आत्मदीक्षा
उड़ती चिड़िया से मैंने पूछा-
तुमने नीलगगन में
उड़ना किससे सीखा?
जब बादल बरसे,मैंने पूछा-
तुमने धरती पर आना
किस्से सीखा?
बहती नदियों से मैंने पूछा-
तुमने किससे बहना सीखा?
सागर के तट पर आकर
मैंने सागर से पूछा-
तुमने गहरे में गहराना
और सतह पर लहराना
मुझे बताओ
किससे सीखा?
सब मुस्काये ऐसे
जैसे कहते हों
हमने सीखा-
अपने से
अपने से
अपने से!
Self Taught
I asked the bird,
As it flew in the sky,
‘Bird, who taught you
To fly?’
When it rained, I asked the rain,
‘Who taught you
To rain on earth?’
I asked the river as it flowed,
‘who taught you
How to flow?’
On the sea coast, I asked the sea,
‘Tell me, who taught you about
The depths of the deep
And the smoothnesses
So oceanic?
All of them smiled
As if to say-
Self
Self
Self!
स्वीकारोक्ति
हम
सबकी बातें
चुपचाप स्वीकार कर लेते है
लोग कहते है
कि सब स्वीकार करते जाना कमजोरी है
सो हम इस बात को भी स्वीकार कर लेते है
क्या करें
हम कमजोर है
हमसे व्यर्थ
लड़ा नहीं जाता !
I Accept
I accept everything
That I am told by others.
People say that
To go on accepting everything
Means you are weak.
I accept even this.
I accept that I am weak.
I accept that I am weak.
I do not wish
To quarrel
Unnecessarily.
और और अपना
जिसे पाकर लगे
कि अपने को पा लिया,
समझना वह अपना है!
और जिसे पाकर
लगे कि अपने को
खो दिया,
समझना वह और भी
अपना है!
Even More
Finding which
You find yourself
Is a real find.
Finding that after which
You lose yourself,
Is even more of a find.
सागर असीम होकर भी ...
सागर के शांत जल में
जब भी कोई अपना प्रतिबिम्ब देखने झुकता है
तब सागर भी उन आँखों में अपने को प्रतिबिंबित होते देख लेता है
तब सागर असीम होकर भी सीमाओं में समा जाता है!
Despite its Boundlessness
Whenever some one bends
To see himself in the sea,
The sea too sees itself
Reflected in the seer’s eye.
And so the sea, despite its boundlessness
Gets confined.
नाव
जो नाव मुझे
उस पार ले जाएगी,
एक दिन
उस पार पहुंचकर
उसे भी
छोड़ना होगा!
यह जानते हुए भी
मन, नाव से
कितना बंध जाता है!
Vessel
The vessel that would ferry
Me across,
Would be left behind
After reaching
The other side.
Knowing this,
The heart is still so fondly tied
To the vessel.
सीढ़ी हूँ..
मैं तो
लोगों के लिए
एक सीढ़ी हूँ
जिस पर
पैर रखकर
उन्हें ऊपर पहुंचना है
तब सीढ़ी
का क्या अधिकार
कि वह सोचे
कि किसने
धीरे से पैर रखा
और कौन
उसे रौंदता चला गया!
A Ladder Merely
I am merely a ladder
Stepping on which
People wish to climb higher.
Should the ladder
Make a distinction
Between the one
Who rode gently,
And the one
Who trampled it
Brutally?
घर -१
कल
चिड़िया ने
घोंसले बनाये थे
आज भी बनाये हैं,
मैं सोचता हूँ
कि चिड़ियाँ
जब तक रहेंगी
घोंसले बनाती रहेंगी!
चिड़ियों के लिए
और शायद
हम सभी के लिए
अतीत
अनागत और वर्तमान का
इतना ही अर्थ है,
कि हमें हर बार
रहने के लिए
एक घर बनाना है !
House-1
Yesterday, the bird built
Their nests.
Today too, the birds
Are building their nests.
I know that the birds
Shall build nests
As long as there are birds.
For birds,
As well as us,
Our past, present
And future
Mean only this;
That in order to live in it,
We have to build a house
Everytime.
घर -२
यहाँ आदमी
पहले अपने मन का
एक घर बनाता है
जो बनते वक्त
बहुत बड़ा बनता है
पर रहते-रहते
बहुत छोटा लगने लगता है
फिर मजबूरन उसे
एक घर और
बनाना पड़ता है
आदमी वही रहता है
घर
बदल जाता है!
