आचार्यश्री समयसागर जी महाराज इस समय डोंगरगढ़ में हैंयोगसागर जी महाराज इस समय चंद्रगिरि तीर्थक्षेत्र डोंगरगढ़ में हैं Youtube - आचार्यश्री विद्यासागरजी के प्रवचन देखिए Youtube पर आचार्यश्री के वॉलपेपर Android पर आर्यिका पूर्णमति माताजी डूंगरपुर  में हैं।दिगंबर जैन टेम्पल/धर्मशाला Android पर Apple Store - शाकाहारी रेस्टोरेंट आईफोन/आईपैड पर Apple Store - जैन टेम्पल आईफोन/आईपैड पर Apple Store - आचार्यश्री विद्यासागरजी के वॉलपेपर फ्री डाउनलोड करें देश और विदेश के शाकाहारी जैन रेस्तराँ एवं होटल की जानकारी के लिए www.bevegetarian.in विजिट करें

साधु-समाधि सुधा-साधन

संकलन : प्रो. जगरूपसहाय जैन
सम्पादन : प्राचार्य श्री नरेन्द्र प्रकाश जैन

हर्ष विवाद से परे आत्म-सत्ता की सतत् अनुभूति ही सच्ची समाधि है।

यहाँ ‘समाधि’ का अर्थ ‘मरण’ है। साधु का अर्थ श्रेष्ठ/अच्छा। अत: श्रेष्ठ/आदर्श-मृत्यु को साधु-समाधि कह्ते है। ‘साधु’ क दूसरा अर्थ ‘सज्जन’ भी है। अत: सज्जन के मरण को भी साधु-समाधि कहेंगे। ऐसे आदर्श–मरन को यदि हम एक बार भी प्राप्त कर लें तो हमारा उद्धार हो सकता है।

जन्म और मरण किसका? हम बच्चे के साथ मिष्ठान वितरण करते हैं। बच्चे के जन्म के समय सभी हंसते हैं, किन्तु बच्चा रोता है। इसलिये रोता है कि उसके जीवन के इतने क्षण समाप्त हो गये। जीवन के साथ ही मरण क भय शुरु हो जाता है। वस्तुत: जीवन और मरण कोई चीज नहीं है। यह तो पुद्गल का स्वभाव है, वह तो बिखरेगा ही।

आपके घरों में पंखा चलता है। पंखे में तीन पंखुडियां होती हैं। पर जब पंखा चलता है तो एक पंखुडी मालूम पड़ती है। ये पंखुडियां उत्पाद, व्यय और ध्रौव्य की प्रतीक हैं तथा पंखे के बीच का डंडा जो है वह सत् का प्रतीक है। हम वस्तु की शास्वतता को नहीं देखते केवल जन्म-मरण के पहलुओं से चिपके रहते हैं जो भटकाने/घुमाने वाला है।

समाधि ध्रुव है, वहाँ न आधि है, न व्याधि है और न ही कोइ उपाधि है। मानसिक विकार का नाम आधि है। शारीरिक विकार व्याधि है। बुद्धि के विकार को उपाधि कहते हैं। समाधि मन, शरीर और बुद्धि से परे है। समाधि में न राग है, न द्वेष है, न हर्ष है और न विषाद। जन्म और मृत्यु शरीर के है। हम विकल्पों में फंस कर जन्म-मृत्यु का दु:ख उठाते हैं। अपने अन्दर प्रवाहित होने वाली अक्षुण्ण चैतन्य धारा का हमें कोई ध्यान ही नहीं। अपनी त्रैकालिक सत्ता को पहचान पाना सरल नहीं है। समाधि तभी होगी जब हमें अपनी सत्ता की शाश्वत्ता का भाव हो जायेगा। साधु समाधि वही है जिसमें मौत को मौत की तरह नहीं देखा जाता है। जन्म को भी अपनी आत्मा का जन्म नहीं माना जाता। जहां न सुख का विकल्प है और न दु:ख का।

आज ही एक सज्जन ने मुझसे कहा, “महाराज, कृष्ण जयंती है आज”। मैं थोडी देर सोचता रहा। मैंने पूछा, “क्या कृष्ण जयंती मानने वाले कृष्ण की बात आप मानते हैं? कृष्ण गीता में स्वयं कह रहे हैं कि मेरी जन्म-जयंती न मनाओ। मेरा जन्म नहीं, मेरा मरण नहीं। मैं तो केवल सकल ज्ञेय ज्ञायक हूँ। त्रेकालिक हूँ। मेरी सत्ता तो अक्षुण्ण है”। अर्जुन युद्ध-भूमि में खड़े थे। उनका हाथ अपने गुरुओ से युद्ध के लिये नहीं उठ रहा था। मन में विकल्प था की ‘कैसे मारुँ’ अपने ही गुरुओं को। ‘वे सोंचते थे, चाहे मैं भले ही मर जाउँ किंतु मेरे हाथ से गुरुओं की सुरक्षा होनी चाहिए । मोहग्रस्त ऐसे अर्जुन को समझाते हुए श्री कृष्ण ने कहा-

जातस्य हि ध्रुवो मृत्यु ध्रुवो जन्म मृतस्य च

तस्माद परिहार्येथे न त्वं शोचितुमर्हसि

जिसका जन्म है उसकी मृत्यु अवश्यम्भावी है और जिसकी मृत्यु है उसका जन्म भी अवश्य होगा यह अपरिहार्य चक्र है, इसलिए हे अर्जुन ! सोंच नही करना चाहिए। अर्जुन! उठो अपना धनुष और क्षत्रिय-धर्म का पालन करो। सोंचो, कोई किसी को वास्तव में मार नही सकता। कोई किसी को जन्म नही दे सकता। इसलिए अपने धर्म का पालन श्रेयस्कर है। जन्म-मरण तो होते रहते हैं आवीचि मरण तो प्रति समय हो ही रहा है। कृष्ण कह रहे हैं अर्जुन से और हम हैं कि केवल जन्म-मरण के चक्कर में लगे हैं क्योंकि चक्कर में भी हमें शक्कर-सा अच्छा लग रहा है।

तन उपजत अपनी उपज जान
तन नशत आपको नाश मान
रागादि प्रकट जे दुःख दैन
तिन ही को सेवत गिनत चैन

हम शरीर की उत्पत्ति के साथ अपनी उत्पत्ति और शरीर के मरण के साथ अपना मरण मान रहे हैं। अपनी वास्तविक सत्ता का हमको भान नहीं। सत् की ओर हम देख ही नहीं रहे हैं। हम जीवन मरण के विकल्पों में फँसे हैं किंतु जन्म-मरण के बीच जो ध्रुव सत्य है उसका चिंतन कोई नहीं करता। साधु-समाधी तो तभी होगी जब हमें अपनी शाश्वत सत्ता का अवलोकन होगा। अतः जन्म जयंती न मनाकर हमे अपनी शाश्वत सत्ता का ही ध्यान करना चाहिए, उसी की संभाल करनी चाहिए।

2 Comments

Click here to post a comment

प्रवचन वीडियो

कैलेंडर

september, 2024

चौदस 01st Sep, 202401st Sep, 2024

चौदस 11th Sep, 202411th Sep, 2024

चौदस 17th Sep, 202417th Sep, 2024

चौदस 25th Sep, 202425th Sep, 2024

X