गिरनार वंदन
- विस्फोट द्वारा गिरनार को नष्ट करना और धार्मिक आतंक द्वारा गिरनार की मूल धार्मिक परंपरा को समाप्त करना एक ही बात है। गिरनार श्रमण संस्कृति का दीप स्तंभ है।
- इसे धार्मिक आतंक का शिकार न बनाइए, आतांक तोड़ता है जोड़ता नहीं। धार्मिक आतंक राष्ट्र व संस्कृति द्रोह के समान है।
- भगवान नेमिनाथ का केवलज्ञान व मोक्षस्थान ‘गिरनार’ धार्मिक आतंक का शिकार हो रहा है।
यह भारत वर्ष का सांस्कृतिक सत्य है
- भारत वर्ष एक ऐसा गुलदस्ता है जिसमें विश्व के सभी धर्मों के पुष्प सजे हुए हैं।
- श्रमण जैन और वैदिक संस्कृति हजारों साल से यहाँ समानांतर रूप से चली आ रही है।
- अनेकांत व स्यादवाद के मार्गदर्शन में जैन परंपराओं ने कभी किसी दूसरी आस्था के स्थानों पर अतिक्रमण नहीं किया, फिर क्यों जैन आस्था के स्थानों का अतिक्रमण किया जा रहा है?
- इतिहास गवाह है जैन परंपराओं ने कई शक्तिशाली राजाओं-महाराजाओं को जन्म दिया, पर उन्होंने भी कभी अपनी आस्थाओं को दूसरे पथ पर थोपने की कोशिश नहीं की। उनके लिए देश सबसे पहले रहा।
- सर्वधर्म समभाव उनकी नीति रही और आत्मसाधना उनका लक्ष्य रहा।
- गिरनार नेमिनाथ कृष्ण के समय से जैन आस्थाओं द्वारा वंदित है जिसके पुरातात्विक, धार्मिक, ऐतिहासिक, पौराणिक तथा परंपरा समर्थिक प्रमाण हैं। आज इस पर जबरन जैनेतर धर्मावलंबियों द्वारा अधिकार किया जा रहा है व जैनों को अपनी परंपरागत आस्था व्यक्त करने से रोका जा रहा है।
- भारत के गणतंत्रीय संविधान में किसी को भी धार्मिक आतंक का अधिकार नहीं दिया गया है।
जैनेतर धर्मावलंबियों द्वारा गिरनार इस प्रकार धार्मिक आतंक का शिकार हो रहा है
चौथी टोंक पर श्री प्रद्युम्न कुमारजी
मुनि के चरण चिह्न |
पाँचवी टोंक पर नेमिनाथजी की उत्कीर्ण मूर्ति |
पाँचवी टोंक पर नेमिनाथजी
के चरण चिह्न |
- चौथी टोंक पर स्थित मुनि प्रद्युम्न कुमारजी के चरणों पर रंग पोत दिया गया है।
- पाँचवी टोंक अवलोकन शिखर पर १०० मीटर क्षेत्र में फेरबदल, छेड़छाड़ करते हुए भगवान नेमिनाथ के प्राचीन चरणों को नई छत्री बनाकर ढँक दिया गया। चरणों के आसपास दीवार बना दी गई। चरणों को फूलों से ढँक दिया जाता है। दत्तात्रय की ढाई फुट ऊँची मूर्ति जुलाई २००४ में जबरन विराजमान कर दी गई।
- जैन यात्रियों को बलपूर्वक चरण व मूर्ति के दर्शन करने, पूजने, जयकारा करने से रोका जाता है। जैन यात्रियों से रुपए लेकर चरण पर से फूल हटाकर दर्शन करने दिया जाता है। मारपीट, अपशब्द आदि से दुर्व्यवहार किया जाता है।
- जैन साधु-संतों तक को पहाड़ पर दर्शन-वंदन करने में अपशब्द, अपमान तथा उपसर्ग सहना पड़ रहा है।
- सन् १९४७ में बने (दि प्लेसेस ऑफ वरशिप) कानून का खुला उल्लंघन किया जा रहा है।
ऊपर गिरनार का इतिहास क्या कहता है?
