तर्ज- कर दो नैया पार, पार गुरुवर नाम तारण हारा
ॐ ह्रीं परम पूज्य आचार्यश्री कुन्दकुन्दस्य इव पितृवत् पालनहार श्री विद्यासागरमुनीन्द्र! अत्र अवतर अवतर!
ॐ ह्रीं परम पूज्य भावी तीर्थंकर श्री समन्तभद्रस्य ममतामयी मातृवत् वात्सल्यमूर्ति श्री विद्यासागर मुनीन्द्र! अत्र तिष्ठ ठः ठः स्थापनं!
ॐ ह्रीं श्री जैनेश्वरी दीक्षादायक गुरु 108 समाधिरत आचार्य ज्ञानसागर मुनीद्रस्य छत्रछायायां पल्लवित परिसिंचित च पूर्ण परिपक्व फल प्रदाता वृक्षरुपेण सम्पूर्ण जैन जैनेतर गुरु भक्तानां हृदयेशु विराजमान श्री विद्यासागर मुनीन्द्र अत्र मम सन्निहितो भव भव वशट् सन्निधिकरणम्!
तर्ज- एक तेरा नाम नाम मेरे जीवन का सहारा
ॐ ह्रीं श्री समोवसरण विभूति सहस्य इव प्रतिबिम्बित संत शिरोमणि आचार्यश्री विद्यासागर मुनीन्द्राय जन्म जरा मृत्यु विनाशनाय जलम् निर्वपामीति स्वाहा।।
तर्ज- गुरुवर महिमा मान इनकी साधना निराली है
ॐ ह्रीं श्री श्रमण संस्कृति परिवर्धक भाग्योदय तीर्थ प्रदाता दयोदय तीर्थ प्रणेता, जिनवाणी मातुः अनुपम सुत, संत शिरोमणि आचार्य विद्यासागरमुनीन्द्राय भव आताप विनाशनाय चंदन निर्वपामीति स्वाहा।।
तर्ज- गुरुओं पर श्रद्धा-श्रद्धा गुरुवर सामने हो पाएंगे
ॐ ह्रीं गुरुकुल परंपरा प्रतिपादक, कुलगुरु, वर्तमान समयस्य आचार्य श्रेष्ठ, संत शिरोमणि आचार्य श्री विद्यासागराय अक्षय पद प्राप्तये अक्षतान् निर्वपामीति स्वाहा।।
तर्ज- विद्यासागर नाम हमको प्राणों से भी प्यारा है
ॐ ह्रीं दुर्निवार-काम-विजेता, बाल-ब्रह्मचारी, परम बालयति, संपूर्ण बालयति संघस्य अद्वितीय नायक आचार्य परमेष्ठी, श्री विद्यासागर मुनीन्द्राय काम-बाण-विनाशनाय पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा।।
तर्ज- भक्ति में रमजा…. तुमको मोक्ष वो दिलवाएंगे।
ॐ ह्रीं परीशह-विजेता, अत्यंत-कठोर-अनुशासन-पालक, भक्त वत्सल, प्रतिपालक, परमपूज्य संत-शिरोमणि आचार्य विद्यासागर मुनीन्द्राय क्षुधा रोग विनाशनाय नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा।।
तर्ज- मंगल-मंगल बोल… मंगलमय कर दो ये जग सारा।
ॐ ह्रीं अज्ञान-तिमिर-हर्ता, सर्वालोकित संत, अनुपमेय प्रवचन शैली सम्राट, आचार्य परमेष्ठी, संत शिरोमणि विद्यासागर मुनीन्द्राय, मोहान्धकार विनाशनाय दीपम् निर्वपामीति स्वाहा।।
तर्ज- दुर्लभ तेरा काम, गुरुवर सारी दुनिया नमती है।
ॐ ह्रीं अत्यन्त करुणा के सागर, भक्तवत्सल, कुण्डलपुर के छोटे बाबा, बुंदेलखण्डस्य धरायाः पावन तीर्थ स्थलेशु विराजमान, आचार्य परमेष्ठी विद्यासागर मुनीन्द्राय अष्टकर्म दहनाय धूपम्
निर्वपामीति स्वाहा।।
तर्ज- अखियां मन की खोल… तुझको दर्शन वो करवाएंगे।
ॐ ह्रीं मोक्षद्वार कपाट पाटन भटाः, मोक्ष मार्ग निमग्न, मोक्ष मार्ग उपदेशक, आचार्य परमेष्ठी विद्यासागर मुनीन्द्राय मोक्ष फल प्राप्तये फलम् निर्वपामीति स्वाहा।।
तर्ज- सच्चा है वैराग्य… तो बाधा पल में सब टल जाएंगी।
ॐ ह्रीं परम उपकारी पूज्य कुन्दकुन्द आचार्येण प्रणीत, आचार्य परंपरा अनुसारे उद्भूत विशंति शताब्द्याः युग निर्माता, परम पूज्य प्रथम आचार्य श्री शान्तिसागरस्य आचार्य परंपरा आचार्याः क्रमशः दीक्षित शिष्य आचार्य श्री वीरसागर, आचार्य श्री शिवसागरजी एवं अत्यन्त पारखी, दृष्टिवेत्ता, तलस्पर्शी ज्ञाता, गुरुणां गुरु, महाकवि, समाधिसम्राट, कविकुलगुरु आचार्य ज्ञानसागर मुनिराजस्य अत्यन्त मेघावी, तीक्ष्ण, कुशाग्र बुद्धि दैदीप्यमान, सर्वालोकित पंचमयुग दृष्टा, श्रमण संस्कृति संरक्षक संवर्धक, निर्दोश चर्या परिपालक,
सर्वोदय-सिद्धोदय-दयोदय-पुण्योदय-शुभोदय-ज्ञानोदय-वीरोदय-अतिशयोदय-सुदर्शनोदय-भाग्योदय तीर्थ प्रदाता प्रतिभास्थली प्रणेता आचार्य विद्यासागर मुनीन्द्राय अनर्घ पद प्राप्तये अर्घ्यं
निर्वपामीति स्वाहा।।
जयमाला
तर्ज- मां श्रीमती का लाल, सबकी आंखों का तारा है।
ॐ ह्रीं महाकविकुलगुरु, वर्तमान समयस्य आचार्य श्रेष्ठ, अनुपमेय प्रवचन शैली सम्राट, समस्त पूजन कर्ता भक्तानां हृदयांके विराजमान आचार्य परमेष्ठी, प्रातः स्मरणीय, विश्ववंदनीय, लोकोपकारी, राष्ट्रसंत, आगमवेत्ता, तत्ववेत्ता, जिनागम गूढ़ रहस्य मर्मज्ञ, श्रमण संस्कृति के ध्वजवाहक, संत शिरोमणि, आचार्य विद्यासागरमुनीन्द्राय अनर्घपद प्राप्तये जयमाला पूर्णार्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।