आचार्यश्री समयसागर जी महाराज इस समय डोंगरगढ़ में हैंयोगसागर जी महाराज इस समय चंद्रगिरि तीर्थक्षेत्र डोंगरगढ़ में हैं Youtube - आचार्यश्री विद्यासागरजी के प्रवचन देखिए Youtube पर आचार्यश्री के वॉलपेपर Android पर आर्यिका पूर्णमति माताजी डूंगरपुर  में हैं।दिगंबर जैन टेम्पल/धर्मशाला Android पर Apple Store - शाकाहारी रेस्टोरेंट आईफोन/आईपैड पर Apple Store - जैन टेम्पल आईफोन/आईपैड पर Apple Store - आचार्यश्री विद्यासागरजी के वॉलपेपर फ्री डाउनलोड करें देश और विदेश के शाकाहारी जैन रेस्तराँ एवं होटल की जानकारी के लिए www.bevegetarian.in विजिट करें

मंगल प्रवचन : आचार्यश्री विद्यासागरजी महाराज (कुंडलपुर) [10/05/2016]

कुंडलपुर। सन्त शिरोमणि आचार्य श्री विद्यासागर ने वाक्य के अंत में प्रयुक्त शब्द ‘लेकिन’ को प्रतिपक्ष का दयोतक बताते हुये कहा कि इसके प्रकट होते ही भाव पर विराम लग जाता है। शंका ऐ बाधा है, सार्थक श्रम के परिणाम के प्रति शंका क्यों। आचार्य श्री ने श्रोताओं को समझाते हुये बताया कि एक कृषक उत्तम बीज, भूमि और प्रबंध करता है। किन्तु शत् प्रतिशत सफलता नहीं मिलती। यह क्रम बार-बार होने से कृषक के मन में निराशा के बीज अंकुरित हो जाते हैं। सभी विशेषज्ञों से शंका समाधान पूछने पर कहा जाता है कि सभी प्रबंध तो उत्तम हैं लेकिन का उपयोग आचार्य श्री ने कहा कि जब वाक्य के अंत में लेकिन का उपयोग होता है। पूर्व वाक्य के भावार्थ का प्रतिपक्षी भाव उत्पन्न हो जाता है। लेकिन शब्द भाव पर विराम लगा देता है, यह शंका आशंका का दयोतक है।

Acharyashri10-1

जब तक कार्य के प्रति आशंका विद्यमान है, अपेक्षित परिणाम कभी प्राप्त नहीं होता। वह कृषक गन्ना की कृषि करता था, सबसे उत्तम और मधुर स्वाद के गन्ना की फसल भी होती थी लेकिन………..! शत प्रतिशत फसल नहीं मिलती। गन्ने की नीचे भाग की पोरों की अपेक्षा ऊपर के पोरों में रस की मधुरता और मात्रा में क्षीणता आ जाती है ऊपर के पोरों में रस की न्यूवता स्वभाव है, प्रबंधों के माध्यम से गन्ने की पैदावार में वृद्धि हो सकती है। किन्तु गन्ना का स्वभाव परिवर्तित नहीं हो सकता। ऊपर के पोरों की अपेक्षा अधोभाग में रस और मधुरता अधिक रहेगी।

आचार्य श्री ने भाव के प्रति सचेत करते हुये बताया कि आगे की फसल के लिये वही अग्र भाग का गन्ना बीजांकुरित होकर रसवान परिणाम देता है। जिस भाग में रस कम था मधुरता की कमी थी उसी भाग से आगामी फसल आने तक संतोष का भाव हो तथा श्रम और परिणाम पर आशंका न हो तो मधुर फसल का यह क्रम निरन्तर चलता रह सकता है। इसमें फसल तो ठीक है लेकिन शत प्रतिशत नहीं। यह लेकिन अग्र वाक्य का प्रतिनिधी भाव उत्पन्नकर आशंका और निराशा से भर देता है। आचार्य श्री ने कहा कि सार्थक श्रम के प्रति आशंका ने उत्तम परिणाम को भी प्रतिकूल बना दिया।

Acharyashri10-2

इस दृष्टांत के सापेक्ष आचार्य श्री ने कहा कि वाक्य कें अंत में लेकिन के प्रयोग नहीं होगा तो प्रतिपक्ष भाव की भूमिका से बच सकते है, साथ ही परिणाम यदि शत प्रतिशत नहीं भी तो आगामी परिणाम के लिये उपयुक्त भूमिका बन जाती है, नर को निराश होने की आवश्यकता नहीं है। उत्तम आचरण तदनुसार कार्य से सार्थक सफलता सुनिश्चित है, यह क्रम अनवरत चल सकता है।

प्रवचन वीडियो

कैलेंडर

may, 2024

अष्टमी 01st May, 202401st May, 2024

चौदस 07th May, 202407th May, 2024

अष्टमी 15th May, 202415th May, 2024

चौदस 22nd May, 202422nd May, 2024

अष्टमी 31st May, 202431st May, 2024

X