आचार्यश्री समयसागर जी महाराज इस समय डोंगरगढ़ में हैंयोगसागर जी महाराज इस समय चंद्रगिरि तीर्थक्षेत्र डोंगरगढ़ में हैं Youtube - आचार्यश्री विद्यासागरजी के प्रवचन देखिए Youtube पर आचार्यश्री के वॉलपेपर Android पर आर्यिका पूर्णमति माताजी डूंगरपुर  में हैं।दिगंबर जैन टेम्पल/धर्मशाला Android पर Apple Store - शाकाहारी रेस्टोरेंट आईफोन/आईपैड पर Apple Store - जैन टेम्पल आईफोन/आईपैड पर Apple Store - आचार्यश्री विद्यासागरजी के वॉलपेपर फ्री डाउनलोड करें देश और विदेश के शाकाहारी जैन रेस्तराँ एवं होटल की जानकारी के लिए www.bevegetarian.in विजिट करें

धर्म-प्रभावना

संकलन : प्रो. जगरूपसहाय जैन
सम्पादन : प्राचार्य श्री नरेन्द्र प्रकाश जैन

वह मार्ग जिसके द्वारा आदमी शुद्ध बुद्ध बने, उस सत्य-मार्ग अर्थात मोक्ष मार्ग की प्रभावना ही ‘मार्ग-प्रभावना’ या ‘धर्म-प्रभावना’ है।

‘मृग्यते येन यत्र सः मार्गः’ अर्थात जिसके द्वारा खोज की जाये उसे मार्ग कहते हैं। जिस मार्ग द्वारा अनादि से भूलीवस्तु का परिज्ञान हो जाये, जिस मार्ग से उस आत्म तत्त्व की प्राप्ति हो जाये, उस मार्ग की यहाँ चर्चा है। धन और नाम प्राप्त करने का जो मार्ग है उस मार्ग का यहाँ जिक्र नहीं है। मोक्षमार्ग, सत्य-मार्ग, अहिंसा-मार्ग यानी वह मार्ग जिसके द्वारा यह आत्मा शुद्ध बने, उस मार्ग की प्रभावना ही ‘मार्ग-प्रभावना’ कहलाती है।

रविषेणाचार्य के पद्मपुराण को पढते समय हमें रावण द्वारा निर्मित शांतिनाथ मन्दिर के प्रसंग को देखने का अवसर मिला। दीवारें सोने की, दरवाजे वज्र के, फर्श सोने-चाँदी के, छत नीलम मणि की। ओह! इतना सुन्दर मन्दिर बनवाया रावण ने और स्वयं उसमें ध्यानमग्न होकर बैठ गया। सोलह दिन तक विद्या की सिद्धि के लिये बैठा रहा ध्यानमग्न। ऐसा ध्यान कि मन्दोदरी की चीख पुकार को भी नहीं सुना रावण ने। किंतु यह ध्यान, ‘धर्म-ध्यान’ नहीं था, बगुले के समान ध्यान था, केवल अपना स्वार्थ साधने के लिये। आप समझते होंगे रावण ने धर्म की प्रभावना की। नहीं, उसने मिथ्यात्व का पोषण करके धर्म की अप्रभावना की।

