श्री दिगंबर जैन रेवातट सिद्धोदय सिद्ध क्षेत्र ट्रस्ट
क्षेत्र परिचय
रावण के सुत आदि कुमार, मुक्ति गए रेवातट सार।
कोटि पंच अरु लाख पचास, ते बंदो धरि परम हुलास॥
उपरोक्त निर्वाण कांड के श्लोक के अनुसार साढ़े पाँच करोड़ मुनिराज रेवातट से मोक्ष पधारे हैं। प्रश्न होता है कि रेवा नदी जो नर्मदा के नाम से जानी जाती है। अमरकंटक से निकल कर भरुच (गुजरात) के समुद्र में विलीन हुई है। अतः यह स्थान कौन-सा है? अभी तक की मान्यता के अनुसार निर्वाण कांड के बारहवें नंबर के श्लोक पर रेवातट (नेमावर) के संबंध में उल्लेखित है, किंतु अभी तक सामान्य व्यक्ति दोनों श्लोकों को सिद्धवरकूट क्षेत्र से संबंधित मानते हैं। जबकि निर्वाण कांड के अनुसार यह स्थान (नेमावर) रेवानदी के मध्य स्थित है। इसलिए यहाँ पर नर्मदा का नाभिकुंड भी है। वैष्णव धर्म के अनुसार रेवा का मध्य स्थान होने से इसका अत्यंत महत्व है। रेवा के उस पार हंडिया ग्राम है, राज्य शासन के रिकार्ड पर आज भी इसका पूर्व नाम नाभापट्टम है। जैन शास्त्रों के अनुसार नाभापट्टम नगरी पर राजा कालसंवर और उनकी पत्नी कनकमाला राज्य करते थे। आगे जाकर यह नीमावती नगर हुआ तथा बाद में नेमावर से प्रसिद्ध हुआ। होल्कर शासन में नीमावर जिला भी था। नेमावती नगर पूर्ण जैन नगरी थी इसलिए नेमावर के आसपास के क्षेत्र में अनादिकाल के अनेक विशालकाय पुरातत्वीय अवशेष मौजूद हैं। उनमें से प्रमुख रूप से विक्रम संवत १८८० अर्थात् १७६ वर्ष पूर्व नर्मदा नदी में से तीन विशाल दिगंबर जैन प्रतिमा १००८ भगवान आदिनाथ, १००८ भगवान मुनिसुव्रतनाथ, १००८ भगवान शांतिनाथजी की पद्मासन मुद्रा में निकली, यह प्रतिमा अतिशययुक्त थी। ये तीनों प्रतिमाएँ नर्मदा नदी के भूगर्भ से प्राप्त हुईं। भगवान आदिनाथ नेमावर में, भगवान शांतिनाथ हरदा में तथा भगवान मुनिसुव्रतनाथ खातेगाँव मंदिरजी में मूलनायक के रूप में विराजमान हैं। वर्तमान में भूगर्भ से प्राप्त नेमावर जिन मंदिरजी में बारह प्रतिमाएँ, हरदा जिन मंदिरजी में एक, खातेगाँव जिन मंदिरजी में तीन तथा सिद्धोदय सिद्धक्षेत्र के नवीन मंदिरजी में भगवान पार्श्वनाथ की मनोज्ञ एवं चमत्कारिक प्रतिमा विराजमान है। निर्वाणकांड में लिखा हैः-
रेवा तडग्गी तीरे संभवनाथ केवलूश्पती
इसका अर्थ है कि इसी रेवातट पर तीर्थंकर संभवनाथ भगवान को केवलज्ञान प्राप्त हुआ था। पूज्य आचार्य श्री विद्यासागरजी महाराज के आशीर्वाद से पंचबालयति त्रिकाल चौबीसी जिनालय का ६ जून १९९७ को आचार्य श्री के ससंघ (९५ पिच्छी) मंगलमय सान्निध्य में समाज श्रेष्ठी श्री निरंजनलालजी, रतनलालजी बेनाड़ा परिवार, आगरा निवासी के करकमलों से हुआ और इसी समय आचार्य श्री ने विशाल जन समूह के समक्ष इस सिद्धक्षेत्र को श्री दिगंबर जैन रेवातट सिद्धोदय सिद्धक्षेत्र के नाम से अलंकृत किया।
इस प्रकार आचार्य श्री १०८ विद्यासागरजी महाराज के आशीर्वाद से सिद्धोदय सिद्धक्षेत्र नेमावर का नाम जैन तीर्थ के नक्शे में समावेश हुआ। क्षेत्र के बंधुओं की वर्षों की कामना पूर्ण हुई।
रेवा नदी के तीर पर, सिद्धोदय है क्षेत्र।
इसके दर्शन मात्र से, खुलता सम्यक नेत्र॥
सिद्धोदय से सिद्ध मुनि, साढ़े पाँच करोड़।
ऐसे सिद्धक्षेत्र को नमूं, सदा कर जोड़॥
प्रस्तावित विकास योजनाएँ तथा निर्माण
