आचार्यश्री समयसागर जी महाराज इस समय डोंगरगढ़ में हैंयोगसागर जी महाराज इस समय चंद्रगिरि तीर्थक्षेत्र डोंगरगढ़ में हैं Youtube - आचार्यश्री विद्यासागरजी के प्रवचन देखिए Youtube पर आचार्यश्री के वॉलपेपर Android पर आर्यिका पूर्णमति माताजी डूंगरपुर  में हैं।दिगंबर जैन टेम्पल/धर्मशाला Android पर Apple Store - शाकाहारी रेस्टोरेंट आईफोन/आईपैड पर Apple Store - जैन टेम्पल आईफोन/आईपैड पर Apple Store - आचार्यश्री विद्यासागरजी के वॉलपेपर फ्री डाउनलोड करें देश और विदेश के शाकाहारी जैन रेस्तराँ एवं होटल की जानकारी के लिए www.bevegetarian.in विजिट करें

रविवारीय प्रवचन (आचार्य श्री) [9-8-2012 – 28-10-2012]

मांस निर्यात शर्मनाक है ।   – आचार्य श्री विद्यासागर महाराज जी (दिनांक – 28-10-2012)

चंद्रगिरि डोंगरगढद्य छत्तीसगढ़  में विराजमान दिगम्बर जैन आचार्य श्री विद्यासागर महाराज जी ने कहा कि कर्नाटक वालों ने कहा कुछ उद्बोधन  कन्नड़ में हो, तो हम कुछ पंक्तियाँ सुनाते हैं – ‘‘मेहनत करो तो मीठा खाना भी सार्थक होता है ’’। एक पिता ने अपने पुत्र को पत्र लिखा उसमें धन को शक्ति कहा है लेकिन इसका दुरूपयोग नहीं करना। गाय, भैंस, हाँथि, घोड़े आदि को भी धन कहा है। आज भारत से मांस का निर्यात हो रहा है और गोबर अर्थात खाद का आयात हो रहा है यह शर्मनाक है। जिससे पशुओं की हिंसा हो रही है।
गुरू जी (आचार्य श्री ज्ञानसागर जी) ने राजस्थान के मदनगंज किशनगढ़  में यह कहानी सुनाई थी। जो हमें पहली बार याद आ गई है जिसमें ससुर अपनी चार बहुओं को पुड़ीया में बीज देता है। पहली बहु पुडिया खोलकर देखती है तो धान का बीज मिलता है उसे वह कचरे में फेक देती है और सोचती है कि जब ससुर जी मांगेंगे तो बोरी में से निकालकर दे दूंगी। दूसरी बहू उसे खा लेती है। तीसरी बहू उसे कपड़े में लपेटकर तीजोरी में रख लेती है और चैथी सबसे छोटी  बहु उन बीजों को अपनी बाड़ी में बोती है और उसको अच्छे से खाद – पानी देती है जिससे और बीज उत्पन्न होते हैं उसे वह सारे गाँव वालो को बाँट देती है। जिससे सभी के खेत लहलहा उठते हैं और हरे भरे हो जाते हैं और सारे गाँव को उसका लाभ होता है।
एक दिन ससुर जब अपनी चारों बहुओं से पुछते हैं कि उन्होने जो पुडिया दिया था तो उसका क्या किया ? तो बड़ी बहु ने बोरी से निकालकर दे दीया तो ससुर ने पूछा क्या यह वही बीज है जो मैने आपको दीये थे तो उसने कहा नहीं उसे तो मैंने फेक दिया तो उन्होने कहा आज से तूम घर में साफ सफाई का काम करोगी। दूसरी बहु से पूछा कि तूमने उन बीजों का क्या किया ? तो उसने कहा कि खा लिया तो ससूर ने कहा कि तूम रसोई घर का काम करोगी। तीसरी बहु से पूछा कि तूमने उन बीजों का क्या किया ? तो उसने कहा कि उसे तिजोरी में रख दिया था तो उसे दिखाने को कहा । जब उसने पुडिया देखी तो उन गेहूँ में गुन लग गया था वह सड़ गया था। तो ससुर ने तीसरी बहु को घर का धन संभालने के लिये तिजोरी की चाबी दे दी। चैथी बहु (छोटी बहु) से पूछा कि तूमने उन बीजों का क्या किया ? तो उसने कहा कि उन बीजों को घर की बाड़ी में बो दिया और आज उन्ही बीजों से सारे गाँव में गेहूँ की फसल लहलहा रही है और उस पुडीया के बीजो से आज ट्रकों में गेहूँ भरा गया है। तो ससूर ने कहा कि छोटी  बहु सबसे समझदार है और यह धन का सदुपयोग जानती है तो इसे ही गृहस्थी संभालने को दिया जाये जिससे कि धन का सही उपयोग हो सके। हमें धन का सही उपयोग करना चाहिये उसकी मदद करना चाहिये जिसको आवश्यकता  है।
आचार्य श्री शरद पूर्णिमा पर 67 वां वर्ष में प्रवेश  कर रहे हैं लेकिन वह जन्मदिन नहीं मनाते हैं लेकिन पूरे विश्व  में उनके लाखों अनुयायी अपनी श्रद्धा भक्ति से ‘‘आस्था पर्व’’मनाते हैं। इस दिन मुनि दीक्षा भी हुई थी उनका दीक्षा दिवस मनाया जायेगा, आचार्य श्री की ‘‘महापूजन’’ होगी। आचार्य श्री की दीर्घायु हो वह अहिंसा के क्षेत्र के विषेष महापुरूष  हैं।


धन का दुरूपयोग नहीं करें। – आचार्य श्री विद्यासागर महाराज जी (दिनांक – 11-10-2012)

चंद्रगिरि डोंगरगढ़ छत्तीसगढ़ में विराजमान दिगम्बर जैन आचार्य श्री विद्यासागर महाराज जी ने कहा कि द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव, भव पाँच प्रकार के संसार का वर्णन किया गया है। अनंत संसार सागर में मनुष्य पर्याय पाना दुर्लभ है। मनुष्य क्षेत्र अल्प है, त्रिर्यंच तो सब जगत में उत्पन्न होते हैं। बालू की लकीर के समान क्रोध, लकड़ी के समान मान, कीचड़ के समान लोभ है। दूसरे पर झूठा दोष लगाना, दूसरे के गुणों को न सहना, ठगना ये दुर्जनों के आचार है। दूसरे के धन को किसी भी बुरे माध्यम से लेना खोटा कार्य है। धन से भी जीवों को संतोष नहीं होता है। जैसे सूर्य मण्डल में अन्धकार, प्रचण्ड क्रोधी मे दया, लोभी में सत्य वचन,मानी में दूसरे के गुणों का स्तवन, दुर्जनों में उपकार की स्वीकृति, देष, कुल, रूप, आरोग्य, आयु, बुद्धि, ग्रहण, श्रवण और संयम ये लोक में उŸारोŸार दुलर्भ है। जाति, कुल, रूप, ऐष्वर्य, ज्ञान, तप और बल को पाकर अन्य भी इन गुणों में अधिक है ऐसा अपनी बुद्धि से मानकर गर्व न करना। दूसरों की अवज्ञा न करना, अपने से जो गुणों में अधिक हो उनसे नम्र व्यवहार करना एवं किसी के दोष नहीं देखना।


