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राग और द्वेष में साम्य भाव रखना ही अहिंसा : आचार्यश्री

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मोक्ष का साक्षात उपाय है ‘मैं’ छोड़कर दूसरों को क्षमा करना: आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज

पर्युषण पर्व मोह की नींद में सोए लोगों के लिए सबक लेकर आया है। इन दिनों संसार के मूल कारण- आठ कर्म छूट जाते हैं। कहा भी है- पर्वराज यह आ गया, चला जाएगा काल। परंतु कुछ भी ना मिला, टेढ़ी हमारी चाल॥

हमारी चाल टेढ़ी है, पर्वराज न आता है, न जाता है। हम चले जा रहे हैं। हमें सांसारिक संबंधों से छुट्टी लेनी है, परिश्रम से नहीं। आचार्यों ने वस्तु के स्वभाव को धर्म बताया है। दस प्रकार के क्षमादि भावों को धर्म कहते हैं। धर्म, अधर्म, आकाश और काल भी वस्तु है। सभी का अपना स्वभाव ही उनका धर्म है। तो आज हम कौन से धर्म का पालन करें, जिससे कल्याण हो।

स्वभाव तो हमेशा धर्म रहेगा ही, लेकिन इस स्वभाव की प्राप्ति के लिए जो किया जाने वाला धर्म है वह है- ‘खमादिभावो या दसविहो धम्मो’- क्षमादि भाव रूप दस प्रकार का धर्म आज से शुरू हो रहा है। क्षमा धर्म के लिए आज का दिन तय है। क्षमा धर्म की बड़ी महत्ता बताई गई है। करोड़ नारियल चढ़ाने में जितना फल मिलता है, उतना फल एक स्तुति से मिलता है और करोड़ स्तुति का फल एक बार जाप से मिलता है।

जितना फल करोड़ जाप से मिलता है, उतना एक बार मन-वचन-काय को एकाग्रकर ध्यान से मिलता है। शारीरिक-वाचनिक-मानसिक क्रिया जितनी निर्मल होती जाती है, उतना फल मिलता जाता है। कोटि बार ध्यान से जो फल मिलता है, वह एक क्षमा से मिलता है। क्षमा से बैर नहीं रखना है। मोक्ष का साक्षात उपाय क्षमा है। आप आधि-व्याधि से तो दूर हो सकते हैं, पर उपाधि से दूर होना मुश्किल है, ‘मैं’ पना नहीं निकलता।

आधि मानसिक चिन्ता को कहते हैं और व्याधि शारीरिक बीमारी है। उपाधि बौद्धिक विकार है। समाधि आध्यात्मिक है। क्षमा करने वाले अनंतचतुष्टय का अनुभव करते हैं। पर घाति चतुष्टय का क्या? वहां सुख अनंत है, यहां दुख अनंत है। आत्मा के अहित का कारण कषाय यानी राग-द्वेष जैसे अवगुण हैं। इन्हें हटाने पर ही क्षमा की सच्ची भावना आ पाएगी।

सर्वोत्तम तरीके से जीने की कला सिखाने वाले 10 लक्षणों

1. उत्तम क्षमा: क्रोध- बैर छोड़कर सभी से क्षमा मांगना और क्षमा करना; उत्तम क्षमा है।
2. उत्तम मार्दव: सब मैं करता हूं- यह सोच अहंकार है। इसे छोड़कर नम्र होना मार्दव धर्म है।
3. उत्तम आर्जव: मन की बात सुनना यानी मन, वचन, कार्य से एक हो जाना आर्जव धर्म है।
4. उत्तम शौच: शुचिता को शौच कहते हैं। मन को निर्मल बनाने का प्रयास उत्तम शौच है।
5. उत्तम सत्य: जो सत्य पर अटल, वो साधक है। ईश्वर को अंतिम सत्य मानना उत्तम सत्य है।
6. उत्तम संयम: स्वस्थ, संतुलित सोच के लिए नियंत्रित जीवन जीना उत्तम संयम है।
7. उत्तम तप: जीवन का सार तप है। भीतर की अपार संभावनाओं को पहचानना उत्तम तप है।
8. उत्तम त्याग: आधी आय परिवार, एक चौथाई आपत्ति के लिए, एक चौथाई दान उत्तम त्याग है।
9. उत्तम आकिंचन्य: कुछ भी मेरा नहीं है, ऐसा व्यवहार और भाव रखना उत्तम आकिंचन्य है।
10. उत्तम ब्रह्मचर्य: ब्रह्म का अर्थ है आत्मा और आत्मा को जानने की कोशिश है ब्रह्मचर्य।
आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज ( आचार्य श्री मध्य प्रदेश के नेमावर में चातुर्मास कर रहे हैं)

साभार : Dainik Bhaskar
(पुनीत जैन)

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