आचार्यश्री समयसागर जी महाराज इस समय डोंगरगढ़ में हैंयोगसागर जी महाराज इस समय चंद्रगिरि तीर्थक्षेत्र डोंगरगढ़ में हैं Youtube - आचार्यश्री विद्यासागरजी के प्रवचन देखिए Youtube पर आचार्यश्री के वॉलपेपर Android पर आर्यिका पूर्णमति माताजी डूंगरपुर  में हैं।दिगंबर जैन टेम्पल/धर्मशाला Android पर Apple Store - शाकाहारी रेस्टोरेंट आईफोन/आईपैड पर Apple Store - जैन टेम्पल आईफोन/आईपैड पर Apple Store - आचार्यश्री विद्यासागरजी के वॉलपेपर फ्री डाउनलोड करें देश और विदेश के शाकाहारी जैन रेस्तराँ एवं होटल की जानकारी के लिए www.bevegetarian.in विजिट करें

फल-साग की सही प्रासुक विधि एवं सावधानियां

श्रीमती सुशीला पाटनी
आर.के. हाऊस,
मदनगंज- किशनगढ (राज.)

1. संयमी या व्रती किसी भी वनस्पति को या तो रस के रूप में, साग के रूप में, शेक (गाढ़ा रस) के रूप में, चटनी के रूप में लेते हैं। फल के रूप में जैसे गृहस्थ लेते हैं, वैसे नहीं लेते।

2. फलों को जैसे नाशपाती, सेब, केला, अंगूर, आलूबुखारा, अमरूद को 50 या 100 ग्राम जल (वस्तु मात्रानुसार) में फलों के टुकड़े बनाकर कड़ाही में डालकर कटोरे आदि से ढंककर 5-10 मिनट उबालने से भाप के द्वारा अंदर-बाहर प्रासुक हो जाएंगे।

3. प्रासुक वस्तु का स्पर्श, रस, गंध, वर्ण बदलना चाहिए एवं लौकी की सब्जी जैसे मुलायम हो जाए तभी सही प्रासुक मानी जाती है, क्योंकि साधु अधपका हुआ नहीं लेते हैं, कारण कि अंगुल के असंख्य भाग के जीव रहते हैं।

4. लौकी, परवल, करेला, गिल्की, टिंडे आदि की साग बनाई जाती है, जो उबालने, तलने से प्रासुक होती हैं।

5. बीज निकालकर चटनी बनाने से भी प्रासुक हो जाते हैं, लेकिन ज्यादा बड़े-बड़े टुकड़े नहीं करना चाहिए। यदि उबालकर चटनी बांटते हैं तो टुकड़े भी प्रासुक रहेंगे, जैसे टमाटर, कैथा, अमरूद आदि बीज वाली साग।

6. खरबूजा, पपीता, पका आम, चीकू इनको छिल्का तथा बीज अलग करके शेक (मिक्सी से फेंटकर) बना लें, लेकिन इसमें कोई टुकड़ा नहीं रहे। यह टुकड़ा अप्रासुक माना जाता है।

7. नींबू, मौसंबी के दाने अप्रासुक होते है अत: उन्हें गर्म न करें बल्कि रस निकालें वही प्रासुक है। अनार, मौसंबी, संतरा, अनानास, नारियल, सेब, ककड़ी, लौकी आदि का रस प्रासुक हो ही जाता है। रस निकालते समय हाथ के घर्षण से प्रासुक हो जाता है। सभी रस कांच के बर्तन, शीशी आदि में रखें, नहीं तो करीब 30 मिनट बाद विकृत (खराब) होने की आशंका रहती है। नारियल पानी, कालीमिर्च, नमक आदि डालकर चलाने से प्रासुक होता है।

8. कच्ची मूंगफली, चना, मक्का, जुवार, मटर आदि जल में उबाल या सेंककर प्रासुक करें तथा सूखी मूंगफली, उड़द, मूंग, चना आदि को साबुत नहीं बनाएं, क्योंकि इनके बीच में त्रस जीव रह सकते हैं।

9. किसी भी फल का बीज प्रासुक नहीं हो पाता है इसीलिए आहार में से बीज निकालकर ही सामग्री चलाएं चाहे सब्जी, फल, रस, चटनी आदि कुछ भी हो।

10. आयुर्वेद शास्त्र का भी कहना है कि अग्नि पकी जल और साग-सब्जी अधिक जल्दी हजम हो जाती है एवं वात, पित्त, कफ का प्रकोप न होने से शरीर निरोग रहता है।