योद्धाजैसाहोताहैसाधक। – आचार्यविद्यासागरमहाराजजी (दिनांक – 8-10-2012)

चंद्रगिरि डोंगरगढ़ छत्तीसगढ़  में विराजमान दिगम्बर जैन आचार्य श्री विद्यासागर महाराज जी ने कहा कि यह जीव आहार मय है, अन्न ही इसका प्राण है। अनुशासन  में रहना कठिन होता है। सिंह को भी रिंग मास्टर अपने काबू में कर लेते हैं। ज्ञानी आचार्य के द्वारा श्रुत का ज्ञान कराने से और योग्य शिक्षा  रूप भोजन से उपकृत होने पर भूख प्यास से पीडि़त होते हुए भी ध्यान में स्थिर होता है। अनुशासन  रूपी भोजन 24 घंटे करो आप। डाॅ. रोगी के आवेश  से हताश  नहीं होते हैं और होने भी नहीं देते, रोगी को “यू आर प्रोग्रेसिव” कहते हैं। साधक भले ही दुबला पतला हो लेकिन धैर्य शाली होता है। वह योद्धा की भाँति होता है। रोगी को औषधी के प्रति आस्था और बहुमान होना चाहिये और पावर भी होना चाहिये। जैन साइंस शब्द के बारे में कुछ अलग बताता है। शब्द कभी नहीं कहते कि हमें सुनो। केवली भगवान का यह वैचित्र है जो 4 घंटे लगातार दिव्य ध्वनि खिरती है। शब्दों के द्वारा लड़ो नहीं भाव देखो फिर बोलो। आप लोग बोलते हैं कि “हमारा लड़का तो ऐसा कर ही नहीं सकता”, भीतरी आत्मा की बात करते हैं तो शब्द गौंण हो जाते हैं। वह ठीक हो तो ट्रीटमेंट किया जाता है। मानसिकता अच्छी हो तो ही इलाज किया जा सकता है। आत्मा पर चोट पड़ जाये तो काम हो जाता है। बिन भाषा के भाव से भी काम हो जाता है। वह साधक पावरफुल हो जाता है उपदेश   से। बहुत अच्छी आर्ट बतायी गयी है यहाँ धर्म के माध्यम से। यह जानकारी चंद्रगिरि डोंगरगढ़ से निशांत  जैन “संचार” एवं सप्रेम जैन ने दी है।


आत्माकीकोईऐजनहींहोती। – आचार्यश्रीविद्यासागरमहाराजजी (दिनांक – 6-10-2012)

चंद्रगिरि डोंगरगढ़ छत्तीसगढ़  में विराजमान दिगम्बर जैन आचार्य श्री विद्यासागर महाराज जी ने  एक वृद्ध का दृष्टांत सुनाते हुये कहा कि आपकी क्या चीज गुम गई है ? तो उन्होने कहा कि जवानी मेरी कहीं धूल में गुम गई है वह ढूंढ़ रहा हूँ। हम ठान ले तो कोई काम असंभव नहीं है । पासिबिलिटी  रहती है तो कार्य होता है। आत्मा की कोई ऐज नहीं है इसलिये अपने आपको वृद्ध या जवान नहीं समझें। चींटी में वही आत्म तत्व है और बड़े पशुओं आदि में भी वही आत्म तत्व है। जितना जाना माना उस पर शोध प्रारंभ कर दो। आँखें बंद करोगे तो आत्म तत्व दिखेगा। गुरू जी (आचार्य श्री ज्ञानसागर जी) सभी की समस्याओं का हल निकाल देते थे| चाहे बूढ़े हो या जवान क्षमा भीतर से होना चाहिये। पहले गुरूकुल पद्धति से पढ़ाई होती थी, जब पढ़ाई होती थी ब्रह्मचर्य व्रत से रहते थे उसके बाद गृहस्थ मार्ग या मोक्ष मार्ग को धारण करते थे। एक लड़के ने कृष्ण पक्ष और एक लड़की ने शुक्ल पक्ष का ब्रह्मचर्य व्रत ले लिया यह कथा सुनाते हुये कहा कि यह महत्वपूर्ण है। सत् संतान की प्राप्ति के लिये विवाह किया जाता है। मैं तो कन्या दान को ही विशेष  मानता हूँ। आज बच्चों के सारे संस्कार खत्म होते जा रहे हैं। विदेशी  संस्कृति से खान – पान आदि बिगड़ रहा है। ब्रह्मचर्य तो ठीक है पर परिवार ही नहीं रहेगा तो क्या करेंगे। बच्चों को अच्छे संस्कार देना चाहिये । भविष्य में आगे माता – पिता, भाई – बहिन, मामा आदि नहीं रहेंगे। “सत्यमेव  जयते कार्यक्रम” में भी दिखाया गया है ऐसा सुना है कि आज गर्भपात बहुत हो रहे हैं। सोनोग्राफी के द्वारा पहले ही बच्चे का पता चल जाता है फिर उसे इच्छानुसार न होने पर समाप्त किया जा रहा है। अपने बच्चों को समझाओ नही  तो बाद मे रोओगे। घर पर ताला रहेगा हमेशा , क्या स्थिति रहेगी बीमार होने पे पानी भी नहीं देगा कोई। ज्वाइंट फैमिली तो आज स्वप्न जैसा हो गया है। इसलिये माता – पिता का यह परम कर्त्तव्य  है कि अपने बच्चों को अच्छे संस्कार दें ताकि उनका भविष्य एवं संस्कृति अच्छी बन सके।


गाय से वात्सल्य करें । – आचार्य श्री विद्यासागर महाराज जी (दिनांक – 4-10-2012)

