श्रीमती सुशीला पाटनी
आर.के. हाऊस,
मदनगंज- किशनगढ (राज.)
संसार से पार होने के कारण को तीर्थ कहते हैं। वस्तुत: तीर्थ हमारे हृदय में भरे हुए कलुषता एवं पाप रूपी मैल को धोने के लिए अमृतनीर के समान होते हैं। आज के इस आपाधापी भरे युग में जहां लोग अपना सुखचैन खोकर आकुलताओं से बेचैन हो रहे हैं तथा आत्महित से विमुख हो चुके हैं, ऐसे में इन लौकिक आकुलताओं से परे हटकर तीर्थयात्रा का संयोग मिलना अपने आप में मणिकांचन योग के जैसे पुण्यशाली तथा दुर्लभतम अवसर कहलाता है। ऐसा ही दुर्लभतम अवसर मुझे प्राप्त हुआ जब अपने 30-40 परिजनों एवं रिश्तेदारों सहित दिनांक 4 दिसम्बर 2013 से 24 दिसम्बर 2013 तक पांच राज्यों (महाराष्ट्र, आंध्रप्रदेश, कर्नाटक, तमिलनाडु एवं मध्यप्रदेश) के तीर्थक्षेत्रों की वन्दना करने का सौभाग्य मिला।
दक्षिण भारत यात्रा का वीडियो – Disc I
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यहां विचारणीय है कि दक्षिण भारतीय तीर्थों के यात्री प्राय: कर्नाटक में श्रवणबेलगोला, मूडबिद्री, कारकल, धर्मस्थल आदि तीर्थों की वन्दना से ही अपनी यात्रा की इतिश्री मान लेते हैं। तमिलनाडु को यात्रा हेतु भाषा आदि विभिन्न कारणों से अत्यन्त दुर्गम मानकर वहां जाने से कतराते हैं। किन्तु सम्पूर्ण दक्षिण भारत विशेषकर तमिलनाडु प्रान्त में स्थित तीर्थों तथा वहां के जिनप्रतिमाओं का तो कहना ही क्या। निर्माण की दृष्टि से अद्वितीय तथा भव्यता में अनुपम ये तीर्थ दर्शनार्थियों के चित्त में नई चेतना का संचार कर देते हैं। हालांकि उत्तर भारत के मंदिरों तथा तीर्थस्थलों पर विधर्मियों के आक्रमणों के निशान दृष्टिगोचर होते हैं किन्तु दक्षिणभारत क्षेत्र इन आक्रान्ताओं तथा इनके प्रभावों से अछूता रहने के कारण यहां प्राचीन तथा मूल संस्कृति का दिग्दर्शन होता है।हालांकि काल क्रमानुसार मान्यताओं तथा क्रियाओं में परिवर्तन अवश्य समाविष्ट हुए हैं किन्तु उनकी चर्चा यहां अप्रासंगिक है।
बीस दिवसीय इस यात्रा का प्रारम्भ किशनगढ़ से दिनांक 4 दिसम्बर को प्रात: 11 बजे हुआ। रात्रि यहां से करीब 615 कि.मी. की यात्रा कर रात्रिविश्राम सिद्धक्षेत्र बावनगजा जी में करके अगले दिन प्रात: सम्पूर्ण सिद्धक्षेत्र की वन्दना तथा सम्पूर्ण विश्व में अनुपम एवं अद्वितीय 84 फीट की अवगाहना वाली भगवान आदिनाथ स्वामी की प्रतिमा के दर्शन एवं पूजन की। साथ ही अन्य मंदिरों की वन्दना करके यहां से करीब 615 कि.मी. की यात्रा कर रात्रि विश्राम हेतु श्री सिद्धक्षेत्र मांगी तुंगी जी पहुंचे। यहां प्रात: 5 बजे पर्वत की दुर्गम चढ़ाई प्रारम्भ कर पर्वत पर पांच गुफाऒँ सहित नीचे तलहटी के जिनालयों की वन्दना पूर्वक 70 कि.मी. चलकर मालेगांव फिर 23 कि.मी. चलकर ऐलोरा गुरुकुल, फिर 23 कि.मी. चलकर अतिशय क्षेत्र जैनगिरि जटवाड़ा के दर्शनोपरान्त 48 कि.मी. चलकर रात्रि विश्राम कचनेर में किया।
