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जीवन में क्षमा का महत्व सर्वाधिक

– शोभना जैन

मंदिर के शिखर पर भोर के सूर्य की सिंदूरी किरणों से पूरे माहौल में दिव्य आभा सी बिखर गई थी. मंदिर के अंदर की सकारात्मक उर्जा के साथ वहा से आने वाली णमोकार मंत्र के मंगल मंत्रोच्चार से पूरा माहौल पवित्र हो रहा था.मंदिर के अंदर लकड़ी के कठोर आसन पर विराजें, दिगंबर जैन परंपरा के अनुरूप दिगंबरत्व से तपें, दिव्य आभामंडल वाले तपस्वी मुनि,मुनि संघ और साध्वी शांत मुद्रा में एकाग्र चित्त हो ध्यान साधना में रत थे. पवित्र माहौल में पूर्ण शांति और संतोष… मंच से नीचे श्रद्धालु भी ऑख मूंदे एकाग्र हो कर ध्यान साधना में लीन थे.मात्र एक ध्वनि सुनाई दे रही थी.मद्ध म स्वर में शीतलता से भरी णमोकार मंत्र की मंगल ध्वनि…

ध्यान साधना सम्पन्न हो्ने से पूर्व मुनिश्री श्रद्धालुओं से भावना योग करने का आह्वान करते हैं'” हे प्रभु !मैं सकारात्मक रहूं, अपने लक्ष्य की तरफ अडिग हो कर बढता चलूं,पवित्र रहूं,हे प्रभु ! आभार, आभार ” हवा में सामूहिक जप की ध्वनि गूंज रही थी” लगता हैं हर तरफ सकारात्मकता फैल रही हैं.इस घड़ी में कोई उद्विग्नता नही, शांति शांति सिर्फ शांति…

यह एक विशेष धर्म सभा थी.जैन संप्रदाय के सबसे पावन पर्व पर्यूषण पर्व के समापन पर क्षमा वाणी पर्व के अवसर पर आयोजित धर्म सभा, जिस में श्रद्धेय मुनि जन ध्यान साधना के बाद अपने प्रवचन में जीवन में” क्षमा” की महत्ता बता रहे थे.मुनि श्री और आर्यिका जी ( साध्वी) बता रहे थे” क्षमावणी का पर्व सौहार्द, सौजन्यता और सद्भावना का पर्व है.आज जिस तरह से समाज में सहिष्णुता कम होती जा रही हैं, उस में क्षमा का विशेष महत्व हो गया हैं.इस क्षमा वाणी पर्व में एक दूसरे से क्षमा मांगकर मन की कलुषता, अहंकार को दूर किया जाता है मानवता जिन गुणों से समृद्ध होती है, उनमें क्षमा प्रमुख और महत्वपूर्ण है.यह पर्व जैन धर्म का ही पर्व नहीं सम्पूर्ण मानवता का पर्व हैं, जहा जीव दया हैं, जहा उस आदर्श समाज की कल्पना हैं जहा समता हैं,जहा शेर और बकरी के एक ही घाट से पानी पीने वाले आदर्श समाज की रचना ध्येय हैं. जीयो और जीने दो,अहिंसा, करूणा, शांति और समता जैसे बुनियादी जीवन मुल्य को जीवन में अपनाने का संदेश हैं.”

जैन धर्म में प्रयूषण पर्व आत्म शुद्धि, आत्म कल्याण का पर्व हैं और आठ/दस दिवसीय आध्यात्मिक पर्व की समाप्ति पर “क्षमा याचना” को उत्सव के रूप में मनाने की परंपरा हैं जहा वे याचना करते हैं ” जीवन यात्रा में अगर जाने अनजाने में मन वचन काय से किसी को मैंने आहत किया हैं तो ्मैं क्षमा प्रार्थी हूं.प्रवचन जारी था क्षमा केवल दूसरे के लिये नही हैं बल्कि आपके अपने मन के द्वंद को दूर करने के लिये भी हैं.वह स्वयं आपको निर्मल बनाती है,अपके अंतरमन में छायें द्वंद से आपको मुक्त करती हैं जो न/न केवल आपके मन के लिये बल्कि तन के लियें भी बेहद जरूरी हैं.” प्रवचन समाप्त होते ही उपस्थित सभी श्रद्धालु एक दूसरे से क्षमा याचना करते हैं.सभा के समापन पर क्षमा भाव करते वक्त कुछ ऑखें नम थी, कुछ चेहरे तटस्थ थे. अचानक मन में अबोध बचपन में घर के बड़ों दी गई सीख घुमड़नें लगी. क्षमा वाणी पर वे जब हम सभी से खास कर मित्रों से क्षमा ्मॉगनें की बात करते थे तो हठी बचपन के तेवर कहते थे” जब मेरी गलती थी ही नही तो माफी क्यों मॉगू” मॉ पिता, दादा दादी के समझाने पर क्षमा तो मॉग लेते थे लेकिन मन माफी देना स्वीकर नहीं करता था लेकिन जैसे जैसे जीवन यात्रा आगे बढती रही ्वो भावना , क्षमा की महत्ता समझ आती गई.