House-2
First,
We build a house
Of our dreams.
We like to make it large
While building it-
But as we live in it
We feel it is too small.
Then perforce we build
Another house.
We remain the same;
Only our house changes.
आवाजें
बनता
चुपचाप है,
टूटता
आवाज़ के साथ है!
ज़िन्दगी के
इस दौर में
अब आवाज़ ही
आवाज़ है !
Noises
What grows
Noiselessly,
Breaks
Noisily.
Now at every turn in life
There is noise
Only.
कल ?
यहाँ के लोग
वक्त के बड़े पाबन्द हैं ,
कल का काम
आज नहीं करते!
और कल ?
कल तो कभी नहीं आता,
इसलिए
कभी नहीं करते!
Tomorrow?
People here are extremely
Conscientious.
They do not do
Tomorrow’s work
Today.
And tomorrow?
Tomorrow never
Comes.
Thus they do
Nothing.
सावधान
दर्पण
तोड़ने से पहले
इतना
जरुर देख लेना
कहीं
दर्पण में बना तुम्हारा प्रतिबिम्ब
टूट न जाए !
Careful
Before you shatter the glass
Be sure
That your own image
Reflected in the glass
Does not shatter
With the shattered glass.
सह यात्राएँ
चलते - चलते
देखता हूँ,
अनायास ही
कोई न कोई
साथ हो जाता है!
कुछ दूर
वह साथ चलता है
फिर या तो
ठहर जाता है
या रास्ता ही बदल लेता है !
मैं यह सोचकर
आगे बढ़ जाता हूँ
कि साथ चलने का सुख इतना ही होता है !
Co-journeys
As I walk
I find
That someone or the other
Walks with me.
He walks by my side
A short while,
And then
Either he stops
Or moves to another side.
I keep walking
With the realization
That the joy of walking together
Had to be this much only.
नदी आयी है
एक नदी
मुझसे मिलने
सुना है, सारे रास्ते
दौड़ती हांफती आयी है
पर मेरे समीप आकर,
मुझमें समाने से पहले
देख रहा हूँ
वह, एकदम शांत हो गयी है!
उसे देखकर
ज़रा भी तो नहीं लगता
कि थकी हारी
मुसीबतो को पार करती हुई
आयी होगी!
सोच रहा हूँ कि
क्या अपने में समाने
से पहले,
हम इतने ही शांत
हो जाएंगे ?
क्या अपने को पाने का
आनंद इतना ही
असीम होगा, कि हम
साड़ी मुसीबतें भूल जाएंगे?
नदी अपनी है
मैं अपना हूँ
पर नदी अपने को खोकर
मुझे पा लेती है!
वह स्वयं
सागर हो जाती है!
सचमुच,हम अपने को
खोकर, अपने को ही
पा लेते हैं!
The River Arrives
A river, I hear, has come
Running and panting
To meet me.
But before losing itself
In me, I find
That the river has calmed down
Entirely.
No one could even guess
How hard was the river’s journey.
I wonder if we too,
Before falling into ourself,
Would be like the river
So calm and at peace?
I wonder if the ecstacy
Of finding ourselves
Would be so enormous
That we shall forget
How difficult was our journey.
The river is river,
And I, I;
Still the river
In losing itself,
Finds me.
The river thus
Becomes the sea.
Indeed, in losing ourselves
We find ourselves only.
मुक्ति
जो ज्योति-सा
मेरे ह्रदय में
रोशनी भरता रहा
वह देवता!
जो सांस बन
इस देह में
आता रहा
वह देवता!
जिसका मिलन
इस आत्मा में
विराग का
कोई अनोखा गीत
बनकर, गूंजता
प्रतिक्षण रहा
वह देवता!
मैं बंधा जिससे
मुझे जो मुक्ति का
सन्देश नव
देता रहा
वह देवता!
जो समय की
तूलिका से
मेरे समय पर
निज समय
लिखता रहा
वह देवता!
जो मूर्ति में
कोई रूप धरता
पर अरूपी ही रहा
वह देवता!
जो दूर रहकर भी
सदा से साथ मेरे है
यही अहसास
देता रहा
वह देवता!