चंद्रगिरि डोंगरगढ़ छत्तीसगढ़  में विराजमान दिगम्बर जैन आचार्य श्री विद्यासागर महाराज जी ने कहा कि मेहमान के यहाँ खुलकर के कार्य नहीं कर पाते हैं संकोच से करते हैं। विदेश  में ऐसे प्रयोग कर रहे हैं गाय का दूध 45 रू. लीटर है। उस दूध का नाम अहिंसक दूध रखा है, वहाँ गाय के नाम भी रखे जाते हैं श्यामा, गोरी आदि शब्दों में अंतर आ जाता है, वह दूध ज्यादा देती है। आपके प्रेम, वात्सल्य से बहुत अंतर आता है जैसे बच्चों में आहलाद होता है वैसे ही गायों में होता है। उस दूध का सेवन करने के बाद कहते हैं ऐसा स्वाद कहीं नहीं मिलता। संस्कृत श्लोक, संगीत सुनाये जाते हैं उससे भी लाभ होता है। वहाँ का वातावरण ऐसा बना है कि सब ठीक रहता है। शब्द ऐसे बोलो कि गुलाब जामुन को लोग भूल जायें कैसे बोलना, कब बोलना यह महत्वपूर्ण है। शब्दों का व्यवस्थान भी महत्वपूर्ण है। जहाँ भी रहो अच्छा वातावरण बनाओ। ये लोग बडे़ बाबा के पास से आये हैं, बडे़ बाबा सिंहासन पर बैठ ही गये सबसे ज्यादा श्रेय दमोह वालो को जाता है। जो अच्छे आचरण वाले हैं उनके गुणों की कथा हम करते रहें। आप चाँवल चढ़ाते समय ध्यान रखें बच्चों को नहीं दें बादाम वगैरह दें जिससे बिखरायें नहीं। चढ़ाते समय गिरना नहीं चाहिये भगवान तो कुछ बोलते नहीं हैं इसलिये हम बोल रहे हैं। आप अच्छे से पालन करेंगे तो तालियाँ बजायेंगे लोग। पूजन कैसे करना यह भी ध्यान में रखना चाहिये। एक पूजन एक सांथ सामूहिक करेंगे तो आनंद आयेगा। ऐसी चेष्टा मत करो जिससे कि लोग बिगड़ जायें। नेता ऐसा हो जिससे लोग सींखे। एक नेता अच्छा होता है तो सबको लाभ होता है। तभी समाज का विकास, उद्धार होता है। अच्छाइयों का प्रचार – प्रसार होता रहना चाहिये। आप रोते हो तो यह सोचो की रोने की नौबत आयी क्यों ? बच्चे आचरण से नहीं गिरें क्योंकि आचरण से गिरे तो कोई नहीं उठा सकेगा। नेतृत्व देने वाले बहुत मजबूत होना चाहिये। एक शिक्षक  को तैयार करने में करोड़ो रूपये व्यय होते हैं। आदर्श शिक्षक  – शिक्षिकायें बहुत बड़ी निधि है। गरीब हो, अमीर हो सबको पढ़ाते हैं। कालेज तो खूब खुल रहे हैं पढाने वाले नहीं है। परीक्षा ली नहीं जाती दी जाती है। आज सब कम्प्यूटराइज हो गया है। भगवान से हम प्रार्थना करते हैं कि सबकी संलेखना अच्छी हो। भगवान के यहाँ कोई नौकर नहीं होता है तुम यदि स्वयं द्रव्य धोओं और और झाडू लगाना भी सौभाग्य है। यह सोंचे की मैं महान कार्य कर रहा हूँ अहो भाग्य समझो अपना। भगवान के दरबार में किया हुआ कोई कार्य व्यर्थ नहीं जाता है। आचार्य श्री ने कन्नड़ में प्रवचन किया एवं दमोह (म.प्र.) से 300 लोग एवं गोटेगांव से 200 लोग आये थे आचार्य श्री के दर्शन  के लिये।


सरकार की बुद्धि ठीक करें अहिंसा यूनियन से । – आचार्य श्री विद्यासागर महाराज जी (दिनांक – 2-10-2012)

मंच संचालक चंद्रकांत जैन ने बताया कि आचार्य श्री विद्यासागर महाराज जी के सानिध्य में विश्व   अहिंसा दिवस मनाया गया वैसे भी देखा जाये तो महात्मा गांधी जी का जन्म भी अक्टूबर में हुआ और आचार्य श्री विद्यासागर जी का भी जन्म अक्टूबर में हुआ । दोनों महापुरूषों ने अहिंसा का शंखनाद किया। आचार्य श्री के आशीर्वाद , प्रेरणा एवं उपदेश  से पूरे भारत में लगभग 100 गौशालायें चल रही है । हिंसा को मिटाने के लिये अहिंसा का प्रचार आवश्यक  है। आचार्य श्री के हृदय में  बहुत अनुकम्पा, दया है। वह प्रवचन में गाय की रक्षा, पालन के बारें में कहते हैं, गाय धन है। इसी उद्देश्य को लेकर शांति धारा दुग्ध योजना बनी है सागर (म.प्र.) के बीना बारह में । 100 एकड़ में प्लांट की शुरूआत की जायेगी जिसमें दूध से पनीर, मावा, दही, एवं अन्य वस्तुयें बनायी जायेगी। जिससे मिलावटी अशुद्ध  खाद्य पदार्थों से होने वाली बीमारियों से बचेंगें।

आचार्य श्री ने कहा दयावान व्यक्ति ही अहिंसा का पालन करता है।दूसरे का पदार्थ लेते हैं उसको उठाते हैं तो अहिंसा व्रत में दोष लगता है। संयम में मून लाईट होती है। प्राणी के प्राणों का वियोग करना हिंसा है और उससे विपरित करना अहिंसा व्रत है। आपका धन हिंसा के कार्यों में लगता है तो दोष आपको लगता है। आपके वोट से ही वोट बैंक बनता है। वस्तु खरीदते समय यह अवश्य देखें कि यह हिंसक सामग्री से तो नहीं बना है। गायों के पालन संबंधी डाक टिकिट आज तक क्यों नहीं आया। आपका वोट बहुत किमती है आप ऐसे लोगों को वोट दें जो गाय और बछडे़ की रक्षा करे।  सरकार की बुद्धि को ठीक करने के लिये अहिंसा की यूनियन जरूरी है। कृत, कारित, अनुमोदना से हिंसा का समर्थन करते हैं सभी। अहिंसक लोगो का जीना मुष्किल हो जायेगा यदि हिंसा का समर्थन करते रहे तो। परिग्रह का सही उपयोग करना सीखो। आप राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री, केबीनेट मंत्री से अहिंसक डाक टिकिट की माँग करिये। माँ बच्चों को अच्छी बातें सिखायें, माँ का अर्थ मास्टर होता है। आज 70 वर्ष हो गये हैं भारत को स्वतंत्रता मिले। आप लोगो को अहिंसक अभियान चलाना चाहिये। शाकाहारी लागों को पीड़ा हो रही है । आप लोग अहिंसा के प्रचार – प्रसार में भाग लीजिये। जो वोटर है उनका क्या दायित्व है समझो। आप लोग गाड़ी कम रखेंगे तो पेट्रोल के लिये मांस निर्यात नहीं करना पडेगा और गाय की रक्षा हो सकेगी। कत्लखाने खुलते जा रहे हैं इन पर रोक लगाने का उपाय है। वोटर पिता तुल्य होता है।

बच्चोंकोपढ़नेमेंमददकरें

बच्चे जो बाहर पढ़ने एवं सर्विस करने जाते हैं तो उनके रहने के लिये स्थान नहीं मिलता है कोटा का कोटा पूरा हो गया है । इंदौर भी आगे बढ़ रहा है । बुंदेलखण्ड आदि से लोग पहुँच रहे हैं क्योंकि पास में है। बच्चे गाजर, मूली, प्याज, आलू आदि गढ़ंत नहीं खाते हैं, रात्रि में भोजन नहीं करते हैं। पूजन, देव दर्शन  आदि करते हैं। संचालक ने कहा कि प्रतिभा स्थली का नाम पूरे विश्व  में फैल गया है । आचार्य श्री कहते हैं “कहो मत करो”, ब्र. अनिल भैया (उदासीन आश्रम इंदौर) ने कहा कि आचार्य श्री के आशीर्वाद  से कार्य कर रहे हैं। आचार्य श्री के आशीर्वाद  से इंदौर में भी प्रतिभा स्थली प्रारंभ होने की सम्भावना है।


ट्राय अगेन एण्ड अगेन   – आचार्य श्री विद्यासागर महाराज जी (दिनांक – 30-9-2012)

