लेखक: पं. श्री नाथूलाल जी शास्त्री
श्री गौतम गणधर पूजा
श्री गौतम गणईश शीष यह तुम्हे नमा कर
आव्हानन अब करूँ आय तिष्ठो मानस पर।
पाके केवल ज्योति ज्ञाननिधि हुए गुणाकर।
निज लक्ष्मी का दान करो मेरे घट आ कर।
श्री गौतम गण ईश जी तिष्ठो मम उर आय।
ज्ञान-लक्ष्मी पति बने, मेरी मानव काय।
ऊँ ह्रीं कार्ति कृष्णामावस्यायां कैवल्यलक्ष्मी प्राप्त श्री गौतमगणधराय पुष्पांजलिः।
वसंतिका छन्द
गांगेय वारि शुचि प्रासुक दिव्य ज्योति।
जन्मादि कष्ट निज वारण को लिया ये।
संसार के अखिल त्रास निवारने को
योगीन्द्र गौतम –पदाम्बुज –में चढाता।
ऊँ ह्रीं कार्ति कृष्णामावस्यायां कैवल्यलक्ष्मी प्राप्तये श्री गौतम गणधराय जलं निर्वपामीति स्वाहा।
कर्पूर युक्त मलयागिर को घिसाया
संसार ताप शमनार्थ इसे बनाया
संसार के अखिल त्रास निवारने को
योगीन्द्र गौतम –पदाम्बुज –में चढाता।
ऊँ ह्रीं कार्ति कृष्णामावस्यायां कैवल्यलक्ष्मी प्राप्तये श्री गौतम गणधराय सुगन्धं निर्वपामीति स्वाहा।
मुक्ताभ अक्षत सुगन्धि चुना चुना के,
व्याधिध्न अक्षत-पदार्थ सजा सजा के।
संसार के अखिल त्रास निवारने को
योगीन्द्र गौतम –पदाम्बुज –में चढाता।
ऊँ ह्रीं कार्ति कृष्णामावस्यायां कैवल्यलक्ष्मी प्राप्तये श्री गौतम गणधराय अक्षतं निर्वपामीति स्वाहा।
कन्दर्प दर्प दलनार्थ नवीन ताजे,
बेला गुलाब मच्कुन्द सु पार्जाती।
संसार के अखिल त्रास निवारने को
योगीन्द्र गौतम –पदाम्बुज –में चढाता।
ऊँ ह्रीं कार्ति कृष्णामावस्यायां कैवल्यलक्ष्मी प्राप्तये श्री गौतम गणधराय पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा।
क्षीरादि मिश्रित अमीघ बल प्रदाता,
पक्कान्न थाल यह भूख निवारने को।
संसार के अखिल त्रास निवारने को
योगीन्द्र गौतम –पदाम्बुज –में चढाता।
ऊँ ह्रीं कार्ति कृष्णामावस्यायां कैवल्यलक्ष्मी प्राप्तये श्री गौतम गणधराय नैवेद्यम निर्वपामीति स्वाहा।
रत्नादि दीप नवज्योति कपूर वर्ती,
उद्दाम-मोह-तम- तोम सभी हटाने।
संसार के अखिल त्रास निवारने को
योगीन्द्र गौतम –पदाम्बुज –में चढाता।
ऊँ ह्रीं कार्ति कृष्णामावस्यायां कैवल्यलक्ष्मी प्राप्तये श्री गौतम गणधराय दीपम निर्वपामीति स्वाहा।
अज्ञान मोह मद से भव में भ्रमाता,
ये दुष्ट कर्म, तिस नाशन को दशांगी।
संसार के अखिल त्रास निवारने को
योगीन्द्र गौतम –पदाम्बुज –में चढाता।
ऊँ ह्रीं कार्ति कृष्णामावस्यायां कैवल्यलक्ष्मी प्राप्तये श्री गौतम गणधराय धूपम निर्वपामीति स्वाहा।
केला अनार सह्कार सुपक्क जामू,
ये सिद्धमिष्ठ फल मोक्षफलाप्ति को मैं।
संसार के अखिल त्रास निवारने को
योगीन्द्र गौतम –पदाम्बुज –में चढाता।
ऊँ ह्रीं कार्ति कृष्णामावस्यायां कैवल्यलक्ष्मी प्राप्तये श्री गौतम गणधराय फलम निर्वपामीति स्वाहा।
पानीय आदि वसु द्रव्य सुगन्धयुक्त,
लाया प्रशांत मन से निज रूप पाने।
संसार के अखिल त्रास निवारने को
योगीन्द्र गौतम –पदाम्बुज –में चढाता।
ऊँ ह्रीं कार्ति कृष्णामावस्यायां कैवल्यलक्ष्मी प्राप्तये श्री गौतम गणधराय अर्ध्यम निर्वपामीति स्वाहा।
जयमाला
वीर जिनेश्वर के प्रथम गणधर-गौतम-पांय।
नमन करुँ कर जोडकर स्वर्ग मोक्ष फल दाय।।
हरिगीत्तिका
जय देव श्रीगौतम गणेश्वर्। प्रार्थना तुमसे करूँ।
सब हटा दो कष्ट मेरे अर्ध्य ले आरती करूँ।
हे गणेश। कृपा करो, अब आत्म ज्योति पसार दो।
हम हैं तुम्हारे सदय हो दुर्वासनायें मार दो।
वीर प्रभुनिर्वाण-क्षण में था सम्हाला आपने।
अब चोड तुमको जाउँ कहँ घेरा चहूँ दिशि पाप ने।
है दिवस वह ही नाथ। स्वामीवीर के निर्वाण का।
जग के हितैषी बिज्ञ गौतम ईष केवल ज्ञान का।
नाथ। अब कर के कृपा हम्को सहारा दीजिये।
दीपमाला-आरती पूजा गृहम मम कीजिये।
दीपमाला-आरती पूजा गृहण मम कीजिये।
ऊँ ह्रीं कार्ति कृष्णामावस्यायां कैवल्यलक्ष्मी प्राप्तये श्री गौतम गणधराय अर्ध्यम निर्वपामीति स्वाहा।
ज्योति पुंज गणपति प्रभो। दूर करो अज्ञान
समता रस से सिक्त हो नया उगे उर भानु।।