11. ड्रायफ्रूट जैसे काजू, बादाम, पिस्ता, मूंगफली के 2 भाग करके एवं मुनक्का के बीजरहित करके दें।

12. किशमिश, मुनक्का को जल में गलाने से उनके तत्व निकल जाते हैं। या तो गलाएं नहीं यदि गलाएं तो उसका जल अवश्य चलाएं। मुनक्का गलने के बाद साधु को देने में भी अच्छा महसूस नहीं होता है।

13. घुना अन्न जैसे चना, बटरा (मटर), मूंग, उड़द आदि तथा बरसात में फफूंदी लगी वस्तुएं अभक्ष्य होती हैं।

14. नमक बांटकर जल में उबालने से ही सही प्रासुक होता है, लेकिन बांटकर गरम कर लेने पर भी प्रासुक मान लेते हैं। साधुओं को दोनों तरह का नमक अलग-अलग कटोरी में दिखाएं।

15. कच्चे गीले नारियल को घिसकर बुरादा बनने के बाद गर्म करके बांटकर चटनी बनाने से ही प्रासुक होता है।

16. भोजन सामग्री को दूसरी बार गर्म करना, कम पकाना (कच्चा रह जाना) ज्यादा पकाना (जल जाना) यह द्विपाहार कहलाता है। यह साधु के लेने योग्य नहीं होता है तथा आयुर्वेद में भी ऐसे विषवर्धक माना गया है। चौकों में रोटी कच्ची रहती है तो उससे पेट में गैस बनती है, ध्यान रखें।

17. सब्जी वगैरह में अधिक मात्रा में लालमिर्च का प्रयोग नहीं करें, क्योंकि भोजन में अधिक मिर्च होने पर साधु को पेट में जलन हो सकती है।

18. आहार सामग्री सूर्योदय से दो घड़ी पश्चात तथा सूर्योदय से दो घड़ी पूर्व के बीच दिन में बनाएं, अंधेरे में या रात्रि में बनाने से अभक्ष्य हो जाएगी।

19. जो साधु यदि बूरा या गुड़ नहीं लेते तो उनके लिए छुहारे का पाउडर या चटनी सामग्री में मिलाकर भी दे सकते हैं।

20. जीरे आदि मसाले खड़े नहीं डालें अलग से पिसे-सिंके ही डालें। साग में पहले से डालने से जल जाते हैं एवं सुपाच्य भी नहीं होते एवं पेट में गैस बनाते हैं।

21. टमाटर के बीज प्रासुक नहीं होते हैं और शरीर को नुकसान पहुंचाते हैं इसलिए टमाटरों का सॉस बनाकर आहार में दें।

आहार सामग्री की शुद्धि भी आवश्यक :

(क) जल शुद्धि :

1 कुएं में जीवनी डालने के लिए कड़े वाली बाल्टी का ही प्रयोग करें एवं जल जिस कुएं आदि से भरा है, जीवनी भी उसी कुएं में धीरे-धीरे छोड़ें। कड़े वाली बाल्टी जब पानी की सतह के करीब पहुंच जाए, तब धीरे से रस्सी को झटका दें ताकि जलगत जीवों को पीड़ा न हो।

2. जब भी चौके में जल छानें तो एक बर्तन में जीवनी रख लें और जब जल भरने जाएं तो कुएं में जीवनी छोड़ दें।

3. पानी छानने का छन्ना 36 इंच लंबा और 24 इंच चौड़ा हो तथा जिसमें सूर्य का प्रकाश न दिख सके और कपड़े का छन्ना सफेद हो तथा गंदा एवं फटा न हो।

4. जीवनी डालने के बाद छन्ने को बाहर सूखी जगह में निचोड़ दें, कभी बाल्टी में न निचोड़ें, क्योंकि बाल्टी में निचोड़ने से जीवनी के सारे जीव मर जाएंगे।

5. आहार के योग्य जल के साधन कुएं का, बहती नदी का, झरने का व्यवस्थित कुंड/बावड़ी का, चौड़ी बोरिंग जिसमें जीवनी नीचे तक पहुंच जाएं, छत पर वर्षा का जल, हौज में इकट्ठा करके चूना आदि डालने पर भी चौके के लिए उपयोग कर सकते हैं।

