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तपस्या में सर्वश्रेष्ठ हैं आचार्यश्री विद्यासागरजी

श्रीमती सुशीला पाटनी
आर.के. हाऊस,
मदनगंज- किशनगढ (राज.)

भारत भूमि के प्रखर तपस्वी, चिंतक, कठोर साधक, गौरक्षक, लेखक, महाकवि, राष्ट्रहित चिंतक आचार्यश्री विद्यासागरजी महाराज का आज अवतरण दिवस है। आपका जन्म कर्नाटक के बेलगाम (सदलगा) जिले के ग्राम चिक्कोड़ी में आश्विन शुक्ल पूर्णिमा (शरद पूर्णिमा), 10 अक्टूबर 1946, विक्रम संवत्‌ 2003 को हुआ था। आपका पूर्व का नाम विद्याधर था। आपको आचार्य श्रेष्ठ महाकवि ज्ञानसागरजी महाराज का शिष्यत्व पाने का सौभाग्य प्राप्त हुआ था।

विद्यासागरजी में अपने शिष्यों का संवर्धन करने का अभूतपूर्व सामर्थ्य है। उनका बाह्य व्यक्तित्व सरल, सहज, मनोरम है किंतु अंतरंग तपस्या में वे वज्र-से कठोर साधक हैं। रात्रि में वे लकड़ी के पाटे पर विश्राम करते हैं और ठंड में भी रात्रि में कुछ भी नहीं ओढ़ते हैं। कन्नड़ भाषी होते हुए भी विद्यासागरजी ने हिन्दी, संस्कृत, कन्नड़, प्राकृत, बंगला और अंग्रेजी में लेखन किया है। आपने अनेक ग्रंथों का स्वयं ही पद्यानुवाद किया है।

आपके द्वारा रचित संसार में सर्वाधिक चर्चित काव्य प्रतिभा की चरम प्रस्तुति है- ‘मूक माटी’ महाकाव्य जिसके ऊपर ‘मूक माटी’ मीमांसा (भाग 1, 2, 3) पर लगभग 283 हिन्दी विद्वानों ने समीक्षाएं लिखी हैं, जो भारतीय ज्ञानपीठ से प्रकाशित हो चुकी हैं। इस पर 4 डीलिट, 50 पीएचडी, 8 एमफिल, 2 एमएड तथा 6 एमए आदि हो चुके हैं।

‘मूक माटी’ के मराठी, अंग्रेजी, बंगला, कन्नड़, गुजराती, उर्दू, संस्कृत व ब्राम्ही लिपि आदि में अनुवाद हुए हैं और हो रहे हैं। राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद द्वारा रामटेक में 22 सितंबर 2017 को ‘मूक माटी’ के उर्दू अनुवाद का विमोचन हुआ था। पूर्व राष्ट्रपति श्रीमती प्रतिभा पाटिल द्वारा 14 जून 2012 को राष्ट्रपति भवन में ‘द साइलेंट अर्थ’ ‘मूक माटी’ के अंग्रेजी अनुवाद का विमोचन हुआ था। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा भोपाल में ‘मूक माटी’ के 14 अक्टूबर 2016 को भोपाल में गुजराती अनुवाद का विमोचन हुआ था।

आचार्यश्री का साहित्य अनेक विश्वविद्यालयों महाविद्यालयों के पाठ्यक्रम में शामिल हो चुका है कई जगह प्रक्रिया चल रही है। जबलपुर-अजमेर ट्रेन का नाम ‘दयोदय एक्सप्रेस’ आपके गुरु की रचित कृति के नाम पर हुआ था।

‘भाग्योदय तीर्थ सागर’ में मानव सेवा एवं शिक्षा के फार्मेसी कॉलेज व नर्सिंग कॉलेज चल रहे हैं। बीना, बारह, मंडला, भोपाल, कुंडलपुर, खजुराहो, मुंबई, अशोकनगर, जगदलपुर, डिंडोरी में हथकरघा चल रहे हैं जिसमें अहिंसक पद्धति से वस्त्र बनाए जा रहे हैं और युवाओं को रोजगार दिया जा रहा है। शांतिधारा दुग्ध योजना चल रही है जिसमें 500 से अधिक गायों का पालन करके दूध-घी आदि शुद्ध वस्तुओं का उत्पादन हो रहा है। जैविक पद्धति से सभी वस्तुओं का उत्पादन होता है। आचार्यश्री विद्यासागर शोध संस्थान, भोपाल में विभिन्न पदों के लिए कोचिंग मिलती है। भारतवर्षीय प्रशासकीय प्रशिक्षण संस्थान जबलपुर में स्थित है जिसमें हजारों युवाओं ने शिक्षण करके प्रशासन के उच्च पदों को प्राप्त किया है।

सुप्रीम कोर्ट से 7 जजों की बेंच से ऐतिहासिक गौवध पर प्रतिबंध का फैसला हुआ था। बैलों की रक्षा एवं रोजगार हेतु दयोदय जहाज का गंजबासौदा, विदिशा में वितरण किया गया था। मध्यप्रदेश में सरकार की ‘आचार्य विद्यासागरजी गौ संवर्धन योजना’ भी चल रही है। पूरे देश में लगभग 135 गौशालाओं में लाखों पशुओं का संरक्षण हो रहा है।