स्वामी समन्तभद्र ने लिखा है –

अज्ञानतिमिरव्याप्तिमपाकृत्य यथायथम।
निजशासनमाहात्म्य प्रकाशः स्यातप्रभावना॥

व्याप्त अज्ञान अन्धकार को यथाशक्ति दूर करना और जिन-शासन की गरिमा को प्रकाशित करना ही वास्तविक प्रभावना है। जो स्वयं अज्ञान में डूबा हो उससे प्रभावना क्या होगी? रावण अन्याय के मार्ग पर चला। नीति विशारद होकर भी अनीति को अपनाने वाला बना। उसके ललाट पर कलंक का एक टीका लगा हुआ है। ऐसा कोई भी व्यक्ति क्यों ना हो, उसके द्वारा प्रभावना नहीं हो सकती। प्रभावना देखनी हो तो देखो उस जटायु पक्षी की। जिस संकल्प को उसने ग्रहण किया, उसका पालन शल्य रहित हो कर जीवन के अंतिम क्षणों तक किया। सीताजी की त्राहि माम, त्राहि माम आवाज सुन कर वह चल पडा उस अबला की सहायता के लिये। वह जानता था कि उसकी रावण से लडाई हाथी और मक्खी की लडाई के समान है। रावण का एक घातक प्रहार ही उसकी जीवन लीला समाप्त करने के पर्याप्त है किंतु अनीति के प्रति वह लडने के लिये पहुँच गया और अपने व्रत का निर्दोश पालन करते हुए प्राण त्याग दिये। यही सच्ची प्रभावना है। रावण को उससे शिक्षा लेनी चाहिये थी और हमें भी सीख मिलनी चाहिये।

आज कितना अंतर है हममें और जटायु पक्षी में। हम एक-एक पैसे के लिये अपना जीवन और ईमान बेचने के लिये तैयार हैं। अपने द्वारा लिये गये व्रतों के प्रति कहाँ है हममें समर्पण, आस्था और रुचि, जैसी जटायु में थी। हम व्रत लेते हैं तो छूट जाते हैं या छोड देते हैं। कई लोग कहते हैं, ‘महाराज! रात्रि भोजन का हमारा त्याग। किंतु इतनी छूट रख दो जिस दिन रात्रि में भोजन का प्रसंग आये उस दिन रात में भोजन कर लें’। यह कोई व्रत है। यह तो छलावा है। ऐसे लोगों से तो हम यही कह देते हैं कि प्रसंग आने पर दिन का व्रत लो और बाकी समयों की चिंता मत करो। निर्दोष व्रत का पालन ही मार्ग-प्रभावना में कारण है।

जटायु पक्षी किसी मन्दिर में नहीं बनाया गया किंतु उसका मन्दिर उसके हृदय में था, जिसमें ‘श्रीजी’ के रूप में उसके स्वयं की आत्मा थी। हमें भी उसी आत्मा की विषय-कषायों से रक्षा करनी चाहिये। इसे ही मार्ग-प्रभावना कहा जायेगा।

हमने कई बार आचार्य ज्ञानसागर जी से पूछा-महाराज, मुझसे धर्म की प्रभावना कैसे बन सकेगी? तब उनका उत्तर था-“आर्षमार्ग में दोष लगा देना अप्रभावना कहलाती है, तुम अप्रभावना से बचते रहना बस! प्रभावना हो जायेगी”। मुनि-मार्ग सफेद चादर के समान है, उसमें जरा-सा भी दाग लगना अप्रभावना का कारण है। उनकी य्ह सीख बडी पैनी है। इसलिये प्रयास मेरा यही रहा कि दुनिया कुछ भी कहे या न कहे, मुझे अपने ग्रहण किये हुए व्रतों का परिपालन निर्दोष रूप से करना है।

भगवान महावीर के उपदेशों के अनुरूप अपना जीवन बनाओ। यही सबसे बडी प्रभावना है। मात्र नारेबाजी से प्रभावना होना सम्भव नहीं है। रावण को राक्षस कहा है, वह वास्तव में राक्षस नहीं था किंतु आर्य होकर भी उसने अनार्य जैसे कार्य किये। अंत तक मिथ्यामार्ग का सहारा लिया। कुमार्ग को ही सच्चा मार्ग मानता रहा। ‘मेरा है सो खरा है’ और ‘खरा है सो मेरा है’- इस वाक्य में मिथ्यात्वी और सम्यक्व्यक्ति का पूर्ण विवेचन निहित है। वाक्य के प्रथम अंश के अनुरूप जिनका जीवन है वे कुमार्गी हैं और वाक्य के दूसरे हिस्से के अनुयायी सन्मार्गी हैं। हमारे अन्दर यह विवेक हमेशा जागृत रहना चाहिये कि मेरे द्वारा कोई कार्य तो नहीं हो रहे जिनसे दूसरों को आघात पहुँचे। यही प्रभावना का प्रतीक है।

