आचार्यश्री समयसागर जी महाराज इस समय डोंगरगढ़ में हैंयोगसागर जी महाराज इस समय चंद्रगिरि तीर्थक्षेत्र डोंगरगढ़ में हैं Youtube - आचार्यश्री विद्यासागरजी के प्रवचन देखिए Youtube पर आचार्यश्री के वॉलपेपर Android पर आर्यिका पूर्णमति माताजी डूंगरपुर  में हैं।दिगंबर जैन टेम्पल/धर्मशाला Android पर Apple Store - शाकाहारी रेस्टोरेंट आईफोन/आईपैड पर Apple Store - जैन टेम्पल आईफोन/आईपैड पर Apple Store - आचार्यश्री विद्यासागरजी के वॉलपेपर फ्री डाउनलोड करें देश और विदेश के शाकाहारी जैन रेस्तराँ एवं होटल की जानकारी के लिए www.bevegetarian.in विजिट करें

आहारदान की निम्न आवश्यक पात्रताएं एवं निर्देश

श्रीमती सुशीला पाटनी
आर.के. हाऊस,
मदनगंज- किशनगढ (राज.)

1. आहारदाता का प्रतिदिन देव-दर्शन का नियम, रात्रि भोजन का त्याग, सप्त व्यसनों का त्याग तथा सच्चे देव, शास्त्र, गुरु को मानने का नियम होना चाहिए।

2. जिनका आय का स्रोत हिंसात्मक व अनुचित न हो (शराब का ठेका, जुआ, सट्टा खिलाना, कीटनाशक दवाएं, ब्यूटी पार्लर, नशीली वस्तु का व्यापार आदि)।

3. जिनके परिवार में जैनोत्तरों से विवाह संबंध न हुआ हो अथवा जिनके परिवार में विधवा विवाह संबंध न हुआ हो।

4. जो अपराध, दिवालिया, पुलिस केस, सामाजिक प्रतिबंध आदि से परे हो (मूर्ख न हो, कंजूस, दरिद्र, निंद्य न हो)।

5. जो हिंसक प्रसाधनों (लिपस्टिक, नेल पेंट, चमड़े से बनी वस्तुएं, लाख की चूड़ी, हाथी दांत व चीनी के आभूषण) रेशम के वस्त्रों, सेंट, पाउडर क्रीम, डियोडरेंट आदि का उपयोग न करते हो एवं नाखून बढ़ाए न हों।

6. जो किसी भी प्रकार के जूते-चप्पल आदि का निर्माण या व्यवसाय करते हैं, वे भी आहार देने के पात्र नहीं हैं।

7. जो भ्रूणहत्या, गर्भपात करते/करवाते हैं एवं उसमें प्रत्यक्ष/परोक्ष रूप से सहभागी होते हैं (संबंधित दवाई आदि बेचने के रूप में), वे भी आहार देने के पात्र नहीं हैं।

8. जो हिंसक खाद्य पदार्थों जैसे कंपनी पैक आइसक्रीम, नमकीन, चिप्स, बिस्किट, चॉकलेट, नूडल्स, स्नैक्स, कोल्ड ड्रिंक्स, टूथ पेस्ट, टूथ पाउडर, जैम, सॉस, ब्रेड, च्युइंगम आदि का प्रयोग नहीं करते हों।

9. यदि शरीर में घाव हो या खून निकल रहा हो एवं बुखार, सर्दी-खांसी, कैंसर, टीबी, सफेद दाग आदि रोगों के होने पर आहार न दें।

10. रजस्वला स्त्री 6ठे दिन साधु को आहार देने के योग्य शुद्ध होती है।

11. पाद-प्रक्षालन के बाद गंधोदक की थाली में हाथ न धोएं तथा सभी लोग गंधोदक अवश्य लें।

12. चौके में पैर धोने के लिए प्रासुक जल ही रखें और सभी लोग पैर (एड़ी से) अच्छी तरह धोकर ही प्रवेश करें एवं अंदर भी अच्छी तरह से हाथ धोएं।

13. पड़गाहन के समय साफ-सुथरी जगह में खड़े होएं। जहां नाली का पानी बह रहा हो, मरे हुए जीव-जंतु पड़े हों, हरी घास हो, पशुओं का मल हो, ऐसे स्थान से पड़गाहन न करें एवं साधुओं को चौके तक ले जाते समय भी इन सभी बातों का ध्यान रखें।

14. नीचे देखकर ही साधु की परिक्रमा करें एवं परिक्रमा करते समय साधु की परछाई पर पैर न पड़े, इसका ध्यान रखें।

15. साधु के पड़गाहन के बाद पूरे आहार कराएं एवं आवश्यक कार्य से बाहर जाने के लिए साधु से अनुमति लेकर जाएं।

