अनादि अनंत काल से भरतक्षेत्र में अनंत चौबीसी अनंतअनंत काल से होते आये हैं, इसी क्रम में इस युग में भी ऋषभनाथ से लेकर महावीर पर्यन्त चौबीस तीर्थकर हुए। तेइसवें तीर्थकर पाश्र्वनाथ के 256 वर्ष सा़े तीन माह के बाद अन्तिम तीर्थकर भगवान महावीर को कार्तिक सुदी अमावस्या को मोक्ष प्राप्त हुआ था तथा उनके प्रथम गणधर इन्द्रभूति गौतम को अपराण्हिक काल में उसी दिन कैवल्यज्ञान की प्राप्ति हुई थी इसी के प्रतीकरूप में कार्तिक बदी अमावस्या को दीपावली पर्व मनाया जाता हैं।
सम्प्रति दीपावली पूजन का दिवस तय करने में परस्पर विसंगतियां आ रही हैं। कभी कभी अन्य धमोर में दीपावली पूजन एक दिन पहले कर ली जाती है, उसके अगले दिन सुबह से भगवान महावीर निर्वाण लाडू च़ाकर उसी दिन शाम को घरों में दीपक जलाकर पूजा की जाती है। तब लोग कहते है कि हमारी दीपावली औरों से अलग क्यों ? इस विषय में कई बार आपसी विवाद की स्थिति उत्पन्न हो जाती है।
यहां ध्यातव्य है कि भगवान महावीर स्वामी को निर्वाण कार्तिक कृष्ण अमावस्या को प्रभात बेला में हुआ था। तथा उसी दिन शाम को उनके ही शिष्य श्री गौतम गणधर को कैवल्योत्पत्ति हुई थी। अतः शाम को घरों में भगवान महावीर को मोक्षोपलब्धि तथा गौतम गणधर को केवल ज्ञान रूपी लक्ष्मी की प्राप्ति के उपलक्ष्य में दीपक जलाकर हर्ष पूर्वक पूजा अर्चना की जाती है।
मान ले अमावस्या सुबह 10़56 से प्रारम्भ होकर अगले दिन तक है। अन्य धर्मो में तो अमावस्या की रात लक्ष्मी पूजन का विधान है तो वे तो रात का मुहूर्त देखकर ही पूजन करेंगे। किन्तु हमारे भगवान को तो अमावस्या तिथि की प्रभात बेला में मुक्ति प्राप्ति हुई थी। तो इसके अनुसार अगले दिन प्रातः काल में भगवान का मोक्षकल्याणक तथा निर्वाण लाडू च़ाया जायेगा। तथा उनके मोक्ष गमनोपरान्त सायंकाल में गौतम स्वामी को कैवल्य प्राप्ति के उपलक्ष्य में घरों में दीपक जलाकर पूजन की जायेगी। अतः ऐसी स्थिति में आपसी विवाद के बजाए परिस्थिति के अनुरूप ही कार्य करना चाहिए।
आजकल कुछ लोग एक दिन पहले शाम को घरों में दीपक जलाकर पूजन कर लेते हैं, तथा अगले दिन सुबह मन्दिर में जाकर निर्वाणोत्सव तथा निर्वाण लाडू च़ाते है। जोकि आगमानुसार ठीक नहीं लगता। विचार करें कि भगवान को मोक्ष प्राप्ति के बाद गौतम स्वामी को केवल ज्ञानोत्पत्ति हुई। बिना भगवान के मोक्ष गए गौतमस्वामी को केवलज्ञानोत्पत्ति कैसे ? भगवान का मोक्षगमन तो अमावस्या तिथि को आगम में वर्णित है, किन्तु गौतम स्वामी को कैवल्य प्राप्ति अमावस्या तिथि में ही हुई हो ऐसा प़ने में नहीं आता है। किन्तु हम एडवांस में ही एक दिन पहले शाम को पूजा कर लेते है। यह विचारणीय हैं। अतः इस विषय में विवेकीजन भली प्रकार से पुनर्विचार करे।
वर्तमान में दीपावली के दिन पूजन कैसे करें इस विषय में भी पर्याप्त मतभेद पाये जाते हैं। यहां दीपावली की पूजन की संक्षिप्त विधि दी जा रही है, आशा है पाठकजन इसे प़कर लाभान्वित होंगे।
