Youtube - आचार्यश्री विद्यासागरजी के प्रवचन देखिए Youtube पर आचार्यश्री के वॉलपेपर Android पर दिगंबर जैन टेम्पल/धर्मशाला Android पर Apple Store - शाकाहारी रेस्टोरेंट आईफोन/आईपैड पर Apple Store - जैन टेम्पल आईफोन/आईपैड पर Apple Store - आचार्यश्री विद्यासागरजी के वॉलपेपर फ्री डाउनलोड करें देश और विदेश के शाकाहारी जैन रेस्तराँ एवं होटल की जानकारी के लिए www.bevegetarian.in विजिट करें

श्रुतपंचमी पर्व


श्रीमती सुशीला पाटनी
आर. के. हाऊस, मदनगंज- किशनगढ

प्रतिवर्ष ज्येष्ठ शुक्ला पंचमी के दिन जैन समाज में श्रुतपंचमी पर्व मनाया जाता है। इस पर्व को मनाने के पीछे एक इतिहास है। जो इस प्रकार है –

वीर निर्वाण संवत 614 में आचार्य धरसेन काठियावाड स्थित गिरिनगर (गिरनारपर्वत) की चन्द्रगुफा में रहते थे। जब वे बहुत वृद्ध हो गये थे और अपना जीवन अल्प जाना, तब श्रुत की रक्षार्थ उन्होंने महिमानगरी में एकत्रित मुनिसंघ के पास एक पत्र भेजा। तब मुनि संघ ने पत्र पढ कर दो मुनियों को गिरनार भेज दिया। वे मुनि विद्याग्रहण करने में तथा उनका स्मरण रखने में समर्थ, अत्यंत विनयी, शीलवान तथा समस्त कलाओं मे पारंगत थे।

जब वे दोनों मुनि गिरिनगर की ओर जा रहे थे तब धरसेनाचार्य ने एक स्वप्न देखा कि दो वृषभ आकर उन्हें विनयपूर्वक वन्दना कर रहे हैं। उस स्वप्न से उन्होंने जान लिया कि आने वाले दो मुनि विनयवान एवं धर्मधुरा को वहन करने में समर्थ हैं। तब उनके मुख से अनायास ही “जयदु सुय देवदा” ऐसे आशीर्वादात्मक वचन निकल पडे।

दूसरे दिन दोनों मुनियों ने आकर सर्वप्रथम विनयपूर्वक आचार्य चरणों की वन्दना की। दो दिन तक श्री धरसेनाचार्य ने उनकी परीक्षा की। परीक्षा के अनंतर उन्होंने एक मुनि को एक अक्षर न्यून वाला और दूसरे मुनि को एक अक्षर अधिक वाला विद्यामंत्र देकर उपवास सहित साधने को कहा। ये दोनों मुनिराज गुरु के द्वारा दिये गये विद्यामंत्र को लेकर उनकी आज्ञा से नेमिनाथ तीर्थकर की सिद्धभूमि पर जाकर नियमपूर्वक अपनी-अपनी विद्या को सिद्ध करने लगे। जब उनकी विद्या सिद्ध हो गयी ता वहाँ पर उनके सामने दो देवियाँ प्रकट हुई। उनमें से एक देवी की एक ही आँख थी तो दूसरी देवी के दाँत बडे-बडे थे।

देवियों को देखते ही मुनियों ने समझ लिया कि निश्चित ही मंत्र में कोई त्रुटि है और त्रुटि को शुद्ध कर उन्होने पुनः विद्यामंत्र सिद्ध करना प्रारम्भ कर दिया। जिसके फलस्वरूप देवियाँ अपने यथार्थ स्वरूप में प्रकट हुई तथा बोलीं हे नाथ! आज्ञा दीजिये – हम आपका क्या कार्य करें। तब मुनियों ने कहा- देवियों! हमारा कुछ भी कार्य नहीं है। हमने तो केवल गुरुदेव की आज्ञा से ही विद्यामंत्र की आराधना की है। ये सुनकर दोनों देवियाँ अपने स्थान पर चली गयीं।