मैं जागता हूँ
या नहीं
यह देखने
द्धार पर मेरे
दस्तक सदा देता रहा
वह देवता!
जो गति
मेरी नियति था
ठीक मुझ-सा ही
मुझे करता रहा,
वह देवता!
Release
The one who filled
My heart with light,
Was divine,
The one who entered
My body as my breath
Was divine.
The one after meeting whom,
My soul learned to sing each moment
The music of detachment,
Was divine.
The one I remained tied to,
While he taught me
How to be free,
Was divine.
The one who painted
With the time’s brush
His time on my time,
Was divine.
The one who filled
The stone with a form
But remained formless,
Was divine.
The one who remained away
But allowed me to feel
That he was always with me,
Was divine.
The one who knocked
On my door again and again
To see that I was awake and not asleep,
Was divine.
The one whose path
Was my destiny,
Who made me exactly me,
Was divine.
वही है
उसने
एक पेड़ लिखा
खिड़की से बाहर
झांका, देखा
कोई और उससे भी पहले
कई-कई पेड़ लिख गया!
उसने सोचा
वह अब पहाड़ लिखेगा
देखा सहसा
कोई और सामने
एक पहाड़ लिख गया!
उसने डरते-डरते,चुपके-से
एक नदी को लिखा
और देखा
एक नदी कोई और लिख गया!
अब वह नहीं लिखता
कहता है
कोई और है
और सिर्फ वही है
जो लिखता है!
Someone Else
He wrote, tree-
And then he looked out the window,
Someone else had written
Many many trees before him.
So he decided he would write,hill-
He looked around and noticed
That someone else had written, hill.
Then stealthily he wrote, river-
He noticed that someone else
Had written river too.
He does not write anymore.
Now he says that there is
Someone else-
And that someone else alone, writes.
रोशनी के लिए
साँझ के किनारे
खड़े होकर
मैंने पहाड़ से उतरती
रात को देखा
और सोच में
डूब गया
कि अन्धेरा
कितनी जल्दी
उतर आया
सुबह
रोशनी के लिए
सूरज को
पूरा पहाड़
चढ़ना होगा!
For Light
I stood at the edge of the dusk
And saw night
Descend slowly from the hill.
I was surprised
That the darkness had
Fallen so soon.
In the morning now,
The sun would have to climb
A whole mountain
To gather light.
कुछ भी नहीं
प्यासा मृग
मरीचिका में उलझा
और तड़प उठा
हमने कहा-
बेचारा मृग!
ललचाती मीन
कांटे -में उलझी
और मर गयी
हमने कहा-
अभागी मीन!
एक पतिंगा
दीपक की जोत पर रीझा
और झुलस गया
हमने कहा-
पागल परवाना!
वाह रे हम,
अपनी प्यास
अपने लालच
और अपने दीवानेपन पर
हमें अपने से
कुछ भी नहीं कहना!
Never
The thirsty deer
Chased a mirage, and
Was tormented.
We said,
‘Poor deer!’
The greedy fish
Bit the bait
And died.
We said,
‘Poor fish!’
The moth was drawn
To the candle
And got burnt badly.
We said,
‘Foolish moth!’
But look at us!
We never chastise ourselves-
When we thirst,
When we lust,
And when, with desire,
We lose our mind.
ना सही
माना कि हममें
भगवान बनने की
योग्यता है
पर इस बात पर
हम इतना
अकड़ते क्यों है?
(वह तो किसी चींटी में भी है)
सवाल सिर्फ योग्यता का नहीं
हू-ब-हू होने का है
स्वयं को
भगवान मानने/मनवाने का नहीं
स्वयं भगवान
बन जाने का है
और फिर इस बार
ना सही भगवान
एक बेहतर
इंसान तो बन जाएँ!
If Not
Granted w have the
Ability to be god,
But why are we
So vain about it?
(Even an ant has the same ability)
It’s not a question
Of ability, in any case;
The question is of exactness-
Of knowing oneself to be god
And not making
Other people say
You are god!
The question is of being
Really god-
It not god, this time,
At least a better
Human being.