प्रात: अतिशय क्षेत्र कचनेर में पार्श्वनाथ विधान करके 35 कि.मी. दूर अतिशय क्षेत्र पैठण फिर यहां से 140 कि.मी. की दूरी पर कुलभूषण-देषभूषण मुनियों की सिद्धभूमि कुन्थलगिरि की वन्दना की। अनन्तर 60 कि.मी. चलकर अतिशय क्षेत्र तेरगांव के दर्शन करते हुए यहां से 190 कि.मी. चलकर रात्रि विश्राम बीजापुर में किया । बीजापुर से 118 कि.मी. चलकर शेडवाल कागवाड़, बाबानगर, अंकली तथा यहां से 55 कि.मी. चलकर उदगांव में विराजमान आ. श्री 108 सुनीलसागर जी महा. के दर्शनोपरान्त यहां से 25 कि.मी. चलकर जुनीकोथली फिर 50 कि.मी. चलकरकुम्भोजबाहुबली अनंतर12 कि.मी. की दूरी पर हीकुंथुगिरितथा यहां से 32 कि.मी. चलकर बोरगांव(कर्नाटक) बोरगांव से 7 कि.मी. चलकर साजणी,सदलगा फिर यहां से 25 कि.मी. चलकरकोतली तथा यहां से 175 कि.मी. चलकरकसमलंगी फिर यहां से 100 कि.मी. की दूरी पर हुबली, इत्यादि तीर्थों की वन्दना करते हुए यहां से 90 कि.मी. दूर वरूर में नवग्रह मंदिर के दर्शन किए। यहां पर नवग्रहों के दुष्प्रभाव निवारक के रूप में उन ग्रहों की गोल आकृति के ऊपर तत्संबंधित तीर्थंकरों की प्रतिमाऐं विराजमान की गई हैं। यह क्षेत्र प. पू. आ. श्री गुणनन्दी जी महा. के आशीर्वाद से विकसित हुआ है। यहां पर गुरुकुल में लगभग 400 छात्र पढ़ते हैं।
वरूर से चलकर सोहमठ के दर्शनोपरान्त 120 कि.मी. चलकर रात्रि विश्राम हुमचा में किया। प्रात: हुमचा में पार्श्वनाथ विधान करके 195 कि.मी. चलकर कारकल पहुंचकर पहाड़ी पर 42 फुट उत्तुंग भगवान बाहुबली के दर्शन किए। इनके ही सामने दूसरी पहाड़ी पर चतुर्मुख बसदि है जो कि दक्षिण भारत की निर्माण कला का अदभुत नमूना है। यहां से सिर्फ 22 कि.मी. चलकर जैनों की काशी के नाम से प्रसिद्ध अतिशय क्षेत्र मूडबिद्री में रात्रि विश्राम करके प्रात: यहां के प्राचीन जैन मंदिरों की वन्दना के उपरान्त भटटारक जी से भी मिले। यहां से 20 कि.मी. चलकर वेणूर फिर 33 कि.मी. चलकर धर्मस्थल में बाहुबली भगवान के दर्शन तथा श्री वीरेन्द्र जी हेगड़े से मुलाकात कर उनकी सुप्रसिद्ध भोजनशाला का अवलोकन कर करीब 190 कि.मी. का सफर कर रात्रि विश्राम गोम्मटेश भगवान बाहुबली के अंचल में श्रवणबेलगोला में किया।
दक्षिण भारत यात्रा का वीडियो – Disc II
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प्रात: विन्ध्यगिरि तथा चन्द्रगिरि पर्वत की वन्दना से सारी थकान मानों तिरोहित हो गई तथा सभी के मन में एक नई स्फूर्ति का संचार हो गया। भगवान बाहुबली के अप्रतिम आकर्षण में बंधे हुए उनसे दूर होने के कारण अनमने से होते हुए निकलकर यहां से 18 कि.मी. दूर कम्बदहल्ली के दर्शन करके फिर यहां से 85 कि.मी. चलकर गोम्मटगिरि, मैसूर में जिनालयों की वन्दना करते हुए 50 कि.मी. चलकर रात्रि विश्राम कनकगिरि में किया। प्रात: कनकगिरि में ऊपर पहाड़ी की वन्दना तथा तलहटी सिथत जिनालयों की वन्दना पूर्वक मालानुर में भ. आदिनाथ के दर्शन किए।
