आचार्यश्री समयसागर जी महाराज इस समय डोंगरगढ़ में हैंयोगसागर जी महाराज इस समय चंद्रगिरि तीर्थक्षेत्र डोंगरगढ़ में हैं Youtube - आचार्यश्री विद्यासागरजी के प्रवचन देखिए Youtube पर आचार्यश्री के वॉलपेपर Android पर आर्यिका पूर्णमति माताजी डूंगरपुर  में हैं।दिगंबर जैन टेम्पल/धर्मशाला Android पर Apple Store - शाकाहारी रेस्टोरेंट आईफोन/आईपैड पर Apple Store - जैन टेम्पल आईफोन/आईपैड पर Apple Store - आचार्यश्री विद्यासागरजी के वॉलपेपर फ्री डाउनलोड करें देश और विदेश के शाकाहारी जैन रेस्तराँ एवं होटल की जानकारी के लिए www.bevegetarian.in विजिट करें

अहिंसा की साधना

– महात्मा गाँधी

Gandhi

1. आमतौर पर लोग सत्य का स्थूल अर्थ सत्यवादिता ही समझते हैं लेकिन सत्य वाणी में सत्य के पालन का पूरा समावेश नहीं होता। इसी तरह साधारणतया लोग अहिंसा का स्थूल अर्थ यही करते हैं कि दूसरे जीव को मारना नहीं, किन्तु केवल प्राण न लेने से अहिंसा की साधना पूरी नहीं होती।

2.अहिंसा केवल आचरण का स्थूल नियम नहीं, बल्कि मन की वृत्ति है। जिस वृत्ति में कहीं भी द्वेष की गंध तक नहीं रहती, वह अहिंसा है।

3. इस प्रकार की अहिंसा सत्य के समान ही व्यापक होती है। ऐसी अहिंसा की सिद्धि के बिना सत्य की सिद्धि संभव नहीं। अतएव दूसरी दृष्टि से देखें तो सत्य अहिंसा की पराकाष्ठा ही है। पूर्ण सत्य और पूर्ण अहिंसा में भेद नहीं, फिर भी समझने की सुविधा के लिए सत्य को साध्य और अहिंसा को साधना माना है।

4. ये सत्य और अहिंसा सिक्के के दो पहलुओं की तरह एक ही सनातन वस्तु की दो बाजुओं के समान हैं।

5. अनेक धर्मों में ईश्वर को प्रेम स्वरूप कहा गया है, उस प्रेम और इस अहिंसा में कोई अंतर नहीं है।

6. प्रेम के शुद्ध व्यापक स्वरूप का नाम अहिंसा है। जिस प्रेम में राग या मोह की गंध आती है, उसमें अहिंसा नहीं होती। जहाँ राग और मोह होते हैं, वहाँ द्वेष का बीज भी रहता ही है। प्रायः प्रेम में राग-द्वेष पाए जाते हैं। इसीलिए तत्ववेत्ताओं ने प्रेम शब्द का उपयोग न करके अहिंसा शब्द की योजना की है और उसे परम धर्म कहा है।

7. दूसरों के शरीर या मन को दु:ख अथवा चोट न पहुँचाना ही अहिंसा धर्म नहीं है, परंतु उसे साधारणतः अहिंसा धर्म का एक आँखों दिखने वाला लक्षण कहा जा सकता है। यह संभव है कि दूसरे के शरीर अथवा मन को स्थूल दृष्टि से दु:ख या चोट पहुँचती दिखाई पड़े और फिर भी उसमें शुद्ध अहिंसा धर्म का पालन हो रहा हो। इसके विपरीत इस प्रकार के दु:ख अथवा चोट पहुँचाने का आरोप लगाने जैसा कोई काम न किया हो फिर भी हो सकता है कि उस मनुष्य ने हिंसा की हो। अहिंसा का भाव आँखों से दिखने वाले परिणाम में नहीं, बल्कि अंतःकरण की राग-द्वेष रहित स्थिति में है।