छत्तीसगढ़  के प्रथम दिगम्बर जैन तीर्थ चंद्रगिरि डोंगरगढ़ में विराजमान दिगम्बर जैन आचार्य श्री विद्यासागर महाराज जी ने रविवार को हुये प्रवचन में कहा की कई वर्ष पूर्व भोपाल में हुये त्रासदि के कारण आज भी  कई जगहो के जल विषाक्त हैं। सबसे ज्यादा प्रदूषण उत्पादक मनुष्य स्वयं ही है। पर्यावरण दूषित करते हैं मनुष्य। दूषित मन को सत्साहित्य एवं उपदेश  के माध्यम से हम ठीक कर सकते हैं। जल कितना भी दूषित क्यों न हो दिशा   चेंज कर विधिवत उसे साफ (प्यूरीफाई) किया जा सकता है। मन को फिल्टराईज करें। गाड़ी चलाने वाले समय को बचाते हैं जबकि उन्हे अपनी जिंदगी को बचाना चाहिये। मन, वचन, काय तीनों दूषित हो रहे हैं। आप जितनी सुख – सुविधा में रहोगे उतना ही सम्यगदर्शन  दूर रहेगा। भगवान की कीमत नहीं देखें उनके गुणों को देखें। हमें अपने दोषों को कम और गुणों को बढ़ाना चाहिये। जल प्रवाहित होता रहेगा तो ठीक रहता है। संगति अच्छी मिलती है तो सब ठीक हो जाता है। हे भगवान उलझे हुये मनुष्य को सुलझे हुये पशु  – पक्षियों के उदाहरण देना आपके ही वश  की बात है। मन, वचन, काय से भगवान की सच्ची भक्ति व पूजा की जाये तो  सब ठीक हो जाता है। शिक्षक  के द्वारा जब स्कूल में डाँटा जाता है तो पशुओं  के नाम से डाँटा जाता है, उसके बिना व्यक्ति सुधरता नहीं है। हमने “मूक  माटी” में लिखा है कि गधा भी अच्छा प्राणी है गद् + हा, गद =  रोग, हा = दूर  करने वाला, अर्थात् रोगो को दूर करने वाला। अज्ञान रूपी रोग को दूर करना चाहते हो तो गद्हा को साथी बना लो। यदि मनुष्य अपनी भीतरी आँखे खोल ले तो सब ठीक हो जायेगा। मनुष्य को अपने दोषों को कम और गुणों को बढ़ाने के लिये  ” ट्राय अगेन एण्ड अगेन” करते रहना चाहिये।


वोटनहींदेतेलेकिनसपोर्टदेतेहैं। आचार्यश्रीविद्यासागरमहाराजजी(दिनांक – 17-9-2012)

चंद्रगिरि डोंगरगढ़ छत्तीसगढ़  में विराजमान दिगम्बर जैन आचार्य श्री विद्यासागर महाराज जी ने कहा कि अशोभनीय  गुण वाले मनुष्य के संसर्ग से मनुष्य उसी की तरह स्वयं भी अशोभनीय गुणवाला हो जाता है। दुर्जनों की गोष्ठी के दोष से सज्जन भी अपना बड़प्पन खो देता है। फूलों की कीमती माला भी मुर्दे पर डालने से अपना मूल्य खो देती है। दुर्जन के संसर्ग से लोग व्यक्ति के सदोष होने की शंका करते हैं। जैसे मद्यालय में (शराब  की दुकान में) बैठकर दूध पीने वाले की भी मद्यपायी (शराबी) होने की शंका करते हैं। लोग दूसरों के दोषों को पकडने के इच्छुक होते हैं और परोक्ष में दूसरो के दोषों को कहने में रस लेते हैं। इसलिये जो दोषों का स्थान है उससे अत्यन्त दूर रहो क्योंकि ऐसा न करने से लोगोें को अपवाद करने का अवसर मिल जाता है।दुर्जनों की संगति से प्रभावित मनुष्य को सज्जनों का सत्संग रूचिकर नहीं लगता। वोट नहीं देता है लेकिन सपोर्ट तो रहता है। इसलिये जैसी स्थिति हो उसमें विवेक लगाकर कार्य करना चाहिये। हमें सभी बातों पर गौर करना चाहिये। हमें धार्मिक वातावरण बनाये रखना चाहिये जिससे परिणाम अच्छे रहते हैं। सज्जनों का सत्संग पुण्यवर्धन में सहायक होता है। पूज्य महापुरूषों की विनय करने से उनके जैसा बनने में सहायता मिलती है। आज आचार्य श्री विद्यासागर महाराज जी का आहार “श्रीमती  सुशीला  पाटनी” कीसनगढ़ राजस्थान वाले के यहाँ हुआ एवं “जन संध्या” में निखिल जैन की विषेष प्रस्तुती रही एवं मनीष जैन चुन्नू भाई के द्वारा हाँथों में दीपक लेकर विशेष  नृत्य प्रस्तुत किया गया।


सज्जनोंकेसंगदुर्जनभीपूजितहोताहै आचार्यश्रीविद्यासागरमहाराजजी(दिनांक – 16-9-2012)

चंद्रगिरि डोंगरगढ़ छत्तीसगढ़  में विराजमान दिगम्बर जैन आचार्य श्री विद्यासागर महाराज जी ने कहा कि जैसे सुगंध से रहीत फूल भी “वह  देवता का आशीर्वाद है ” ऐसा मानकर सिर पर धारण किया जाता है। उसी प्रकार सुजनों के मध्य में रहने वाला दुर्जन भी पूजित होता है। जिसको धर्म से प्रेम नहीं है तथा जो दुःख से डरता है वह मनुष्य भी संसार भीरू के मध्य में रहकर भावना , भय, मान और लज्जा से पाप के कार्यों से निवृत होने का उद्योग करता है। अपने ही भरण – पोषण में लगे रहने वाले क्षुद्रजन तो हजारों हैं किन्तू परोपकार ही जिसका स्वार्थ है ऐसा पुरूष सज्जनों में अग्रणी विरल ही होता है। हृदय को अनिष्ट भी वचन गुरू के द्वारा कहे जाने पर मनुष्य को ग्रहण करना चाहिये। जैसे बच्चे को जबरदस्ती मुँह खोलकर पिलाया गया घी हितकारी होता है। उसी तरह वह वचन भी हितकारी होता है। अपनी प्रशंसा  करना सदा के लिये छोड़ दो। अपने यश  को नष्ट मत करो क्योंकि समीचीन गुणों के कारण फैला हुआ भी आप का यश  अपनी प्रशंसा करने से नष्ट होता है। जो अपनी प्रशंसा  करता है वह सज्जनों के मध्य में तृण की तरह लघु होता है।


भक्ति से डर भाग जाता है।  – आचार्य श्री विद्यासागर महाराज जी (दिनांक – 15-9-2012)