कल हमें ‘तीर्थंकर’ पत्रिका में एक समाचार देखने को मिला। लिखा था ‘धर्मचक्र चल रहे हैं बडी प्रभावना हो रही है’। सोंचो, क्या इतने से ही प्रभावना हो जायेगी। मात्र प्रतीक पर हमारी दृष्टि है। सजीव धर्मचक्र कोई नहीं चल रहा उसके साथ। सजीव धर्मचक्र की गरिमा की ओर हमारा ध्यान कभी गया ही नहीं। सजीव धर्मचक्र है वह आत्मा जो विषय और कषायों से ऊपर उठ गयी है। मात्र जड धन-पैसे से धर्म प्रभावना होने वाली नहीं। जनेऊ, तिलक और मात्र चोटी धरण करने से प्रभावना होने वाली नहीं है।

प्रभावना तो वस्तुतः अंतरंग की बात है। परमार्थ की ‘प्रभावना’ ही प्रभावना है। परमार्थ के लिये कोई धन का विमोचन करे, वह भी प्रभावना है।

आचार्य कुन्दकुन्द का नाम बडा विख्यात है। हम सभी कहते हैं “मंगल कुन्दकुन्दाचार्यो” अर्थात कुन्दकुन्दाचार्य मंगलमय हैं। किंतु हम उनकी बात नहीं मानते। शास्त्रों की वे ही बातें हम स्वीकार कर लेते हैं जिनसे हमारा लौकिक स्वार्थ सिद्ध हो जाता है। परमार्थ की बातें हमारे गले नहीं उतरती। उनके ग्रंथ ‘समयसार प्राभृत’ में एक गाथा आयी है जिसका सार इसप्रकार है-“विद्यारूपी रथ पर आरूढ होकर मन के वेग को रोकते हुए जो व्यक्ति चलता है, वह बिना कुछ कहे हुए जिनेन्द्र भगवान की प्रभावना कर रहा है”।

विषय-कषायों पर कंट्रोल करो। वीतरागता की ही प्रभावना है, रागद्वेष की प्रभावना नहीं है। भगवान ने कभी नहीं कहा कि मेरी प्रभावना करो। उनकी प्रभावना तो स्वयं हो गयी है। लोकमत के पीछे मत दौडो, नहीं तो भेडों की तरह जीवन का अंत हो जायेगा। मालूम है उदाहरण भेडों का। एक के बाद एक सैकडों भेडें चली जा रही थीं, एक गड्ढे में गिरी तो पीछे चलने वाली दूसरी गिरी, तीसरी भी गिरी इस तरह सबका जीवन समाप्त हो गया। उनके साथ एक बकरी भी थी किंतु वह नहीं गिरी। क्यों? वह भेडों की सजातीय नहीं थी। उसी तरह झूठ हजारों हैं जो एक ना एक दिन जरूर गिरेंगे। किंतु सत्य एक है, अकेला है। उस सत्य की प्रभावना के लिये कमर कसकर तैयार हो जाओ। सत्य की प्रभावना तभी होगी जब तुम स्वयं अपने जीवन को सत्यमय बनाओगे, चाहे तुम अकेले ही क्यों न रह जाओ, चुनाव सत्य का जनता अपने आप कर लेगी।

प्रवचन वीडियो

कैलेंडर

april, 2024

अष्टमी 02nd Apr, 202402nd Apr, 2024

चौदस 07th Apr, 202407th Apr, 2024

अष्टमी 16th Apr, 202416th Apr, 2024

चौदस 22nd Apr, 202422nd Apr, 2024

X