8. फिर भी आँखों से दिखने वाले लक्षण की उपेक्षा नहीं की जा सकती। क्योंकि यद्यपि यह एक स्थूल साधन है, तो भी अपने या दूसरे के हृदय में अहिंसा वृत्ति का कितना विकास हुआ है, इसका मोटा अंदाज इस लक्षण से लग सकता है। जहाँ दूसरे भूत प्राणियों को उद्विग्न न करने वाली वाणी के और वैसे ही कर्म के दर्शन होते हैं, वहाँ साधारण जीवन में तो इस बात का प्रत्यक्ष पता चल सकता है कि उसमें अहिंसा किस हद तक पुष्ट हुई है। निश्चय ही अहिंसामय दु:ख देने के प्रसंग भी आते हैं, उदाहरण के लिए शुद्ध हेतु से आत्मशुद्धि के निमित्त किए गए उपवास से अपने प्रति प्रेम रखने वालों पर एक प्रकार का दबाव पड़ता है, किन्तु उस समय उसमें विद्यमान अहिंसा स्पष्ट दिखाई देती है। जहाँ स्वार्थ की लेशमात्र भी गंध है, वहाँ पूर्ण अहिंसा संभव नहीं।

9. परंतु इतने से भी यह भी नहीं माना जा सकता कि अहिंसा की साधना पूरी हुई है। अहिंसा का साधक केवल प्राणियों को उद्विग्न बनाने वाली वाणी का उच्चारण और कर्म का आचरण न करके अथवा मन में भी उनके बारे में द्वेष भाव न रखकर ही संतुष्ट नहीं होगा, बल्कि वह संसार के दु:खों का दर्शन करने, उनके उपाय खोजने और उन उपायों को अमल में लाने का प्रयत्न करता रहेगा। साथ ही दूसरों के सुख के लिए वह स्वयं प्रसन्नतापूर्वक कष्ट सहता रहेगा। तात्पर्य यह है कि अहिंसा केवल निवृत्ति रूप कर्म अथवा निष्क्रिय नहीं है बल्कि बलवान प्रवृत्ति अथवा प्रक्रिया है।

10. अहिंसा में तीव्र कार्य साधक शक्ति विद्यमान है। उसमें विद्यमान अमोघ शक्ति का पूर्ण संशोधन अभी हुआ नहीं है। अहिंसा के निकट सारा विष और बैर शांत हो जाता है। यह सूत्र केवल उपदेश वाक्य नहीं है बल्कि ऋषि का अनुभव वाक्य है। जाने-अनजाने सहज प्रेरणा से सब प्राणी एक-दूसरे के लिए खपने का धर्म पालते हैं और इस धर्म के पालन से ही संसार निभता है फिर भी इस शक्ति के संपूर्ण विकास का और सब कार्यों तथा प्रसंगों के लिए इसके प्रयोग का मार्ग अभी ज्ञानपूर्वक खोजा नहीं गया है।

11. अहिंसा के मार्ग की खोज और उसके संगठन के लिए मनुष्य ने जितना दीर्घ उद्योग किया है और एक बड़ी हद तक उसका शास्त्र तैयार करने में जो सफलता प्राप्त की है, यदि उतना उद्योग वह अहिंसा की शक्ति की खोज और उसके संगठन के लिए करे, तो उससे यह सिद्ध हो सकता है कि अहिंसा मनुष्य जाति के दु:खों को दूर करने के लिए एक अमूल्य, कभी व्यर्थ न होने वाला और परिणाम में दोनों पक्षों का कल्याण करने वाला साधन है।

12. जिस श्रद्धा और उद्योग से वैज्ञानिक प्राकृतिक शक्तियों की खोज करते हैं और उनके नियमों को विविध रीति से व्यवहार में उतारने का प्रयत्न करते हैं उसी श्रद्धा और उद्योग से अहिंसा शक्ति की खोज करने और उसके नियमों को व्यवहार में उतारने का प्रयत्न करने की आवश्यकता है।

प्रवचन वीडियो

कैलेंडर

october, 2024

चौदस 01st Oct, 202401st Oct, 2024

चौदस 11th Oct, 202411th Oct, 2024

चौदस 16th Oct, 202416th Oct, 2024

चौदस 24th Oct, 202424th Oct, 2024

चौदस 31st Oct, 202431st Oct, 2024

X