संकलन:
श्रीमती सुशीला पाटनी
आर. के. हाऊस, मदनगंज- किशनगढ
जिनेन्द्र भगवान के दर्शन करने के विचार मात्र से दो उपवास का फल होता है।
मन्दिर जाने के लिये अभिलाषा करने से तीन उपवास का फल होता है।
मन्दिर जाने का आरम्भ करने से चार उपवास का फल होता है।
मन्दिर जाने लगता है उसे पाँच उपवास का फल होता है।
कुछ दूर पहुँचने पर बारह उपवास का फल मिलता है।
बीच में पहुँचने पर पन्द्रह उपवास का फल मिलता है।
मन्दिर का दर्शन होने से एक मास के उपवास का फल मिलता है।
मन्दिर के आंगन में में प्रवेश करने से छः मास का उपवास का फल मिलता है।
मन्दिर के द्वार में प्रवेश करने से एक वर्ष उपवास का फल मिलता है।
भगवान की प्रदक्षिणा देने पर सौ वर्ष के उपवास का फल मिलता है।
जिनेन्द्र भगवान का एकटक दर्शन करने से हजार वर्ष के उपवास का फल मिलता है।
जिनेन्द्र भगवान की स्तुति (पूजन) करने से अनंत वर्ष का फल मिलता है।
यथार्थ में जिनभक्ति से बढकर उत्तम पुण्य अन्य नहीं है।
एकापि समर्थेयं, जिन भक्ति दुर्गति निवारयितुम्
पुण्यानि च पूरयि तुं दातुं मुक्तिश्रियं कृतिनः
जिनेन्द्र भक्ति सार में एक अमोघ शक्ति मानी गयी है जो दुर्गति के निवारण में समर्थ है, पुण्य का बन्ध कराने वाली है एवं मुक्ति लक्ष्मी की प्राप्ति कराने वाली है।