चंद्रगिरि डोंगरगढ़  में विराजमान दिगम्बर जैन आचार्य श्री विद्यासागर महाराज जी ने कहा कि जिन भक्ति जिनके हृदय में होती है उसे संसार से डर नहीं लगता है। जब अपने भीतर है तो माँगने की क्या आवष्यकता है। अच्छे व्यक्ति माँग करते हैं जैसे नेताओं से माँगते हैं। धर्म कर्मों को नष्ट करता है। मेरू की तरह निष्चल भक्ति होनी चाहिये। बगुला जैसी भक्ति नहीं होना चाहिये। श्वास – श्वास में भगवान के प्रति समर्पण होना चाहिये। कोई कुछ भी कह दे आस्था मिटती नहीं है । यदि अटूट भक्ति है तो भक्त बनते ही प्रत्येक क्षण भगवान की याद में व्यतीत होता है। कहते हैं कि श्आधा भोजन कीजिये दूना पानी पीव तिगना श्रम चैगनी हंसी वर्ष सवा सौ जीवश् यह प्रसिद्ध है। आज कवितायें यदि एक पृष्ठ में जगह छोड़कर लिखी जा रही है। ऐसा प्रकाषन हो रहा है। यह इंगित कर रहे हैं कि आप सावधान होकर पढि़ये । जैनाचार्य कहते हैं कि दूसरों की गल्ती की ओर नहीं देखो अपनी गल्ती को सुधार करने की कोषिष करो। मंद बुद्धि के लिये कहा कि मंद आँच पर ही सब कुछ पकता है। आत्मा का स्वभाव क्रूर होना नहीं है। दूध में मलाई जब उबाती है जब दूध शांत हो जाता है।


मोबाईल का उपयोग सीमित हो ! – आचार्य श्री विद्यासागर महाराज जी (दिनांक – 14-9-2012)

चंद्रगिरि डोंगरगढ़ छत्तीसगढ़ में विराजमान दिगम्बर जैन आचार्य श्री विद्यासागर महाराज जी ने कहा कि अपनी प्रषंसा करने से अपने गुण नष्ट हो जाते हैं। अपनी क्षमता का उपयोग करें मन को वष में करें । मोबाईल मंदिर में संत निवास में सब जगह बजते रहते हैं कोई ध्यान नहीं देता है इससे बहुत सी बीमारियाँ भी होती है इसका सीमित उपयोग करें। ग्रन्थों के दृष्टांत देकर आचार्य श्री ने कहा कि धन का उपयोग पुण्य कार्यों में करो वह तो नष्ट होगा ही यदि पुण्य कार्यों में उपयोग करेंगे तो और पुण्य बंध होगा। अपनी क्षमता का उपयोग धार्मिक कार्यों में करो तभी सार्थकता है। मुद्रा की कीमत घट रही है भले ही आप के पास पैसा बढ़ रहा हो। चक्रवर्ती के पास भी बहुत वैभव होता है लेकिन उनका भी पतन हो जाता है। सम्पदा का सही उपयोग करना ही महान कार्य है। जो कमाया है उसे यथयोग्य दान करो मोह को कम करते हुये। रावण ने अपनी शक्ति का सहीं उपयोग नहीं किया यदि करता तो वह महापुरूष बन जाता । कठिन साधना सही उद्देष्य के साथ करने से लक्ष्य की प्राप्ति होती है। पहले के लोग शुभ उद्देष्य को लेकर कार्य करते थे। आज क्वालिटी कम हो रही है कार्य सही नहीं हो रहे हैं।


पाजीटिव पावर आता है।  – आचार्य श्री विद्यासागर महाराज जी (दिनांक – 13-9-2012)

चंद्रगिरि डोंगरगढ़ छत्तीसगढ़ में विराजमान दिगम्बर जैन आचार्य श्री विद्यासागर महाराज जी ने कहा कि वैराग्य वर्धक वाले के पास बैठने से वैराग्य वर्धन होता है। कई लोग बोलते हैं दुकान अच्छी चलती है तो क्या पहिये लगे हैं जो चलती है लेकिन बोला जाता है । विकासषील जो होते हैं उनसे मिलते रहो तो आपका विकास होगा। आज बाजार कुछ लोगो के हाथों से चल रहा है। कम मूल्य वाली वस्तु को ज्यादा मूल्य में बेचेंगे तो वह पैसा बीमारियों में जायेगा। महापुरूषों का नाम लेने से पाॅजीटिव पावर आता है। सज्जनों के द्वारा अपमान भी ठीक है लेकिन दुर्जनों के द्वारा पूजा भी ठीक नहीं। यह बहुत कठिन है लेकिन क्या करें अपनों के द्वारा अपमान सहन नहीं होता। बदला लेने के निर्मित से माया और क्रोध ने मीटिंग ली और बिल पास हो गया। उन्होने कहा वोट भी है और सपोर्ट भी है। जो सही निर्णय लेता है निष्पक्ष होकर वही सही निर्णायक माना जाता है। दुर्जनों की संगति से शील का नाष होता है। ऐसी संगति करो जिससे गुणों का विकास हो। अच्छी बात कड़वी लगती है लेकिन बताना जरूरी है। औषधि कड़वी भी अच्छी रहती है।

विषेष:-

चंद्रगिरि डोंगरगढ़ छत्तीसगढ़ में महा महोत्सव पर्यूषण पर्व 19 से 28 सितम्बर 2012 तक मनाया जायेगा इसमें पूरे भारत से श्रद्धालु आयेंगे और विभिन्न सांस्कृतिक कार्यक्रम होंगे। लोग उपवास, एकासन (एक दिन में एक बार भोजन) आदि विषेष तप करते हैं। आचार्य श्री विद्यासागर महाराज जी के प्रतिदिन तत्वार्थ सूत्र पर प्रातः 07 : 30 बजे कक्षा एवं दोपहर में प्रवचन होंगे।


अपनी प्रषंसा घातक है। – आचार्य श्री विद्यासागर महाराज जी (दिनांक – 12-9-2012)

चंद्रगिरि डोंगरगढ़ छत्तीसगढ़ में विराजमान दिगम्बर जैन आचार्य श्री विद्यासागर महाराज जी ने कहा कि सभी आत्मा एक सी है, मैं छोटा मैं बड़ा यही नहीं सोचना चाहिये। सज्जन मनुष्यों के बीच में अपने विद्यमान की गुण की प्रषंसा सुनना लज्जित होता है। तब वह स्वयं ही अपने गुणों की प्रषंसा कैसे कर सकता है। जिस समय वस्तु हम चाहते हैं नहीं मिलती है। अपनी प्रषंसा स्वयं न करने वाला स्वयं गुण रहीत होते हुये भी सज्जनों के मध्य में गुणवान की तरह होता है। कस्तूरी की गंध के लिये कुछ करना नहीं होता है। वचन से गुणों का कहना उनका नाष करना है। बहुत सोच समझकर इस दुनिया में कदम रखना चाहिये। एक कहावत है श्एक गंूगा सबको हराता हैश् परनिंदा आपस में बैर, भय, दुःख, शोक और लघुता को करती है, पाप रूप है दुर्भाग्य को लाती है और सज्जनों को अप्रिय है। जो पर की निंदा करके अपने को गुणी कहलाने की इच्छा करता है वह दूसरे के द्वारा कडुवी औषधी पीने पर अपनी निरोगता चाहता है। सज्जनों के पास रहने से सज्जनता अपने आप आने लगती है। दूध लोकप्रिय बन जाता है सभी पीते हैं और चाहते हैं । साधना में पक्के होते हैं तब जाकर अन्तर दृष्टि होती है। श्क्वालिटी अपने आप में पुरस्कारश् है ऐसा एवार्ड तो संसार में है ही नहीं। चर्या के माध्यम से गुणों का कथन करें चर्या ही गुणों का प्रकाषन है। आज वेटिंग, सेटिंग, मीटिंग, गेटिंग हो रही है।