अगर
उसने सोचा
जब वह पहली बार
नीड़ से बाहर
पैर रखेगा
तब कोई आकर
उसे थाम लेगा
आँचल से लगाकर
दुलार लेगा
पंख सहलाकर
उसे उड़ने का साहस देगा
दो-चार कदम
उसके साथ चलेगा
पर हुआ यह
कि उसने
न पैर बाहर रखा
न पंख खोले
न उड़ा
सोचता ही रहा
अगर ऐसा न हुआ
तो क्या होगा?
IF
He thought
That when he would
Step out of his nest
For the first time,
Someone will be there
To steady him,
Someone will be there
To brush his wings gently
And encourage him to fly;
Someone would even walk
A few steps with him-
But what happened was this;
He did not step out of his nest;
He did not stretch his wings;
And he did not fly at all.
Instead, he kept
On wondering,
About this or that happening
Or not happening.
मैं चुप
सबको छोड़कर
मैं अपने को
खोजने निकला
लोगों ने इसे
मेरी अकर्मण्यता
और पलायन कहा!
मेरा रास्ते पर
निश्छल
निरावरित चलना
लोगों को
पागलपन लगा!
मेरी सर्वमैत्री को
लोगों ने
अहंकार कहा!
मेरी सरलता को
लोगों ने
कायरता कहकर
खूब मजाक बनाया!
मैं चुप रहा
और चुपचाप
चलता रहा!
चलते-चलते
अपने में
खो गया/नहीं रहा
तब से
लोगों ने
मुझे देवता कहा!
अब मैं
उनका बनाया
पत्थर का
देवता हूँ!
अचरज की बात है
कि जीते-जी
मुझ आदमी में
जो देवत्व
किसी ने नहीं देखा
उसे आज
मेरी प्रतिमा में
कैसे देख लिया ?
My Silence
I left everyone behind
And looked for myself.
People called it a
Lack of purpose,
They called me an evasionist.
As I walked
Determined to walk
On and on,
People called it insanity.
As I befriended all,
People called it
Conceit.
People called my
Spontaneity,
My weakness.
They laughed and made fun
Of me.
I said nothing
And kept on walking
I walked
Till there was no me.
People then called me
Divine.
Now I am a
A stone idol
Crafted by them.
What is amazing indeed
Is that no one saw
Divinity in me
While I was human.
How do they see it noe
In a mere stone-image of me?
खिड़की
संबंधों के बीच
पहले
एक दीवार
हम खुद खड़ी करते हैं
फिर उसमें
एक खिड़की
लगाते हैं
पर ज़िंदगी-भर
करीब रहकर भी
हम खुलकर
कहाँ मिल पाते हैं?
Window
First- we put a wall
Between ourselves
And our relationships.
Then we open a window
In this wall.
But no matter how much
The proximity,
We do not, to the others,
Open up entirely
Throughout our lives.
इस तरह
एक उड़ते
पखेरू ने
मुझसे निरंतर
उड़ते रहने को कहा
एक पेड़ ने
तूफानों के बीच
अडिग
खड़े रहने को कहा
और एक नदी
मुझसे
निरंतर
बहते रहने को कह गयी
सूरज ने
सुबह आकर
मुझसे
दिन-भर
रोशनी देते रहने को कहा
चाँद-सितारों ने
रात-भर
अंधेरों से
जूझने को कहा
और एक नीली झील
मुझे बाहर-भीतर
एक सार
निर्मल होने को कह गयी
सागर ने
धीरे से
लहराकर कहा-
असीम होओ
और एक नन्हीं बदली
प्रेम से भरकर
मुझसे
निरंतर
बरसने को कह गयी
मेरी ज़िंदगी
इस तरह
सबकी हो गयी!
Thus
A bird while flying
Told me to go on
Flying.
A tree said, ‘Stand
Firmly during the storms.’
A river told me
To flow uninterrupted.
The morning sun
Said,’God light the whole day.’
The moon and the stars
Told me to grapple
With darkness all night.
A blue lake told me
To be single-faced
And transparent all the time.
The sea swelled and said,
‘Stay within your boundary.’
The sky put its arms
Around everything and said,
‘Be endless.’
And a small cloud
Said to me lovingly,
‘Please go on raining.’
Thus, my life now
Was everyone’s life.
शिकायत
कागज़ की कश्ती
कुछ देर
लहरों में खेली
फिर डूब गयी
उसे शिकायत है कि
किनारों ने उसे धोखा दिया!
Grudge
The paper boat
Floated on the wave for a while
And then capsized.
