हे प्रभु ! मेरा किसी के भी साथ राग नहीं है. द्वेष नहीं है |
बैर नहीं है. तथा क्रोध, मन, माया लोभ नहीं है, अपितु सर्व जीवों के प्रति उत्तम क्षमा है |
जब तक मोक्षपद की प्राप्ति ना हो तब तक भव-भव में मुझे शास्त्रों के पठन-पाठन का अभ्यास, जिनेंद्र पूजा, निरंतर श्रेष्ठ पुरुषों की संगति, सच्चरित्र संपन्न पुरुषों के गुणों की चर्चा, दूसरों के दोष कहने में मौन, सभी प्रणियों के प्रति प्रिय और हितकारी वचन एवं आत्मकल्याण की भावना (प्रतीत) ये सब वस्तुएँ प्राप्त होती रहें |
है जिनेंद्र ! मुझे जब तक मोक्ष की प्राप्ति न हो तब तक आपके चरण मेरे हृदय में और मेरा ह्रुदय आपके चरणों में लीन रहे |
हे भगवन ! मेरे दुखों का क्षय हो, कर्मों का नाश हो, रत्नत्रय की प्राप्ति हो, शुभगति हो, सम्यग्दर्शन की प्राप्ति हो, समाधिमरण हो और श्री जिनेंद्र के गुणों की प्राप्ति हो, ऐसी मेरी भावना है, ऐसी मेरी भावना है, ऐसी मेरी भावना है |
“प्रभु चरणों में शत-शत नमन”