(ख) दुग्ध शुद्धि : स्वच्छ बर्तन में प्रासुक जल से गाय, भैंस के थनों को धोकर, पोंछकर दूध दुहना चाहिए और दुहने के पश्चात छन्ने से छानकर (प्लास्टिक की छन्नी से न छानें) उसे 48 मिनट में गर्म कर लेना चाहिए अन्यथा जिस गाय, भैंस का दूध रहता है, उसी के आकार के संमूर्च्छन जीव उत्पन्न हो जाते हैं।

(ग) दही शुद्धि : उबले दूध को ठंडा करके बादाम, लालमिर्च, मार्बल का टुकड़ा, मुने,नारियल की नरेटी का एक छोटा टुकड़ा धोकर उसमें डाल दें जिससे दही जम जाता है (यदि दही गाय के दूध का हो तो साधु को सुपाच्य रहता है)। छाछ बनाते समय उसमें घी न रहे, ऐसी छाछ अच्छी मानी जाती है।

(घ) घृत शुद्धि : शुद्ध दही से निकले मक्खन को तत्काल अग्नि पर रखकर गर्म करके घृत तैयार करना चाहिए। इसमें से जलीय अंश पूर्ण निकल जाना चाहिए। यदि घी में जल का अंश रहा तो 24 घंटे के बाद अमर्यादित हो जाता है। मक्खन को तत्काल गर्म कर लेना चाहिए जिससे जीवोत्पत्ति नहीं होती। इसी प्रकार मलाई को भी तुरंत गर्म करके घी निकालना चाहिए। कई लोग 3-4 दिन की मलाई इकट्ठी हो जाने पर गर्म करके घी निकालते हैं, वह घी अमर्यादित ही माना जाएगा। वह साधु को देने योग्य नहीं है। घी घर पर ही बनाएं, बाजार के शोध का घी कदापि उपयोग न करें।

(ड) गुड़ की शुद्धि : आजकल चौकों में बाजार का गुड़ छानकर उपयोग में लाते हैं, वह अशुद्ध रहता है इसलिए कई क्षेत्रों जैसे मप्र के आहारजी, करेली, रहली-पटनागंज, इंदौर में शुद्ध गुड़ मंगवाकर उपयोग में लाना चाहिए।

गुड़ बनाने में होने वाली अशुद्धियां : गन्ना उत्पादन में रासायनिक खाद का प्रयोग होता है और कीट मारने के लिए कीटनाशक दवा डालते हैं। गन्ना काटते समय मजदूर जूठा गन्ना डालते हैं। गन्ना क्रेशर को बगैर फिल्टर के पानी से साफ करते हैं। कड़ाही में गुड़ बनाते समय कीड़े-मक्खी आदि बड़े कीट गिरते हैं। कड़ाही में से लोग राद शीरा रोटी से भी निकाल लेते हैं। कड़ाही की सफाई अंदर पैर रखकर करते हैं। गुड़ में रंग मिलाते हैं। गुड़ को साफ करने चूना डालते हैं। गुड़ बनाने में केमिकल्स का उपयोग करते हैं।

गुड़ बनाते समय रखने योग्य सावधानियां :

(1) खाद गोबर का डालें, (2) कीटनाशक नहीं डालें, (3) आदमी को पहले गन्ना खाने दें, (4) कड़ाही के ऊपर शेड बनाएं और मच्छर जाली से कोटेड करें, (5) शेड के अंदर जूते नहीं पहनें, (6) कड़ाही में लकड़ी डालकर उस पर बैठकर सफाई करें, (7) रंग नहीं डालें, (8) भिंडी के ज्यूस से साफ करें, (9) केमिकल्स का उपयोग नहीं करें।

गुड़ बनाने की विधि : गन्नों को छने जल से धोकर और मशीन को प्रासुक जल से धोकर रस निकलवाकर एक पतीली या कड़ाही में उबालने रखें। उबलने पर एक चम्मच दूध डालकर, ऊपर से मैल निकालकर गुड़ को साफ कर लें। इसके बाद उसमें 2 चम्मच शुद्ध घी डाल दें। जब गुड़ की चाशनी खूब गाढ़ी हो जाए, तब कड़ाही नीचे उतारकर उसे ठंडा होने तक चम्मच से चलाते रहें, इस तरह शुद्ध गुड़ बन जाएगा।

प्रवचन वीडियो

कैलेंडर

march, 2024

अष्टमी 04th Mar, 202404th Mar, 2024

चौदस 09th Mar, 202409th Mar, 2024

अष्टमी 17th Mar, 202417th Mar, 2024

चौदस 23rd Mar, 202423rd Mar, 2024

X