मेरी श्रद्धा का नाम है – विद्यासागर …
मैंने ईश्वर को नहीं देखा
देखा है विद्यासागर को
ज्ञान सिंधु जिसमें समा गया
मैंने देखा उस गागर को
सूरज जिनके चरणों में
आकर के शीश झुकाता है
प्रकृति का हर रोम-रोम
जिनके गीत सुनाता है
विश्वशांति होगी फिर से
हमको विश्वास दिलाता है
हिमगिरि का उन्नत मस्तक
जहाँ नतमस्तक हो जाता है
मोक्ष-महल का वासी वो
इस धरती पर यायावर है
मेरी श्रद्धा मेरे ईश्वर का
नाम ही विद्यासागर है…
मेरे राम तुम हीं घनश्याम तुम हीं
मेरा मान तुम हीं सम्मान तुम हीं
शब्द तुम हीं आवाज तुम हीं
गीत तुम हीं अंदाज तुम हीं
एहसास तुम हीं आभास तुम हीं
मंजिल और प्रकाश तुम हीं
तुम ही तो हो अरमान हमारे
तुम्हें देखकर सब कहते हैं
धरती पर भगवान पधारे…
हमसे पूछा जब लोगों ने
तुमने ईश्वर को देखा है
मैंने कहा हर उसने देखा
जिसने गुरुवर को देखा है
ईश्वर उतरा है गुरुवर में
या गुरुवर समा गए ईश्वर में
बस इतना ही है अंतर
वे मोक्ष महल में जा बैठे
गुरुवर अभी हैं धरती पर
इस युग का सौभाग्य रहा
कि इस युग में गुरुवर जन्मे
अपना यह सौभाग्य रहा
गुरुवर के युग में हम जन्मे
कलयुग में भी यह सतयुग
गुरुवर के नाम से जाना जावेगा
कभी महावीर की श्रेणी में
गुरुवर का नम्बर आवेगा
जब तक सृष्टि के अधरों पर
करुणा का पैगाम रहेगा
तब तक युग की हर धड़कन में
विद्यासागरजी का नाम रहेगा।
चंद्रसेन जैन
‘गुरु-प्रतिक्षा’, 7 रामानंद नगर, लालघाटी भोपाल- 462032
संपर्क -94250 14453
Chandrasen Ji the way you expressed you feelings towards Gurudev is very nice but there is no doctionary have words to explain our Gurudev because he has qualities beyond the words & our thought. Namostu Gurudev from “Aacharya Vidya Sagar Seva Sangh, Mumbai”.
It is very nice poem..
Jay jinendra..
I like your poem.
Bahutkhub.
Bahut khub Chandrasen Jain Ji … Bahut khub ….
Padhke maja hi aa gaya 🙂
Jay Jinendra