22 नवंबर 1972 को नसीराबाद, राजस्थान में गुरु आचार्य ज्ञानसागरजी महाराज आचार्यश्री विद्यासागरजी महाराज को आचार्य पद प्रदान करते हुए –
36 साल पहले आचार्य श्री ज्ञानसागर जी ने आचार्य विद्यासागर जी को आचार्य पद दिया। तब आचार्य ज्ञानसागर जी ने संबोधित कर कहा को साधक को अंत समय में सभी पद का परित्याग आवश्यक माना गया है। इस समय शरीर की ऐसी अवस्था नहीं है कि मैं अन्यत्र जा कर सल्लेखना धारण कर सकूँ। तुम्हें आज गुरु-दक्षिणा अर्पण करनी होगी और उसी के फलस्वरूप यह पद धारण करना होगा। गुरु-दक्षिणा की बात से मुनि विद्यासागर निरुत्तर हो गये। तब धन्य हुई नसीराबाद(अजमेर) राजस्थान की वह घडी जब मगसिर कृष्ण द्वितीय, संवत 2023, बुधवार, 22 नवम्बर ,1972 ईस्वी को आचार्य श्री ज्ञानसागर जी ने अपने ही कर कमलों से आचार्य पद पर मुनि श्री विद्यासागर महाराज को संस्कारित कर विराजमान किया। इतना ही नहीं मान मर्दन के उन क्षणों को देख कर सहस्त्रों नेत्रों से आँसूओं की धार बह चली जब आचार्य श्री ज्ञानसागर जी ने मुनि श्री विद्यासागर महाराज को आचार्य पद पर विराजमान किया एवं स्वयं आचार्य पद से नीचे उतर कर सामान्य मुनि के समान नीचे बैठ कर नूतन आचार्य श्री विद्यासागर महाराज के चरणों में नमन कर बोले –
” हे आचार्य वर! नमोस्तु, यह शरीर रत्नत्रय साधना में शिथिल होता जा रहा है, इन्द्रियाँ अपना सम्यक काम नहीं कर पा रही हैं। अतः आपके श्री चरणों में विधिवत सल्लेखना पूर्वक समाधिमरण धारण करना चाहता हूँ, कृपया मुझे अनुगृहित करें।” आचार्य श्री विद्यासागर ने अपने गुरु की अपूर्व सेवा की। पूर्ण निमर्मत्व भावपूर्वक आचार्य ज्ञानसागर जी मरुभूमि में वि. सं. 2030 वर्ष की ज्येष्ठ मास की अमावस्या को प्रचंड ग्रीष्म की तपन के बीच 4 दिनों के निर्जल उपवास पूर्वक नसीराबाद (राज.) में ही शुक्रवार, 1 जून 1973 ईस्वी को 10 बजकर 10 मिनट पर इस नश्वर देह को त्याग कर समाधिमरण को प्राप्त हुए।
गुरुदेव ने मुझे मोक्षमार्ग पर चलना सिखाया,
गुरुदेव ने मुझे जीवन में जीना सिखाया।
गुरुदेव की कृपा मैं कहाँ तक कहूँ मेरे भाई,
गुरुदेव ने ही मुझको, मेरा स्वरूप दिखाया।
जो मोक्षमार्ग पर खुद चलते और शिष्यों को चलाते उन्हें आचार्य कहते हैं।
जो शास्त्र को स्वयं पढते और शिष्यों को पढाते उन्हे उपाध्याय कहते हैं।
और जो सदा ध्यान में सदा लीन रहते हैं, उन्हे साधु कहते हैं।
पर ये तीनो काम जो अकेले ही करते हैं, उन्हीं को संत विद्यासागर कह्ते हैं।
हमने अरहंत भगवान को देखा नहीं है,
और सिद्ध भगवान कभी दिखते नहीं हैं।
इन दोनों का स्वरूप हमें आचार्य देव बताते हैं,
इसलिए इन्हीं को देखो, ये अरहंत और सिद्ध भगवान से कम नहीं हैं।
हर दिशाये दिनकर को जन्म नहीं देती,
हर रात शरद पूनम के चाँद को जन्म नहीं देती।
होती हैं माताऐं भी हजारों जगत में,
पर हर माता विद्यासागर जैसे संत को जन्म नहीं देती।
संकलन-
सुशीला पाटनी
आर. के. हाऊस
मदनगंज- किशनगढ
Jin Dharm Jinagam Jin Mandir pavitra Dham Vitrag ki pratima ko shree koti koti pranam.
Jai Ho Aacharya Vidhya Sagar ji Maharaj ki Jai ho…… Barambar Namostu
You have mentioned Vikram Samwat 2023 as Achraya Pad year in the article.It should have been 2029. Please correct the same.
abhiman manushya charittra ki sabse sahaj vratti hai jo anjane hi prgat ho jati hai.lekin ise jeetne wala hi jin ya jitendriya hota hai.jin bhavo ke sath param pujya gyansagarji maharaj ne apne shishya ko apna pad saupkar shishyatwa ko sweekara yah koi jitendriya hi kar sakta hai.aise guru aur aisi guru parampara ko kotishah namostu………vande vidhyasagaram