आचार्यश्री समयसागर जी महाराज इस समय डोंगरगढ़ में हैंयोगसागर जी महाराज इस समय चंद्रगिरि तीर्थक्षेत्र डोंगरगढ़ में हैं Youtube - आचार्यश्री विद्यासागरजी के प्रवचन देखिए Youtube पर आचार्यश्री के वॉलपेपर Android पर आर्यिका पूर्णमति माताजी डूंगरपुर  में हैं।दिगंबर जैन टेम्पल/धर्मशाला Android पर Apple Store - शाकाहारी रेस्टोरेंट आईफोन/आईपैड पर Apple Store - जैन टेम्पल आईफोन/आईपैड पर Apple Store - आचार्यश्री विद्यासागरजी के वॉलपेपर फ्री डाउनलोड करें देश और विदेश के शाकाहारी जैन रेस्तराँ एवं होटल की जानकारी के लिए www.bevegetarian.in विजिट करें

केवट ले चलत है इस युग के महावीर को…


*कल आचार्य गुरुवर विद्यासागर जी महाराज का मंगल विहार देवगढ़ जी क्षेत्र से मुंगावली नगर के लिये हुआ, जिस रास्ते विहार हुआ वह आम रास्ता नही था बल्कि वैकल्पिक मार्ग है पगडंडियों वाला रास्ता जिस पर चलकर ग्रामीण आगे आने वाले दूसरे गाँव मे अपने व्यापार आदि को करने बगैर किसी साधन के पैदल ही आते जाते रहते है उन्हें दूरी का भी अनुमान नही होता उनसे यदि पूछा जाए कि फलाना जगह कितनी दूर है तो बस उनका जबाब एक फलांग ही होता है वे मिट्टी और गिट्टी की बनी सड़क पर जूते पहिन कर साइकिल से फर्राटा लगाते हुए जाने में गौरवान्वित महसूस करते है

कल कुछ ऐसी ही गलती व्यावथापको द्वारा हुई उन्हें निर्देश दिया गया कि जो मार्ग नजदीक का है उसकी जानकारी कर के दीजिये तो उन्होंने नई लक्जरी गाड़ी में बैठ कर दोनो सड़को की दूरी माप ली जो मुख्य मार्ग से 48 और वैकल्पिक मार्ग से 28 किलोमीटर की थी चूंकि इस मार्ग को नदी पार कर जाना होता था और यहाँ एक पुराना पुल हुआ करता था जिस पर चलकर घुटने तक के पानी से आसानी से नदी पार किया जा सकता था ऐसी उन्हें जानकारी थी सो बस उन्होंने जाकर संघ के बड़े साधुओ से बता दिया

बड़े सभी महाराजो ने निर्णय लिया कि अभी नये नये महाराज भी साथ है इसलिये छोटे रास्ते ही चले ताकि उन्हें अत्यधिक थकान ना हो लेकिन उन्हें यह नही पता था कि वे व्यवस्थापक लक्जरी गाड़ी से गए थे और उन्होंने मात्र दूरी मापी सड़क को नीचे देखा ही नही वहां सड़क थी ही नही, गिट्टी ओर कंकरीली मिट्टी की पगडंडियों सा रास्ता था- सो पूरा संघ चल पड़ा उस रास्ते की ओर जो कम दूरी का मार्ग था लेकिन जैसे जैसे आगे बड़ते जा रहे थे पैरों की खाल निकलने लगी थी और तो और कुछ साधु जिनके पैर नाजुक थे उनसे तो खून भी निकलने लगा था मगर सभी बड़े इसलिए जा रहे थे कि रास्ता छोटा है

लगभग जब नदी के मुहाने पर पहुचे तो विहार करने वाले जो जन साथ थे उन्हें छोड़कर बाकी वे सभी व्यवस्थापक तो डर के मारे गायब हो चुके थे जिन्होंने व्यवस्था बनाई थी और शेष रह गए थे आचार्य भगवंत विद्यासागर जी महामुनिराज अपने विशाल संघ के साथ और साथ मे थे ब्रह्मचारी भैया सुनील जी इंदौर ,दीपक जी और अशोक जी लिधौरा

अब दुबिधा की स्थिति थी सामने नदी का चौड़ा पाठ और पीछे फिर वही रास्ता जिस पर चलकर जाने में पैर सक्षम नही थे वैसे आचार्य महाराज यदि चाहते तो उनकी दृढ़ इक्षाशक्ति के आगे नदी को भी रुकना पड़ता हम विगत दिनों में रहली में देख चुके है कि चढ़ी नदी में पैर रखते ही रास्ता बन गया था और पैदल ही विहार किया था किंतु ऐसे अतिषययुक्त कथानकों को सुनकर जो भीड़ बड़ती है उसे सम्हालना बड़ा मुश्किल होता है सो अपने विशाल संघ के हित को ध्यान करते हुए आचार्य महाराज कुछ चिंतित से हो उठे और आपस मे संघ एवं ब्रह्मचारी जी चर्चा करने लगे

लेकिन तभी एक ऐसा वाकया घटित हो उठा कि आचार्य महाराज नाव में बैठ कर नदी पार करने को तैयार हो गए हुआ यूं कि मछली का ठेकेदार जिसकी सलाना आय 12 से पन्द्रह करोड़ के आस पास होती थी आगे अपने इस कार्य को नही करने का वचन देता है और विनती करता है कि गुरुदेब हमारी नावों में बैठिये और हमारे ब्रत की दृढ़ता को आशीर्वाद दीजिये, जब गुरुदेव ने ठेकेदार की बात सुनी तो आचार्यो द्वारा भगवती आराधना में लिखा वह पेज दृष्टिनगत हो गया जिसमें साफ साफ लाख है कि विशेष परिस्थितियों में यदि नाँव में जाना पड़े तो प्रायश्चित के साथ जा सकते है और बस नावों में विराजमान होकर पूरा संघ नदी पार हो गया

हमने आप को पहिले भी बता दिया है कि आचार्य महाराज रिद्धि सिद्धि के धारी है वे अगर चाहते तो नदी का प्रवाह रुक सकता था किन्तु ऐसा करने से लोग अतिशय मान कर उनके आगे पीछे पड़ने लगते है जिससे उनकी चर्या में विघ्न होता और संघ को भी परेशानियों का सामना करना पड़ता इसलिये संघ के हित में लिया गया यह निर्णय सर्वमान्य आचार्यो द्वारा संस्तुति प्राप्त है

तद्उपरांत नदी पार करते हुए

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