आचार्यश्री समयसागर जी महाराज इस समय डोंगरगढ़ में हैंयोगसागर जी महाराज इस समय चंद्रगिरि तीर्थक्षेत्र डोंगरगढ़ में हैं Youtube - आचार्यश्री विद्यासागरजी के प्रवचन देखिए Youtube पर आचार्यश्री के वॉलपेपर Android पर आर्यिका पूर्णमति माताजी डूंगरपुर  में हैं।दिगंबर जैन टेम्पल/धर्मशाला Android पर Apple Store - शाकाहारी रेस्टोरेंट आईफोन/आईपैड पर Apple Store - जैन टेम्पल आईफोन/आईपैड पर Apple Store - आचार्यश्री विद्यासागरजी के वॉलपेपर फ्री डाउनलोड करें देश और विदेश के शाकाहारी जैन रेस्तराँ एवं होटल की जानकारी के लिए www.bevegetarian.in विजिट करें

आचार्य श्री प्रवचन [24-12-2012 – 17-3-2013]

शब्दों को नहीं भावों को पकडो – आचार्य श्री विद्यासागर महाराज जी (दिनांक – 17-3-2013)

सुप्रसिद्ध सन्त षिरोमणि दिगम्बर जैनाचार्य श्री विद्यासागर जी ने मैकल शैल षिखर पर उपस्थित समुदाय को सम्बोधित करते हुए कहा कि सजग श्रोता वक्ता की कठिनाई पकड़ लेता है, शब्दों की यात्रा कान तक तथा भाव की मन तक होती है। भावों का महत्व बताते हुए समझाया कि भावाभिव्यक्ति के लिए शब्दों की अनिवार्यता नहीं है, मौन और संकेत से भी भाव व्यक्त हो जाते हैं।
आचार्य श्री विद्यासागर जी ने कहा कि शब्द के अभाव में संकेत अच्छी तरह काम कर देता है। शीतल हवाओं के प्रभाव से शारीरिक क्षमता प्रभावित हो जाती है। अधिक ठण्ड होने पर अग्नि की ऊष्मा जीवन को बचाती है। शीतकाल में अग्नि को अमृत कहा जाता है जबकि अग्नि मारक तत्व है। मरणासन्न अमृत चख लेता है तो मरण का विघ्न टल जाता है । ठण्ड में अग्नि सहारा देती है। हाँथ पैर ठण्डे होने पर कहते हैं कि शीघ््राता से गरम करने का उपाय करो नहीं तो हाँथ धो बैठोगे। यहाँ हाँथ धोने का शाब्दिक अर्थ से प्रयोजन नहीं है भावार्थ समझा जाता है कि समय पर उपाय नहीं हुआ तो फिर राम नाम सत्य है। राम नाम सत्य है का भाव समझा जाता है। उपयुक्त अर्थ प्रकट करने के लिये शब्दों का प्रयोग नाप तौल कर किया जाता अन्यथा अर्थ का अनर्थ हो जाता है। यह समझाते हुये आचार्य श्री ने श्रोताओं से कहा कि भाव को तौलने की कौन सी तुला है ? शब्द की अपेक्षा संकेत अधिक तलस्पर्षी मर्मस्पर्षी होते हैं मन के भीतर पहुँच जाते हैं। आचार्य श्री ने कहा कि निषंक होना ही सम्यकदर्षन है। शंकाएँ विचलित कर रही है प्रभु की सभा (समवषरण) में उपस्थित प्राणी निषंक हो जाते हैं । प्रभु की वाणी किस भाषा में है इससे प्रयोजन नही, संकेत क्या है भाव समझ में आ जाता है। हंसने, रोने, बोलने, देखने, पंूछने का कोई प्रष्न ही नहीं। समवषरण में प्रष्न नहीं निषंक है। शंका समाप्त होते ही शांति व्याप्त हो जाती है जहाँ शंका वहाँ शांति नहीं । आचार्य श्री ने समझाया कि शब्दों में मत उलझो भावों को पकडो। । मन वचन तन से शांत होने का प्रयास करो। शरीर में गांठ हो तो उपचार कराते हैं, औषधि देकर गांठ घोलने का प्रयत्न करते हैं गांठ समाप्त होते ही शरीर स्वस्थ्य हो जाता है ऐसे ही मन की गांठें समाप्त होते ही मन स्वस्थ्य और जीवन श्रेष्ठ हो जाता है। आचार्य श्री ने समझाया कि जिन बिम्ब के दर्षन से शंका समाप्त हो जाती है। आचार्य श्री विद्यासागर जी ने हास बिखेरते हुए कहा उपस्थित जन समुदाय ग्रीष्म कालीन वाचना की याचना कर रहा है किन्तु अमरकंटक में तो शीतलता व्याप्त है।
आचार्य श्री विद्यासागर महाराज जी के प्रवचन उपरान्त ब्रह्मचारी दीपक भैय्या ने बताया कि दिल्ली में आचार्य श्री सन्मति सागर महाराज का समाधि मरण हो गया है। उपस्थित समुदाय ने दो मिनट का मौन रखकर भावांजलि व्यक्त की।
संत षिरोमणि आचार्य श्री विद्यासागर महा मुनिराज जी के आषीष से छŸाीसगढ़ की प्रथम  ‘‘प्रतिभास्थली’’ बालिकाओं के लिए सी.बी.एस.ई. पाठ्यक्रम पर मातृभाषा हिन्दी माध्यम में आज्ञानुवर्ती षिष्या आर्यिका श्री 105 आदर्षमति माता जी के पावन सानिध्य में नव षिक्षण संस्था का शुभारंभ समारोह शनिवार, 23 मार्च 2013 दोपहर 02ः00 से 04ः00 बजे रखा गया है जिसमें आप सभी सादर आमंत्रित है।