हमारे ग्रुप द्वारा प्रत्येक मंदिर में यथासमय कलशाभिषेक-पूजन-सायंकालीन आरती इत्यादि सम्पादित की जाती थी तथा मार्ग में भी यात्रा के दौरान धार्मिक अंताक्षरी-भजन एवं आपस में प्रश्नोत्तर इत्यादि द्वारा समय का पूरा सदुपयोग प्रत्येक सदस्य द्वारा पूरी तत्परता से किया जाता था। सभी सदस्यों द्वारा आहारशुद्धि के साथ साथ वैचारिक शुद्धि का भी अत्यन्त ध्यान रखा जाता था।
तमिलनाडु –
तमिलनाडु प्रान्त में जैन धर्म की संपन्न विरासत के प्रचुर मात्रा में मौजूद चिह्न प्राचीन काल में यहां जैन शासन के विस्तृत प्रभाव के उदघोषक हैं। यहां की वर्तमान सरकार द्वारा भी जैन स्मारकों का संरक्षण पूरी जिम्मेदारी से तथा बिना किसी पक्षपात के उचित रखरखाव करते हुए किया गया है जिसे देखकर मन अत्यन्त उल्लास से भर गया।
तमिलनाडु की यात्रा का प्रारम्भ कनकगिरी से 160 कि.मी. चलकर विजयमंगलम में भ. आदिनाथ की 900 वर्ष प्राचीन प्रतिमा के दर्शन करके किया। फिर यहां से 80 कि.मी. दूर वीगलूर, चीनावरम तथा इरोड़ में जिनदर्शन करके 220 कि.मी. का सफर करके रात्रि विश्राम मदुरई में किया। मदुरई ऐतिहासिक एवं प्राचीन नगरी है। यहीं पर 700 मुनियों पर उपसर्ग हुआ था तथा उन्हें घानी में पेल दिया गया था। यहां 18 पहाडि़यां हैं। यहीं विश्वप्रसिद्ध मीनाक्षी मंदिर भी है। यहां से 20 कि.मी. चलकर नागमलैयामें जिनबिम्ब दर्शन किए। यहां की प्रतिमाऐं अत्यन्त प्राचीन हैं। इन सबकी मुद्रा अत्यन्त अभिराम है।
इसके उपरान्त 305 कि.मी. चलकर कन्याकुमारी घूमे। कन्याकुमारी में 3 समुद्र मिलते हैं। ये हैं – हिन्दमहासागर, अरबसागर तथा बंगाल की खाड़ी। इन तीनों के मिलन बिन्दु पर सूर्यास्त का दृश्य आंखों को अपूर्व शांति देता है। यहां से 270 कि.मी. चलकर रात्रि विश्रामरामेश्वरम में किया। रामेश्वरम में इंजीनियरिंग का उत्कृष्ट नमूना समुद्र में स्थित रेल्वे का पुल दर्शनीय है। यह बड़े जहाजों को रास्ता देने के लिए बीच में से खुल जाता है। यह पर्यटकों के आकर्षण का केन्द्र है। यहां से 230 कि.मी. चलकर सिद्धनिवासन क्षेत्र के दर्शन किए। यहां पर भ. शांतिनाथ-कुन्थुनाथ-अरहनाथ की अत्यन्त प्राचीन तथा बहुत बड़ी प्रतिमाऐं हैं।
