रत्न मयी प्रतिमाओं का आदिनाथ भगवान की प्रतिमाओं के साथ ला कर मैंने ही स्थापित करवाया था। आदि भगवान की प्रतिमा लाते समय कई बैल टेक पर पछाड खा कर गिर गये, तब प्रतिमाजी को यहीं उतार कर उसी स्थान पर, यह मन्दिर मैंने बनवाया था। ये रत्नमयी प्रतिमायें आदिनाथ भगवान के ऊपरी मंजिल में 30 वर्ष तक विराजमान रही। बाद में मैंने ही इन्हे भू-गर्भ में विराजमान करवाया था। इन्ही चन्द्र प्रभु के नाम से ये स्थान चन्द्र प्रभु का बाडा कहलाता था जिसे आज चाँदखेडी के नाम से जाना आता है। इन रत्नमयी प्रतिमाओं को कभी भी स्थायी रूप से बाहर विराजमान नहीं किया जावे। मात्र सीमित समय के लिये ही दर्शनार्थ निकाल सकते हैं तथा बाद में संकल्पित तिथि के पूर्ण होने पर पुनः भू-गर्भ में ही विराजमान कर दिया जावे। परमपूज्य मुनिश्री जी को उस दैव्यशक्ति ने भविष्य में चैत्यालय किस विधि से निकाला जावे वह विधि भी बतायी जिसे कमेटी ने अलग से शिलालेख एवं ताम्रपत्र पर अंकित करा दी है। मुनिश्री ने स्वप्न में ही पुनः पूछा कि आप इस समय कहाँ हैं तो उसने इसका कोई उत्तर नहीं दिया और अदृष्य हो गया। हम सब भारतवासी श्रद्धालुजन परमपूज्य मुनि पुंगव 108 श्री सुधा सागर जी के अत्यंत उपकारी हैं। जिन्होने अपनी साधना एवं तपस्या से इस चाँद खेडी के इतिहास को जो कि शिलालेखों में एवं जनश्रुतियों में था उसे साक्ष्य में परिवर्तित कर दिया एवं ऐसी अलौकिक अकल्पनीय चतुर्थ कालीन महा अतिशयकारी महान पुण्य का बोध कराने वाली रत्नमयी प्रतिमाओ के दर्शन करवा कर सभी का जीवन धन्य किया। साथ ही जैन धर्म की ध्वजा को गगन की ऊँचाई तक पहुँचा दिया और इस अतिशय क्षेत्र को महाअतिशय क्षेत युगों युगों तक के लिये बना दिया मुनि श्री आप धन्य हैं।

श्रमन संस्कृति के रक्षक एवं तीर्थ जीर्णोद्धारक मुनि पुंगव 108 श्री सुधासागर जी महाराज का पुनः आगमन

आध्यात्मिक एवं दार्शनिक संत मुनि पुंगव 108 श्री सुधासागर जी महाराज ससंघ का श्री आदिनाथ दिगम्बर जैन अतिशयकारी चाँदखेडी के मन्दिर में भव्यता के साथ पुनः मंगल प्रवेश दिनांक 31 दिसम्बर 2005 को डेढ कि.मी. लम्बी श्रद्धालुओं एवं पुण्यार्जकों की पद यत्रा के साथ हुआ। यह पदयात्रा दिनांक 27 दिसम्बर ,2005 को श्री दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र, नसियांजी, दादाबाडी, कोटा से प्रारम्भ हुई जिसमें सात हाथी, एक्यावन घोडे, एक गज रथ एवं एक जिनवाणी रथ था। बग्घी में कुबेर, हाथियों पर इन्द्र- इन्द्राणी तथा अश्वों पर आरूढ युवा इन्द्र अपने हाथों में धर्म ध्वजायें फहराते हुए चल रहे थे। महाराज 108 श्री सुधासागर जी शुभ आगमन से चाँदखेडी क्षेत्र धन्य हो उठा तथा सम्पूर्ण वातावरण जय-जय कार से गुंजायमान हो गया।

अलौकिक चमत्कार

वर्षों से स्थापित चाँदखेडी के अतिशय क्षेत्र के मूलनायक 1008 श्री आदिनाथ भगवान की प्रतिमा जिसे रंचमात्र भी हिलाया नहीं जा सकता था, पर प्रतिमा कुछ नीचे होने के कारण स्पर्श दोष होता था। इस दृष्टि से इस मूलनायक प्रतिमा को आगे सरका कर वास्तु दोष का निवारण किया जाये ऐसा विचार बना।

ऐसी स्थिति में मुनि श्री 108 श्री सुधासागर जी महाराज ने ध्यानस्थ हो कर कुछ अनुयायियों के सहयोग से इस 30 टन वजनी, सवा छः फीट लम्बी विशाल लाल पाषाण की प्रतिमा को सहजता के साथ पौने दो फीट आगे सरका दिया, इस अलौकिक घटना की चर्चा सम्पूर्ण क्षेत्र में बडी तेजी के साथ फैली जिससे यहाँ धर्मावलम्बियों का हुजूम उमड पडा।

महाराज श्री सुधासागर जी के सनिध्य में इस मूलनायक भगवान 1008 श्री आदिनाथ की मनोहरी प्रतिमा को सुन्दर कमल पर विधि के साथ विराजमान किया गया।

यही नहीं चाँदखेडी अतिशय क्षेत्र में भरने वाले “ऋषभ जयंती” के वार्षिक मेले का शुभारम्भ भी महाराज श्री के मंगल आशीर्वाद के साथ हुआ। जिसमे संभाग के हजारों जैन एवं अजैन मतावलम्बियों ने भाग ले कर वार्षिक मेले को ऊँचाईयों के सोपान दिये। महाराज जी के प्रवास के अंतर्गत उनकी सतत् प्रेरणा से भव्य वेदी प्रतिष्ठा का भी आयोजन अतिशय क्षेत्र पर हुआ। अतिशय क्षेत्र पर पधारें एवं श्री आदिनाथ भगवान के दर्शन कर अपनी मनोकामना को साकार करें।

जबतक सूरज चाँद रहेगा
श्री सुधा सागर जी का नाम रहेगा।

प्रवचन वीडियो

कैलेंडर

july, 2024

चौदस 04th Jul, 202404th Jul, 2024

अष्टमी 14th Jul, 202414th Jul, 2024

चौदस 20th Jul, 202420th Jul, 2024

चौदस 28th Jul, 202428th Jul, 2024

X