विधि : प्रातःकाल सूयोर्दय के समय स्नानादि करके पवित्र वस्त्र पहन कर जिनेन्द्र देव के मन्दिर में परिवार के साथ पहुंचकर जिनेन्द्र देव की वन्दना करनी चाहिए, तदोपरान्त थाली में अथवा मूलनायक की वेदी पर सोलह दीपक चारचार बाती वाले जलाना चाहिए तथा भगवान महावीर स्वामी की पूजन, निर्वाण काण्ड प़ने के पश्चात महावीर स्वामी के मोक्ष कल्याणक का अर्घ बोलकर, निर्वाण लड्डू अर्घ सहित च़ाना चाहिए।
घर की दीपावली : अपरान्ह काल गोधूली बेला (सायं 4 से 7 बजे तक) में घर के ईशानकोण (उत्तरपूर्व) में अथवा घर के मुख्य कमरे में पूर्व की दीवार अथवा सुविधानुसार दीवाल पर माण्डना (श्री, श्री, वाला) बनाकर चौकी के ऊपर जिनवाणी एवं भगवान महावीर स्वामी की तस्वीर रखनी चाहिए। अन्य देवीदेवताओं (यथा सरस्वती, लक्ष्मी, गणेश जी आदि की) के चित्रादि नहीं रखना चाहिए, क्योंकि जैल दशर्न में इसका कोई उल्लेख नहीं हैं। घर के मुखिया अथवा किसी अन्य सदस्य को एवं सभी सदस्यों को शुद्ध धोतीदुपट्टा पहिनकर दीपमालिका के बायी तरफ आसन लगाकर बैठना चाहिए तथा सामने वाली चौकी पर सोलह दीपक जो कि सोलहकारण भावना के प्रतीक हैं (इन्हीं सोलहकारण भावनाओं को भा कर तीर्थकर प्रकृति का बन्ध भगवान महावीर स्वामी ने किया था इसी के प्रतीक स्वरूप सोलह दीपक चारचार बातियों वाले जलाए जाते हैं। (16 ग 4 64) यह 64 का अंक चौसठ ऋद्धि का प्रतीक हैं। भगवान महावीर चौसठ ऋद्धियों से युक्त थे इन्हीं के प्रतीक स्वरूप यह चौसठ ज्योति जलायी जाती हैं। अतः सोलह दीपक चौसठ बातियों से जलाकर दीपकों में शुद्ध देशी घी उपयुक्त होता हैं घृत की अनुपलब्धि पर यथायोग्य तेलादि का प्रयोग किया जा सकता हैं) दीपकों पर सोलह भावना अंकित करनी चाहिए। इन्हें जाने के पश्चात दीपावली पूजन सरस्वती पूजन, चौसठ ऋद्धि अर्घ, धुली हुई अष्ट द्रव्य से च़ाना चाहिए। पूजन से पूर्व तिलक एवं मोली बंन्धन सभी को करना चाहिए।
दुकान पर पूजन : इसी प्रकार दुकान पर भी पूजन करना चाहिए अथवा लघुरूप में पंचपरमेष्ठी के प्रतीकरूप पाँच दीपक जलाकर पूजन करना चाहिए।
पूजन विसर्जन : शांति पाठ एवं विसर्जन करके तदोपरान्त घर का एक व्यक्ति अथवा बारीबारी सभी व्यक्ति मुख्य दीपक को अखण्ड जलाते हुए रात भर णमोकार मंत्र का जाप अथवा बारीबारी सभी व्यक्ति मुख्य दीपक को अखण्ड जलाते हुए रात भर णमोकार मंत्र जाप अथवा पाठ या भक्तामर आदि पाठ करते हुए व्यक्ति अनुसार रात्रि जागरण करना चाहिए। यदि रात्रि जागरण नहीं कर सके तो कम से कम मुख्य दीपक में यथा योग्य घृत भरकर उसे जाली से ़ककर उसी स्थान पर रात भर जलने देना चाहिए। मिष्ठान्न आदि का वितरण करना है तो पूजा समाप्ति के पश्चात पूजन स्थल से थोड़ा दूर हटकर वितरित कर सकते हैं।
नोट : दीपावली के दिन पटाखे, अनार बिल्कुल न छुडावें। इससे लाखों जीवों का घात होता हैं पर्यावरण दूषित होता है। स्वयं को भी हानि हो जाती है और भारी पाप का बन्ध होता है। अतः अपने बच्चों को इस बुरी आदत से रोकें।
संकलन
सुशीला पाटनी
आऱ के़ हाऊस
मदनगंजकिशनग़
जिला अजमेर (राज़)