16. जब दूसरे के चौके में प्रवेश करते हैं, तो श्रावक एवं साधु की अनुमति लेकर ही प्रवेश करें।

17. नीचे देखकर जीवों को बचाते हुए प्रवेश करें। यदि कोई जीव दिखे तो उसे सावधानी से अलग कर दें।

18. पूजन में द्रव्य एक ही व्यक्ति चढ़ाए जिससे कि द्रव्य गिरे नहीं, क्योंकि उससे चींटियां आती हैं। उठते समय हाथ जमीन से न टेकें।

19. पाटा पड़गाहन के पूर्व ही व्यवस्थित करना चाहिए एवं ऐसे स्थान पर लगाना चाहिए, जहां पर पर्याप्त प्रकाश हो ताकि साधु को शोधन में असुविधा न हो।

20. सामग्री एक ही व्यक्ति दिखाए, जो चौके का हो और जिसे सभी जानकारी हो और एक खाली थाली भी हाथ में रहे।

21. महिलाएं एवं पुरुष सिर अवश्य ढांककर रखें जिससे बाल गिरने की आशंका न रहे।

22. शुद्धि बोलते समय हाथ जोड़कर शुद्धि बोलें। हाथ में आहार सामग्री लेकर शुद्धि न बोलें, क्योंकि इससे थूक के कण सामग्री में गिर जाते हैं। आहार के दौरान मौन रहें।
बहुत आवश्यक होने पर सामग्री ढंककर सीमित बोलें।

23. पात्र में जाली ही बांधें एवं पात्र गहरा व बड़ा रखें जिससे यदि जीव गिरे तो डूबे नहीं, डूबने से जीव की मृत्यु हो सकती है।

24. जो श्रावक आहार देने में असमर्थ है, वह आहार दिलाता है। जो आहार दान देने के लिए प्रेरणा देने में भी असमर्थ है, वह अनुमोदना से पुण्यार्जन करता है। समर्थ
श्रावक को अनुमोदना से विशेष पुण्यार्जन नहीं होता। अनुमोदना तो प्राय: परोक्ष में की जाती हैं किंतु आहारदान में असमर्थ होने पर प्रत्यक्ष में की जाती हैं।

25. भोजन सामग्री गरम बनी रहे, इसके लिए कोपर में अधिक तेज जल में सामग्री रखें अथवा बनी हुई भोजन सामग्री को किसी बड़े डिब्बे से ढंक देने से भोजन सामग्री
गरम बनी रहती है।

26. साधु जब अंजलि में जल लेते हैं तो अधिकांशत: जल ठंडा होता है, तभी साधु हाथ के अंगूठे से इशारा करते है अर्थात जल को गर्म दें। यदि आपको दूध या जल गर्म लग रहा है तो पहले थोड़ा-सा दें।

निरंतराय आहार हेतु सावधानियां एवं आवश्यक निर्देश :-

1. साधु के निरंतराय आहार हो, यह दाता की सबसे बड़ी उपलब्धि है, क्योंकि साधु की संपूर्ण धर्म साधना, चिंतन, पठन, मनन निर्बाध रूप से अविरल अहर्निश होती रहे,
इस हेतु निरंतराय आहार आवश्यक है। सावधानी रखना दाता का प्रमुख कर्तव्य है।

2. तरल पदार्थ (जल, दूध, रस आदि) जो भी चलाएं, तुरंत छानकर दें लेकिन प्लास्टिक की छन्नी का प्रयोग न करें और रोटी को पहले पूरी उजाले की ओर दोनों हाथों से पकड़कर धीरे-धीरे तोड़ने से यदि बाल वगैरह हो तो अटक जाता है।

3. पड़गाहन के पूर्व सभी सामग्री का शोधन कर लें तथा चौके में जीव वगैरह न हो, बारीकी से देखें।

4. यदि साधु को आहार लेते समय घबराहट हो रही है तो नींबू, अमृतधारा या हाथ में थोड़ा-सा गीला बेसन लगाकर सुंघा दें।

5. बाहर के लोगों को कोई सामग्री न पकड़ाएं, उनसे चम्मच से (तरल पदार्थ गिलास से) चलवाएं।

6. सामग्री का शोधन वृद्धों एवं बच्चों से न कराएं। इनसे चम्मच से सामग्री दिलवाएं।

7. कोई भी वस्तु जल्दबाजी में न दें, कम से कम 3 बार पलटकर देख लें।

8. मुनि, आर्यिका, ऐलक, क्षुल्लक जो भी साधु हैं, उनसे 3 बार तक आग्रह/निवेदन करें, जबरदस्ती सामग्री नहीं दें।

9. यदि पात्र में मक्खी गिर जाए तो उसे उठाकर राख में रखने से मरने की आशंका नहीं रहती है।

10. ग्रास यदि एक व्यक्ति ही चलाए तो उसका उपयोग स्थिर रहता है जिससे शोधन अच्छे से होता है।