क्षेत्र की प्रबंध व्यवस्था ट्रस्ट द्वारा संचालित की जाती है। क्षेत्र पर विकास की दृष्टि से योजनाएँ तथा निर्माण कार्य प्रस्तावित हैं। विभिन्न योजना के निर्माण में जो भी दानदाता सहयोग करेंगे उनका नाम शिलालेख पर अंकित किया जाएगा।
त्रिकाल चौबीसी पंचबालयति जिनालय निर्माण में विभिन्न योजनाएँ
- पंचबालयति जिनालय का मुख्य मंदिर शिखर सहित (ऊँचाई १२१ फुट)
- सिंह द्वार (१०८ फुट)
- त्रिकाल चौबीसी मंदिर का गर्भगृह में मार्बल का मान स्तंभ (१२१ फुट ऊँचा)
- पंचबालयति की पाँच प्रतिमाएँ खड़गासन अष्ट धातु की
- चौबीसी में वर्तमान, भूत एवं भविष्यकाल की ७२ प्रतिमाएँ खड़गासन अष्ट धातु की
- चौबीसी विराजमान करने हेतु २४ वेदी का निर्माण होना है।
- चौबीसी के चौबीस मंदिर शिखर सहित निर्माण होना है।
- (अ) चौबीसी के ८ मंदिर शिखर सहित (६३*१३*१३)
- (ब) चौबीसी के १६ मंदिर शिखर सहित (५४*९*९)
- सभा मंडप की गुंबज (६५.३*६५.३)
- सभा मंडप के ऊपर सावरन (६५.३*६५.३)
- चौबीसी का नृत्य मंडप ८ (३२.३*३२.३)
- चौबीसी का सावरन २४ (३३*२१)
- चौबीसी के चौबीस मुख्य द्वार
- पंचबालयति मुख्य ४ द्वार
- पंचबालयति ८४ खंभे
- चौबीसी के ३०० खंभे
धर्मशाला परिसर में प्रस्तावित योजनाएँ तथा निर्माण
धर्मशाला निर्माणः-२६ कमरे की धर्मशाला बन कर तैयार हो चुकी है।
कॉटेज निर्माणः-
३६ कॉटेज बन कर तैयार हो चुके हैं। ५० कॉटेज की योजना है। वीआईपी कॉटेज- १६ कॉटेज (लेट-बाथ) बन कर तैयार हो चुके हैं।
आचार्य ज्ञानसागर वृत्ति आमः-वृत्ति आम बन कर तैयार हो चुका है।
वृत्ति आम आहार व्यवस्थाः-वर्तमान में १० ब्रह्मचारी आम में रहकर अपने रत्नत्रय का पालन कर रहे हैं। प्रतिवर्ष निश्चित एक दिन की आहार व्यवस्था के ध्रुव फंड की राशि रु. ४००० रखी गई है।
स्थाई पूजन कोषः-वर्ष में निश्चित एक दिन आपकी ओर से पूजन रु. ५०१/-
वृक्षारोपणः-धर्मशाला एवं त्रिकाल चौबीसी प्रांगण में आपके प्रिय की स्मृति में वृक्षारोपण प्रति वृक्ष ५०१/- रुपए
भोजन शाला का निर्माणः-क्षेत्र पर भोजन शाला का निर्माण होना है। रुपए ११,०००/- की राशि देने वालों के पाँच चित्र (पति-पत्नी) भोजन शाला में लगाए जाएँगे।
पंचबालयति त्रिकाल चौबीसी निर्माणः-में जो महानुभव २१,०००/- रु. से अधिक दान राशि प्रदान करते हैं, उनका नाम शिलालेख पर उल्लेखित होगा।
सिद्धोदय शिला की अनुपम योजनाः-चौबीसी जिनालय के निर्माण में छोटे, बड़े, गरीब, अमीर सभी का योगदान हो तथा निर्माण में जन-जन भावना जुड़े इसलिए आचार्य श्री की इच्छानुरुप सिद्धोदय शिला की अभिनव योजना प्रारंभ की गई जिसमें एक सिद्धोदय शिला के लिए १००० रु. राशि रखी गई है। इस योजना में सहयोगी बनने वालों के नाम एक स्थायी पुस्तक में संकलित करके रखे जाएँगे। कृपया इस योजना में सहयोगी बनकर क्षेत्र निर्माण में अपना योगदान दीजिए।
त्रिकाल चौबीसी एवं पंचबालयति जिनालय में से तीन मंदिर का निर्माण कार्य पूर्ण होकर अगले तीन मंदिर का निर्माण कार्य चल रहा है तथा निर्माण प्रगति पर है। आचार्य श्री जी के चातुर्मास काल में जिन दानदाताओं ने मंदिर निर्माण में दान राशि की घोषणा एवं सहयोग किया। उसके लिए कमेटी बहुत-बहुत साधुवाद देती है। घोषणा राशि तथा नवीन दान प्रदान करके चल रहे निर्माण कार्य में सहयोग देकर पुण्य लाभ अर्जित करें।
पत्र व्यवहार पता
नेमावर, (तहसील- खातेगाँव),
जिला- देवास (म.प्र.), पिन- ४५५३३६
संपर्कः- +९१-७२७४-२७७८१८, २७७९९१