आचार्यश्री समयसागर जी महाराज इस समय डोंगरगढ़ में हैंयोगसागर जी महाराज इस समय चंद्रगिरि तीर्थक्षेत्र डोंगरगढ़ में हैं Youtube - आचार्यश्री विद्यासागरजी के प्रवचन देखिए Youtube पर आचार्यश्री के वॉलपेपर Android पर आर्यिका पूर्णमति माताजी डूंगरपुर  में हैं।दिगंबर जैन टेम्पल/धर्मशाला Android पर Apple Store - शाकाहारी रेस्टोरेंट आईफोन/आईपैड पर Apple Store - जैन टेम्पल आईफोन/आईपैड पर Apple Store - आचार्यश्री विद्यासागरजी के वॉलपेपर फ्री डाउनलोड करें देश और विदेश के शाकाहारी जैन रेस्तराँ एवं होटल की जानकारी के लिए www.bevegetarian.in विजिट करें

मोह राग और द्वेष आत्मा को किंकर्तव्यविमूढ़ बनाते हैं

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चंद्रगिरि डोंगरगढ़ में विराजमान संत शिरोमणि 108 आचार्य श्री विद्यासागर महाराज जी ने मोह, राग और द्वेष की परिभाषा बताते हुए कहा की मोह हमें किसी भी वस्तु या मनुष्य आदि से हो सकता है जैसे दूध में एक बार जामन मिलाने पर वह जम जाता है फिर दोबारा उसी बर्तन पर दूध डालने पर दूध अपने आप जम जाता है उसमे दोबारा जामन नहीं डालना पड़ता।

उसी प्रकार मनुष्य भी मोह में जम जाता है। राग और मोह में अंतर होता है। राग के कारण वस्तु का वास्तविक स्वरुप न दिखकर उसका उल्टा स्वरुप दिखने लगता है। जैसे कोई वस्तु है, यदि आपको उससे राग होगा तो आप कहोगे कि यह वस्तु बहुत अच्छी है और उसी वस्तु से किसी को द्वेष होगा तो वह कहेगा की यह वस्तु खराब है। बड़े – बड़े विद्वान्, श्रमण, श्रावक आदि भी इस मोह, राग और द्वेष से नहीं बच पायें हैं।

आचार्य श्री ने कहा की वे आज पद्मपुराण पढ़ रहे थे तो उसमे बताया गया है की रावण बहुत विद्वान्, बहुत बड़ा पंडित, बहुत ज्ञानी, धनवान, ताकतवर था परन्तु श्रीराम की धर्म पत्नि सीता से उसे मोह होने के कारण उसका सर्वनाश हो गया एवं उसका भाई विभीषण ने भी उसका साथ छोड़ दिया था। आज बहुत से लोग शास्त्र, ग्रन्थ आदि पढ़कर पंडित, ज्ञानी हो गए हैं उन्हें इस ज्ञान का उपयोग पहले अपने कल्याण के लिए करना चाहिये फिर दूसरों का कल्याण करना तो अच्छी बात है ही।

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