11. एक व्यक्ति एक ही वस्तु पकड़े, एकसाथ दो नहीं, जिससे कि शोधन अच्छी तरह हो सके।

12. आहार देते समय भावों में खूब विशुद्धि बढ़ाएं। ‘णमोकार मंत्र’ भी मन में पढ़ सकते हैं।

13. प्रतिदिन माला फेरें कि 3 कम 9 करोड़ मुनिराजों के आहार निरंतराय हो।

14. शोधन खुली प्लेट में ही करें जिससे शोधन ठीक तरह से हो।

15. सूखी सामग्री का शोधन एक दिन पूर्व ही अच्छी तरह करना चाहिए जिससे कंकर, जीव, मल, बीज आदि का शोधन ठीक से हो जाता है।

16. अधिक गर्म जल, दूध वगैरह भी न चलाएं। यदि ज्यादा गर्म है और साधु नहीं ले पा रहे हैं तो साफ थाली के माध्यम से ठंडा करके दें। यदि दूध गाय का है, तो ऐसे ही दें। यदि भैंस का है, तो आधे गिलास दूध में आधा जल मिलाकर दें। यदि ऐसा ही लेते हैं, तो बिना जल मिलाए भी दे सकते हैं।

17. आहार देते समय पात्र के हाथ से ग्रास नहीं उठाना चाहिए, क्योंकि इससे अंतराय हो जाता है।

18. सभी के साथ द्रव्य, क्षेत्र, काल, भावों की शुद्धि, ईंधन शुद्धि, बर्तनों की शुद्धि भी आवश्यक है।

19. मुख्य रूप से साधु का लाभांतराय कर्म एवं दाता का दानांतराय कर्म का उदय होता है, लेकिन दाता की असावधानियों के कारण भी अधिकांश अंतराय आते हैं।

20. आहार देते समय दाता का हाथ साधु की अंजलि से स्पर्श नहीं होना चाहिए। यदि अंजलि के बाहर कोई बाल या जीव हटाना है तो हटा सकते हैं। यदि मुनि, ऐलक, क्षुल्लक हैं तो पुरुष और आर्यिका, क्षुल्लिका हैं तो महिलाएं आदि हटा सकती हैं।

21. सामग्री देते समय सामग्री गिरना नहीं चाहिए। कभी-कभी ज्यादा सामग्री गिरने के कारण साधु वह वस्तु लेना बंद भी कर सकते हैं।

22. गैस चूल्हा, लाइट आदि पड़गाहन के पूर्व ही बंद कर दें, क्योंकि चौक से साधु लौट सकते हैं।

23. दाता को मंदिर के वस्त्र पहनकर आहार नहीं देना चाहिए तथा पुरुषों को वस्त्र बदलते समय गीली तौलिया पहनकर वस्त्र बदलने चाहिए, क्योंकि अशुद्ध वस्त्रों के ऊपर शुद्ध पहन लेने से अशुद्धि बनी रहती है। महिलाओं एवं बच्चों को भी यही बातें ध्यान रखना चाहिए तथा फटे एवं गंदे वस्त्र भी नहीं पहनें तथा चलते समय वस्त्र जमीन में नहीं लगने चाहिए।

24. शुद्धि के वस्त्र बाथरूम आदि से न बदलें और न ही शुद्धि के वस्त्र पहनकर शौच अथवा बाथरूम का प्रयोग करें। और यदि करें तो वस्त्रों को पूर्ण रूप से बदलकर अन्य शुद्ध वस्त्र धारण करने के पूर्व शरीर का स्नान आवश्यक है अन्यथा काय (शरीर) शुद्धि नहीं रहेगी।

25. चौके में कंघा, नेल पॉलिश, बेल्ट, स्वेटर आदि न रखें एवं चौके में कंघी भी न करें, क्योंकि बाल उड़ते रहते हैं।

26. यदि पात्र मुनि है तो बगल में टेबल पहले से रख लें। यदि आर्यिका, ऐलक, क्षुल्लक, क्षुल्लिका हो तो बड़ी चौकी रख लें जिस पर सामग्री रखने में सुविधा रहती है।

27. बर्तनों में वार्निश एवं स्टीकर नहीं लगा होना चाहिए। वह सर्वथा अशुद्ध है।

28. जहां चौका लगा हो, उस कमरे में लैट्रिन-बाथरूम नहीं होना चाहिए। वह अशुद्ध स्थान माना जाता है।

प्रवचन वीडियो

कैलेंडर

october, 2024

चौदस 01st Oct, 202401st Oct, 2024

चौदस 11th Oct, 202411th Oct, 2024

चौदस 16th Oct, 202416th Oct, 2024

चौदस 24th Oct, 202424th Oct, 2024

चौदस 31st Oct, 202431st Oct, 2024

X