यहां से 100 कि.मी. चलकर मनारगुण्डी फिर 46 कि.मी. दूर दीपगुण्डी क्षेत्र के दर्शन किए। यह यथा नाम तथा गुण की कहावत को चरितार्थ करता है। यहां रोज शाम को 108 दीपकों से आरती होती है। यहां से 170 कि.मी. चलकर तिरुवनकुण्डई तथा कोलियनपुर में जिनदर्शन किए। आगे 300 कि.मी. की यात्रा के दौरान वीडूर क्षेत्र पहुंचे जहां पर 1000 साल प्राचीन पार्श्वनाथ भगवान की अत्यन्त मनोज्ञ प्रतिमाहै तथा चांदी का बना हुआ नन्दीश्वर द्वीप भी है। यहां से आगे बढ़ने पर अत्यन्त प्रसिद्ध तथा प्राचीन मेलचितामूर के जिनकांची जैनमठ पहुंचे। यहां पर 1500 वर्ष प्राचीन चौबीसी है तथा पार्श्वनाथ भगवान की अत्यन्त प्राचीन तथा मनोहारी प्रतिमाऐं हैं। यहीं पर एक अत्यन्त सुन्दर सैकड़ों वर्ष प्राचीन रथ भी है जो कि देखने वालों के चित्त को आह्लादित कर देता है।मेलचितामूर में ही एक दूसरे मंदिर में भी आदिनाथ भगवान की 1600 साल से भी अधिक प्राचीन प्रतिमाऐं हैं। यहां से चलकर जिंजी क्षेत्र पर चौबीसी एवं भगवान बाहुबली स्वामी के दर्शन किए। आगे वीडकम, कन्लम में दर्शन-वन्दना करते हुए वालती पहुंचे। यहां आदिनाथ भगवान की अत्यन्त मनोहारी एवं 1000 वर्ष प्राचीन प्रतिमा है। यहां मंदिर की परिक्रमा में चौबीसी उत्कीर्ण की गई है। यहां से चलकर मेलमलाईनुर के दर्शन करते हुए कलिकालसर्वज्ञ परम पूज्य आचार्य श्री कुन्दकुन्द स्वामी की तपोस्थली पोन्नूरमलै क्षेत्र पर रात्रि विश्राम किया।
प्रात: पोन्नूरमलै क्षेत्र की वन्दनार्थ नीलगिरि पर्वत पर पहुंचकर आ. कुन्दकुन्द स्वामी के चरणों की वन्दना की। यहां पर भ. आदिनाथ- पार्श्वनाथ-चन्द्रप्रभ स्वामी तथा भरत एवं बाहुबली भगवान की अत्यन्त मनोज्ञ प्रतिमाऐं हैं। सम्पूर्ण दक्षिण भारत में शायद ही कोई ऐसा क्षेत्र अथवा मंदिर होगा जहां भगवान बाहुबली की प्रतिमाऐं न हों। इसी तीर्थक्षेत्र में कानजीपंथ मतानुयायियों का भी एक मंदिर है। यहां से प्रस्थान करकिलसातमंगलम में जिनदर्शन करते हुए वगारंग क्षेत्र पहुंचे। यहां पर 2000 साल प्राचीन भगवान आदिनाथ की प्रतिमा, चौबीसी एवं सहस्रकूट चैत्यालय के दर्शन कर मन आह्लाद से भर गया। यहीं पर 46 साल पहले नदी में प्रतिमा प्राप्त हुई थी। यहां से चलकर पोन्नूरविलेज में दर्शन – वन्दना की।
यहां पू. आ. कुन्दकुन्द स्वामी की प्रतिमा भी है। यहां से आगे बढ़ने पर इतंगाड में जिनवाणी मां के मंदिर के दर्शन करते हुए सलुक्कर्इक्षेत्र में 2000 वर्ष प्राचीन भगवान आदिनाथ की प्रतिमा के दर्शन किए। यहां से आरपाकम में दर्शन करके प्राचीन जैन ध्वजा का अवलोकन किया। अनन्तर अत्यन्त प्राचीन क्षेत्र त्रिपतीकुडरम पहुंचे। यहां मंदिरों में बहुत सारी प्राचीन प्रतिमाऐं हैं। यहां के बारे में किंवदन्ती है कि यहां मंदिर के नीचे अकूत सम्पत्ति है जिसकी गणना के बारे में अनुमान नहीं लगाया जा सकता है। यहां से चलकर वैनकाक्म में दर्शन किए। तदनन्तरत्रीरुपनामूर एवं कदरई में जिनप्रतिमाओं के दर्शन पूजन की। यहां से चलकर महलापंदन के दर्शन करते हुए श्री अतिशय क्षेत्र अरिहन्तगिरि पर पहुंचे।