प्रतिभास्थली


पंच दिवसीय गोलाकोट महोत्सव



हाथ न मलो, हाथ न दिखाओ, हाथ मिला लो: आचार्य विद्यासागर महाराज (दिनांक – 24-2-2013)

अकलतरा: उक्त बातें जैन समाज के संत षिरोमणि आचार्य श्री 108 विद्यासागर महाराज ने धर्मसभा को संबोधित करते हुए बालक प्राथमिक शाला में कही। उन्होंने कहा कि दूसरों का वैभव देखकर हम अपना हाथ मलते हैं तथा ईष्या करते हैं। हम पुरुषार्थ के द्वारा जीवन में तरक्की एवं आगे बढ़ सकते हैं। इससे हमें अपना हाथ नहीं मलना पड़ेगा। हम भाग्य भरोसे रहकर पुरुषार्थ पर विष्वास नहीं करते एवं दूसरों को अपनी हाथ की रेखा दिखाने का कार्य करते हैं एवं दूसरे व्यक्ति पर बातचीत से हल नहीं निकलने पर अपना हाथ उसपर छोड़ देते हैं, जो कि गलत है। मानव जीवन में मानव को दूसरों का हमेषा हाथ मिलाकर चलना चाहिए। हाथ मिलाकर चलने में ही मानव जीवन सफल है एवं मानव प्रगति कर सकता है। हाथ न मलो, हाथ न दिखाओ, हाथ मिला लो – ये तीन बातें मानव को हमेषा अपने जीवन में याद रखनी चाहिए। आचार्य विद्यासागर महाराज ने कहा कि डोंगरगढ़ से बस्तर, धमतरी, राजिम, रायपुर, भाठापारा, बलौदाबाजार, पामगढ़ होते हुए अकलतरा नगर तक लगभग 800 कि.मी. की पैदल यात्रा की। सड़क के दोनों ओर हरे भरे खेत दिखाई दिये। उन्होंने छत्तीसगढ़ को तरा, तर, तरी के रुप में संज्ञा देते हुए कहा कि यहां की खेत हमेषा पानी से भरे रहते हैं एवं हरियाली छायी रहती है। राज्य में धान का पैदावार अधिक होने के बाद भी धान की रक्षा न करना चिन्तनीय विषय है। विनिमय सिद्धांत के आधार पर छत्तीसगढ़ से अन्य राज्यों को धान भेजकर वहां से गेहूं एवं अन्य चीजों का आयात करना चाहिए। उन्होंने कहा कि शांति एवं लक्ष्मी एक दूसरे के शत्रु हैं। लक्ष्मी आने पर मानव के जीवन पर शांति समाप्त हो जाती है। सारा दिन उसका ध्यान तिजौरी पर रखे हुए पैसे पर रहता है तथा उसी के बारे में सोचने लगता है। लक्ष्मी कम होने से जीवन में शांति रहती है तथा मानव तनाव रहित जीवन जीता है। मानव जीवन में संतुष्ट नहीं होता। मानव की आवष्यकता दिन प्रतिदिन बढ़ती जाती है। हमें ऋण लेते समय बहुत आनन्द मिलता है, लेकिन उसे चुकाते समय पसीना आ जाता है। वर्तमान में दूध का स्वरुप ही खत्म हो गया है। पैसे में भी सही दूध नहीं मिलता। वहीं किसी जमाने में बिना पैसे का मिलने वाला पानी आज बोतल में पैसों में बिक रहा है। दूध और पानी का महत्व ही खत्म हो गया है। कार्यक्रम में मंगलाचरण श्रीमती सारिका जैन एवं श्रीमती रीत जैन द्वारा प्रस्तुत किया गया। कार्यक्रम में भगवान मुनी सुव्रत नाथ की प्रतिमा का अनावरण का सौभाग्य रज्जुलाल बालचंद जैन परिवार, आचार्य ज्ञानसागर महाराज की प्रतिमा का अनावरण का सौभाग्य, कस्तुरचंद विमल कुमार जैन परिवार, दीप प्रज्ज्वलन का सौभाग्य जैन समाज कोरबा एवं आचार्य श्री की मंगल आरती का सौभाग्य बसोरे लाल पन्नालाल जैन परिवार को प्राप्त हुआ।


