संकलन:
श्रीमती सुशीला पाटनी
आर. के. हाऊस, मदनगंज- किशनगढ
बेटियाँ कितना काम करें , नहिं पल भर आराम करें,
घर आँगन की साफ सफाई, चक्की चूल्हा वस्त्र धुलाई।
हाथ बँटाती माँ क हँसकर, नहीं विश्राम करें॥
बेटियाँ…
सूर्योदय से पहले उठतीं, घर में चिडियों जैसी चहकती।
पिता-भाई सब सोते रहते, माँ संग काम करें॥
बेटियाँ…
थक जायें पर उफ न करतीं, हरदम वे हँसती ही रहती।
उनके श्रम से घर में खुशियाँ और मुस्कान भरें॥
बेटियाँ…
सबको समय पर खाना मिलता, स्कूल ऑफिस जाना मिलता।
जला स्वयं को मोम की भाँति, तम का निदान करें॥
बेटिया…
बेटों को सारी सुविधायें, समझें बेटी को मोम मातायें।
फिर भी नहीं शिकायत कोई कभी बखान करें॥
बेटियाँ…
बेटी से हैं घर की खुशियाँ, बेटी से घरआँगन चहकें
बेटी बिन घर खंडहर जैसा, उनका सम्मान करें॥
बेटियाँ…
अब तो बेटों से भी ज्यादा काम करें बेटी दुनिया में।
घर से बाहर हैं निकलीं, ऊँची उडान भरें॥
बेटियाँ…
नहीं कोई भी क्षेत्र बचा है जहाँ बेटियाँ न पहुँचीं हों।
कम्प्यूटर, तकनीकी शिक्षा सब में नाम करें॥
बेटियाँ…
माता-पिता की सहारा, नैया की बनी खेवनहार।
भले हों तन से नाजुक, लेकिन कडा श्रमदान करें॥
बेटियाँ…
नहीं निरादर करें बेटी का, सिर आँखों पर उसे बिठायें
‘नयन’ है शक्ति स्वरूपा बेटी, उसके गुणगान करें। बेटियाँ कितना काम करें…