आपके दर्शन से पूर्व प्रधानमंत्री स्व. अटल बिहारी वाजपेयी, वर्तमान राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और अनेक मुख्यमंत्री और अनेक राज्यपाल, सुप्रीम कोर्ट के जज, हाईकोर्ट के जज, आयोग अध्यक्ष एवं विशिष्ट पदों वाले व्यक्तियों से चर्चा के दौरान अनेक अच्छे कार्य हुए हैं। आपके दर्शनार्थ हेतु आए राजनीतिक, चिंतक, विचारक, साहित्यकार, शिक्षाविद, न्यायाधीश, धर्माचार्य, डॉक्टर, संपादक, समाजसेवी, उद्योगपति, अधिवक्ता, जिलाधीश, पुलिस अधीक्षक, कुलपति आदि ने मार्गदर्शन प्राप्त किया है।

आपने मध्यप्रदेश, उत्तरप्रदेश, महाराष्ट्र, राजस्थान, गुजरात, छत्तीसगढ़, झारखंड आदि में विहार किया है। आपने नमक व मीठे का सन् 1969 से त्याग किया है। चटाई का त्याग सन् 1985 से किया है। वनस्पति व फल-सब्जियों का त्याग 1994 से किया है। 9 निर्जला उपवास लगातार आपने किए थे।

आपके द्वारा रूपक कथा काव्य अध्यात्म, दर्शन व युग चेतना का संगम है। संस्कृति, जन और भूमि की महत्ता को स्थापित करते हुए आचार्यश्री ने इस महाकाव्य के माध्यम से राष्ट्रीय अस्मिता को पुनर्जीवित किया है। उनकी रचनाएं मात्र कृतियां ही नहीं हैं, वे तो अकृत्रिम चैत्यालय हैं। उनके उपदेश, प्रवचन, प्रेरणा और आशीर्वाद से अनेक तीर्थ व मंदिरों का निर्माण, औषधालय, भाग्योदय तीर्थ, अनेक अस्पताल, प्रतिभा स्थली, हथकरघा, त्रिकाल चौबीसी आदि की स्थापना कई स्थानों पर हुई है और अनेक जगहों पर निर्माण जारी है।

कितने ही विकलांग शिविरों में कृत्रिम अंग, श्रवण यंत्र, बैसाखियां व तीन पहिए की साइकलें वितरित की गई हैं। शिविरों के माध्यम से आंख के ऑपरेशन, दवाइयों व चश्मों का नि:शुल्क वितरण हुआ है। ‘सर्वोदय तीर्थ’ अमरकंटक में नि:शुल्क विकलांग सहायता केंद्र चल रहा है। जीव व पशुदया की भावना से देश के विभिन्न राज्यों में दयोदय गौशालाएं स्थापित हुई हैं, जहां कत्लखाने जा रहे हजारों पशुओं को लाकर संरक्षण दिया जा रहा है। आचार्यजी की भावना है कि पशु मांस निर्यात निरोध का जनजागरण अभियान किसी दल, मजहब या समाज तक सीमित न रहे अपितु इसमें सभी राजनीतिक दल, समाज, धर्माचार्य और व्यक्तियों की सामूहिक भागीदारी रहे।

‘जिन’ उपासना की ओर उन्मुख विद्यासागरजी महाराज तो सांसारिक आडंबरों से विरक्त हैं। जहां वे विराजते हैं वहां तथा जहां उनके शिष्य होते हैं, वहां भी उनका जन्मदिवस उनके समर्थन से नहीं मनाया जाता। तपस्या उनकी जीवन पद्धति, अध्यात्म उनका साध्य, विश्व मंगल उनकी पुनीत कामना तथा सम्यक दृष्टि एवं संयम उनका संदेश है।

अपने वचनामृतों से जनकल्याण में निरत रहते हुए व साधना की उच्चतर सीढ़ियों पर आरोहण करते हुए आचार्य विद्यासागरजी महाराज समग्र देश में पदविहार करते रहते हैं। भारत भूमि का कण-कण तपस्वियों की पदरज से पुनीत हो चुका है। इस युग के तपस्वियों की परंपरा में आचार्य विद्यासागरजी अग्रगण्य हैं। वीतराग परमात्मा बनने के मार्ग पर चलने वाले इस पथिक का प्रत्येक क्षण जागरूक व आध्यात्मिक आनंद से भरपूर होता है। उनका जीवन विविध आयामी है। उनके विशाल व विराट व्यक्तित्व के अनेक पक्ष हैं तथा संपूर्ण भारतवर्ष उनकी कर्मस्थली है।

पदयात्राएं करते हुए उन्होंने अनेक मांगलिक संस्थाओं व विद्या केंद्रों के लिए प्रेरणा व प्रोत्साहन का संचार किया है। उनके आगमन से त्याग, तपस्या व धर्म का सुगंधित समीर प्रवाहित होने लगता है। लोगों में नई प्रेरणा व नए उल्लास का संचरण हो जाता है। असाधारण व्यक्तित्व, कोमल, मधुर और ओजस्वी वाणी व प्रबल आध्यात्मिक शक्ति के कारण सभी वर्ग के लोग आपकी ओर आकर्षित हो जाते हैं।