जन्म मरण के चक्र को तोडे़ं आचार्य विद्यासागर (दिनांक – 29-1-2013)

रायपुर राजधानी के टैगोर नगर में इन दिनों धर्म की अमृतधारा बह रही है। यहां संत शिरोमणी आचार्य गुरूवर 108 विद्यासागर जी महाराज ससंघ विराजमान है। आचार्य श्री विनय अपने मंगल प्रवचन में एक दृष्टांत सुनाते हुए कहा कि फल फुल से आता है, और फुल वृक्ष में उत्पन्न होता है। और वृक्ष की उत्पत्ति बीज से होती है, बीज फल से प्राप्त होता है। इस तरह यह चक्र चलता रहता है, बीज से वृक्ष, वृक्ष से फूल, फूल से फल और फल से पुनः बीज प्राप्त होता है। उन्होने श्रावको से सवाल किया इस चक्र को कोई तोड़ सकता है क्या तो सभी ने सिर हिलाकर ना में जवाब दिया फिर आचार्य श्री ने कहा इसे तोड़ा भी जा सकता है उस बीज को आग में जलाकर या उपर का छिलका निकालकर इस जनम मरण के चक्र को तोड़ा जा सकता है। उन्होने कहा कि छत्तीसगढ़ को धान का कटोरा कहते है, धान पैदा होती है। यदि उस धान के उपरी छिलके को निकाल दिया जाये तो चावल निकलता है। चावल कभी पैदा नही होता धान को आग में सेंककर उसका मुर्रा भी बनाया जा सकता है। जैन आचार्य विद्यासागर जी ने इस दृष्टांत के माध्यम से बताया कि जनम मरण के बंधन से मुक्ति पाने हमें धान के छिलके को हटाने या उसे आग मे जलाकर मुर्रा बनाने की तरह तपस्या करनी होगी ।

आचार्य विद्यासागर सहित 22 मुनीराज का संघ

​आचार्य विद्यासागर जी के साथ कुल 22 दिगम्बर जैन मुनियों का संघ राजधानी रायपुर में विराजमान है, आचार्य विद्यासागर के संघ में मुनि श्री 108 समयसागर जी महाराज, मुनि श्री 108 योगसागर जी महाराज, मुनि श्री 108 निर्णयसागर जी महाराज, मुनि श्री 108 प्रसादसागर जी महाराज, मुनि श्री 108 प्रशस्तसागर जी महाराज, मुनि श्री 108 प्रबोधसागर जी महाराज, मुनि श्री 108 संभवसागर जी महाराज, मुनि श्री 108 अभिनंदनसागर जी महाराज, मुनि श्री 108 धर्मसागर जी महाराज, मुनि श्री 108 शांतिसागर जी महाराज, मुनि श्री 108 मल्लिसागर जी महाराज, मुनि श्री 108 वीरसागर जी महाराज, मुनि श्री 108 धीरसागर जी महाराज, मुनि श्री 108 विशालसागर जी महाराज, मुनि श्री 108 शैलसागर जी महाराज, मुनि श्री 108 धवलसागर जी महाराज, मुनि श्री 108 सौम्यसागर जी महाराज, मुनि श्री 108 दुर्लभसागर जी महाराज, मुनि श्री 108 विनम्रसागर जी महाराज, मुनि श्री 108 भावसागर जी महाराज, मुनि श्री 108 आनंदसागर जी महाराज, विराजमान है।

बुधवार को मालवीय रोड पहुंचेगा आचार्य संत
टैगोर नगर में विराजमान आचार्य विद्यासागर जी बुधवार को ससंघ मालवीय रोड दिगम्बर जैन मंदिर पहुंचेंगे मालवीय रोड में आचार्य श्री की आहार चर्या होगी।

