– डॉ. सरोज कुमार |
आज मैंने समवशरण मंदिर में महामंत्र णमोकार की एक पंक्ति को दूसरी पंक्ति की साक्षात् वंदना करते देखा। अरिहंत प्रसन्न मुद्रा में मूर्तियों में मग्न थे साधुगण साधना की प्रतिपूर्ति में नग्न थे। भक्तगण परमानंदित भव्य दृश्य के आस्वादन में संलग्न थे।अरिहंतों में सिद्धि का प्रदीप्त आभामंडल था, साधुगण पाथेय रूप पिच्छी थी, कमंडल था। मंत्र की दो पंक्तियाँ एक-दूसरे को संदर्भ देकर समृद्ध कर रही थीं! भक्ति और सिद्धि के रंग आपस में मिलकर रंगारंग इंद्रधनुष बन गए थे।मंदिर में मुनियों को वंदना करते देखकर सरोवर ने अपनी नीली आँखों से देखा कमल की एक पँखुरी दूसरी में खुल रही थी, आनंद के अश्रुओं से हर आँख धुल रही थी। |