ओ सुख चाहने वालों ! सुनो…,
सुता शब्द स्वयं सुना रहा है, कि
‘सु’ यानी सुहावनी अच्छाइयों
और
‘ता’ प्रत्यय वह
भाव-धर्म, सार के अर्थ में होता है
यानी,
सुख-सुविधाओं का स्रोत…सो-
‘सुता’ कहलाती है
यही कहती है श्रुत-सूक्तियाँ !दो हित जिसमें निहित हों
वह ‘दुहिता’ कहलाती है
अपना हित स्वयं ही कर लेती है
पतित से पतित का जीवन भी
हित से सहित होता है, जिससे
वह ‘दुहिता’ कहलाती है।
आईये…ऐसी बेटियों के साथ मिलकर करें…
एक ओर…’सृजन’
साभार : मूकमाटी से… प.पू. आचार्यश्री विद्यासागर जी महाराज
‘सृजन’ 2015