आउट लाइन को देखो ! – आचार्य श्री विद्यासागर महाराज जी (दिनांक – 5-9-2012)

चन्द्रगिरि डोंगरगढ़ छत्तीसगढ़ में विराजमान दिगम्बर जैन आचार्य श्री विद्यासागर महाराज जी ने कहा की  भगवान् की पीठ के दर्शन और फोटो महत्वपूर्ण है वह आस्था के सांथ हो तो | पत्रिका में लेख माला चलती है और लिखा रहता है क्रमश: ऐसा ही यहाँ होता है | रत्नकरंडक  श्रावकाचार में आचार्य समतभद्र जी ने शिल्पी का उदाहरण दिया है लोहे में जंग होता है तो वह कार्य नहीं करता है ऐसे ही हमें मन की जंग साफ करना होगी तभी कोई अच्छी वस्तु कार्य करेगी उपदेश का प्रभाव होगा | कई लोग पल्ला बिछाकर दर्शन करते हैं भगवान् से मांगते हैं | जैन धर्म में 24 तीर्थंकर (आदिनाथ से महावीर तक ) हुए हैं | 25 वे तीर्थंकर नहीं होते हैं 24 में से कोई तीर्थंकर बने यह भावना रखना  चाहिये, वीतरागता की उपासना महत्वपूर्ण है | आउटलाइन को देखे प्रभु की वह भी महत्वपूर्ण है, प्रभु नहीं भी दीखते है तो आस्था की आँखों  से देखें, अच्छे कार्य करते चले जायें तो पुण्य का बंध होता है | हमारी आस्था मजबूत होना चाहिये तभी हम मोक्षमार्ग पर आरूढ़ हो सकते हैं यहाँ वीतरागी की आस्था को महत्व दिया है | सौधर्म इन्द्र को देखकर अन्य देवों को भी सम्यग दर्शन हो जाता है | वह देखता है की मेरा मुखिया भी भगवन की भक्ति कर रहा है जो वैभवशाली है, मैं सबसे बड़ा इसी को मानता था यह देखकर सम्यक दृष्ठि हो जाते हैं देव |


धन विदेष में क्यों रखते हैं। – आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज (दिनांक – 1-9-2012)

चंद्रगिरि डोंगरगढ़ छत्तीसगढ़ में विराजमान दिगम्बर जैन आचार्य श्री विद्यासागर महाराज जी ने कहा कि करोड़ो रूपयो का व्यय होने पर भी कुछ नहीं हो रहा है और कहते हैं कि आप जानों, और कहते हैं कि श्ष्वेत क्रांतिश् है । सŸाा शासन क्या है आप जानो। कमा – कमाकर रख रहे हो क्या होगा, केवल नारे लगाने से कुछ नहीं होगा। आज दूध में मिलावट हो रही है, वह दूध बच्चों को भी पिलाया जाता है कितनी सारी बिमारियाँ होती है। धन विदेषों में रखते हैं क्योंकि माता – पिता, भाई – बहन, पति/पत्नि पर विष्वास नही रहता है। कोई ड्रेस एड्रेस नहीं है कोड से चलता है। इससे बढ़कर कोई पागलपन नहीं है । सारी सम्पदा विदेष में रखते हैं यह समझ में नहीं आ रहा है। जनसंख्या बढ़ती जा रही है, धर्म की श्रेणी नीचे आ रही हैै। आज हार्ट अटैक की औसत उम्र 40 साल हो गई है।जैसे व्यापारी सुबह अखबार नहीं देखता है तो व्यापार कैसे करेगा इसी प्रकार जिनवाणी पूछती है कि देखो और चर्या करो। दान श्रावक के लिये वरदान है।


मरण आत्मा का उपकारक है ! – आचार्य श्री विद्यासागर महाराज जी (दिनांक – 30-8-2012)

चंद्रगिरि डोंगरगढ़ छत्तीसगढ़ में विराजमान दिगम्बर जैन आचार्य श्री विद्यासागर महाराज जी ने कहा कि मरण के द्वारा आत्मा का उपकार होता है । साधारणतया मरण किसी को प्रिय नहीं है तो भी व्याधि (रोग), पीड़ा, शोक आदि से व्याकुल प्राणी को ऋण भी प्रिय होता है । अतः उसे उपकार की श्रेणी में ले लिया । जिसने एक बार भी समाधि मरण किया है, ऐसा जीव अधिक से अधिक 7 – 8 भवों में मुक्ति प्राप्त कर लेता है । सर्वश्रेष्ठ समाधि मरण से ही मोक्ष की प्राप्ति होती है । अतः मरण भी उपकारक है। जीव परस्पर में उपकार करते हैं । जैसे मालिक मैनेजर को वेतन देकर उपकार करता है, मैनेजर भी ईमानदारी से काम करता है तो बिजनेस (व्यापार) में चार चाँद लग जाते हैं अर्थात मालिक को ज्यादा लाभ होता है। यह मैनेजर का उपकार मालिक के ऊपर है। इसी प्रकार गुरू – षिष्य, भगवान – भक्त आदि करते हैं।


अखबार की न्यूज क्या है – आचार्य श्री विद्यासागर महाराज जी (दिनांक – 28-8-2012)

चंद्रगिरि डोंगरगढ़ छत्तीसगढ़ में विराजमान दिगम्बर जैन आचार्य श्री विद्यासागर महाराज जी ने कहा कि अखबार वाले दुनिया की खबर तो लेते हैं लेकिन आत्मा से बेखबर रहते हैं। न्यूज का अर्थ होता है नार्थ, ईस्ट, वेस्ट, साउथ, चारों दिषाओं की खबर को न्यूज कहते हैं। आचार्य श्री ने पद्म पुराण का सीता की अग्नि परीक्षा संबंधी प्रसंग सुनाया और कहा कि अग्नि परीक्षा नहीं थी कर्मों की सही परीक्षा थी वह धधकती अग्नि थी और जैसे ही प्रवेष हुआ वह जल कुण्ड में परिवर्तित हो गया सारी जनता देखते रह गयी और राम भी देखते रह गये और भवन की ओर चले गये। यह दृष्य महत्वपूर्ण था। यह पुण्य की परीक्षा थी । दिल्ली वाले टेªन की टिकिट लेकर आये हैं आने जाने की । ऐसे ही जिस भव में जाना है उसकी आयु बंध हो जाता है। रिजर्वेषन जैसा होता है। इसलिये अच्छे कर्म करते रहना चाहिये जिससे हमें देव आयु, मनुष्यायु का बंध हो । आप भगवान से सब कुछ मांगते हो, आज तक ऐसा नहीं सुना कि किसी ने कहा हो कि मेरा पूरा धन ले लो, यह क्यों नहीं कहते। मांगते तो सब कुछ हो देते नहीं हो। आँखे बंद करके ध्यान करो, भक्ति करो भगवान की सब ठीक हो जायेगा । पुण्य के उदय से रोग, शोक, संकट सब दूर हो जाते हैं। यह ध्यान रखे की हमारे कर्म ही सब करते हैं, पुरूषार्थ के द्वारा आयु कर्म को घटा बढ़ा सकते हैं लेकिन परिवर्तन नहीं होता है।


वैज्ञानिक भी नहीं उठा सकते ! – आचार्य श्री विद्यासागर महाराज जी (दिनांक – 26-8-2012)

