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आचार्यश्री विद्यासागरजी की बुंदेली पूजन

-मुनिश्री सुव्रत सागरजी द्वारा रचित

अरे मोरे गुरुवर विद्यासागर, सब जन पूजत हैं तुमखों, हम सोई पूजन खों आये,
हम सोई पूजन खों आये, तारो गुरु झट्टई हमको, मोरे हृदय आन विराजो,
मोरे हृदय आन विराजो, हाथ जोर के टेरत हैं, और बाट जई हेर रहे हम,
और बाट जई हेर रहे हम, हंस के गुरु कबे हैरत हैं, मोरे गुरुवर विद्यासागर
ॐ ह्रीं आचार्यश्री विद्यासागरजी मुनीन्द्राय अत्र अवतर अवतर संवौसठ इति आह्वानम्।
अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः स्थापनम्। अरे बाप मतारी दोई जनो ने, बेर बेर जन्मों मोखों, बालापन गओ आई जवानी,
बालापन गओ आई जवानी, आओ बुढ़ापो फिर मोखों, नर्रा नर्रा के हम मर गए,
नर्रा नर्रा के हम मर गए, बात सुने ने कोऊ हमाई, जीवो, मरवो और बुढ़ापो जीवो,
मरवो और बुढ़ापो, मिटा देओ मोरो दुःखदाई, मोरे गुरुवर विद्यासागर ।।१।।
ॐ ह्रीं आचार्य गुरुवर श्री विद्यासागरजी मुनीन्द्राय जनम जरा मृत्यु विनाशनाय जलं निर्वपामीति स्वाहा।

Vidyasagarji

अरे मोरे भीतर आगी बर्ररई, हम दिन रात बरत ऊ में, दुनियादारी की लपटों में,
दुनियादारी की लपटों में, जूड़ा पन ने पाओ मैं, मौय कबहु अपनों ने मारो, मौय कबहु अपनों ने मारो,
कबहुं पराये करत दुःखी, ऐसी जा भव आग बुझा दो,
ऐसी जा भव आग बुझा दो, देओ सबोरी करो सुखी, मोरे गुरुवर विद्यासागर ।।२।।

ॐ ह्रीं आचार्य गुरुवर श्री विद्यासागरजी मुनीन्द्राय संसार ताप विनाशनाय चन्दनं निर्वपामीति स्वाहा कबहुं बना दओ मोखों बड्डो, आगे आगे कर मारो,
कबहुं बना के मोखों नन्हो, कबहुं बना के मोखों नन्हो, बहोतइ मोये दबा डारो, अब तो मोरो जी उकता गओ,
अब तो मोरो जी उकता गओ, चमक-धमक की दुनिया में, अपने घाईं मोये बना लो,
अपने घाईं मोये बना लो, काये फिरा रये दुनिया में, मोरे गुरुवर विद्यासागर ।।३।।
ॐ ह्रीं आचार्य गुरुवर श्री विद्यासागरजी मुनीन्द्राय अक्षय पद प्राप्ताय अक्षतान् निर्वपामीति स्वाहा

अरे कामदेव तो तुमसे हारो, मोये कुलच्छी पिटवावे, सारो जग तो मोरे बस में,
सारो जग तो मोरे बस में, पर जो मोंखों हरवावै, हाथ-जोड़ के पांव पड़े हम,
हाथ जोड़ के पांव पड़े हम, गेल बता दो लड़वे की, ई खों जीते मार भगावे,
ई खों जीते मार भगावे, ब्रह्मचर्य व्रत धरवें की, मोरे गुरुवर विद्यासागर ।।४।।

ॐ ह्रीं आचार्य गुरुवर श्री विद्यासागरजी मुनीन्द्राय कामबाण विध्वंसनाय, पुष्पं निर्वपामहमतों भूखे नै रै पावे, लडूआ पेड़ा सब चाने,
लचई ठलूड़ा खींच ओरिया, लचई ठलूड़ा खींच ओरिया, तातो बासो सब खाने, इनसे अब तो बहोत दुःखी भये,
इनसे अब तो बहोत दुःखी भये, देओ मुक्ति इनसे मोखों, मोये पिला दो आतम ईमरत,
मोये पिला दो आतम ईमरत, नैवज से पूजत तुमखों, मोरे गुरुवर विद्यासागर ।।५।।
ॐ ह्रीं आचार्य गुरुवर श्री विद्यासागरजी मुनीन्द्राय क्षुधा रोग विनाशाय नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा।

रे दुनिया कौ जो अंधियारो तो, मिटा लेत है हर कोऊ, मोह रहो कजरारो कारो,
मोह रहो कजरारो कारो, मिटा सके नै हर कोई, ज्ञान ज्योति से ये करिया को,
ज्ञान ज्योति से ये करिया को, तुमने करिया मो कर दओ, ऊसई जोत जगा दो मेरी,
ऊसई जोत जगा दो मेरी, दिया जो सुव्रत कर दओ, मोरे गुरुवर विद्यासागर ।।६।।

ॐ ह्रीं आचार्य गुरुवर श्री विद्यासागरजी मुनीन्द्राय मोहान्धकार विनाशाय दीपं निर्वपामीति स्वा
अरे खूबई होरी हमने बारी, मोरी काया राख करी,
पथरा सी छाती वारे जे, पथरा सी छाती वारे जे, करम बरे ने राख भई,
तुम तो खूबई करो तपस्या, तुम तो खूबई करो तपस्या, ओई ताप से करम बरें,
मोये सिखा दो ऐसे लच्छन, मोये सिखा दो ऐसे लच्छन, तुमसों हम भी ध्यान धरें, मोरे गुरुवर विद्यासागर ।।७।।
ॐ ह्रीं आचार्य गुरुवर श्री विद्यासागरजी मुनीन्द्राय अष्ट कर्म दहनाय धूपं निर्वपामीति स्वाहा

तुम तो कोनऊ फल नई खाउत, पीउत कोनहु रस नइयां,
फिर भी देखो कैसे चमकत, फिर भी देखो कैसे चमकत, तुम जैसो कोनऊ नइयां, हम फल खाके ऊबे नइयां,
हम फल खाके ऊबे नइयां, फिर भी चाने शिव फल खों, ओई से तो चढ़ा रहे हम,
ओई से तो चढ़ा रहे हम, तुम चरनो में इन फल खों, मोरे गुरुवर विद्यासागर ।।८।।
ॐ ह्रीं आचार्य गुरुवर श्री विद्यासागरजी मुनीन्द्राय महामोक्षफल प्राप्ताय फलं निर्वपामीति स्वाहा

ऊसई ऊसई अरघ चढ़ाके, मोरे दोनउ हाथ छिले, ऊसई-ऊसई तीरथ करके,
ऊसई-ऊसई तीरथ करके, मोरे दोनउ पांव छिले, नै तो अनरघ हम बन पाये,
नै तो अनरघ हम बन पाये, नै तीरथ सो रूप बनो, ऐई से तो तुम्हें पुकारे,
ऐई से तो तुम्हें पुकारे, दे दो आतम रूप घनो, मोरे गुरुवर विद्यासागर ।।९।।
ॐ ह्रीं आचार्य गुरुवर श्री विद्यासागर जी मुनीन्द्राय अनर्घ पद प्राप्ताय अर्घम् निर्वपामीति स्वाहा

-जयमाला-

विद्या गुरु सो कोऊ ने, जग में दूजो नाव
सबई जनें पूजत जिने, और परत हैं पांव
दर्शन पूजन दूर है, इनको नाव महान
बड़ भागी पूजा करें, और बनावें काम

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