सिध्दचक्र महामंडल विधान 31 जनवरी से
आचार्य गुरूवर 108 विद्यासागर जी के ससंघ सानिध्य में 31 जनवरी से रायपुर के शंकरनगर में श्री सिध्दच्रक महामंडल विधान का विशाल धार्मिक आयोजन शुरू होगा जो 7 फरवरी तक चलेगा। सकल दिगम्बर जैन समाज रायपुर ने इस विशाल धार्मिक आयोजन के लिए आचार्य श्री से आशीर्वाद प्राप्त किया है। 31 जनवरी को घ्वाजारोहन के साथ शंकरनगर में यह आयोजन शुरू होगा।
​सांकरा निको दिगम्बर जैन समाज की कमेटी घोषित
हाल ही में रायपुर से लगे सांकरा निको श्री शांतिनाथ दिगम्बर जैन मंदिर में आचार्य गुरूवर 108 विद्यासागर जी के मंगल आशीर्वाद से ब्रम्हचारी अरूण भैया एव संजीव भैया के सानिध्य में राजधानी रायपुर की जैन समाज के विशेष सहयोग से बेदी प्रतिष्ठा समारोह सानंद सम्पन्न हुआ कार्यक्रम के दौरान सकल दिगम्बर जैन समाज की उपस्थिति में ब्रम्हचारी अरूण भैया ने सभी की सहमति से सकल दिगम्बर जैन समाज की कमेटी की घोषणा की जिसमें अध्यक्ष किराना व्यवसायी सुरेन्द्र जैन बेगमगंजबालो को घोषित किया गया महामंत्री पत्रकार सुरेन्द्र जैन बाड़ीवालों को घोषित किया कोषाध्यक्ष गीदमबाले गुलाब चंद जैन को बनाया गया। प्रचार मंत्री अनुभव जैन को बनाया गया साथ ही उपाध्यक्ष, उपमंत्री 5 सदस्य घोषित किये गये।

प्रेषक सुरेन्द्र जैन पत्रकार
महामंत्री सकल दिगम्बर सांकरा निको रायपुर छ.ग. 9981210702 एवं 8871061221


आत्मा का वैभव न्यारा है और वर्णनातीत है – आचार्य श्री विद्यासागर महाराज जी (दिनांक – 7-1-2013)

आज को नहीं देखा तो आज और कल दोनों हाथ से निकल जाएंगे

जगदलपुर, 07 जनवरी। राष्ट्र संत शिरोमणी आचार्य विद्यासागरजी ने कहा कि जिस तरह स्टेशन में ट्रेन आ रही हो और हल्लागुल्ला हो रहा हो रहा है और रेडियो, टीवी भी चल रहा हो उसी समय किसी का मोबाईल आ जाये तो केवल उससे ही संपर्क होता है उसी तरह संत मुनि, श्रुति व ग्रंथों के माध्यम से पूर्व में घटी घटनाओं और विषयों को जान लेते हैं और उसका आनंद लेते हैं। दुकान पर हम आज नगद कल उधार लिखते हैं, लेकिन ग्राहक से ऐसा नहीं कह सकते। कल का कोई स्वरूप तो हमने देखा ही नहीं यदि आज को नहीं देखा तो आज और कल दोनों हाथ से निकल जायेंगे।

घोर उत्सर्ग होने के बाद भी शरीर छिन्न-भिन्न हो जाता है। संतव्यक्ति भी उसी तरह शरीर को पड़ोसी समझते हैं, जिस तरह मोबाईल में बहुत सारे नंबर भरे हों तो जब हम उसे लगायेेंगे तभी बातचीत हो सकती है और उधर से नबंर आये और हम उठाये तभी बातचीत संभव है, जिस व्यक्ति से हम बातचीत नहीं करना चाहते उस समय उसका रिंग आने पर भी म्यिूट दबा देते हैं, क्योंकि उस समय हम ईश्वर से कनेक्शन जोड़े हुए होते हैं और हम अपना ध्यान नहीं बंटाना चाहते, अतरू ध्यान में ध्यान लगाने की आदत अच्छी है। मुनि महाराजों की कथा में सार भरा रहता है तथा कथा में उनके गुणों का वर्णन रहता है, मूल गुण 28 हैं। मुनि लक्ष्य से नहीं भटकते और न ही चमत्कार की ओर उनकी दृष्टि जाती है। अतिशय आत्मा का वैभव है उसमें दृष्टि रखनी चाहिए उपसर्ग को जीत कर सर्व सिद्धि के विमानों तक पहुंच जाती है। 24 भगवान के तीर्थ काल में दस काल होते हैं। उनका वर्णन सुनने पर शरीर के रोंगटे खड़े हो जाते हैं। शरीर के ऊपर उपसर्ग होता है शरीर बिखर जाता है तब केवल ज्ञान प्राप्त होता है और हम मुक्त हो जाते हैं। शरीर छिन्नभिन्न होने के बाद जुड़ नहीं सकता विभिन्न परीक्षाओं में निष्णात होकर हम मुक्त हो जाते हैं।

