संकलन:
श्रीमती सुशीला पाटनी
आर. के. हाऊस, मदनगंज- किशनगढ
हो जाये घर से विदा, तो याद आयें बेटियाँ।
बेटे करें जब घर से जुदा, तो याद आयें बेटियाँ॥
वो बेटियों का प्यार, जो माँ बाप को मिला।
जब मिलता नहीं ये प्यार, तो याद आयें बेटियाँ॥
घर को सजाया बेटियों ने, कितनी लगन से।
हो घर का बँटाढार, तो याद आयें बेटियाँ॥
जब तक थीं घर में बेटियाँ, ये घर रहा गुलजार।
अब सूना-सूना लग रहा, तो याद आयें बेटियाँ॥
भाईयों को मिला प्यार, बहनों से जो घर कभी।
आया राखी का त्योहार, तो याद आयें बेटियाँ॥
जब तक थी इस घर में तो किया श्रम बहुत अटूट।
ससुराल में भी श्रम करें सुकुमार बेटियाँ॥
करता हूं कोटि नमन, “नयन” उस श्रम त्याग लगन को।
जो उनको मिला प्रकृति से, जिसकी हकदार बेटियाँ॥
जलती रहे मशाल उसको तेल पानी चाहिए।
चलती रहे अबाध, रग-रग में रवानी चाहिए॥
सम्पूर्ण विश्व को प्रेरणा दे, ज्ञान दे प्रकाश दे॥
तन में हो अटूट शक्ति, ऐसी जवानी चाहिये॥॥