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सामूहिक भक्तामर पाठ एवं स्वाध्याय विधि

सामूहिक भक्तामर पाठ एवं स्वाध्याय विधि प्रतिदिन करना है

प्रयोजन- चेन-अमन, सुख, आत्मशांति के लिए

सर्वप्रथम सभी ‘नौ’ बार णमोकार मंत्र पढ़े,सिर्फ वाचना करने वाला मन ही मन, स्वाध्याय स्थान में रहने वाले देवी-देवताओं को सादर हाथ जोड़कर जय जिनेन्द्र करें, और निवेदन करें कि हम सभी यहाँ कुछ समय ‘धर्म-ध्यान’, ‘भगवत् भक्ति’ करना चाहते है ,कृपया आप भी शामिल होकर हमें कृतार्थ करें और आने वाली आपत्तियों का निवारण करते हुए, होने वाली हमारी सभी भूलों को भूल समझकर क्षमा करें। सौ जाने, हमें खुशी होगी।

अब ‘घी’ का एक दीपक (गाय का घी शुद्ध हो तोऔर अच्छा) इस प्रकार प्रज्जवलित कर रखें, चिमनी इत्यादि से ढककर, कि जिससे जीव हिंसा न हो ! (दीपक जिनवाणी माँ के समक्ष रखे, ना कि किसी तस्वीर के सामने।)

अब:- लयबद्ध, न अधिक तेजी से, न अधिक धीमे और न ही जल्दी-जल्दी, शुद्ध उच्चारण करते हुए, भक्तामरजी का पाठ शुरू कीजिये (संस्कृत हो तो और अच्छा, नहीं तो हिन्दी वाला प्रतिदिन बदल-बदल कर या फिर एक जैसा ही) अब आगम का ग्रंथ जो सभी की समझ से मेल खाता हो प्रथमानुयोग या चरणानुयोग आदि किसी का भी कोई एक व्यक्ति वाचन करें, सभी श्रोता बन सुनें।

विशेष: स्वाध्याय के समय जो भी बात समझ में न आये उसे ‘डायरी’ में नोट करते जाइये, फिर किसी साधु या आर्यिका संघ का जब भी योग-संयोग मिले, उनसे शंका का समाधान कर लीजिये, पूर्ण विनम्रता के साथ।

अब माँ जिनवाणी की स्तुति करें (प्रतिदिन बदल-बदल या फिर एक जैसी ही)। यदि चाहे तोः- प्रतिदिन बदल-बदल कर विनती, भजन, बारह भावना, मेरी भावना इत्यादि किसी भी छंद-बद्ध रचना का पारायण कर सकते हैं।

 अब वाचना करने वाला प्रमुख व्यक्ति वहाँ बुलाये हुए देवी-देवताओं का आभार प्रकट करें, ‘धन्यवाद दें’ अपने-अपने स्थान पधारें व हाथ जोड़कर हुई अविनय की क्षमा के साथ सादर ‘जय जिनेन्द्र’ भेंट में दें और निवेदन करें, इसी प्रकार हमारे धर्म-ध्यान में सहायक बने, हम ऐसी अपेक्षा रखते है, सस्नेह’ ,जय जिनेन्द्र !

ध्यान देने योग्य –

 1) देव-देवी का आव्हान, आभार प्रकटन, मुख्य वाचक के अभाव में दूसरा व्यक्ति भले करें, ये सभी क्रिया-कलाप – अनिवार्य है।

(2) अगर आप घर में ताला लगाकर बाहर जावे तो देवों से कहकर जाइये कि हम इतने दिन आपका स्वाध्याय नहीं कर
सकते, कृपया क्षमा करें और इतने इतने दिनों का ‘जय जिनेन्द्र’ स्वीकार करें !

3) कोई भी समय स्वाध्याय का रख सकते है, जो सभी के लिए अनुकुल हो! (प्रयास करे प्रतिदिन एक ही समय पर)।

4) मेहमानों के आने पर उन्हें भी साथ में सविनय बैठाने की व्यवस्था करें!

5 ) दीपक यथा स्थान व्यवस्थित रखें, तब तक दीपक प्रज्जवलित ही रहे ! 6 ) यदि एक सदस्य भी घर में हो तो उसे भी स्वाध्याय करना ही चाहिये !

7) देवी- देवों का आव्हान मिथ्यात्व नहीं है, ये कुदेव नहीं, ये हमारे कुल देव है, शासन-रक्षक देव है, जिनका हम अरिहन्त, सिद्ध, साधु, सा अष्ट द्रव्य पूजन रूप सम्मान नहीं कर रहे, बल्कि जैसे अपने बड़े बुजुगों का आदर करते है, ‘जय जिनेन्द्र’ करते हैं, वैसे ही है! सो वह यथा योग्य आगम सम्मत ही है। यह भी समझिये!

8) अरिहंत देव की वाणी का पाठन-पठन सभी प्रकार के वास्तु दोष दूर करता है, सो जाने।

9) मंगलवार-शनिवार को छोड़ किसी भी शुभ दिन योग देख स्वाध्याय कर सकते है, जो जीवन पर्यन्त, पीढ़ी दर • पीढी परंपरा बनाने की कोशिश के साथ हो तो और अच्छा!

जिससे सामूहिक पुण्य अर्जन हो, घर में शुभ-मंगलमय वातावरण बना रहे, सुख-शांति, समृद्धि फैलें। विघ्न बाधाएं दूर हो घर के दोष अरिष्ट-अनिष्ट नष्ट हो जाए, सभी स्वस्थ रहे ! अनुभूत इस प्रकार सामूहिक रूप से धर्म ध्यान करने से अनेक परिवारों में एकता, सुख-शांति, निरोगता और ऐश्वर्य
समृद्धि बढ़ी है।

ऐसी मंगल कामना के साथ सभी देव-शास्त्र-गुरु का आपके सिर पर हाथ ।।शुभ आशीर्वाद !

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