हम दिगंबर तो हुए नहीं और चाहते हैं कि राजा भरत जैसी कृपा बरस जाये, यदि शर्तें रखते हैं तो दीक्षा नहीं होगी। सम्यक ज्ञान की अवधारणा से कुशलता प्राप्त हो जाती है और कष्ट अनुभूत नहीं होते। कथाओं को पढ़ कर चिंतन का विषय बनाना चाहिए कथा आंसू बहने के लिए नहीं होते हम अपने दुखों पर आंसू नहीं बहाते बल्कि अपने किये हुए अनर्थों पर आंसू आ जाते हैं अज्ञानता से कितने ही अनर्थ हम से हुए हैं।

आदर्श पुरूषों व महापुरूषों को हमें याद करना चाहिए और उनकी वेदना का ध्यान करना चाहिए, जिन तिथियों में हमने धार्मिक अनुष्ठान किये हैं उन्हें ध्यान करें तो हम दुष्कर्म से बच जायेंगे। अपनी दीक्षा की तिथि को याद करना चाहिए। तीर्थकरों की दीक्षा तिथि को या आचार्य की दीक्षा तिथि को नहीं बल्कि अपनी दीक्षा तिथि को याद रखना चाहिए और यदि तिथि को भी भुला दिया और कर्म पर ही पूरा ध्यान लगा दिया तो वहीं संत है, क्योंकि कल कभी नहीं आता कल किसी ने नहीं देखा है।  दूर पेड़ पर जो दिख रहा है वह हाथ नहीं आता फल तो सारे ऊपर लगे हैं नीचे के सारे फल लोगों ने तोड़ लिये हैं। ऊपर जो लगा है वह समय बीतने पर पककर नीचे गिरेगा, किंतु वह फल किसका होगा नहीं कह सकते भीतर यदि आस्था हो तभी इसका रहस्य समझ में आाता है। तीर्थकरों को देखना केंद्र है। तीर्थकर के अलावा कुछ भी दिखता नहीं।

आत्मा का वैभव तो आत्मा का वैभव है और वह संसार से न्यारा है। उसे छोड़कर संसारिक व्यक्ति नीरस पदार्थों की ओर आकर्षित होता है, किंतु आंख बंद होते ही दृश्य आ जायेगा और ज्ञान की परिणती होने लगेगी तथा ज्ञान का वैभव आप लूट सकते हैं। भावनाएं बारबार आने पर ही उसका मूल्य समझ में आता है। सत्संग सात्विक भूख है। इससे शारीरिक यात्रा समाप्त होगी और अलौकिक आनंद प्राप्त होगा।


दर्पण हमें अपनी कमियां दिखलाता है आचार्य श्री विद्यासागर महाराज जी (दिनांक – 6-1-2013)

जगदलपुर, 06 जनवरी। राष्ट्र संत जैनाचार्य विद्यासागरजी ने कहा कि वीतराग प्रभु को देखकर हमारे भाव शुद्ध होते हैं। मुनिराज भी पूज्य होते हैं, इनकी उपासना के महात्मय को चक्रवर्ती भरत और बाहुबली की कथा सुनाते हुए कहा कि अपनी शक्ति का प्रदर्शन करने के लिए दोनों बाहुबल से लड़ रहे थे, किंतु सब कुछ जीतने बाद भी बाहुबली ने अपना सर्वस्व त्याग कर बैराग्य धारण कर लिया। उन्होंने कहा कि दर्पण हमें हमारी कमियां दिखाता है। हम अपनी कमियों को दूर कर भगवान की भक्ति पूजन करें, यही संदेश हमें प्रभु से मिलता है।

आकांक्षा लॉन में दोपहर की प्रवचन माला में आचार्यश्री ने कहा कि तीर्थंकर अर्हन्त भगवान के उपदेश देने की सभा को समवशरण कहते हैं, वहां मुनष्य, देव, तीर्यंच आकर उपदेश सुनते हैं। यहां सुख, शांति, समता, अहिंसा, वात्सल्य की प्राप्ति होती है। यहां भगवान की दिव्य ध्वनि खिरती है। वर्तमान में प्रतिबिम्ब के रूप में भगवान विराजमान रहते हैं। एक बड़ा समवशरण है बाकी 24 छोटे समवशरण हैं जिनमें प्रतिमाएं विराजमान हैं। उन्होंने कहा कि समूचे छत्तीसगढ़ के मंदिरों के प्रतिबिम्ब इस समवशरण में विराजमान हैं। इन्हीं प्रतिमाओं के आगे सभी भक्ति पूजन करते हैं यह विधान दमोह, जबलपुर के बाद छत्तीसगढ़ में पहली बार हुआ है।