सभा समाप्त हुई,तपस्वी मुनि साधु साध्वियो के समूह के पीछे हम मंदिर की सीढीयो से एक नयी सकारात्मक उर्जा लिये नीचे उतर रहे थे.नीचे उतरते ही एक मित्र मिलते है,उन की जिज्ञासा थी कि आज मंदिर से क्षमा के बारे में क्या चर्चा हो रही थी. मंदिर में क्षमावाणी पर्व मनाये जाने पर उन का कौतूहल था आखिर यह पर्व कैसे है? मित्र ने आज”मिच्छामी दुक्कड़म “खमत-खामणा” शब्द पहली बार सुने, आखिर इस के मायने क्या हैं? इसे लेकर मित्र की कितनी ही जिज्ञासायें थी, कितने ही सवाल थे..

भारत की प्राचीन श्रमण संस्कृति की अत्यन्त महत्त्वपूर्ण जिन परम्परा ने क्षमा को पर्व के रूप में ही प्रचलित किया है.जैन धर्म की परंपरा के अनुसार वर्षा ऋतु के भाद्र माह मे मनाया जाना वाला पर्यूषण पर्व,जैन धर्मावलंबियो मे आत्म शुद्धि, आत्म कल्याण का पर्व माना जाता है. जैनों के प्रमुखतम पर्व में ‘क्षमापर्व’ है. पर्यूषण दरअसल एक पर्व—अवधि है, दस दिनों तक चलने वाले धर्म के दस लक्षण पर्व की एक श्रृंखला है, जिसके दौरान क्षमा को आचरण की सभ्यता के रूप में ढाला जाता है. जैनों के सभी संप्रदायों में इसकी समान मान्यता है.जैन धर्मावलंबियो मे आत्म शुद्धि, आत्म कल्याण का पर्व माना जाता है. मित्र की उत्सुकता है कि आत्म शुद्धि आखिर कैसे की जाती है ? पर्यूषण पर्व के दौरान लोग पूजा,अर्चना, आरती, सत्संग, त्याग, तपस्या, उपवास आदि में अधिक से अधिक समय व्यतीत करते हैं.दस दिन तक चलने वाला पर्यूषण पर्व का प्रत्येक एक दिन जीवन के दस धर्म को समर्पित हैं—उत्तम क्षमा, उत्तम मार्दव( मान), उत्तम आर्जव( छल), उत्तम शौच(पवित्रता), उत्तम सत्य, उत्तम संयम, उत्तम तप, उत्तम अंकिचन और उत्तम ब्रह्मचर्य. क्षमा दस धर्म का सार है. दस धर्मों का जीवन में पालन एक ऐसे पथ की और बढने को प्रेरित करता हैं जहा सौहार्द हैं , छल कपट, अहंकार, अप्ररिग्रह जैसे विकारों से मुक्त जीवन की प्रेरणा हैं. असल में वैश्वीकरण के इस दौर में ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’’ विश्व बंधुत्व की उक्ति वास्तव में क्षमा पर्व जैसे आयोजनों में ही चरितार्थ होती दिखती है।” यह पर्व महावीर स्वामी के मूल सिद्धांत अहिंसा परमो धर्म, जिओ और जीने दो की राह पर चलना सिखाता है.