पाँचवी टोंक का नया निर्माण
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पाँचवी टोंक पर जबरन फूल से ढँके नेमिनाथजी के चरण चिह्न
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भगवान नेमिनाथजी के दीक्षा कल्याणक के चरण चिह्न सेसावन में
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- ‘गिरनार’ भारत के पश्चिम में विकसित एक ऐसे संस्कृति क्षेत्र में स्थित है जहाँ भारत की प्राचीन सिंधु/हड़प्पा संस्कृति (जो अधिकतम भारत की संस्कृति थी) के अवशेष मिले हैं। इन पुरावशेषों से श्रमण संस्कृति के प्राचीनतम काल में भी अस्तित्व का पता लगता है।
- जैन परंपरा में चरण पादुकाएँ स्थापित कर तीर्थंकरों व आदर्श पुरुषों को पूजने की परंपरा है। गिरनार पर नेमिनाथ, प्रद्युम्नकुमार, शंभुकुमार, अनिरूद्धकुमार आदि के चरण चिह्न हैं। चरण चिह्न पूजने की परंपरा अन्य धार्मिक परंपराओं में नहीं है। मूर्तिकाल के विकास के पूर्व चरण चिह्न ही प्रतीक रूप में पूजे जाते थे।
- लिखित शास्त्रों की परंपरा आचार्य धरसेन से प्रारंभ हुई। वे गिरनार की गुफा में रहते थे। वहीं रहते हुए उन्होंने पुष्पदंत और भूतबलि को २००० वर्ष पूर्व षटखंडागम को मूर्तरूप देने के लिए प्रेरित किया। षट्खंडागम आज भी जैन परंपरा में मूल सिद्धांत ग्रंथ के रूप में पूजित है। यहाँ उनके चरण चिह्न हैं।
- सौराष्ट्र में जैन गतिविधियाँ अत्यंत प्राचीनकाल से चली आ रही हैं। चंद्रगुप्त और अशोक के वहाँ की यात्रा के महत्वपूर्ण उल्लेख हैं। चंद्रगुप्त और अशोक जैन परंपरा से थे। १५० ई. के रुद्रदाम के शिलालेख से जानकारी प्राप्त हुई है कि चंद्रगुप्त के साम्राज्य के पश्चिमी प्रांत का नाम आनर्त तथा सुराष्ट्र था, इसकी राजधानी गिरि नगर में थी और इसका शासक वैश्य पुष्य गुप्त था। अशोक के शिलालेख तो गिरनार पर्वत पर मिले ही हैं।
- काठियावाड़ से प्राप्त एक प्राचीन ताम्रपत्र के अनुसार नेवुचुड नज्जर (११४० ई.पू.) भारत आया था। उसने यदुराज के नगर (द्वारका) में आकर गिरनार के स्वामी नेमिनाथ की भक्ति की तथा दान दिया था। पाँचवें टोंक अवलोकन शिखर पर छत्री के नीचे पाषाण पर नेमिनाथ के चरण निर्मित हैं। चरण के पीछे नेमिनाथ की शंख चिह्नित मूर्ति विराजमान है। ये दोनों ही प्राचीन अवशेष हैं और अब इनके साथ छेड़छाड़ की गई है।
- गिरनार पर राजुल गुफा, राजुल के पिता के दुर्ग के जूनागढ़ में अवशेष आदि जैन परंपरा में वर्णित भगवान नेमिनाथ के गिरनार में तपस्वी हो जाने के प्रमाण हैं।
- गिरनार पर राजुल गुफा, राजुल के पिता के दुर्ग के जूनागढ़ में अवशेष आदि जैन परंपरा में वर्णित भगवान नेमिनाथ के गिरनार में तपस्वी हो जाने के प्रमाण हैं।
सन् १९०२ और १९१४ में तत्कालीन जूनागढ़ नवाब ने बिजली गिरने से टूटी पाँचवीं टोंक की छत्री के पुनः निर्माण की स्वीकृति श्री बंडीलाल दिगंबर जैन कारखाना को दी थी, इसके प्रमाण उपलब्ध हैं। यह प्राचीन परंपरा से चली आ रही जैन आस्था का साक्ष्य है।
- जैन आस्था के स्थानों पर बाहुबल से अधिकार जताने का प्रयास धार्मिक आतंक नहीं है तो क्या है?
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bahut achcha lekh hai .
hum is lekh ko digamber jain path patrika mai publish kar rahe hai .
asha karta hu is karya ke liye aapki anumati hogi .
chif editor
amit kumar jain
digamber jain path bhopal