शिक्षा का स्वरूप बिगड़ गया है – आचार्यश्री (दिनांक – 4-1-2013)
जगदलपुर, 04 जनवरी। आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज ने कहा कि आज विवाह का उद्देश्य बदल गया है। प्राण ग्रंथों में कथायें आती हैं पहले ब्रम्हचर्य व्रत का पालन करते थे, गुरूकुल पद्धति से शिक्षा होती थी संस्कार दिये जाते थे, आज शिक्षा का स्तर बिगड़ गया है।
समवशरण विधान के छटवें दिन राष्ट्रीय संत छत्तीसगढ़ के राजकीय अतिथि आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज ने एक कथा सुनाते हुए उन्होंने कहा कि एक लड़का शुक्ल पक्ष और लड़की कृष्ण पक्ष ब्रम्हचर्य व्रत ले लेते हैं और आजीवन निभाते हैं। आचार्य श्री ने दिल्ली के कलाकारों द्वारा प्रस्तुत नाटिका कुल भूषण देष भूषण का उदाहरण दिया, जिसमें कहा गया कि किसी भी लड़की की ओर ऑंख उठाकर नहीं देखना, सभी को मॉं, बहन, बेटी की तरह देखना है। ज्ञात हो कि आज मोबाईल, टीवी, कम्प्यूटर, इंटरनेट, फेस बुक, पत्रिकाएँ आदि पर बुरी चीजों के संस्कार के कारण बच्चे आदि बिगड़ रहे हैं, उनके लिए ब्रम्हचर्य व्रत पॉजीटिव एनर्जी है। इस बारे में बच्चों को बताना चाहिए क्योंकि ब्रम्हचर्य व्रत से हमारी रक्षा हो सकती है।


मन और इंदियों पर विजय पाना ही जैन धर्म का सार है – श्री विद्यासागरजी जगदलपुर, (दिनांक – 3-1-2013)
राष्ट्र संत आचार्य विद्यासागरजी महाराज ने कहा कि जैन धर्म भावों पर आधारित है। भावों से ही व्यक्ति का उत्थान और पतन होता है। जैन धर्म की परिभाषा बताते हुए उन्होंने कहा कि जैन वह होता है जो मन और इंद्रियों पर विजय पाता है। इंद्रियों को जीतना ही संयम है और संयम व्यक्ति के सच्चे सुख के लिए आधार प्रदान करता है। स्थानीय होटल आकांक्षा के लान में दिगम्बर जैन समाज द्वारा आचार्य विद्यासागर के सानिध्य में चल रहे समवशरण चैबीसी विधान में राष्ट्रीय संत के रूप में एवं गणधर परमेष्ठि के पद पर आसीन गुरूवर ने अपने प्रवचन में धर्म सभा को संबोधित करते हुए कहा कि दमोह जिले के कुंडलपुर तीर्थ क्षेत्र में जब वे प्रवास पर थे तब वे पहाड़ी पर स्थित बड़े बाबा के दर्शन के लिए जा रहे थे तब उन्होंने एक आश्चर्यजनक घटना देखी कि पहाड़ों से थोड़ी देर पहले हुयी वर्षा का जल बड़ी वेग से नीचे आ रहा है और उस वेग में भी विपरीत दिशा में एक मछली तेजी से ऊपर की ओर चली जा रही थी। तथा वह उस पहाड़ की चोटी पर पहुंच ही गयी। उन्होंने इस संबंध में चिंतन किया तो पाया कि बिना हाथ पैर के भी वह मछली केवल अपने आचरण तथा आत्मशक्ति से वहां तक पहुंचने में सफल हुयी। ठीक इसी प्रकार से मानव भी अपने आचरण में सुधार करते हुए स्वयं को आत्मसात कर भगवान बन सकता है। जिस प्रकार लोग अपने धन की रक्षा के लिए तिजोरी में ताला लगाकर चाबी अपने पास जेब में रखते हैं और उसका पूरा ख्याल रखते हैं उसी प्रकार इस मनुष्य के पास रत्नात्रय रूपी अर्थात तप-त्याग एवं संयम का रास्ता है, जिसकी रक्षा उसे अनेकों विरोधों के बावजूद समता एवं क्षमारूपी चाबी से करना चाहिए। वर्तमान में महाराजजी के प्रवचनों में तथा विधान में संभाग व प्रदेश के दिगर जिलों से सैकड़ों लोग यहां पहुंच रहे हैं और धर्म साधना कर रहे हैं।


