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प्रवचन : आचार्यश्री विद्यासागरजी महाराज; (डोंगरगढ़) {9 दिसंबर 2017}

मन से करो, मन का मत करो- आचार्यश्री

चंद्रगिरि डोंगरगढ़ में विराजमान संत शिरोमणि 108 आचार्यश्री विद्यासागर महाराजजी ने कहा की समन्वय से गुणों में वृद्धि हो तो वह सार्थक है किन्तु यदि समन्वय से गुणों में कमी आये तो वह समन्वय विकृत कहलाता है। उदाहरण के माध्यम से आचार्यश्री ने समझाते हुए कहा की यदि दूध में घी मिलाया जाये तो वह उसके गुणों को बढाता है जबकि दूध में मठा मिलाते हैं (कुछ लोग कहते हैं दूध भी सफ़ेद होता है और मठा भी सफ़ेद होता है) तो वह विकृति उत्पन्न कर देता है।

Vidyasagar Maharaj

मठा में यदि घी मिलाया जाये तो वह अपचन कर सकता है परन्तु उसी घी का यदि बघार मठा में मिलाया जाये तो वह पाचक तो होगा ही और उसके स्वाद में भी वृद्धि हो जायेगी। इसी प्रकार सुयोग समन्वय से गुणों में वृद्धि होती है। आप लोग कहते हो डॉक्टर के पास जाना है डॉक्टर तो उपाधि होती है एलोपेथिक चिकित्सा के लिए चिकित्सक होता है और आयुर्वेदिक चिकित्सा के लिए वैद्य या वैदराज होता है जो आज कल कम सुनने को मिलता है। वर्तमान में आपकी तबियत खराब हो जाये या शरीर में कोई तकलीफ आ जाये तो आप लोग दवाइयों का सेवन करते हो जबकि पहले के लोग भोजन को ही औषधि के रूप में सेवन करते थे और उनकी दैनिक चर्या ऐसी होती थी की वे कभी बीमार ही नहीं पड़ते थे। डॉक्टर और बीमारी दोनों उनके पास आने से डरती थी।

आप लोग सभी जगह आने-जाने में वाहन का उपयोग करते हो इसकी जगह यदि आप पैदल चलें तो आपकी आधी बीमारी तो यूँ ही दूर हो जायेगी। आचार्यश्री ने कहा कि ‘मन से करो, मन का मत करो’। आपको यदि स्वादानुसार अच्छा भोजन मिल जाये तो आप उसका सेवन आवश्यकता से अधिक कर लेते हैं जिससे आपका पेट कहता तो नहीं है परन्तु आपको एहसास होता है की पेट अब मना कर रहा है परन्तु आप फिर भी अतिरिक्त सेवन करते हैं तो उसे पचाना मुश्किल होता है और फिर आपको उसे पचाने के लिए पाचक चूर्ण या दवाई आदि का उपयोग करना पड़ता है। आप लोगों से अच्छे तो बच्चे हैं जो पेट भरने पर और खाने से तुरंत मन कर देते हैं। इसलिए दोहराता हूँ कि ‘मन से करो, मन का मत करो’।

गृहस्थ में धर्म, अर्थ और काम होता है जबकि मोक्ष मार्ग में केवल संयम ही होता है। मुमुक्षु की सब क्रियाएं गृहस्थ के विपरीत होती है जैसे आप बैठ के भोजन लेते हैं जबकि मुमुक्षु खड़े होकर आहार लेते हैं, आप थाली में परोस कर लेते हैं, जबकि मुमुक्षु कर पात्र (दोनों हाथ मिलाकर) करपात्र में आहार लेते हैं। आपको सोने के लिए आरामदायक बिस्तर, तकिया आदि की आवश्यकता होती है जबकि मुमुक्षु लकड़ी के चारपाई, भूमि आदि में शयन करते हैं। आप लोग जब मन चाहे चट-पट जितनी बार चाहो खा सकते हो जबकि मुमुक्षु दिन में एक बार ही आहार करता है। इसी प्रकार मोक्ष मार्ग में वीतरागी देव, शास्त्र और गुरु का समन्वय आवश्यक है तभी कल्याण होना संभव है।

दिनांक 09/12/2017 एवं 10/12/2017 को चंद्रगिरी तीर्थ क्षेत्र में निःशुल्क चिकित्सा शिविर का आयोजन किया गया है जिसमे सभी प्रकार के रोगों का बाहर से आये आयुर्वेदिक चिकित्सकों द्वारा ईलाज किया जा रहा है एवं मरीजों के लिए निःशुल्क भोजन की व्यवस्था की गयी है। आज डोंगरगढ़ से एवं आसपास के ग्रामीण क्षेत्र के सैकड़ों लोगों ने अपना इलाज करवाकर लाभ लिया जैसे बी.पी., शुगर, सिरदर्द, माईग्रेन, खुजली, अस्थमा आदि बिमारियों का ईलाज निःशुल्क आयुर्वेदिक औषधि एवं योग प्राणायाम के द्वारा किया गया।

यह जानकारी चंद्रगिरि डोंगरगढ़ से निशांत जैन (निशु) ने दी है।

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