संकलन:
श्रीमती सुशीला पाटनी
आर. के. हाऊस, मदनगंज- किशनगढ
अब यदि आपने मांसाहार के त्याग का संकल्प कर लिया है तो अपने को टटोलिये और देखिये आप क्या क्या चीज खाते हैं जो एक शाकाहारी को नहीं खानी चाहिये।
क्या आप कभी शराब पीते हैं?
महुआ, दाख आदि अनेक पदार्थों को बहुत दिनों तक सडाकर मद्य बनायी जाती है, इसके बनने में असंख्य स्थावर जीवों की हिंसा होती है। बने हुए तैयार मद्य में भी प्रतिपल अनेक स्थावर जीव उत्पन्न होते हैं और नष्ट होते रहते हैं। औसे मद्य को पीने से हिंसा और मांस भक्षण का दोष लगेगा। शराबी की बुद्धि भ्रष्ट हो जाती है, उसे हिताहित का कुछ भी विवेक नहीं रहता। अतः वह संसार-परिभ्रमण के कारण अनेक पापकर्मों में संलग्न हो जाता है। मद्य की एक बूँद में भी असंख्य जीव होते हैं, मद्य को छूने वाले से भी हिंसा हो जाती है। अतः जो मद्यपान करते हैं, वे अपने इस लोक तथा परलोक को बिगाड लेते हैं।
यदि आपका विवेक जागृत हो गया है और आपने शाकाहार का नियम ले लिया है तो आपको मद्य का सेवन भूल कर भी नहीं करना चाहिये। मनुस्मृति में कहा भी गया है के जो ब्राह्मण एक बार भी मद्य पी लेता है इसका ब्राह्मणत्व नष्ट हो जाता है और वह शूद्रत्व को प्राप्त हो जाता है।
क्या आप मधुशहद खाते है?
मधुशहद मधुमक्खियों का उगाल होता है, जिसे मधुमक्खियाँ पुष्पों से चूस-चूस कर लाती हैं और फिर इसे वमन कर अपने छो में एकत्र कर लेती है तथा स्वयं भी इसी छो में रहती है, उसमें प्रतिपल सम्मूर्छन जारि के छोटे-छोटे अण्डे उत्पन्न होते रहते हैं। भील आदि क्रूर परिणामी जीव धूँआ करके मधुमक्खियों को उडाकर उनके छो को तोडकर शेष बची हुई मधुमक्खियों को अण्डे सहित दाब निचोड कर मधु निकालते हैं, जिसमें असंख्य मरे हुए जीवों का कलेवर होने से मधु का सेवन करने वाला मांस सेवन के भक्षण के दोष से बच नहीं सकता।
जिस भोजन में मक्खी पडी हुई हो, उस भोजन को भी सज्जन व्यक्ति छोड देते हैं फिर लाखों मक्खियों और अण्डों को निचोडकर निकाले हुए मधु को ना मालूम घृणा के बिना कैसे पीते हैं? मधु की एक बून्द भी मधुमक्खियों कि मारे बिना नहीं बनती। अतः जो मूर्ख मधु का सेवन करता है वह अवश्य हिंसा करता है। क्या आप गाँधी जी के आश्रमके मधु का सेवन करते हैं और अपने को शाकाहारी समझते हैं? नहीं यह आपका भ्रम है। छो में से टपके हुए मधु में भी तदाश्रित जीवों का घात होने से उसको पीने वाला हिंसा और मांसभक्षण के दोष से बच नहीं सकता।
नागपटल में कहा है-सात ग्रामों के जलाने से जितना पाप लगता है, उतना मधु के एक बूँद खाने से लगता है। महाभारत में भी कहा गया है-“जो अज्ञानी व्यक्ति पुण्य कमाने की इच्छा से ब्राह्मणो को मधु देता है, वह खाने वाले के साथ स्वयं भी नरक में जाता है।
मधु में मधु के, शराब के तथा मांस में मांस के ही रंग के सम्मूर्छन जीव उत्पन्न होते रहते हैं, जो दिखाई नहीं देते। अतः यदि आपने शाकाहार का नियम लिया है तो आपको मद्य मांस मधु का सर्वथा त्याग कर देना चाहिये।
क्या आप बड, पीपल आद फलों को खाते हैं?
बड,पीपल, ऊमर, कठूमर तथा पाकर इन पाँचों पलों को उदम्बर फल कहते है, इसमें अनेक स्थूल तथा सूक्ष्म जीव रहते हैं जो दिखाई नहीं देते। अतः आप यदि इन फलों को खाते हैं तो आप शाकाहारी नहीं हैं। अन्य बहुत से फल तो सूख कर प्रासुक हो जाते हैं किंतु उक्त पाँच उदम्बर फल के सूखने पर उनमें अनेक मरे हुए जीवों का माँस रहता ही है। अतः इन फलों को खाने वाले शाकाहारी कैसे हो सकता है?
क्या आप दो मुहूर्त के बाद निकला हुआ मक्खन खाते हैं?