कठोर तपस्वी, दिगंबर मुद्रा, अनंत करुणामय हृदय, निर्मल अनाग्रही दृष्टि, तीक्ष्ण मेधा व स्पष्ट वक्ता के रूप में उनके अनुपम व्यक्तित्व के समक्ष व्यक्ति स्वयं नतशिर हो जाते हैं। अल्पवय में ही इनकी आध्यात्मिक अभिरुचि परिलक्षित होने लगी थी। खेलने की उम्र में भी वीतरागी साधुओं की संगति इन्हें प्रिय थी, मानो मुनि दीक्षा के लिए मनोभूमि तैयार हो रही थी। ज्ञानावरणीय कर्म का प्रबल क्षयोपशम था। संयम के प्रति अंत:प्रेरणा तीव्र थी। आचार्य की प्रेरणा से उनके परिवार के 6 सदस्यों ने भी जैन साधु के योग्य संन्यास ग्रहण किया। उनके माता-पिता के अतिरिक्त 2 छोटी बहनों व 2 छोटे भाइयों ने भी आर्यिका एवं मुनि दीक्षा धारण की।

आचार्य विद्यासागरजी का बाह्य व्यक्तित्व भी उतना ही मनोरम है जितना अंतरंग। तपस्या में वे वज्र-से कठोर हैं, पर उनके मुक्त हास्य और सौम्य मुखमुद्रा से कुसुम की कोमलता झलकती है। वे आचार्य कुंदकुंद और समंतभद्र की परंपरा को आगे ले जाने वाले आचार्य हैं तथा यशोलिप्सा से अलिप्त व शोर-शराबे से कोसों दूर रहते हैं। शहरों से दूर तीर्थों में एकांत स्थलों पर चातुर्मास करते हैं।

खजुराहो में लगभग 2,000 विदेशियों ने मांसाहार व शराब आदि का त्याग किया। आयोजन व आडंबर से दूर रहने के कारण वे प्रस्थान की दिशा व समय की घोषणा भी नहीं करते हैं। वे अपने दीक्षार्थी शिष्यों को भी पूर्व घोषणा के बिना ही दीक्षा हेतु तैयार करते हैं। हाथी, घोड़े, पालकी व बैंड-बाजों की चकाचौंध से अलग सादे समारोह में वे दीक्षा का आयोजन करते हैं।

इस युग में ऐसे संतों के दर्शन अलभ्य-लाभ हैं। आचार्य जैसे तपोनिष्ठ व दृढ़संयमी हैं, वैसी ही उनकी शिष्यमंडली भी है। धर्म के पथ पर उग आई दूब को उखाड़ फेंकने में यह शिष्य-मंडली अवश्य समर्थ होगी। केवल कथनी में धर्मामृत की वर्षा करने वालों की भीड़ के कारण धर्म के क्षेत्र में दु:स्थिति बनी हुई है। आचार्यश्री विद्यासागरजी जैसे संत इस दु:स्थिति में आशा की किरण जगाते हैं। वे अपने बाल भी प्रत्येक 2 माह में अपने हाथों से निकालते हैं एवं 24 घंटे में 1 बार भोजन एवं जल ग्रहण करते हैं।

योगी, साधक, चिंतक, आचार्य, दार्शनिक आदि विविध रूपों में उनका एक रूप कवि भी है। उनकी जन्मजात काव्य प्रतिभा में निखार संभवत: उनके गुरुवर ज्ञानसागरजी की प्रेरणा से आया है। आपका संस्कृत पर वर्चस्व है ही, शिक्षा कन्नड़ भाषा में होते हुए भी आपका हिन्दी पर असाधारण अधिकार है।

आपने हिन्दी भाषा अभियान के लिए अपना समर्थन दिया है। हिन्दी भाषा, मातृभाषा को हम भूले नहीं और ‘इंडिया’ नहीं ‘भारत’ बोलें, इसके लिए भी आपने मार्गदर्शन व प्रेरणा दी है। आपके सारे महाकाव्यों में अनेक सूक्तियां भरी पड़ी हैं जिनमें आधुनिक समस्याओं की व्याख्या तथा समाधान भी हैं। जीवन के संदर्भों में मर्मस्पर्शी वक्तव्य भी है। सामाजिक, राजनीतिक व धार्मिक क्षेत्रों में व्याप्त कुरीतियों का निदर्शन भी है।

आचार्यश्री विद्यासागरजी महाराज वीतराग, निस्पृह, करुणापूरित, परीषहजयी समदृष्टि साधु के आदर्श मार्ग के लिए परम आदर्श हैं। आपकी भावना जन-जन के कल्याण की रहती है। ऐसे दुर्लभ संत का समागम सभी को प्राप्त हो तथा उनके द्वारा दीक्षित शिष्य भी दर्शन के लिए लालायित रहते हैं।

।।जय जिनेन्द्र।।

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