The boat has a grudge,
That the river bank
Cheated it.
नि:शेष
मुझे
कहना है अभी
वह शब्द
जिसे कहकर
नि:शब्द को जाऊँ
मुझे देना है अभी
वह सब
जिसे देकर
नि:शेष हो जाऊँ
मुझे
रहना है अभी
इस तरह
कि मैं रहूँ
लेकिन
"मैं" रह न जाऊँ !
Spent
I have yet to utter that word
After saying which I would
Have no use for words.
I have yet to give that,
After giving which
I would be fully spent.
I have yet to live
In a manner
After which I may live
But there would be no longer a me.
एक ईंट
पुरानी दीवार की
एक ईंट
और गिर गयी
लगता है जैसे
किसी ने पूछा हो
ज़िंदगी और कितनी रह गयी?
A Brick
A birck came loose
And fell off the old wall.
As if someone stopped to ask,
‘How much longer now, life?’
उसने कहा
मौत ने आकर
उससे पूछा-
मेरे आने से पहले
वह
क्या करता रहा?
उसने कहा-
आपके स्वागत में
पूरे होश
और जोश में
जीता रहा
सुना है
मौत ने
उसे प्रणाम किया
और कहा-
अच्छा जियो
अलविदा
He said
Death came and asked him,
‘What were you so busy doing
Before I arrived?’
He said,’ I lived with full alertness
In order to welcome
Your coming.’
I am told that Death
Saluted him and said,
‘Great! Go on living.
Goodbye.’
सोच
एक वे हैं
जो ये सोचकर
जी रहे हैं
कि एक दिन
मरने का तय है
जो आज अभी
ठाठ से जियो
एक वे हैं
जो ये सोचकर
मर रहे हैं
कि आज अभी
यदि मौत आ जाए
तो शान से मरो
ये तो हम हैं
जो इस सोच में
न जी पा रहे हैं
न मर पा रहे हैं
कि वे क्यों
शान से मर रहे हैं
कि वे क्यों
ठाठ से जी रहे हैं?
Thought
There are those who think
That since death will surely be
Why not live fully; and they do.
There are those who think
That may be we shall die today
Suddenly, so why not die
Gloriously; and they do.
But we? We neither live nor die.
We worry all the time that
Why do some live so lustily?
Why the others, die so gloriously.
ज़िन्दगी-भर
हम ज़िन्दगी-भर
जीते हैं
कुछ इस तरह
कि जैसे
जीना नहीं चाहते
जीना पड़ रहा है
और मरते वक़्त
मरते हैं
कुछ इस तरह
कि जैसे
मरना नहीं चाहते
पर मरना पड़ रहा है
शायद इसलिए
बारम्बार हमें जीवन
दुहराना पड़ रहा है!
All Through Life
All through our life
We live as if
We rather not live,
But are forced to do so.
And when we die,
We die as if
We rather not die
But are forced to do so.
Perhaps that’s why
We have to return
Again and again
To repeat the process of living.
काँधे
मुझे मौत में
जीवन के-
फूल चुनना है
अभी मुरझाना
टूटकर गिरना
और अभी
खिल जाना है
कल यहाँ -
आया था
कौन, कितना रहा
इससे क्या?
मुझे आज अभी
लौट जाना है
मेरे जाने के बाद
लोग आएं
अर्थी संभालें
काँधे बदलें
इससे पहले
मुझे खुद सम्भलना है!
मौत आये
और जाने कब आये
अभी तो मुझे
संभल-संभलकर
रोज-रोज जीना
और रोज-रोज मरना है!
Shoulders
I have to gather the blossom of life
In death.
After withering
And getting blown away,
I have to instantly bloom again.
I came yesterday.
How long did I stay-
What does it matter?
I have to return
Right now, today.
After I leave
Let people worry
About my mortal remains,
Shift shoulders to carry me on;
I have to learn
To carry my own self.
Who knows when death
May come.
Right now I have to,
Live daily with care,
And daily die.
साज
मौत;
मैं सुन रहा हूँ
तुम्हारे
आने से पहले
तुम्हारे
आने की आवाज़
कितना मधुर है
मेरे द्वार पर
आकर
तुम्हारा
मुझे पुकारने का अंदाज़
कि चलो!
ऐसा लगता है
मानो दूर कहीं
बज रहा हो
कोई सुरीला साज
कि चलो!