दार्शनिक, अध्येता ,तपस्वी जैन संत आचार्य विद्यासागर के अनुसार भी “क्षमा ही असली धर्म हैं. क्षमा बराबर तप नहीं, क्षमा धर्म आधारकहा गया हैं क्षमा जीवन को निर्मल बनाती हैं. होता है क्रोध सभी के लिए अहितकारी है और क्षमा सदा, सर्वत्र सभी के लिए हितकारी होती है, जैन धर्म की तो अवधारणा ही जीयों और जीने दो के सिद्धांत पर आधारित है ऐसे में जीव मात्र से मैत्री भाव ही मानवता हैं” तेरापंथ के यशस्वी मूर्धन्य विद्वान संत आचार्य महाप्रग्य जी ने भी कहा हैं कि क्षमा मनुष्य को निर्मल मनाती हैं,क्षमा मॉगना कमजोरी नहीं बल्कि उदारता का द्योतक हैं.असल में यह क्षमा हमें ज्यादा शक्तिशाली और बेहतर व्यक्ति बनाती है.आर्यिका गणिनी प्रमुख ज्ञानमति माता जी ने कहा कि अगर समाज में सभी सदस्य एक दूसरें के प्रति क्षमा भाव रखें तो समाज आदर्श समाज बन जायेगा, तनाव, वैमनस्य दूर होगा और सभी अपनी शक्ति सकारात्मक कार्यों में लगायेंगे जिस से मानवीय गुणों का विकास होगा साथ ही विश्व शांति स्थापित किये जाने में ्मदद मिलेगी.

क्षमा हर धर्म और मानवीय मूल्यों का सार है. वैदिक ग्रंथों में भी क्षमा की श्रेष्ठता पर बल दिया गया हैं। ईसा मसीह ने भी सूली पर चढ़ते हुए कहा था, ‘हे ईश्वर! इन्हें क्षमा करना, ये नहीं जानते कि ये क्या कर रहे हैं।’ कुरान शरीफ मे भी लिखा है‘जो वक्त पर धैर्य रखे और क्षमा कर दे, तो निश्चय ही यह बड़े साहस के कामों में से एक है।’ सिख गुरु गोविंद सिंह जी एक जगह कहते हैं, ‘यदि कोई तुम्हारा अपमान करता है तो उसे क्षमा कर दो क्योंकि क्षमा करना वीरों का काम है। कहा भी गया हैं कि गलतियॉ करना मानव स्वभाव हैं लेकिन माफ करना देवत्व हैं. संत तुकाराम ने भी कहा था” जिस मनुष्य के हाथ में क्षमा रूपी शस्त्र हो , उसका कोई भी कुछ नही बिगाड़ सकता है.भगवान महावीर इसलिए वीर कहलाए क्योंकि उन्होंने क्षमा को जीवन का अनिवार्य तत्व स्वीकार कर अपनाया

आदर्श स्थति स्वरूप,सिर्फ इस पर्व–अवधि के दौरान ही नहीं, बल्कि जिन परम्परा में वर्ष भर क्षमा का जीवन का संदेश है. जैन धर्म के‘अनेकांत’ यानी सत्य को अनेक रूपों और अन्तों में मानने की विचार से टकराव की प्रवृत्ति का निराकरण हुआ तथा अहिंसा को व्यावहारिक जीवन में क्रियान्वित किया जा सकना मुमकिन हो पाया. यही स्थिति ‘जियो और जीने दो’ की जैन धर्म की भावना का आधार है और क्षमा इसी भावना का विस्तार है. वह अहिंसा को व्यावहारिक रूप से सक्षम बनाती है और टकराव की हर आशंका को समाप्त कर देती है. क्षमावणी पर्व मैत्री भाव जगाता हैं, मनोमालिन्य मिटाता है, बैरभाव की ग्रंथियाँ तोड़ता है.

मंदिर के शिखर पर अब सूर्य का प्रकाश और प्रखर हो उठा है”लगा मंदिर से मंत्रोचार की गूंज और तेज हो उठी है, जो हर जगह शांति फैला रही है,माहौल में चंदन की खुशबू सी भर गई हैं.मंत्रोच्चार के बीच एक गूंज सी हर और से सुनाई देने लगी “”सभी जीव सुखी रहे किसी भी जीव को कोई दुःख न हो, पेड़ पौधे, पर्यावरण और सभी जीव शांतिपूर्ण सह अस्तित्व की भावना से साथ- साथ रहे. मुझसे किसी को कष्ट नहीं पहुंचें मैं सभी जीवों को क्षमा करता हूँ सभी जीव मुझे क्षमा प्रदान करे, सब का मंगल हों…‘सर्वे भवन्तु सुखिन: सर्वे सन्तु”मिच्छामी दुक्कड़म “खमत-खामणा “-“क्षमा- भाव, क्षमा -भाव”

साभार पंजाब केसरी (लेखिका समाचार सेवा वीएनआई में प्रधान संपादक हैं)

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