अहिंसक जैन मुनि पर हिंसक हमला (दिनांक 2 जनवरी 2013)



आग और धन पर सफलता के लिए बहुत जरुरी है नियंत्रण – आचार्य श्री विद्यासागर महाराज जी (दिनांक – 28-12-2012)

जगदलपुर, 28 दिसम्बर। प्रातरूकाल उठते ही सबसे पहली जरुरत आदमी को अग्नि की होती है। चाहे वह पानी गरम करने के लिए हो अथवा भोजन बनाने के लिए या फिर प्रकाश करने के लिए, हर कार्य के लिए अग्नि की जरुरत होती है। उसी प्रकार से धन पर भी नियंत्रण रखना अतिआवश्यक होता है। यदि धन आने के बाद उस पर नियंत्रण नहीं किया गया तो वह भी विनाश का कारण बनता है। यहां प्रवास कर रहे आचार्य श्री  विद्यासागर महाराज ने एक जनसभा को स्थानीय जैन दिगम्बर मंदिर में प्रवचन करते हुए उक्त बातें कहीं।

उन्होंने आगे कहा कि यदि सीमा से अधिक अग्रि का विस्तार हो जाता है तो वह विनाश का ही कारण बनती है। उसकी सीमा में आने वाले सभी को वह स्वाह कर जाती है और बाद में कुछ नहीं बचता। इसी लिए अग्नि का उपयोग करते समय बड़ी सावधानी से कार्य करना पड़ता है और उस अग्नि को सीमा से बाहर न जाये युक्तिपूर्वक कार्य करना पड़ता है। इसी प्रकार यदि व्यक्ति के पास आवश्यकता से अधिक धन का संग्रह हो जाये और उसका विवेक पूर्वक उपयोग नहीं किया जाये तो वह धन मानव के लिए अग्नि का कार्य करता है। नीति एवं विवेक के अनुसार धन का उपयोग करने से वह न केवल व्यक्ति के लिए वरन् उसके परिवार, समाज, प्रदेश सहित समूचे देश के लिए उपयोगी होता है। उसके ठीक विपरीत यदि धन पर नियंत्रण नहीं रखा गया और उसे युक्तिपूर्वक खर्च नहीं किया गया तो वहीं धन घमंड, नशा सहित कई विकृतियां लाकर उस व्यक्ति, परिवार तथा समाज के लिए विनाश का कारण बनता है। इसीलिए धन और अग्नि को हमेशा भुक्ति सहित युक्ति से उपयोग करते हुए मुक्ति का मार्ग पर चलने का हर व्यक्ति को प्रयास करना चाहिए। सीमा से बाहर जाने पर यदि धन संग्रह हो गया है तो वह विनाश का कारण बनता है। इसीलिए जितना धन आता है उसका संग्रह करने के बजाये अतिरिक्त धन को धर्म, आध्यात्म तथा जनोपयोगी कार्यों में खर्च करना चाहिए। यदि व्यक्ति समझदार है तो वह स्वयं तो उस धन का उपयोग भंली भांति करेगा किन्तु उसने आवश्यकता से अधिक संग्रह कर लिया तो वह अतिरिक्त धन उस परिवार के आने वालों के लिए तथा उसकी संतान के लिए विकृति का कारण बनता है। इसीलिए समय रहते धन का अग्नि के समान युक्तियुक्त उपयोग करना आवश्यक होता है। इस अवसर पर प्रवचन के दौरान लोगों ने भाव विभोर होकर इसे अपने जीवन में उतारने का संकल्प लिया तथा आचार्य श्री के प्रति छोटी सी बात से इतना बड़ा जीवन जीने का सिद्धांत देने के लिए आभार मना।


भगवान की भक्ति से होता है कल्याण – आचार्य श्री विद्यासागर महाराज जी (दिनांक – 27-12-2012)

जगदलपुर, 27 दिसम्बर। भगवान की भक्ति से भक्त अपने आप को स्वयं भगवान बना सकता है। इसी उद्देश्य को लेकर आगामी तीस दिसंबर से आठ जनवरी तक छत्तीसगढ़ के बस्तर अंचल के मुख्यालय जगदलपुर में चैबीसी समवशरण विधान का आयोजन हो रहा है।

