भगवान महावीर के नाम पर प्रायः दो नारे लगाए जाते हैं-
जियो और जीने दो तथा अहिंसा परमो धर्मः की जय।
विश्वास कीजिए अहिंसा परमो धर्मः का सर्वप्रथम उल्लेख जैन धर्म के शास्त्रों में नहीं अपितु महाभारत के अनुशासन पर्व की गाथा ११५-२३ में मिलता है। जी हाँ, सत्य यही है-
अहिंसा परमो धर्मः, अहिंसा परमो तपः।
अहिंसा परमो सत्यं यतो धर्मः प्रवर्तते।
अहिंसा परमो धर्मः, अहिंसा परमो दमः
अहिंसा परम दानं, अहिंसा परम तपः
अहिंसा परम यज्ञः अहिंसा परमो फलम्।
अहिंसा परमं मित्रः अहिंसा परमं सुखम्॥
महाभारत/अनुशासन पर्व (११५-२३/११६-२८-२९)
अहिंसा परम धर्म है। अहिंसा ही परम तप है। अहिंसा ही परम सत्य है और अहिंसा ही धर्म का प्रवर्तन करने वाली है। यही संयम है, यही दान है, परम ज्ञान है और यही दान का फल है। जीवन के लिए अहिंसा से बढ़कर हितकारी, मित्र और सुख देने वाला दूसरा कोई नहीं है।