आचार्यश्री समयसागर जी महाराज इस समय डोंगरगढ़ में हैंयोगसागर जी महाराज इस समय चंद्रगिरि तीर्थक्षेत्र डोंगरगढ़ में हैं Youtube - आचार्यश्री विद्यासागरजी के प्रवचन देखिए Youtube पर आचार्यश्री के वॉलपेपर Android पर आर्यिका पूर्णमति माताजी डूंगरपुर  में हैं।दिगंबर जैन टेम्पल/धर्मशाला Android पर Apple Store - शाकाहारी रेस्टोरेंट आईफोन/आईपैड पर Apple Store - जैन टेम्पल आईफोन/आईपैड पर Apple Store - आचार्यश्री विद्यासागरजी के वॉलपेपर फ्री डाउनलोड करें देश और विदेश के शाकाहारी जैन रेस्तराँ एवं होटल की जानकारी के लिए www.bevegetarian.in विजिट करें

विवाह धर्म प्रभावना में सहायक

 

चन्द्रगिरि (डोंगरगढ़) में विराजमान संत शिरोमणि 108 आचार्यश्री विद्यासागरजी महाराज ने कहा कि पहले असी, मसि, कृषि, वाणिज्य के हिसाब से कार्य होता था और विवाह में कन्यादान होता था। इस प्रथा में कन्या दी जाती थी। इसमें कन्या का आदान-प्रदान नहीं होता था।

आज पाश्चात्य सभ्यता का चलन होने के कारण सब प्रथाओं में परिवर्तन आ रहे हैं, यह विचारणीय है। पहले पिता अपनी बच्ची के लिए योग्य वर ढूंढता था, पर आज बच्चे से पूछे बिना कोई काम नहीं कर सकते हैं। पहले बच्ची अपने पिता की बात को ही अपना भाग्य समझती थी, अब ऐसा देखने और सुनने को नहीं मिलता है।

आचार्यश्री ने मैनासुन्दरी और श्रीपाल का उदाहरण देकर बताया कि किस तरह से उन्होंने अपने भाग्य पर भरोसा किया और अंत में उनका भला ही हुआ। आज का दिन आषाढ़ मास शुक्ल पक्ष दूज छत्तीसगढ़ में बहुत शुभ दिन माना जाता है और ऐसा मानना है कि इस दिन वर्षा अवश्य होती है।

आगे अष्टान्हिका पर्व आ रहा है जिसमें सिद्धचक्र विधान का विशेष महत्व माना जाता है। आप लोग अष्टान्हिका, दसलक्षण पर्व को ही विशेष महत्व देते हों, हमारे लिए तो मोक्ष मार्ग में हर दिन ही विशेष भक्ति, स्वाध्याय आदि का होता है।

सिद्धचक्र विधान में प्रतिदिन शांतिधारा होती थी और इसके गंदोदक को वह अपने कुष्ठ शरीर पर लगाने से उसका रोग अष्टान्हिका पर्व के अंतिम दिन में पूरा का पूरा ठीक हो जाता है। यह सब सिद्धचक्र विद्वान को श्रद्धा, भक्ति, भाव, विश्वास के साथ करने से हुआ था।

आज लोग पुरुषार्थ नहीं करना चाहते हैं और वे आलस के कारण ताजा घर में बना खाने की जगह पैकिंग फूड ले रहे हैं जिसके कारण वे खुद तो बीमार पड़ रहे हैं, साथ में 2-2 साल के बच्चे को शुगर आदि-आदि बीमारियां हो रही हैं। इसके जिम्मेदार माता-पिता खुद हैं। उन्हें अपने बच्चों को अच्छे संस्कार देना चाहिए।

विवाह धर्म प्रभावना के लिए किया जाता है। वर-वधू का विवाह होता है, फिर संतान होती है। वे अपनी संतान को अपने धर्म के अनुरूप संस्कार देते हैं। ऐसे पीढ़ी-दर-पीढ़ी धर्म की प्रभावना होती रहती है।

पहले स्वयंवर होता था जिसमें कन्या अपने लिए वर पसंद करती थी। इसमें कभी वर को कन्या पसंद करने का अवसर नहीं दिया जाता था। यह अधिकार केवल कन्या का ही होता था, परंतु आज बेटियां बेची जा रही हैं, जो धर्म और समाज के लिए घातक है।

आज लोग दिन में दर्पण कई बार देखते हैं। और तो और, मोबाइल द्वारा भी दर्पण का इस्तेमाल किया जाता है और उसे जेब में रखते हैं तो उसका उपयोग भी कई बार किया जाता है।

जो केवल शरीर को देखता है, उसे आत्मा का चिंतन होना कठिन है। आत्मा के चिंतन के लिए सम्यक दर्शन, सम्यक ज्ञान और सम्यक चारित्र अनिवार्य है। इसमें शरीर का केवल उपयोग किया जाता है, उसे ज्यादा महत्व नहीं दिया जाता है।

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