आचार्यश्री समयसागर जी महाराज इस समय डोंगरगढ़ में हैंयोगसागर जी महाराज इस समय चंद्रगिरि तीर्थक्षेत्र डोंगरगढ़ में हैं Youtube - आचार्यश्री विद्यासागरजी के प्रवचन देखिए Youtube पर आचार्यश्री के वॉलपेपर Android पर आर्यिका पूर्णमति माताजी डूंगरपुर  में हैं।दिगंबर जैन टेम्पल/धर्मशाला Android पर Apple Store - शाकाहारी रेस्टोरेंट आईफोन/आईपैड पर Apple Store - जैन टेम्पल आईफोन/आईपैड पर Apple Store - आचार्यश्री विद्यासागरजी के वॉलपेपर फ्री डाउनलोड करें देश और विदेश के शाकाहारी जैन रेस्तराँ एवं होटल की जानकारी के लिए www.bevegetarian.in विजिट करें

आचार्यश्री के बीना बारहा में प्रवचन (22 मार्च, 2015)

देवरी के समीप स्थित ग्राम बीना बारहा में संत शिरोमणि आचार्य 108 श्री विद्यासागर जी का ससंघ प्रवास चल रहा है। 22 मार्च (रविवार) को आचार्य श्री की आहारचर्या पंकज विशाला एवं पारस चैनल परिवार के यहां हुई। आहारचर्या के तुरंत बाद आचार्य श्री शांतिधारा दुग्ध योजना स्थल तक पहुंचें और एक आम के वृक्ष नीचे बैठे जहां आकर सभी संघस्थ साधू आते गये और बैठते गये। योजना स्थल पर पहुंचने पर उनके पैरों का प्रक्षालन करने का अवसर सभी सहयोगी कर्मचारियों को प्राप्त हुआ जो कि योजना स्थल पर कार्य कररहे हैं या कार्य देख रहे हैं। सभी के लिये आचार्य श्री ने आशीर्वाद दिया।

उस आम के वृक्ष के नीचे कुछ देर बैठने के उपरांत दोपहर की सामायिक के लिये स्थल पर बने हुये नये भवन में पहुंचे। दोपहर ठीक 2.30 बजे कार्यक्रम की शुरूआत हुई जिसमें मंगलाचरण – बा. ब्रा. बहिन शांता जी जो कि सदलगा से आयीं थीं, उन्होंने अपनी ही भाषा में मंगलाचरण किया। चित्र का अनावरण पंकज विशाला दिल्ली, प्रभात जी मुंबई, प्रमोद जी बिलासपुर आदि ने किया। द्वितीय चित्र का अनावरण आनंद जी जबलपुर, आनंद जी सागर ने किया। दीप प्रज्जवलन- पंकल विशाला, संजय मेक्स, मनीष नायक, अलकेश जैन आदि ने किया।
Acharya Shri Vidyasagar pravachan Bina Barah

शास्त्र भेंट करने का सौभाग्य भी पंकज विशाला एवं पारस चैनल परिवार वालों को प्राप्त हुआ। आचार्य श्री के चरणों के प्रक्षालन का पुनः मौका शांतिधारा दुग्ध योजना के संचालक सदस्यों को प्राप्त हुआ।

आचार्य श्री – बूंद-बूंद से घट भरता है। उक्त उद्बोधन आचार्य श्री ने अपने प्रवचन के दौरान दिये, उन्होंने कहा- हमारे गुरूजी ने दयोदय चंपू महाकाव्य की रचना ही उसमें कहा है दया उदयोः दया का उदय हो। आज होते तो क्या लिखते जबकि गायें कटने लगी है। मैंने तो उसी शब्द को पकड़कर के दयोदय तीर्थ गौशाला आदि आदि नाम रखे हैं। हम आचार्य कुंदकुंद के चरणों में बैठकर उनसे भावों के माध्यम से लिपट सकते हैं। हमारे पापों की गठरी, कर्मों की गठरी टूटने में दूर होने में उनका परोक्ष में आशीर्वाद है। हमारे गुरूजी का तो आज भी हाथ हमारे सिर पर है जिसकी फोटोग्राफी नहीं कर सकते।

कितनी करूणा थी उनके पास हृदय बहुत कोमल था। विद्वत वर्ग के सामने उस चंपू काव्य को रखा। जो आज अनेक कक्षाओं में चल रहा है। उन्होने आगे कहा- परोपकाराय दुहन्ति गावो। आप लोग तो अपने स्वार्थ बस कुछ भी कहते करते हैं। लेकिन गाय उपकार करती है। उसके पास स्वार्थ नहीं है। आप जरा सोचे गाय ने कभी अपना दूध पिया उसने तो कभी स्वाद नहीं लिया। और खाती क्या है पीती क्या है। माला फेरने में तप नहीं होता जब पेट में संज्ञा होती है तब तीर्थंकरों को भी आवश्यकता होती है।

आचार्य श्री ने कहा यह रासायनिक प्रक्रिया है यह वैज्ञानिक है कभी भी पैसे, सोना, चांदी से प्राणों को बल नहीं मिलता। भोजन ही रासायनिक प्रक्रिया द्वारा परिवर्तित होकर प्राणों को बल देती है। एक बार खावे योगी, दो बार खाबे भोगी, और जो बार बार खावे सो रोगी। दूध रोग विनाशक है, बुद्धि प्रदाता है। जीवन में अंतिम समय तक अंतिम क्षणों तक यह चलता है।

अंग्रेजों के समय में कत्ल खाने नहीं थे। और वे मांस का व्यापार भी नहीं करते थे, लेकिन इस भारत में ऐसी बात चल रही है जहां
अहिंसा की आरती उतारी जाती थी वहीं हिंसा भारत में सबसे अधिक हो रही है।

एक देखे तो सौधर्म इंद्र को अमृत चखने के लिये भले मिल जाय पर छाछ नहीं मिलती है। छाछ धरती का अमृत है। दया की वर्षा उर से होती रहे। हमारी आंखों में पानी जल्दी आवे तो सामने वाले पर प्रभाव होता है। और बूंद-बूंद से घट भरता है। जब हवा काम नहीं आती दवा काम आती है और दवा काम न आये तो दुआ काम आती है। गाय अपने मालिक को परेशान बीमार देखती है तो दुआ देती है। ठीक होने की भावना करती है।

– संजय जैन शिक्षक

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