संकलन:
श्रीमती सुशीला पाटनी
आर. के. हाऊस, मदनगंज- किशनगढ
भारतीय परिवारों की जीवन शैली में तेजी से आ रहे बदलाव का असर खान-पान और रहन-सहन पर पूरी तरह से देखा जा रहा है। इस बदलाव के चलते बच्चे अपने जीवन की शुरुआत इसी मुकाम से कर रहे हैं। आज समाज में यह ज्वलंत प्रश्न तेजी से उभर रहा है कि मासूम बच्चे क्यों हिंसक बनते जा रहे हैं, इनका दोषी कौन है? इनका दोषी माता-पिता, टेलीविजन, भौतिकता के साधन।
बच्चों के सर्व प्रथम गुरु उनके माता-पिता ही होते हैं। माता-पिता की छाया बच्चों पर सबसे ज्यादा पडती है। माता-पिता को चाहिये कि वे बच्चों में शुरू से ही अच्छे संस्कार डालें, उनकी प्रत्येक गतिविधि पर नजर रखें, उन्हें समय दें तथा उनकी बातों को ध्यान से सुनें। उन्हें हिंसा व मारधाड से भरपूर टी.वी. सीरियलों एवं गन्दी फिल्मों से दूर रखें।
माता-पिता ज्यादा बच्चों को इतना लाड-प्यार नहीं करें कि आने वाले समय में वह आपके ऊपर हावी हो जाये। बच्चे की बचपन से हर इच्छा पूरी नहीं करें जो माँगें उनको देवें नहीं, माता-पिता किसी के साथ कहीं बैठें तो उनका अपमान व अनादर नहीं करें जिससे लोग कहें कैसे संस्कार दिये हैं जो बच्चे अपने माता-पिता, घर में बडे, गुरुजनों का आदर सम्मान ना करें वो बच्चे अपनी जिन्दगी में कुछ नहीं कर सकते हैं।
राग भाव, मोह भाव और आत्मीयता के प्रति रिश्ते अनेक रूपों में देखने सुनने को मिलते हैं जिनमें माँ-बेटी, देवरानी-जेठानी, सास-बहू आदि। रिश्ते की परम्परा दीर्घवती है। रिश्ते का भाव दो भिन्न व्यक्तियों, आत्माओं का बन्धन है। पुराणों में यह बन्धन उसी भूत में या भवभव में भी चलता है। रिश्ते सुचारू रूप से चलते रहें तालमेल बना रहे तब तो ठीक है वरना ये ही रिश्ते कषाय भाव, बैर, दुश्मनी का उग्र रूप धारण कर लेते हैं।
“रिश्ता”-“सम्बन्ध”- कोई भी क्यों ना हो वो चाहता है “समर्पण”।
एक दूसरे के प्रति समर्पण भाव चाहिये। सास का बहू के प्रति और बहू का सास के प्रति समर्पण भाव चाहिये। कभी एक हाथ से ताली नहीं बजती, एक पहिये की गाडी नहीं चलती है। एक सास का अपनी बहू के प्रति बेटी जैसा नजरिया होना चाहिये। क्योंकि वो भी किसी की बेटी है। यदि सास अपनी बहू को अपनी बेटी के समान प्यार देगी तो उन सम्बन्धों में जो मधुरता आयेगी वो सुख स्वर्ग में भी नही मिलेगा।
बहू भी अपनी सास को जन्मदात्री माँ माने, सासू नहीं। सास मेरी माँ है ऐसा परिणाम अंतरंग की कभी कलह नहीं होने देगा। बहू सोंचे कि मुझे अब अपनी सारी जिन्दगी इसी घर में बितानी है, ये घर-परिवार सब मेरा ही है। मैं इस घर की हूँ और ये घर मेरा। परिवार के सभी सदस्यों के प्रति स्नेह भाव, आत्मीयता का माहौल सदैव सरसता प्रदान करेगा।