– आचार्य श्री विद्यासागर महाराज जी चन्द्रगिरि डोंगरगढ़ छत्तीसगढ़ में विराजमान आचार्य श्री विद्यासागर महाराज जी ने कहा की भावों में उज्ज्वलता होती है वह भाव से  श्रिति है | ऊपर चढ़ने वाला नसेनी (सीढ़ी) आदि जिस द्रव्य का आश्रय लेता है उसको भी श्रिति शब्द से कहते हैं | एक दृष्टान्त देते हुए बताया की ग्रेजुएट होता है तो प्रथम, द्वितीय, तृतीय वर्ष में कामर्स रहती है | फिर पोस्ट   ग्रेजुएशन में भी कामर्स होता है |

5 साल में कामर्स ही क्यों रहता है,  तो उस विषय में योग्यता आती है | सीनियर का अर्थ होता है “सी” – “नियर”,  पास का देखो, जैसे – जैसे उन्नति होती है कक्षाओं में तो गुणों में भी विकास होना चाहिये | थीसिस लिखते हैं तो और गहराई से विषय तक पहुचेंगे | टनों – टन वजन उठा सकते हैं वैज्ञानिक लेकिन अपने आप को उठाओ तो हम मानेंगे | कई लोगों को शेयर बाजार में घटा होने पर पसीना नहीं आता और कई लोगो को  हार्ट अटैक हो  जाता है | अपने आप को संभालना चाहिये भावों का उतार – चढ़ाव होता रहता है | उसे संभालना चाहिये (प्लेन की तरह) | मोक्ष मार्ग में आरक्षण भी है और संरक्षण भी |


मशीन बता देती है धन कहाँ छिपा है ! – आचार्य श्री विद्यासागर महाराज जी (दिनांक – 24-8-2012)

चन्द्रगिरि डोंगरगढ़ छत्तीसगढ़ में विराजमान दिगम्बर जैन आचार्य श्री विद्यासागर महाराज जी ने कहा की संसारी प्राणी भ्रम के सांथ ही यात्रा करता रहता है | प्रत्येक व्यक्ति अपराधी सिद्ध होता है तो दंड संहिता लागू ही नहीं हो पायेगी | मोक्ष मार्ग में शब्दों और भावों से ही मार पड़ती है | जिसकी दृष्टि  में  इन्द्रिय विषय है तो आत्मस्थ कैसे कह सकते हैं | केवल ज्ञानी के ज्ञान में अनंतानंत विषय आ रहे हैं वह दूर नहीं होते हैं बस राग द्वेष  नहीं करते हैं | भाव होने के बाद भी राग द्वेष नहीं करना यही सही पुरुषार्थ है | मान को रखोगे तो अपमान और सम्मान होगा | मान अधिक हो जाता है तो धरती नहीं दिखती वह आकाश की ओर देखता है | क्रोध, मान, माया, लोभ सम्बन्धी विषय पर प्रकाश डाला गया | मकान में मशीन लगते ही पता चल जाता है धन कहाँ – कहाँ छिपा रखा है | शरीर में भी कहाँ छिपा कर रखा है धन यह भी पता चल जाता है | जब शरीर ही मेरा नहीं है तो हम क्यों चिल्लायें, शांत रहे और इसे ऊपर उठायें, शरीर से काम लो इसको भोग सामग्री नहीं बनाओ |


शराब करती  है जीवन ख़राब ! – आचार्य श्री विद्यासागर महाराज जी (दिनांक – 21-8-2012)

चंद्रगिरी डोंगरगढ़ छत्तीसगढ़ में विराजमान दिगम्बर जैन आचार्य श्री विद्यासागर महाराज जी ने कहा की चित्त में महान विकार पैदा करते हैं इसलिए इन्हें महाविकृति कहते हैं | शराब जीवन ख़राब करती  है | भोग की इच्छा पैदा करती है, परिवार को बर्बाद कर देती है, रोगों को उत्पन्न करती है और शरीर को ख़राब कर देती है | सर्वज्ञ की आज्ञा के प्रति आदरवान, पाप भीरु और तप में एकाग्रता के अभिलाषी ये महा विकृतियाँ त्याग करते हैं | इस आज्ञा का आदर करना चाहिए और पालन करना चाहिए नहीं तो संसार के मध्य में पतन हुआ है और होगा | पाप से जो डरता है तथा जो तप में एकाग्रता का अभिलाषी है वह त्याग करें | 6 रसों का भी देखकर क्रमशः  त्याग करना चाहिए | साधू आहार में जाते हैं तो नियम / प्रतिज्ञा  लेते  हैं की इतने  घर  तक  जाऊँगा, एक  कलश , श्रीफल , अन्य  वस्तु , अन्य  रंग  के वस्त्र , बालक , वृद्ध  आदि  करोडो  भेद  हो  सकते  हैं | यह  विधि  आहार से पहले  मंदिर  आदि  में निकलते  समय  लेते  हैं | आहार और शरीर गृहस्थों से राग घटाने के लिए यह तप किया जाता है | विधि मिलती है तो आहार ग्रहण करते हैं नहीं तो उपवास हो जाता है फिर दूसरे दिन ही आहार को उठते हैं, यह वृत्ति परिसंस्थान तप कहलाता है |


जीरो से हेलोजन में अंतर है ! – आचार्य श्री विद्यासागर महाराज जी  (दिनांक – 17-8-2012)

चन्द्रगिरि डोंगरगढ़ छत्तीसगढ़ में विराजमान दिगम्बर जैन आचार्य श्री विद्यासागर महारज जी ने कहा की जिनेन्द्र  भगवान् की भक्ति से प्रलय, भूत पिशाच, विघ्न, शाकिनी, विष का प्रभाव आदि नष्ट हो जाता है | हमारे जन्म – जरा – मृत्यु के कष्ट समाप्त नहीं हो रहे हैं | तृष्णा सर्पिणी की भांति है वह हमारे अन्दर प्रवेश कर रही है | जिनेन्द्र भगवान् का गंधोदक सब रोग, कष्ट हर लेता है, सर्वश्रेष्ठ औषधि है | भावों का खेल है भाव अच्छे रखेंगे तो सब अच्छा हो सकता है | पदम् पुराण में कैकई और दशरथ का दृष्टान्त  देते हुए कहा की मान सम्मान की भूख प्रत्येक  व्यक्ति में  रहती है | संसारी व्यक्ति तो कर्म पर विश्वास करता है पर कर्म नहीं करता है | मन सबसे ज्यादा अविश्वास का पात्र है | संबोधन के लिए अच्छे व्यक्ति की आवश्यकता होती है | करंट एक रहता है जीरो से हेलोजन में प्रकाश अलग – अलग रहता है | आत्मा करंट की भांति है और शरीर बल्ब की भांति है | सब बीज नष्ट हो सकते हैं लेकिन कर्म बीज नष्ट नहीं होते हैं | जो अनुभवी होते हैं उनका अनुभव सुनने से अनुभव बढ जाता है |


भगवान् सही कथाकार होते हैं ! – आचार्य श्री विद्यासागर महाराज जी (दिनांक – 15-8-2012)