यहां पर पहाड़ी पर अत्यन्त प्राचीन जिन प्रतिमाऐं हैं। इन्हें पूर्णरूप से सरकारी संरक्षण प्राप्त है, जिससे ये युगों – युगों से सुरक्षित हैं। यहीं पर भटटारक जी की गददी भी है। यहां के मंदिरों की निर्माण कला अत्यन्त समृद्ध है। इनके दर्शन से मन जिनशासन के प्रति बहुमान से अभिसिक्त हो जाता है। यहां से 40 कि.मी. आगे चलकर वेलुर में गोल्डन टेम्पल देखकर 650 कि.मी. की लम्बी यात्रा करके रात्रि विश्राम हेतु हैदराबाद पहुंचे। प्रात: हैदराबाद शहर के जिनालयों की वन्दना के क्रम में आगापुरा, केशरबाग, साहूकारबान, बेगमबाजार, चूड़ी बाजार के मंदिरों की वन्दना करते हुए श्री पारसनाथ दिग. जैन गुरुकुल पहुंचे। यहां पर छात्रों को सुसंस्कारित वातावरण में धर्म की शिक्षा प्रदान की जाती है। लौकिक शिक्षा वे विश्वविद्यालयों-महाविद्यालयों से अंग्रेजी माध्यम से प्राप्त करते हैं। इस तरह ये शिक्षा हेतु उत्कृष्ट संस्थान है।
यहां से प्रस्थान कर 590 कि.मी. की यात्रा कर रात्रि विश्राम हेतु सायंकाल में लगभग 6 बजे नागपुर (महा) पहुंचे। यहां परवार मंदिर में विराजित संतशिरोमणि परमपूज्य गुरुवर आचार्यश्री 108 विद्यासागर जी महाराज ससंघ की वन्दना कर आशीर्वाद प्राप्त किया एवं उनके ही सानिध्य में आचार्य भक्ति का लाभ मिला। यहीं पर रात्रि विश्राम हुआ। अगले दिन प्रात: कालीन कक्षा में आचार्य श्री के मुख से धर्मचर्चा सुनकर ऐसा प्रतीत हुआ मानो भगवान महावीर के मुख से स्वयं जिनवाणी मां अवतरित हो रही हो।
दक्षिण भारत यात्रा का वीडियो – Disc III
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कक्षा के बाद अत्यन्त धूमधाम व भक्तिभाव में झूमझूमकर पू. आचार्य संघ की पूजा की। तदनन्तर प्रात: 10 बजे नवधा भक्ति पूर्वक सभी मुनिराजों की आहारचर्या सम्पन्न कराकर एवं स्वयं भी भोजनोपरान्त सभी स्थानीय जिनालयों यथा इतवारी मंदिर, जुना मंदिर, परवार मंदिर, सेतवाल मंदिर, कांच का चैत्यालय, सन्मति भवनइत्यादि स्थानों पर जिनदर्शन करते हुए 45 कि.मी. दूर बाजार गांव पहुंचे। यहां के मंदिर में 9 वेदियां हैं। यहां से 105 कि.मी. दूर भातकुली में जिनबिम्ब तथा मानस्तम्भ के दर्शन किए।
भातकुली से 50 कि.मी. चलकर रात्रि विश्राम श्री सिद्धक्षेत्र मुक्तागिरि (म.प्र.) में किया। यह सिद्धक्षेत्र प्रकृति की गोद में बसा हुआ अत्यन्त सुरम्य तीर्थक्षेत्र है। यह महाराष्ट्र तथा मध्यप्रदेश क्षेत्र की सीमा पर ही म.प्र. के बैतूल जिले में है। यहां पर मंदिरों की संख्या 54 है। सभी मंदिरों में अत्यन्त प्राचीन जिनबिम्ब हैं जो कि दर्शनार्थियों के हृदय में निर्मल परिणामों का संचार कर देते हैं। यहां के झरने तथा प्राकृतिक सौन्दर्य भक्तों को प्राकृतिक छटा के साथ अध्यात्म सौन्दर्य में डुबकी लगाने को विवश कर देता है। यहां पर पूरे दिन तीर्थवन्दना की। अनन्तर यहां से 260 कि.मी. चलकर रात्रि विश्राम सिद्धक्षेत्र सिद्धवरकूट में किया।