आचार्य श्री विद्यासागर महाराज ने नगर में होने वाले इस विश्व शांति महायज्ञ और चैबीसों जैन तीर्थंकरों की पूजा का महत्व प्रतिपादित करते हुए कहा कि यह पुण्य अवसर है कि समूचे भारत वर्ष में तीसरे स्थान पर यह विशेष अनुष्ठान का आयोजन हो रहा है। इसके लिए सीमित समय में बस्तर के दिगंबर जैन समाज ने जो तैयारियां की हैं वह प्रशंसनीय है। यह उल्लेखनीय है कि संभगीय मुख्यालय में आगामी 30 दिसंबर से यह विशेष अनुष्ठान आरंभ होकर 8 जनवरी तक संचालित होगा। इसके लिए रात दिन एक कर स्थानीय जैन समाज ने समूची तैयारियां प्रारंभ कर दी हैं। और निश्चित समय पर यह अनुष्ठान प्रांरभ हो जाएगा। इसके लिए पात्रों का चयन एवं अन्य व्यवस्थाओं का सिलसिला जारी है। महायज्ञ का निर्देशन ब्रम्हचारी विनय भैया बंडा वाले के द्वारा संपन्न होगा। इस अनुष्ठान से न केवल स्थानीय जैन समाज में अपूर्व उत्साह है वरन छत्तीसगढ़ सहित देश के कोने कोने से श्रद्धालु आकर इसमें भाग लेने की सहमति जता चुके हैं।

अपनी बात को स्पष्ट करते हुए आचार्य श्री ने कहा कि व्यक्ति राग द्वेष और विभिन्न बुराईयों से घिरा हुआ रहता है। जीवन में उसे शांति नहंीं मिल पाती। जीवन में यदि शांति पाना है तो अध्यात्म और धर्म का पथ अपनाना ही होगा। प्रस्तुत विधान एवं पूजा अर्चना में हम अपने घर परिवार और अन्य चिंताओं को छोड़कर केवल प्रभु की भक्ति और आराधना करेंगे। इस आराधना एवं भक्ति से हम राग द्वेष और क्रोध मान को छोड़कर सभी बुराईयों से मुक्त होकर भक्त से भगवना बनने की प्रक्रिया में संलग्र रहेंगेे। स्मरण रहे कि हम जब तक संसार के वैभव को नहीं छोड़ेंगे, उसका त्याग नहीं करेंगे तब तक वीतरागता प्राप्त नहीं होगी। इस आयोजन से न केवल मानव अपने आप को भगवान बनने की दिशा में वीतरागता पाने के लिए प्रस्तुत होगा वरन त्याग, संयम व तप के माध्यम से स्वयं को सर्वश्रेष्ठ बनाने के लिए सार्थक प्रयास करेगा। इस अनुष्ठान में संपूर्ण विश्व के कल्याण एवं मंगल की भावना भी निहित है जो मंत्रों के माध्यम से निश्चय ही फली भूत होगी।


समवशरण विधान एवं विश्वशांति महायज्ञ 30 से – आचार्यश्री के सानिध्य में होगा विधान (दिनांक – 24-12-2012)

जगदलपुर, 24 दिसंबर । परमपूज्य आचार्य विद्यासागर जी महाराज के सानिध्य में 30 दिसंबर से 8 जनवरी तक संस्कारधानी नगर जगदलपुर के इतिहास में पहली बार 24 तीर्थंकर समवशरण महामंडल विधान एवं विश्व शांति महायज्ञ का आयोजन किया जा रहा है।

तदाशय की जानकारी देते हुए दिगंबर जैन समाज के महामंत्री सुधीर जैन ने बताया कि दस दिवसीय इस छत्तीसगढ़ स्तरीय विधान के लिए व्यापक स्तर पर तैयारियां की जा रही हैं। विधान की तैयारियों को मूर्त रूप देने समाज के वरिष्ठ सदस्य राजकुमार जैन एवं अध्यक्ष राकेश मोदी के नेतृत्व में सात सदस्यीय समिति का गठन किया गया है। विधान हेतु आज प्रातरू काल दिगंबर जैन मंदिर प्रांगण में सौधर्म इंद्र-इंद्राणियों का चयन किया गया। शेष अन्य पात्रों का चयन 27 दिसंबर दिन गुरूवार को किया जाएगा।

उन्होंने बताया कि महायज्ञ में शामिल होने वाले समस्त श्रद्धालुजनों के आवास एवं भोजन की निरूशुल्क व्यवस्था की गई है। महायज्ञ आकांक्षा होटल परिसर में आचार्य श्री के सानिध्य एवं ब्रम्हचारी विनय भैया के नेतृत्व में संपन्न होगा।

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