चन्द्रगिरि डोंगरगढ़ छत्तीसगढ़ में विराजमान आचार्य श्री विद्यासागर महाराज जी ने कहा की जब व्यक्ति उठता है प्रातः तो ताजगी महसूस करता है सूर्योदय के कारण और सूर्यास्त के समय बेहोशी जैसी लगती है | एक विषयों की नींद है और एक दिन अस्त होने की नींद है | महान पुरुष विपरीत परिस्तिथियों में भी अपने आपको संयत बनाये रखते हैं | तीन घंटे तक हम कोई कार्यक्रम  देखते हैं तो वह याद में बना रहता है | जब स्वाभाव का बोध होता है तो पश्चाताप होता है | हमारी दिशा, दशा भगवान् की भांति हो जायेगी जिस दिन बोध हो जाएगा | दिन और रात की तरह ही जन्म – मरण का सम्बन्ध है | हमारा मन कही न कही से कमजोर रहता है | दुखानुभूती क्षणिक होती है | कथा और गाथा के सही कथाकार भगवान् होते हैं |


करोडो रुपयों में आत्मा की बात नहीं ! – आचार्य श्री विद्यासागर महाराज जी (दिनांक – 13-8 -2012)

चन्द्रगिरि डोंगरगढ़ छत्तीसगढ़ में विराजमान दिगम्बर जैन  आचार्य श्री विद्यासागर महाराज जी ने कहा की जिस घोड़े को शब्द के संकेत में चलने , भ्रमण, लंघन आदि की शिक्षा नहीं दी गयी है और चीरकाल तक सुख पूर्वक लालन – पालन किया गया है | वह घोडा युद्ध भूमि में सवारी के लिए ले जाया गया कार्य नहीं करता है | वैसे ही सभी जनों बच्चों को अच्छे संस्कार देना चाहिए | बाहर पढने जाता है क्या खा रहा है, क्या पी रहा है पता नहीं चलता है | विज्ञान के युग में विश्वास नहीं रहा है | करोड़ों रुपयें खर्च हो रहे हैं शिक्षा के क्षेत्र में लेकिन आत्मा के बारे  में बात बताने वाला नहीं है “हम दो हमारे दो ” अब लिखा हुआ नहीं मिलता है | “हम ही सब कुछ है ” यह दिख रहा है | अब पैकेज  भी कम हो रहा है | आज बच्चे , जवान आस्था में बूढ़े हो रहे हैं | घोडा हार्स पावर वाला भी काम में नहीं आता | अकोड़े के बिना हांथी भी सांथी नहीं रहेगा | इन्द्रियों पर लगाम लगाओ, भाडा दो और काम लो | निश्चिंतता में भोगी सो जाता है और योगी खो जाता है | घर में यदि छोटी बहु अच्छा कार्य करती है तो सभी तारीफ़ करते हैं हो सकता है बड़ी बहु की तारीफ़ नहीं करें | आर्डर मन देता है फिर इन्द्रियां कार्य  करती है | मन अधिष्ठाता है वही संकेत करता है तब कार्य होता है, वह उस्ताद है | आत्मा रूप, रस, गंध, वर्ण आदि से रहित है | प्रबल अभ्यास के बल से स्मृति बिना खेद के अपना काम करती है |


वेट कम करो धन  और शरीर का  ! – आचार्य श्री विद्यासागर महाराज जी (दिनांक – 11-8 -2012)

चन्द्रगिरि डोंगरगढ़ में विराजमान आचार्य श्री विद्यासागर महाराज जी ने कहा की जो प्राणियों में दया नहीं करता तथा दूसरों को पीड़ा पंहुचा कर भी पछताता नहीं है वह दुर्भावना करता है | कई लोगो को कुछ भी करने के बाद भी पश्चाताप नहीं होता है | ऋण और बैर भव – भव में पीछा करते हैं | आज मुक्ति नहीं होती है लेकिन संबर और निर्जरा भी मोक्ष का कारण है | परिग्रह कम करते चले जाओ  तो सुख मिलेगा | वेट कम करो धन और शरीर का | तीन लोक की सम्पदा मिलने पर भी साधू को कुछ नहीं होता | अशुधि के भाव रखोगे तो विशुधि नहीं बढेगी| बार – बार सेवन किया गया विषय सुख राग को उत्पन्न करता है | द्रव्य और भाव रूप तप की भावना से पाँचों इन्द्रियां दमित होकर उस तप भावना वाले के वश में हो जाती है | इन्द्रियों के पोषण के लिए नहीं लगाम लगाने के लिए तप किये जाते हैं | मदोन्मत्त हांथी भी भोजन नहीं मिलने से वश में हो जाता है |


शरीर गंदगी की फैक्ट्री है  !  – आचार्य श्री विद्यासागर महाराज जी (दिनांक – 10-8 -2012)

चन्द्रगिरि डोंगरगढ़ छत्तीसगढ़ में विराजमान  आचार्य श्री विद्यासागर महाराज जी ने कहा की शरीर गंदगी की फैक्ट्री है, बड़े – बड़े डाक्टर, भी शरीर को  देखकर कुछ  नहीं कर पाते उसको शुद्ध नहीं कर सकते | कर्म को एक्सरे और फोटो ग्राफी से भी नहीं पकड़ सकते| पुलिस रक्षा भी करती है और अपराधी को पकडती भी है ऐसे ही कर्म द्विमुखी होते हैं | विज्ञान भी मानता है 50 वर्ष के बाद मीठा, नमक लेने की आवशयकता नहीं रहती है, अपने आप शरीर से मिलते हैं रस | यह शरीर जन्म मरण से युक्त , असार, अपवित्र, कृतघ्न, भार रूप रोगों का घर है | दुखदायी शरीर से क्या लाभ ऐसा विचार साधू शरीर से निस्पृह होकर चिंतन करते हैं | जो श्रमण आत्मा में रमण करता है वह कालजयी बन जाता है |


कर्म क्या होते हैं ! – आचार्य श्री विद्यासागर महाराज जी (दिनांक – 9-8 -2012)

चन्द्रगिरि डोंगरगढ़ छत्तीसगढ़ में विराजमान दिगम्बर जैन आचार्य श्री विद्यासागर महाराज जी ने कहा की संसार में सबसे ज्यादा इमानदार हैं तो वह है कर्म | मुनि हो, गृहस्थ हो, राजा हो या रंक हो, युवा हो या वृद्ध हो कर्म किसी के साथ पक्षपात नहीं करते, जीव जैसा कर्म करता है वैसे ही उसे  फल मिलता है | जिसके द्वारा आत्म परतंत किया जाता है, उसे कर्म कहते हैं | जीव और कर्म का अनादिकाल से सम्बन्ध चला आ रहा है | मैं हूँ इस अनुभव से जीव जाना जाता है | संसार में कोई गरीब है, कोई अमीर है, कोई बुद्धिमान है , कोई बुद्धिहीन है , कोई रोगी है , कोई स्वस्थ्य है ! इस विचित्रता से कर्म के अस्तित्व को जान सकते हैं | जैसे अग्नि से गर्म किये हुए  लोहे का गोला पानी में डालते ही सब तरफ से पानी को ग्रहण करता है, वैसे ही संसारी आत्मा मन, वचन, काय की क्रियाओं से प्रति समय आत्म प्रदेशों से कर्म ग्रहण करता है, हमारे ही राग – द्वेष परिणाम से कर्म आते हैं |

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