दोनों मुनियों की योग्यता को मुनियों ने जान लिया कि सिद्धांत का अध्ययन करने के लिये ये योग्य पात्र हैं। तब आचार्य श्री ने उन्हें सिद्धांत का अध्ययन कराया।वह अध्ययन आषाढ शुक्ला एकादशी को पूर्ण हुआ। उस दिन देवों ने उन दोनों मुनियों की पूजा की। एक मुनिराज के दाँतों की विषमता को दूर कर उनके दाँत कुन्दपुष्प के समान सुन्दर करके उनका पुष्पदंत नामाकरण किया। और दूसरे मुनिराज की भी भूत जाति के देवों ने सूर्यनाद-जयघोष-गन्धमाला धूप आदि से पूजा कर “भूतबलि” नाम घोषित किया।

कुछ दिन बाद श्री धरसेनाचार्य ने अपनी मृत्यु का समय निकट जानकर शीघ्र ही योग्य उपदेश देकर दोनों मुनियों को कुरीश्वर नगर की ओर विहार करा दिया। तब भूतबलि और पुष्पदंत मुनि ने अंकलेश्वर (गुजरात) में आकर वर्षाकाल (चातुर्मास) किया। वर्षाकाल बीतते ही पुष्पदंत आचार्य तो वनवास देश और भूतबलि द्रविड देश को विहार कर गये।

पुष्पदंत मुनिराज महाकर्म प्रकृति प्राभृत का छः खण्डों में उपसंहार करना चाहते थे। अतः उन्होंने बीस अधिकार गर्भित सत्प्ररूपणा सूत्र को बनाकर शिष्यों को पढाया और भूतबलि मुनि अभिप्राय जानने जिनपालित को यह ग्रंथ देकर उनके पास भेज दिया।

आचार्य पुष्पदंत एवं भूतबलि ने 6 हजार श्लोक प्रमाण 6 खण्ड बनाये। 1. जीवस्थान 2.क्षुद्रकबंध 3.बन्धस्वामित्व 4. वेदनाखण्ड 5. वर्गणाखण्ड और 6. महाबन्ध।

भूतबलि आचार्य ने इस षट्खण्डागम सूत्रों को ग्रंथ रूप में बद्ध किया और ज्येष्ठ सुदी पंचमी के दिन चतुर्विध संघ सहित कृतिकर्मपूर्वक महापूजा की। उसी दिन से यह पंचमी श्रुतपंचमी नाम से प्रसिद्ध हो गयी। तब से लेकर लोग श्रुतपंचमी के दिन श्रुत की पूजा करते आ रहे हैं। आचार्य भूतबलि ने जिनपालित को षट्खण्डागम ग्रंथ देकर और श्रुत के अनुराग से चतुर्विध संघ के मध्य जिनवाणी महापूजा कर अत्यंत हर्षित हुए।

श्रुत और ज्ञान की आराधना का यह महान पर्व हमें वीतरागी संतों की वाणी, आराधना और प्रभावना का सन्देश देता है। इस दिन श्री धवल, महाधवलादि ग्रंथों को विराजमान कर महामहोत्सव के साथ उनकी पूजा करना चाहिये। श्रुतपूजा के साथ सिद्धभक्ति का भी इस दिन पाठ करना चाहिये। शास्त्रों की देखभाल, उनकी जिल्द आदि बनवाना, शास्त्र भण्डार की सफाई आदि करना, इस तरह शास्त्रों की विनय करना चाहिये।

3 Comments

Click here to post a comment

प्रवचन वीडियो

कैलेंडर

december, 2024

चौदस 30th Nov, 202430th Dec, 2024

चौदस 08th Dec, 202408th Dec, 2024

चौदस 14th Dec, 202414th Dec, 2024

चौदस 23rd Dec, 202423rd Dec, 2024

चौदस 29th Dec, 202429th Dec, 2024

X