प्रात: दो चक्रवर्तियों एवं दश कामदेवों की सिद्धभूमि सिद्धवरकूट में अत्यन्त भक्तिपूर्वक पूजन तथा विधान किया। यहां पर कुल 12 अत्यन्त रमणीय जिनालय हैं। नर्मदा तथा कावेरी नदी के संगम किनारे बसा यह सिद्धक्षेत्र यात्रियों के नयनों को अपनी मधुरिम छटा से बरबस ही मंत्रमुग्ध कर देता है। यहां से प्रस्थान कर 310 कि.मी. यात्रा कर रात्रि मेंबांसवाड़ा (राज.) पहुंचकर बाहुबली कालोनी में विराजमान प. पू. आचार्य गुरुवर विद्यासागर जी महा. की परम शिष्या पू. आर्यिकारत्न 105 पूर्णमतीमाताजी ससंघ की वन्दना की आशीर्वाद प्राप्त किया एवं यहीं रात्रि विश्राम किया।
तत्पश्चात 35 कि.मी. दूर कलिंजरा में प. पू. मुनिश्री 108 आगमसागरजी, मुनिश्री पुनीतसागर जी व मुनि श्री सहजसागर जी महा. के दर्शनों का लाभ प्राप्त कर यहां से 15 कि.मी. दूर श्री दिग. जैन अतिशय क्षेत्र अन्देश्वर पार्श्वनाथ में अतिशयकारी पार्श्वनाथ भगवान के दर्शन एवं पूजन करके वापिस बांसवाड़ा आए जहां पूज्य माताजी के अत्यन्त सारगर्भित एवं मार्मिक प्रवचन सुने तथा सभी यात्रियों को पुन: आशीर्वाद मिला। यहां पर बांसवाड़ा समाज कमेटी द्वारा सभी तीर्थयात्रियों का भावभीना अभिनन्दन एवं स्वागत भी किया गया। अनन्तर पू.माताजी की निरन्तराय आहारचर्या सम्पन्न कराकर तथा उनका आशीर्वाद प्राप्त कर अन्त में यहां से 65 कि.मी. चलकर श्री शांतिनाथ दिग. जैन अतिशय क्षेत्र बमोतर (प्रतापगढ़) के दर्शन करते हुए यहां से 295 कि.मी. की लम्बी यात्रा कर वापिस दिनांक 24 दिसम्बर की रात्रि में किशनगढ़ सकुशल पहुंचे। इस तरह हमने 20 दिनों में करीब 75 तीर्थ क्षेत्रों की वन्दना की।
मेरे जीवन की यह यात्रा इसलिए भी महत्वपूर्ण रही क्योंकि अपने परिवार जनों तथा रिश्तेदारों के साथ पुण्यानुबन्धी पुण्य का संचय करना एक अदभुत अनुभव रहा। हमारे ग्रुप में बालक से लेकर वृद्ध सभी आयु समूह के व्यक्ति थे फिर भी बिना किसी व्यवधान आदि के यह यात्रा संपन्न हुई।
यह वृत्तान्त लिखने का मुख्य उददेश्य है कि इसे जानकर साधर्मी जनों को दक्षिणभारत में विशेष रूप से तमिलनाडु में स्थित अपनी पुरासम्पदा के दर्शन अपने जीवन काल में कम से कम एक बार अवश्यमेव करना चाहिए। यहां पर प्राचीन प्रतिमाओं तथा पहाड़ी पर स्थित जिनबिम्बों का संरक्षण एवं व्यवस्था जिस तरह सरकार द्वारा की गई है वह प्रशंसनीय है। यद्यपि भाषा तथा भोजन सम्बन्धी समस्या यहां पर बहुत ज्यादा है किन्तु अगर सुनियोजित तरीके से यात्रा की जाए तो यात्रा सफल होती है। दक्षिण भारत का प्राकृतिक सौंदर्य अनुपम है। प्रत्येक व्यक्ति को जीवन में एक बार इन तीर्थों की वन्दना करने हेतु अवश्य ही प्रयास करना चाहिए।