और तुम्हारा
यह इस तरह
खुद चलकर
मेरे करीब आना
अपने हाथों
मेरे बंद पिंजरे का
द्वार खोलना
मुझे मुक्त करना
कित्ता अच्छा
लग रहा है आज
अपने घर-
मानसरोवर
लौटता
मेरा मानस-हंस
तुम्हें प्रणाम करता है
अंतिम बार आज!
Instrument
Death, I can hear you
Even before your coming.
How sweet the manner
In which you call me
From outside my door,
‘Come, let’s go.’
This call of yours
Sounds like a string
Instrument playing
Somewhere and saying
‘Come, let’s go.’
Your coming personally
To fetch me,
And opening the locked cage,
To free me,
Feels so good today.
This mortal swan
Now returns to the
Manasarovar;
And bows to you
For one last time.
बसंत
मुझसे सुनकर
बात मरण की
मेरे भीतर-
तुम्हें निराशा
छाई लगती होगी
पर जीवन में
स्वीकार मरण का
हंसी-ख़ुशी कर लेना
जीवन का
इंकार नहीं है
वह तो क्रम है
संसृति का
जैसे वृक्षों से
पतझर पत्तों का गिरना
पतझर से
इंकार नहीं
स्वागत है
आते बसंत का!
Spring
When I speak of death
You may surmise
That there is utter
Hopelessness in me.
But to cheerfully accept death
In life is not a negation
Of life.
It’s not to chide autumn
That trees let go of their old leaves;
It’s to welcome the spring.
रेत पर पैरों की छाप
नदी के किनारे
रेत पर पड़ी
अपने पैरों की छाप!
सोचा लौटकर उठा लाऊं
मुड़कर देखा, पाया
उठा ले गयी हवाएं
मेरी छाप अपने आप
अब मन को
समझाता हू
की हवाएं सब
दुश्मनों की नहीं होती
जो मिटाने आती हो
हमारी छाप !
असल में
अहम् की रेत पर
बनी हमारी छाप !
मिट जाती है अपने आप!
Footprints on Sand
I thought I should go
And retrieve my footprints
From the sand at the river bank.
As I turned, I saw
The wind had blown away
My footprints on its own.
Now I console myself
That the winds which blow our way
To extinguish us
Are not always of our enemy’s.
The print we leave
On our ego’s sand
Are swept away on their own.
स्वयं अकेला
उसने
चाहा कि
उसके सब ओर
सागर हो
और अब
जब उसके
सब ओर
सागर फैला है,
वह स्वयं
एक द्धीप की तरह
निर्जन
और अकेला है!
Isolated
He wanted
The ocean to be around him.
Now that the ocean
Surrounds him from all sides,
He is like an island
Isolated and uninhabited.
लोग हँसते हैं
मैंने
सूरज को बुलाया है
वृक्ष भी आएंगे
चिड़िया भी आएगी,
नदी और सागर
दोनों ने
आने को कहा है,
धरती और आकाश
दोनों के नाम
मैंने चिठ्ठी लिख दी है,
कि हमारी
माटी की गुड़िया के
ब्याह में
सभी को आना है!
लोग हँसते हैं,
कहते हैं
यह मेरा बचपना है!
सचमुच, प्रकृतिस्थ होना
बचपन में लौट आना है!
People Laugh
I have invited the sun.
The trees too would come.
Also the birds.
The river and the sea
Both have consented
To come.
I have dispatched
A letter to the earth
And thesky,
Asking them to
Attend the wedding
Of my clay doll.
People laugh at me
And say this is indeed childish.
Indeed, to be natural
Is to go back in time
To be a mere child.
कहनी - अनकहनी
कुछ कहने से पहले
हम कितना सोचते है
कि इस बार
सब कह देंगे !
पर कहने के बाद
मालूम पड़ता है,
कि कहा कम
और अनकहा
ज्यादा रह गया है ..
असल में, भावों के
प्रवाह में शब्दों का सेतु
या तो बन ही नहीं पाता
या टूट जाता है !
Said-Unsaid
Before we speak
We resolve to say it all this time
And not hold back anything.
But after we speak
We realize
That what we said
Was far less than what
We did not speak.
The trouble is,
That in ths stream of thoughts
Words either dail to form a bridge
Or the bridge collapses.
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