– धनराज कासलीवाल
पशु बिना मानव के रह सकते हैं, परंतु मानव समाज को अपनी जरूरतों के लिए ‘पशुओं’ पर आश्रित रहना पड़ता है।
एक शाकाहारी व्यक्ति अपने जीवनकाल में लगभग अस्सी जानवरों को अप्रत्यक्ष रूप से यंत्रणा एवं मौत से अभय प्रदान करता है।
अमेरिका स्थित पेटा नाम की संस्था विश्व की सबसे बड़ी शाकाहार प्रचारक संस्था है, जिसके आठ लाख सदस्य हैं।
एक शाकाहारी व्यक्ति के भोजन में जहाँ प्रतिदिन मात्र तीन सौ गैलन जल का उपयोग होता है, वहीं मांसाहारी भोजन हेतु चार हजार गैलन जल की प्रतिदिन आवश्यकता पड़ती है।
इस सृष्टि में एक भी मानव यदि नहीं रहता है तो इस सृष्टि की आयु कई लाख वर्ष बढ़ सकती है, इसके विपरीत यदि इस धरा से पशु की एक भी प्रजाति नष्ट होती है तो इकोलॉजिकल असंतुलन के कारण इस सृष्टि की आयु कई लाख वर्ष कम हो जाती है।
वैज्ञानिक एवं औद्योगिक प्रयोगों में छः से सात करोड़ जानवर प्रतिवर्ष मार डाले जाते हैं।
सृष्टि पर जानवर मनुष्य के खाने, पहनने, प्रयोग करने अथवा मनोरंजन के लिए नहीं हैं, वरन् पशु जग की अपनी स्वतंत्र सत्ता है।
अंत में जियो और जीने दो। परस्परोपग्रहोजीवानाम्॥
यही सृष्टि संतुलन के दो मूल मंत्र हैं।