दो मुहूर्त के बाद निकला हुआ मक्खन शाकाहारी व्यक्ति को कभी नहीं खाना चाहिये दो मुहूर्त बाद मक्खन में अनेक सम्मूर्छन जीव उत्पन्न हो जाते हैं, जिनके खाने से मांस भक्षण तथा हिंसा का दोष लगता है।
क्या आप रात में भोजन करते हैं?
रात्रि में अच्छी तरह दिखाई न देने के कारण भोजन में पडे हुए कीडे मकोडे पतंगे आदि भोजन के साथ खाए जाते हैं, जिससे मांस का दोष तो लगता ही है, कभी-कभी भोजन में छिपकली आदि विषैले जीवों के गिर कर मर जाने और दिखाई नहीं देने के कारण रात्री में भोजन करने वालों की मृत्यु तक हो जाते है।
आप कह सकते हैं कि आज के वैज्ञानिक युग में बिजली की रोशनी में सब कुछ दिखाई देता है। किंतु जरा सोंचिये क्या बिजली की रोशनी सूर्य की रोशनी की बराबरी कर सकती है? फिर वर्षा आदि के समय बिजली की रोशनी में अनेक मच्छर, पतंगे आदि हमारे भोजन में गिर जाते हैं। बिजली अचानक चली जाती है, ऐसे में यदि आप रात्रि में भोजन करते हैं तो अनेक जीवों की हिंसा और मांस भक्षण के दोष से कैसे बच सकते हैं?
क्या आप अन्न को भली भांति शोधाकर खाते हैं?
बिना साफ किये अनाज में बहुत सारे जीव रहते हैं। इसके अतिरिक्त यदि अन्न घुना हुआ है तो निश्चित रूप से अनेक जीव रहते हैं। अतः ऐसे अन्न को खाना मांस खाने से समान ही है।
इसके अतिरिक्त यदि चमडे के पात्र में रखा घी, तेल. जल. हींग आदि खाते हैं तो भी आप शाकाहारी नहीं है। स्थूल रूप से शाकाहारी व्यक्तियों के लिये 22 अभक्ष्य बताये गये है जिनका सेवन करने से मांसाहार का दोष लगता है-
अनजान फल, बहुत छोटा फल, जिस फल का स्वाद बदल गया हो, खट्टापन आ जाये, बासी दही, मट्ठा, वर्षा के साथ गिरने वाले ओले, द्विदल आदि शाकाहारी व्यक्ति को नहीं खाना चाहिये, इनके खाने से मांसाहार का दोष तो लगता ही है, उदर में पहुँच कर ये अनेक प्रकार के रोग पैदा कर देते हैं।
वर्क- वर्क लगी मिठाई, फ़ल या पान, सुपारी आदि भी शाकाहारी व्यक्ति को नहीं खाना चाहिये। वर्क बनाने के लिये बैल की मांस की तहों की किताब सी बना कर उसमें चांदी की पतली पतली परत रख कर वर्क बनाया जाता है। बैलों को बूचडखाने में मारने के बाद उसकी आंते निकाल कर वर्क बनाने वालों को बेच दी जाती हैं। वर्क बनाने वाला आंतों से खून साफ कर उसके टुकडे कर डालता है और एक के ऊपर एक टोकरों को रख कर तहों की किताब औजार बना लेता है। इसके प्रत्येक तह में चांदी के टुकडों को रख कर हथौडे से कूटता है, जिससे चाँदी की परत पतली हो कर वर्क का रूप धारण कर देती है। हथौडे मारने से आंतों का कुछ अंश वर्क में मिल जाता है। अतः वर्क अपवित्र और मांसाहार है। धार्मिक क्रियाओं में भी इसका प्रयोग नहीं करना चाहिये। मन्दिरों के शिखरों पर वर्क चढाना भी क्रूरता और हिंसा का परिचायक है।
केक- आजकल बच्चों के जन्मदिन पर केके काटने और खिलाने की प्रथा चल पडी है। क्या आपने कभी विचार किया कि केक प्रायः अण्डों से बनता है बाजार में प्रायः सडे हुए अण्डे का केक बनाकर दिया जाता है। यदि आप शाकाहारी हैं, तो मिल्क केक बनवाकर उसपर पिस्ता, बादाम, किशमिश आदि सजाकर उपयोग कर सकते हैं।
पेस्ट्री- आजकल पेस्ट्री का बहुत फैशन हो गया है किंतु पेस्ट्री अण्डों से तैयार किया जाता है जो स्वास्थ्य के लिये हानिकारक है।
सलाद- फलों के ऊपर पीले व क्रीम की तरह सुन्दर दिखाई देने के लिये एक तह लगाई जाती है, इसमें अण्डों का प्रयोग होता है। आजकल होटलों में दावतों में इसका प्रयोग होने लगा है।
हमें अपने शरीर, धर्म और संस्कृति की रक्षा के लिये ऐसे अभक्ष्य पदार्थों से बचना चाहिये तभी हम शुद्ध शाकाहारी रह सकते हैं।